Thursday, April 23, 2020

मार्क्सवाद 215 (सामाजिक चेतना का जनवादीकरण)

एक छात्र-मित्र ने अपने इलाके में भट्ठा मजदूरों के शोषण के खिलाफ संघर्ष के बारे में कुछ सवाल पूछा--
"1-सर पूंजीपति मजदूरों का शोषण करते हैं तो उनके खिलाफ एक छात्र आवाज कैसे उठा सकता है?
2- मजदूरों मे जागरूकता कैसे आयेगी?
3- मजदूर चाहकर भी उनका विरोध नही कर पाता क्योंकि उनकी रोजी-रोटी उन्हीं पर निर्भर रहती है|मजदूर यदि उनका विरोध भी करदे तो अन्त रोजी-रोटी के लिए उन्हीं के पास जाना होगा|
4- इन पूंजीपतियों से लड़ने की रणनीति क्या होगी?

यह बात मै इसलिए पूछ रहा हूं कि मेरे एरिया मे भट्ठा मालिक मजदूरों का खूब शोषण करते हैं|"

छात्र ही बदलाव की अगली कतार में रहा है, वह किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकता है और जनमत तैयार कर सकता है और करना चाहिए तथा अन्याय के खिलाफ मजदूरों के आंदोलन में शरीक हो सकता है और होना चाहिए।

राजनैतिक शिक्षा और साझे हितों के आधार पर साझे संघर्षों में संगठित शिरकत के दौरान साझे हितों और साझे दुश्मन की पहचान के जरिए वर्गचेतना के संचार से मजदूरों में जागरूकता आएगी -- यानि सामाजिक चेतना के जनवादी करण से। भारत में श्रम विभाजन के साथ श्रमिकों में जाति-धर्म के आधार पर श्रमिक विभाजन भी है। जाति-धर्म की मिथ्या चेतनाओं से मुक्ति, वर्ग चेतना के लिए आवश्यक है।

पूंजीवाद ने श्रनिक को श्रम के साधन से मुक्त कर दिया है जिन पर परजीवी धनपशुओं का कब्जा है। श्रमिक आजीविका के लिए धनपशुों को श्रमशक्ति बेचने को अभिशप्त है। धनपशु श्रमशक्ति के उत्पाद का उल्लेखनीय हिस्सा अतिरिक्त मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के रूप में हड़प जाता है। मजदूर को संगठित संघर्ष के जरिए इस शोषण को कम-से-कम करने की कोशिस करनी चाहिए। बेरोजगारों की फौज मजदूर की मोलभाव की ताकत कम करती है। मजदूर को इन्हीं विषम परिस्थियों में आजीविका कमाते हुए क्रांतिकारी स्थितियां पैदा करनी है। क्रांतिकारी बुद्धजीवियों की जिम्मेदारी सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में योगदान करना है।

भट्ठा मजदूरों को संगठित होकर काम की परिस्थितियों में सुधार और मजदूरी में वृद्धि की मांग करनी होगी।

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