साधुओंके परिवार हैं कि नहीं, उनको कितना मिला यह तो आप महाराष्ट्र और केंद्र सरकारों से पूछे। अखलाक के हत्यारे जमानत पर छूट गए और योगी सरकार ने उन्हें एनटीपीसी में नौकरी दिला दी, एक हत्यारा जेल में मर गया उसे केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने तिरंगे में लपेट कर शव यात्रा निकाला, जिस इंस्पेक्टर ने अऱलाक के हत्यारों को गिरफ्तार किया उसे बजरंगदल द्वारा इकट्ठी की गयी अफवाहजन्य हिंसा में मार दिया गया। साधुओं को मारने के पीछे वही मोटिव या मोटिव विहीनता थी जो महाराष्ट्र. आसाम और झारखंड में चोरी और बच्चाचोरी की अफवाह जन्य भीड़ हिंसा में मासूमों की हत्याओं के पीछे थी। भीड़ हिंसा पर सेलेक्टिव प्रतिक्रिया देने वाले सभी साधुओं की हत्या के जिम्मेदार हैं। थोड़ा कष्ट करके छोटा सा लेख है पढ़ लीजिए तो मेरे विचार समझ आ जाएंगे। लाक डाउन में साधू वहां पहुंचे कैसे तथा उस गांव की भाजपाई मुखिया से पूछना चाहिए कि इतनी भीड़ कैसे जुटी और इतनी हिंसक कैसे हुई? मेरे लिए मौत मौत में फर्क नहीं है, अखलाक, पहलू, या इंस्पेक्टर सुबोध की मौतें उतनी ही दर्दनाक हैं जितनी साधुओं की, मोत मोत में फर्क करने वाले उतने ही दुर्दांत अपराधी हैं जितने साधुओं के हत्यारे। एक हत्या का जश्न मनाने वालों का दूसरी हत्या पर आंसू बहाना उनके चरित्र का दोहरापन दिखाता है।
इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या इसीलिए की गयी कि उसने अखलाक के हत्यारों के पकड़ा था। आप के अंदर कुछ करने का दम नहीं है कि सब काम मैं करूं? हमने महाराष्ट्र के गृहमंत्री का ट्वीट शेयर किया है जिसमें उसने कहा है कि साधुओं की हत्या का मामला सांप्रदायिक नहीं है, मैंने अपनी बात लेख में लिख दी है लेकिन हिंदू मुस्लिम का भजन गाने वाले फिरकापरस्तों में पढ़ने की आदत होती नहीं, अफवाह ही फैलाते हैं। हम तो कह रहे हैं साधुओं की हत्या अफवाहजन्य भीड़ हिंसा की कड़ी है। हम तो हर अफवाह फैलाने वालों से अपील कर रहे हैं, सब से सवाल कर रहे हैं? आपकी जबान में कुछ दिक्कत है क्या कि आप महाराष्ट्र और केंद्र सरकारों से सवाल नहीं कर सकते कि मैं करूं? आप ही बताइए किसने मारा साधुओं को? मेरे पास जांज एजेंसी तो है नहीं कि आपके आदेश का पालन करते हुए बताऊं किसने मारा साधुओं को? इतनी जहालत का सवाल क्यों करते हैं? कभी कभी पढ़े-लिखों की तरह बात किया कीजिए। सादर।
इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या इसीलिए की गयी कि उसने अखलाक के हत्यारों के पकड़ा था। आप के अंदर कुछ करने का दम नहीं है कि सब काम मैं करूं? हमने महाराष्ट्र के गृहमंत्री का ट्वीट शेयर किया है जिसमें उसने कहा है कि साधुओं की हत्या का मामला सांप्रदायिक नहीं है, मैंने अपनी बात लेख में लिख दी है लेकिन हिंदू मुस्लिम का भजन गाने वाले फिरकापरस्तों में पढ़ने की आदत होती नहीं, अफवाह ही फैलाते हैं। हम तो कह रहे हैं साधुओं की हत्या अफवाहजन्य भीड़ हिंसा की कड़ी है। हम तो हर अफवाह फैलाने वालों से अपील कर रहे हैं, सब से सवाल कर रहे हैं? आपकी जबान में कुछ दिक्कत है क्या कि आप महाराष्ट्र और केंद्र सरकारों से सवाल नहीं कर सकते कि मैं करूं? आप ही बताइए किसने मारा साधुओं को? मेरे पास जांज एजेंसी तो है नहीं कि आपके आदेश का पालन करते हुए बताऊं किसने मारा साधुओं को? इतनी जहालत का सवाल क्यों करते हैं? कभी कभी पढ़े-लिखों की तरह बात किया कीजिए। सादर।
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