यह इसी ग्रुप में मणिबाला की पोस्ट पर एक कमेंट है। कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का गिरोह आतताई या पुण्यात्मा हो सकता है, लाखों-करोड़ों का समुदाय नहीं। एक या कई मिश्र अगर कोई कुकृत्य करते हैं तो उसके आधार पर दुनिया भर के मिश्राओं को कुकर्मी कहना कमनिगाही और जहालत है।
राही मासूम रजा द्वारा महाभारत के संवाद लिखने को लेकर दोनों ही संप्रदायों के पोगापंथियों के विरोध की खबर जब महाभारत बन और टेलीकास्ट हो रहा था तभी हिंदी-अंग्रेजी के कई अखबारों में छपा था, राही एक बड़े लेखक थे जिनके आधा गांव और टोपी शुक्ला जैसे उपन्यास, कालजयी रचनाएं हैं। किसी संप्रदाय में जन्मने में उनका कोई हाथ नहीं था, एक संयोग था, जिसे मैं जीववैज्ञानिक दुर्घटना कहता हूं, जैसे बाभन घर में मेरा जन्मना। एक शिक्षक होने के नाते, शिक्षा व्यवस्था पर अफशोस होता है कि उच्च शिक्षा के बाद लोग इतने आतताई तथा और अधिक जाहिल हो जाते हैं कि व्यक्तित्व का मूल्यांकन किसी के कामों और विचारों के आधार पर करने की बजाय उसके जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना के आधार पर करते हुए पूरे समुदाय को आतताई या पुण्यात्मा घोषित कर देते हैं। ब्राह्मणवाद (जातिवाद) का यही मूलमंत्र भी है। ऐसे आतताई यदि शिक्षक या न्यायाधीश बन जाएं तो वह शिक्षा व्यवस्था या न्याय व्यवस्था कैसी होगी?, अंदाज लगाया जा सकता है। ऐसे जाहिल आतताई किसी व्यक्ति की अच्छाई साबित करने के लिए उसकी जाति या धर्म के कितने लोग गरीब हिंदुओं के भोजन की व्यवस्था करते हैं? यह बात वे ऐसे करते हैं जैसे उन्होंने दुनिया या देश भर में कोई जनमत संग्रह किया हो? पहली बात तो हिंदू कोई होता ही नहीं, कोई बाभन होता है कोई दलित या कोई और जाति जो परस्पर एक दूसरे पर अन्याय करते हैं। ऐसा सवाल करने वाला यह नहीं बताता कि कितने ब्राह्मण कितने दलितों को अपने घर में समानता के आधार पर भोजन की व्यवस्था करते हैं? या उनके घरों में जाकर भोजन करते हैं, छुआछूत की बात मना करते हुए साफ-सफाई का तर्क भले दें। ऐसा करते हुए प्रकारांतर वे (ब्राह्मण) दलितों पर गंदा रहने और गंदगी फैलाने का भी लांक्षन लगाते हैं तथा जन्म के संयोग के आधार पर व्यक्तित्व के मूल्यांकन का ब्राह्मणवादी मूलमंत्र की पुष्टि करते हैं। निवेदन है कि इस कमेंट पर गालियां मर्यादित भाषा में ही दें।
No comments:
Post a Comment