बिल्कुल आप किसी से कुछ खरीदने न खरीदने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन सब्जील को हिंदू-मुस्फलिम बनाने का यह अभियान एक सोची-समझी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिश के तहत चल रही है क्योंकि संघसंप्रदाय के पास हिंदू-मुस्लिम नरेटिव से चुनावी ध्रुवीकरण के अलावा आर्थिक-सामाजिक समस्याओं से निपटने का कोई कार्यक्रम नहीं है, महामारी का सांप्रदायिककरण स्स्फूर्त नहीं है। चुंगी पर हिंदू फल की मेरी पोस्ट पर सारे भक्त टूट पड़े। इलाहाबाद के एक दोस्त द्वारा अपने एनजीओ के और चंदे से इकट्ठा फंड तथा मर्केंटाइल बैंक से कर्ज लेकर कौशांबी में हजारों बेआसरा लोगों को राशन बांटने की पोस्ट पर एक भी कमेंट नहीं क्योंकि उस दोस्त का नाम परवेज है। मठ के सन्यासी के टेस्ट के लिए शरीर ऑफर करने की पोस्ट पर 50-60 कमेंट थे। मर्दवाद की ही तरह सांप्रदायिकता कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं बल्कि राजनैतिक विचारधारा है जो दैनंदिन क्रिया-कलापों और सामाजिक विमर्श में निर्मित पुनर्निर्मित किया जाता है। सारे मुसलमान गंदे हैं तो आप रोशन चाचा से राशन क्यों खरीदते हैं? फल और सब्जी में हिंदू-मुसलमान करना एक सुनियोजित अभियान है, बहुत लोग जिसके अनजाने में प्यादे बन जाते हैं। जिसे अपनी सब्जी रोज बेचनी है, वह सब्जी पर थूककर या मूत कर क्यों अपना धंधा चौपट करेगा? मुसलमानों के बारे में ऐसे बात की जाएगी जैसे वे भी हमारी तरह हाड़-मांस के इंसान न होकर किसी और ग्रह के अलग किस्म के जीव हों? मेरे बड़े भाई की यही हाल है, उनके मुसलमान दोस्त अलग हैं बाकी गंदे।
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