एक मित्र ने मुसलमान स्त्रियों में हिंदू स्त्रियों के सापेक्ष शिक्षा की कमी पर कमेंट किया, उस पर:
आपके गांव की कितनी ब्राह्मण या कायस्थ लड़कियां उच्च शिक्षा में गयी हैं और कितनी दलित? उनमें से कितनी मेडिकल या इंजीनियरिंग में गयी हैं? शिक्षा, खासकर स्त्रियों की शिक्षा आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। मेरी बहन मेरे गांव ही नहीं उस पूरे ग्रामीण इलाके में गांव के स्कूल से आठवीं के आगे की पढ़ाई करने वाली पहली लड़की है, वह भी मेरे चलते। 1982 में कक्षा 8 से आगे पढ़ने के उसके अधिकार के लिए पूरे खानदान से भीषण युद्ध करना पड़ा था। मैं खुद छात्र था एमफिल पूरा कर पीएचडी की पढ़ाई शुरू किया था। जेएनयू में एक भाई की पढ़ाई की भी जिम्मेदारी थी (आज वह उद्योगपति है)। कोई यह पूछ ही नहीं रहा था कि तुम खुद ही नालायक हो कहीं पढ़ने जाएगी तो खर्च कहां से आएगा? खैर मैं भी जिद्दी था, ले जाकर वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में भर्ती करा दिया जहां से उसने कक्षा 9 से एमए बीएड की पढ़ाई की। दिल्ली के एक नामी स्कूल में टीचर है। गांवों में कॉलेज खुल जाने से मेरे गांव की दलित और यादव आदि समुदायों की लड़कियां अब कॉलेज जाने लगी हैं। मुसलमानों में पसमांदा (ओबीसी) और कारीगर शूद्र जातियों से धर्मांतरित समदायों (दर्जी, बढ़ई, धुनिया, जुलाहा, कुरेशी आदि) का अनुपात ज्यादा है। सामाजिक, आर्थिक, सास्कृतिक प्रगति के साथ शिक्षा तथा स्त्रियों की शिक्षा का प्रसार हो रहा है। उच्च वर्ग के मुसलमानों में स्त्रियों की शिक्षा का वही अनुपात है, जो उच्च वर्ग के हिंदुओं में।
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