Sunday, April 12, 2020

लल्ला पुराण 300 (फिरकापरस्ती)

यदि यह पोस्ट मुझे इंगित करके लिखी गयी है तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं,
ऍ. मैंने एक 1200 से अधिक शब्दों की बिंदुवार पोस्ट डाला था शायद कम लोगों ने पढ़ा हो।
. विरासत में मिले मेरे संस्कार तो आप सब लोगों की ही तरह ब्राह्मणवादी ही थे, शिक्षा प्रक्रिया का एक अंग होता है unlearning ज्यादातर लोग इस प्रक्रिया से खुद को वंचित रखते हैं और विरासत में मिले संस्कारगत मूल्यों के साथ जीवन बिता देते हैं। अनलर्निंग की प्रक्रिया में संस्कारगत मूल्यों को विवेक-अर्जित मूल्यों से विस्थापित करना पड़ता है। विद्वता तो मेरा पास है नहीं तर्क के साथ अपशब्दों का प्रयग नहीं करता ब्लकि अपशब्दों के जवाब में कभी कुछ अप्रिय लिखा जाता हो, कोई बदतमीजी करेतो उसेे हो सकता है बदतमीज कह देता हूं। मेरे किसी से कोई युद्ध नहीं कि किसी को परास्त और अपमानित करके उसका विचार परिवर्तन करके डफली लाल झंडा थमाना चाहूं, इसके लिए मेरे पास फुर्सत नहीं है घृणा फैलाना तो फिरकापरस्ती का काम है हमारा काम तो प्रेम और सौहार्द फैलाना है। नफरत का जहर फैलाने वालोंकी घृणा और उपहास की मुझे कोई चिंता नहीं है वह तो लगातार मिल ही रहा है। , कुछ लोग तो मेरा नाम देखते ही उफनने लगते हैं, शांत रहें तो अच्छा है। यह आपकी हमारी विचारधारा से अनभज्ञता और पूर्वाग्रह-दुराग्रह है कि आपको लगता है कि घृणा हमारे काम का आधार है वह तो फिरकापरस्तों का काम है। हम तो लगातार कोशिस यही करते रहे हैं कि लोग पूर्वादुराग्रह से ऊपर उठकर, फिरकापरस्ती का जहर थूककर मानवता से प्रेंम करने वाले विवेक सम्मत इंसान बनें। बाकी जिसके पास जो होदा वह वही देगा, जिसके पास घृणा और उपहास ही है उसका क्या किया जा सकता है?

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