Thursday, April 9, 2020

शिक्षा और ज्ञान 280 (ऋगवेद)

ऋगवैदिक समाज प्रमुखतः समतामूलक, देहाती पशुपालक समाज था, उसी काल के विकसित चरण में श्रमविभाजन के आधार पर वर्णव्यवस्था शुरू हुई जो उत्तर वैदिककाल तक जन्मगत बन गयी। बुद्ध के समय तक जन्मगत वर्णव्यवस्था और उसमें पेशेगत जातियां संस्थागत रूप ले चुकी थीं। बुद्ध का समय एक नवजागरण का समय था, अशोक द्वारा सत्ता द्वारा पोषित होने के बाद बौद्ध संस्कृति और जनतांत्रिक शिक्षा के व्यापक प्रभाव के चलते समाज और उसका अर्थतंत्र अतिउन्नत हुआ, जिसे स्वर्णकाल कहा जा सकता है। पुष्यमित्र के साथ बौद्ध संस्कृति एवं शिक्षा के विरुद्ध हिंसक प्रतिक्रांति हुई जो शंकराचार्य तक चलती रही। इस वर्णाश्रमी प्रतिक्रांति की दार्शनिक पुष्टि में पुराण लिखे गए।

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