मुसंघी या जैससंघी एक ही बात हुई। संघी का मुस्लिम काउंटरपार्ट मुसंघी, जहां बहुमत संघी हो वहां मुसंघी आसानी से समझ आने वाली और लगने वाली शब्दावली है। सारे किस्म के फिरकापरस्त अपने धर्म को वैज्ञानिक और सहिष्णु बताते हैं और दूसरे धर्म धर्म को पोंगापंथ या कठमुल्लापन और दूसरे धर्म के बारे में आलोचना की हिम्मत की चुनौती देते हैं। और इस क्लोज्ड ग्रुप में किससे डरने की जरूरत होगी जिसमें डर डर कर वक्तव्य देने वाले मुसलमान कफील ही दिखते हैं कभी कभी?
मैंने कभी किसी को हरामखोर नहीं कहा, 'जंग चाहता जंगखोर ताकि राज करे हरामखोर' एक नारा है। इसके अलावा किसी को कभी हरामखोर कहा हो तो बताइए। बाकी आप किसको हरामखोर कहते हैं आपकी मर्जी। मैं नक्सली नहीं हूं, नक्सलबाड़ी की विरासत के दर्जनों दावेदार हैं जिनमें सीपीआई (माओवादी) ही सशस्त्र आंदोलन की राजनीति में है। मेरा उनसे मूलभूत सैद्धांतिक मतभेद है, लेकिन वे एक राजनैतिक दल हैं, जिसमें हमारे आप जैसे इंसान हैं। मतभेदों के बावजूद जैसे भाजपा या कांग्रेस या सपा या सीपीआई को हरामखोर नहीं कहता वैसे ही सीपीआई(माओवादी) को भी नहीं।
मुसंघी या जैससंघी एक ही बात हुई। संघी का मुस्लिम काउंटरपार्ट मुसंघी, जहां बहुमत संघी हो वहां मुसंघी आसानी से समझ आने वाली और लगने वाली शब्दावली है। सारे किस्म के फिरकापरस्त अपने धर्म को वैज्ञानिक और सहिष्णु बताते हैं और दूसरे धर्म धर्म को पोंगापंथ या कठमुल्लापन और दूसरे धर्म के बारे में आलोचना की हिम्मत की चुनौती देते हैं। और इस क्लोज्ड ग्रुप में किससे डरने की जरूरत होगी जिसमें डर डर कर वक्तव्य देने वाले मुसलमान कफील ही दिखते हैं कभी कभी?
200-250 की उंमादी भीड़ में हो सकता है कोई शोएब भी हो, मैंने जितने वीडियो देखे मुझे शोर में ऐसी कोई आवाज नहीं सुनाई दी। एक महामंडलेश्वर इसका खंडन करते सुनाई देते हैं, सरकार और पुलिस ने इसे सांप्रदायिक रंग देने वालों के खिलाफ चेतावनी दी है। 10-12 नाबालिगों समेत 110 लोग गिरफ्तार हुए हैं। भीड़ हिंसा एक गंभीर समस्या है जो प्रायोजकों के नियंत्रण से बाहर हो जाती है। भीड़ हिंसा का मौजूदा दौर संघ परिवार द्वारा प्रायोजित गोरक्षी भीड़ ङिसाओं से हुई। अफवाहबाजों को कड़ी सजा की मिशाल से ही इसे रोका जा सकता है।
Raj K Mishra समाज को बिखराव की तरफ ले जाने का काम तो फिरकापरस्ती का जहर फैलाने वाले करते हैं हमारा मोटिव इस जहर को रोककर समाज को जोड़ना, मेरी कोई राजनैतिक पार्टी नहीं है न मुझे चुनाव लड़ना है, मुल्क का अमन चैन ही मेरा राजनैतिक लक्ष्य है। मैं मूल्य थोपता नहीं लोगों को धर्मांधता और फिरकापरस्ती की नफरत छोड़कर विवेकसील मानवीय संवेदना वाला इंसान ही बनाना चाहता हूं इसमें कोई स्वार्थ नहीं परमार्थ है। आपके सारे आरोप दुर्भावनापूर्ण एवं सांप्रदायिक पूर्वाग्रहग्रस्तता के परिणाम हैं। सांप्रदायिकता का विरोध सामंजस्य बनाने की ही मुह्म है, लेकिन सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से ओतप्रोत सोच को उल्टा लगेगा। सांप्रदायिकपूर्वाग्रह से मुक्त होने के लिए आपको गंभीर आत्मावलोकन और आत्मालोचना करने की जरूरत है, यह जरूरत किसी सार्वजनिक उत्तरदायित्व के लिए बढ़ जाती है। You can do justice to yourself only by transcending personal (including group & religious) considerations. Bye. सुबह से ही फेसबुक बंद करने की कोशिस में हूं, काफी पेंडिंग काम है, मेरी बातों पर गहनता से विचार करो, अपनी प्रतिभा तथा अनंत ऊर्जा का इस्तेमाल मानवता की भलाई में करिए, जो भी आपको मानवता की भलाई लगे। मैंने तो कहा नहीं कि मार्क्स हमेशा सही हैं, मैं तो लगातार यही लिखताहूं कि मार्क्सवाद एक गतिशील विज्ञान है। मार्क्स की 1848 की संस्थापनाओं और 1867 की संस्थापनाओं में अंतर है। भारत पर मार्क्स के 1953 के और 1957-58 के लेखों की संस्थापनाओं में अंतर है। शुभकामनाओं के साथ, सादर। 🙏🙏🙏
मैंने कभी किसी को हरामखोर नहीं कहा, 'जंग चाहता जंगखोर ताकि राज करे हरामखोर' एक नारा है। इसके अलावा किसी को कभी हरामखोर कहा हो तो बताइए। बाकी आप किसको हरामखोर कहते हैं आपकी मर्जी। मैं नक्सली नहीं हूं, नक्सलबाड़ी की विरासत के दर्जनों दावेदार हैं जिनमें सीपीआई (माओवादी) ही सशस्त्र आंदोलन की राजनीति में है। मेरा उनसे मूलभूत सैद्धांतिक मतभेद है, लेकिन वे एक राजनैतिक दल हैं, जिसमें हमारे आप जैसे इंसान हैं। मतभेदों के बावजूद जैसे भाजपा या कांग्रेस या सपा या सीपीआई को हरामखोर नहीं कहता वैसे ही सीपीआई(माओवादी) को भी नहीं।
मुसंघी या जैससंघी एक ही बात हुई। संघी का मुस्लिम काउंटरपार्ट मुसंघी, जहां बहुमत संघी हो वहां मुसंघी आसानी से समझ आने वाली और लगने वाली शब्दावली है। सारे किस्म के फिरकापरस्त अपने धर्म को वैज्ञानिक और सहिष्णु बताते हैं और दूसरे धर्म धर्म को पोंगापंथ या कठमुल्लापन और दूसरे धर्म के बारे में आलोचना की हिम्मत की चुनौती देते हैं। और इस क्लोज्ड ग्रुप में किससे डरने की जरूरत होगी जिसमें डर डर कर वक्तव्य देने वाले मुसलमान कफील ही दिखते हैं कभी कभी?
200-250 की उंमादी भीड़ में हो सकता है कोई शोएब भी हो, मैंने जितने वीडियो देखे मुझे शोर में ऐसी कोई आवाज नहीं सुनाई दी। एक महामंडलेश्वर इसका खंडन करते सुनाई देते हैं, सरकार और पुलिस ने इसे सांप्रदायिक रंग देने वालों के खिलाफ चेतावनी दी है। 10-12 नाबालिगों समेत 110 लोग गिरफ्तार हुए हैं। भीड़ हिंसा एक गंभीर समस्या है जो प्रायोजकों के नियंत्रण से बाहर हो जाती है। भीड़ हिंसा का मौजूदा दौर संघ परिवार द्वारा प्रायोजित गोरक्षी भीड़ ङिसाओं से हुई। अफवाहबाजों को कड़ी सजा की मिशाल से ही इसे रोका जा सकता है।
Raj K Mishra समाज को बिखराव की तरफ ले जाने का काम तो फिरकापरस्ती का जहर फैलाने वाले करते हैं हमारा मोटिव इस जहर को रोककर समाज को जोड़ना, मेरी कोई राजनैतिक पार्टी नहीं है न मुझे चुनाव लड़ना है, मुल्क का अमन चैन ही मेरा राजनैतिक लक्ष्य है। मैं मूल्य थोपता नहीं लोगों को धर्मांधता और फिरकापरस्ती की नफरत छोड़कर विवेकसील मानवीय संवेदना वाला इंसान ही बनाना चाहता हूं इसमें कोई स्वार्थ नहीं परमार्थ है। आपके सारे आरोप दुर्भावनापूर्ण एवं सांप्रदायिक पूर्वाग्रहग्रस्तता के परिणाम हैं। सांप्रदायिकता का विरोध सामंजस्य बनाने की ही मुह्म है, लेकिन सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से ओतप्रोत सोच को उल्टा लगेगा। सांप्रदायिकपूर्वाग्रह से मुक्त होने के लिए आपको गंभीर आत्मावलोकन और आत्मालोचना करने की जरूरत है, यह जरूरत किसी सार्वजनिक उत्तरदायित्व के लिए बढ़ जाती है। You can do justice to yourself only by transcending personal (including group & religious) considerations. Bye. सुबह से ही फेसबुक बंद करने की कोशिस में हूं, काफी पेंडिंग काम है, मेरी बातों पर गहनता से विचार करो, अपनी प्रतिभा तथा अनंत ऊर्जा का इस्तेमाल मानवता की भलाई में करिए, जो भी आपको मानवता की भलाई लगे। मैंने तो कहा नहीं कि मार्क्स हमेशा सही हैं, मैं तो लगातार यही लिखताहूं कि मार्क्सवाद एक गतिशील विज्ञान है। मार्क्स की 1848 की संस्थापनाओं और 1867 की संस्थापनाओं में अंतर है। भारत पर मार्क्स के 1953 के और 1957-58 के लेखों की संस्थापनाओं में अंतर है। शुभकामनाओं के साथ, सादर। 🙏🙏🙏
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