Wednesday, September 28, 2011

शहीद-ए- आज़म के जन्म-दिन पर

शहीद-ए- आज़म के जन्म-दिन पर
ईश मिश्र
शहीदे-आज़म भगत सिंह को लाल सलाम
लाल सलाम, लाल सलाम, लाल-लाल सलाम

है आज एक ऐसे इन्किलाबी का जन्मदिन
बनाने निकला था जो समाज एक शोषण-विहीन

कांपते थे जिसके नाम से सभी तरह के गाँधी-इरविन
नाम है उसका शहीदे-आज़म भगत सिंह

थे जब किशोरावस्था में
देखा लूट और जुल्म साम्राज्यवादी व्यवस्था में

निकल पड़े नवजवानों में बिप्लव का बिगुल बजाने
छात्रों-नवजवानों में इन्सानियत का अलख जगाने

करना है इन्किलाब तो जरूरी है संगठन
किया उसने नवजवान भारत सभा का गठन

फैलाया सन्देश मानवता की एकता है अखंड
जाति-धर्म-क्षेत्र के भेद हैं मनुष्य-निर्मित पाखण्ड

देख दुर्दशा किसानों की
कीर्ति-किसान सभा की स्थापना की

लिखा क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास
कराया आशा की एक नयी दुनिया का आभास

होती है जब भी मुश्किलों से मुलाक़ात
प्रेरणा देती है भगत सिंह की यह बात

"लड़ते हैं क्रांतिकारी ज़ुल्म के खिलाफ
क्योंकि मजलूम को मिलेगा तभी इन्साफ

बांधते हैं सर पर कफ़न मजदूरों-मजलूमों के लिए
क्योंकि सिर्फ यही एक रास्ता है इंकिलाबी उसूलों के लिए"

"फरियादी बनी थी जब राष्ट्रवाद की मुख्यधारा
शुरू के क्रांतिकारियों ने दिया वन्देमातरम का नारा

नहीं था प्रचलित तब तक समाजवाद का वैज्ञानिक मर्म
वैचारिक हथियार बना था उनका इसीलिये धर्म"

"होँ हथियार विचारों के अगर मजबूत
होती नहीं धर्म की वैशाखी की जरूरत"

हो रहा था जब धार्मिक प्रतीकों का महिमा-मंडन
युवा भगत ने तब किया धर्म-कर्म के पाखंडों का खंडन

ढूंढ रहे थे वे जब इन्किलाब की कारगर डगर
पड़ गयी थी उनपर हुक्मरानों की भी नज़र

हो गयी थीं उनकी नीद काफूर
पहुँच गए भगत शहर कानपुर

निकालते थे गणेश शंकर विद्यार्थी अख़बार प्रताप
था जिनका क्रांतिकारियों का पुराना साथ

किया वहां से नयी शुरुआत
मिल गया जो भगवती और शिव वर्मा का साथ

बेचैन थे क्रांतिकारी काकोरी के बाद
छुपकर घूम रहे थे चंद्रशेखर आज़ाद

मिले देश भर के क्रांतिकारी दिल्ली में एक साथ
दिया नया नारा, इंक़िलाब जिंदाबाद

हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएसन का गठन किया
काकोरी के वांछित आज़ाद बने जिसके मुखिया

मकसद नहीं था सिर्फ खत्म करना अंग्रेजी राज
बनाना था एक शोषण-दमन से मुक्त समाज

फेंका जब संसद में में साथ साथियों के बम
मच गया हुक्मरानों में भारी हडकंप

मकसद था बहरों को बम का दर्शन सिखाना
प्रवृत्ति नहीं क्रांतिकारी की अकारण जान लेना

था इंतज़ाम बचने का गिरफ्तारी से
फिर भाग-निकलने का जेल और कचहरी से

कर दिया भगत ने इन सबसे इन्कार
लगता था वह युवक सुकरात साकार

अकाट्य थे तर्क उसके सुकरात की तरह
हैरान था जज सुन भगत सिंह की जिरह

डरता है अत्याचारी निर्भीक विचारों से
इतिहास भरा पड़ा है ऐसे समाचारों से

समकालीन थे उनके एन्टोनियो ग्राम्सी
आतंकित थे विचारों से जिनके सारे फासीवादी

फासीवादी जज ने था दिया फैसला
बंद कर दो बीस साल तक इस दिमाग का सिल्सिला

वह तो वे कर न सके
ग्राम्सी जेल में लिखते रहे

काश! हत्यारे थोड़ी और देर करते
भगत सिंह हमें कितना कुछ और दे जाते

था सारा अवाम युवा भगत की फांसी के खिलाफ
साथ इरविन के गोल-मेज में उठाना भी लगा गांधी को नाइंसाफ

गांधीवादी अहिंसा अजूबी है
"वैदिक हिंसा हिंसा न भवति", उसकी खूबी है

गांधी ने कभी न सोचा था ऐसी आवभगत
कराची कांग्रेस के रास्ते में काले झंडे से स्वागत

कर रहे थे भगत सिंह लेनिन से वैचारिक मुलाक़ात
थे थोड़े ही दिन जीने के उनके पास

आया पुजारी लेकर गुरु-ग्रन्थ साथ
बोला अब तो नवा लो रब को माथ

भगत सिंह नास्तिक थे मार्क्स की तरह
भाग गया पुजारी न कर सका जिरह

डरते नहीं थे वे भूत और भगवान से
डरा सकेगा उनको कौन मौत के विधान से

निकले थे जो परवाने सर पर इंकिलाबी कफ़न बाँध कर
हंसते हुए लटके फांसी पर इन्किलाब जिंदाबाद बोलकर

इन्किलाब ज़िदाबाद, जिंदाबाद इन्किलाब
भगत सिंह को लाल सलाम, राजगुरु,सुखदेव को लाल सलाम

२९.०९.२०११

Tuesday, September 13, 2011

प्रोफ़ेसर की चिंता

प्रोफ़ेसर की चिंता
प्रोफ़ेसर साहब कुछ चिंता में थे
मैंने कहा
इसे ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़ समझिये
सुन मेरी बात लगा उन्हें अघात
कर दिया हो जैसे उनपर मैंने बज्रपात
गुस्से से गिरने लगा मुह से उनके झाग
बोले
दो मत ऐसे आशीर्वाद अनिष्ट
जानता हूँ
हो तुम पक्के कम्युनिस्ट
देश-द्रोही, दुष्ट, कृतघ्न, फासिस्ट
लाल झंडे टेल था जब रूस
तुम सब थे उसके जासूस
रूस-ओ-चीन में था जब तुम्हारा राज
बंद कर देते थे वहां हर आवाज
पैदा होकर रूस में
मार्क्स ने दिया क्रान्ति का मंत्र
मजदूरों के हाथ में होगा शासन-तंत्र
आया जब कम्युनिस्टों का शासन
मार्क्स को दे दिया निर्वासन
माँगा सारे कम्युनिस्टों की तरफ से जब क्षमा
तब जाकर उनका क्रोध थमा.

Wednesday, September 7, 2011

Marxism

Marxism is a science of comprehending and changing the world, consisting of sets of empirically verifiable/provable theorems and historically vindicated laws of the social dynamics, not of philosophically abstracted dogmas. "In practice man must prove the truth" and not attribute to some God or Hegel or Marx. For Marx and Marxism, there cannot be any final knowledge; Knowledge is continuously evolving process, there is no climax or the highest summit of knowledge from which we look down the slopes we have climbed. The process of the knowledge did not stop with Vedas/Buddha/Plato/Hegel or Marx. To be Marxist is to be critical -- self-critical to be precise. to be a Marxist is to resolve the contradiction of praxis.

Sunday, September 4, 2011

बातें बहुत बाकी हैं

बातें बहुत बाकी हैं
ईश मिश्र
रातें बहुत बाकी हैं
बातें बहुत बाकी हैं
सफ़र लम्बा है हमसफ़र!
दूरी बहुत बाकी है
चलते हैं हम साथ जिंदगी की राह में कुछ दूर तक
ज़िंदगी का सफ़र अभी आगे बाकी है बहुत-बहुत दूर तक
निगाह होती है सदा सुदूर अगली फिर उससे और उससे अगली मंजिल पर
कटता है ऐसे ही ज़िंदगी का अलमस्त सफ़र
छोटी सी सुखद सह-यात्रा आती है याद हर पहर
मिल जाएँ गर फिर कभी संयोगों के संयोग से
ऐसी हो छोटी सी सहयात्र कि याद आये पूरे मनोयोग से.

Friday, September 2, 2011

गम-ए-जहां

गम-ए-जहां
ईश मिश्र
जब बात शायरी सी लगने लगे
दिल में कुछ-कुछ होने लगे
कोई शूरत आँखों में डोलने लगे
दुनिया की जनसंख्या
एक में सिमटने लगे
गहन आनंद का साथ
सघन पीड़ा भी निभाने लगे
अंधी मुहब्बत का एहसास सताने लगे
तब
मुश्किल चुनाव है ऐसे में
चुनना हो जब गम -ए-जहां और गम-ए-दिल में
करूंगा मै तो गम-ए-जहां का हिसाब
शामिल हो जिसमे महबूब का भी सबाब



Thursday, September 1, 2011

मारुती कर्मचारियों की हड़ताल के नाम


मारुती कर्मचारियों की हड़ताल के नाम

ईश मिश्र

जुड़े हुए हैं हड़ताल और हथियार के रास्ते
इनका वजूद है हालात-ए-तब्दीली के वास्ते
हड़ताल बन जाती एक कारगर हथियार
बन जाए जो जनाधार अपार
नहीं है महज ये रोजी-रोटी की लड़ाई
मजदूर को चाहिए उसकी वाजिब कमाई
कारीगरी-ओ-कौशल से बनाता भाँति-भाँति की कारें
चलती हैं जिनपर रंग-विरंगी सरकारें
बात करता है वह जब मेहनत के अधिकारों का
दुश्मन बन जाता है सभी सरकारों का
करते है वह जब भी हड़ताल
शुरू कर देती हैं वर्दियां कदम-ताल
कहने को तो ये जनता के रक्षक हैं
जनता में केवल मारुति-टाटा-पास्को से नरभक्षक हैं
होता रहा हडतालों पर गर ऐसा ही प्रहार
बदल जाएगा उनका सार-आकार-प्रकार
होगा हथियार का पथ प्रशस्त
होगा जो हड़ताल का सहयोगी विश्वस्त
काबिज हो शस्त्र-शास्त्र पर बदलेंगे उपयोग
नहीं रहेगा दुनिया में भेद-भाव का रोग
०२.०९.२०११.