जी, सापेक्ष। दोनों ही वर्णाश्रमी समाजों में राजा हैं। सोने की लंका कही जाती थी तो प्रजा सुखी संपन्न रही होगी। दोनों ही ऐसे समाज के प्राणी थे जहां स्त्री बहुमूल्य वस्तु मानी जाती थी जिसे वेटलिफ्टिंग जैसी प्रतियोगिता में पुरस्कार के रूप में जीता जाता था। रावण उस धनुष को नहीं उठा सका राम ने उठा लिया, यह अलग बात है सीता रोज उसे इधर से उधर करती रहती थी। विस्तार में न जाकर सूर्पनखा एक ऐसी संस्कृति की थी जिसमें औरते भी प्रपोज कर सकती थी लेकिन राम के पुरुषवादी संस्कार में वह इतना बड़ा अपराध था कि उसका अंग-भंग करवा दिया। रावण को अपनी बहन की यह हाल करने वाले पर क्रोध आना स्वाभाविक था वह अपने ज्ञान (जादू) का इस्तेमाल करते हुए बदले में राम की पतनी का अपहरण कर लिया जो कि गलत था, लक्ष्मण का बदला उनकी भाभी से नहीं लेना था, लेकिन वह भी पुरुषवादी समाज का ही था। सीता का अपहरण कर उन्हे फाइव स्टार गेस्ट हाउस में नौकर-चाकर के साथ रखा, कभी बल प्रयोग नहीं किया, आग्रह ही करता रहा कि कहां बनवासियों के चक्कर में हो, राम छल-कपट से बिना किसी दुश्मनी के बाली को मारा, विभाषण से गद्दारी कर रावण को मारा। युद्ध के बाद सीता से कहा कि युद्ध उनके नहीं रघुरुल की नाक के लिए जीता। अग्नि परीक्षा के बाद भी गर्भवती करके घर से निकाल दिया।
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