Uday Bhan Dwivedi वाम प्रलाप तो अंधभक्त ही कर रहे हैं, मर्सिया भी पढ़ते हैं और आतंक में अभुआते भी रहते हैं। रावण ने वही किया जो उससे वाल्मीकि या तुलसी ने करवाया जो उनके आदर्शों के विपरीत था तथा अपने आदर्श राम से। स्त्री को अमूल्य संपत्ति समझना जिसे वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता के पुरस्कार रूप में पाना उनका आदर्श था। किसी स्त्री का स्वतंत्र होना और प्रेम का प्रस्ताव करना उनके मर्दवादी आदर्शों के विपरीत था इसलिए उसका अंग-भंग करवा दिया। बहन के अंगभंग करने के बदले में रावण से लक्ष्मण पर नहीं आक्रमण करवाया, सीता का अपहरण करवाया। उसे खलनायक चित्रित करने के बावजूद सीता को सखसुविधा के साथ फाइव स्टार गेस्ट हाउस में रखवाया जहां वह आग्रह ही करता रहा बल प्रयोग नहीं किया। इस तरह इनकचित्रित रावण भी नैतिकता में राम-लक्ष्मण से ऊंचे पायदान पर खड़ा है। छल-कपट और विभीषणों की गद्दारी से पराजित होने के बावजूद अपनी बहन के अपराधी लक्ष्मण को ज्ञान देने के लिए राजी हो जाता है। लेकिन लेखक के मर्दवादी आदर्शों के राम सीता को दुत्कार देते हैं कि उन्होंने वह युद्ध रघुकुल की नाक के लिए लड़ा एक औरत के लिए नहीं और अग्निपरीक्षा के लिए वाध्य करते हैं। अग्निपरीक्षा के बावजूद गर्भवती सीता को मर्दवादी नैतिकता के नाम पर राज्य से निष्कासित कर देते हैं। चलिए प्रणाम।
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