Tuesday, February 28, 2017

विरसे में मिले गम

विरसे में मिले गम को किस्मत न कहिए
इन ग़मों के खात्मे के लिए मुट्ठी तानिए
(ईमि: 27.02.2017)

नवब्राह्मणवाद 18

मायावती कब की फेमिनिस्ट बन गयी? सामूहिक बलात्कार के आयोजक मोदी का महिमामंडन करने 2002 में गुजरात पहुंची थी. मायावती नवब्राह्मणवादी सामंती मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है. मायावती के शासन काल में सबसे अधिक बलात्कार हुए, खासकर दलित महिलाओं का.

नवब्राह्मणवाद 17

वामपंथ पर हमले के मामले में गजब की एका है ब्राह्मणवादी संघियों और नवब्राह्मणवादी अस्मितावादियों (प्रमुखतः नवधनाढ्य ओबीसी विद्वानों) में. संगठित वाम अपने ही अकर्मों के चलते वैसे ही हासिए पर चला गया है और असंगठित वाम की हालत असंगठित मजदूरों सी है जो जेयनयू तथा अन्य विश्वविद्यालयों के विचार-विमर्श की संस्कृति पर हमलों जैसे मौकों पर ही सक्रिय होता है. फिर भी सोसल मीडिया पर नवब्राह्मणवादी और ब्राह्मणवादी दोनों ही किस्म के विवेकवाद के दुश्मनों को वामपंथ से ही सबसे बड़ा खतरा है. इन दोनों की इस मिलीभगत का भंडाफोड़ विचार-विमर्श और समाज की सामासिक संस्कृति की रक्षा के लिए जरूरी है. 29 जनवरी को सासाराम जिले के कोचस ब्लॉक के नव्वां गांव के कुर्मी (ओबीसी) जमींदार दो भूमिहीन ओबीसी मजदूरों, विजय शर्मा(लोहार) और सुरेश चौहान (नोनिया) की प्रताड़ना में ऊना में दलितों की प्रताड़ना को भी पीछे छोड़ दिया. 4-5 घंटे नंगा करके उन्हें पीटते रहे. उनके अंग-प्रत्यंग को गर्म लोहे से दागा. सुरेश के गुप्तांग में लोहे की गर्म छड़ डाल दी. इन दोनों का अपराध यह था कि ये अपनी मजदूरी मांग रहे थे. सुरेश अभी भी बनारस के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहा है गांव के गरीब पिछड़ों के चंदे से और विजय अगले 5-6 महीने तक मजदूरी न कर पाने की शारीरिक हालत में है. 22 फरवरी को 2000-25000 लोगों ने कोचस में प्रदर्शन किया तब तक न तो कोई अभियुक्त गिरफ्तार हुआ था न ही पीड़ितों को कोई मेडिकल सहायता मिली थी. वहां भी भाजपा की गोद में खेल चुके अस्मितावादी नीतिश कुमार (ओबीसी) की सरकार है. गजब की अमानवीय असंवेदना का परिचय देते हुए 150-200 लोग (महिलाओं समेत) यह सर्कस देखते हुए मनोरंजित हो रहे थे. इस घटना ने गांव का वर्गीय ध्रुवीकरण कर दिया है. भूमिहीन दलित और ओबीसी एक साथ है और भूपति कुर्मी और राजपूत दूसरी तरफ. भगत सिंह ने सही कहा था कि जातिवाद और सांप्रदायिका का अंत वर्गचेतना से ही होगा. जातिवाद का एक जवाब इंकिलाब जिंदाबाद. ब्राह्मणवादी-नवब्राह्मणवादी मिलीभगत का लगातार पर्दाफास की जरूरत है. जय भीम-लाल सलाम.

भक्तिभाव 3

आधुनिक राष्ट्र-राज्य की तमाम विसंगतियों में सबसे खतरनाक है कि किसी देश के बहुसंख्यक नस्ल/धर्म का कोई भी टुच्चा वहां की जमीनों का मालिक बन किसी अन्य नागरिक को देश छोड़कर जाने का आदेश देने लगता है जैसे देश उसके बाप का हो. अमेरिका में एक नस्लवादी लंपट ने यही कह कर एक भारतीय की हत्या कर दी. भारत में कोई भी लफंगा स्वघोषित भक्त हर किसी को पाकिस्तान भेजता रहता है जैसे यह मुल्क उसके बाप की जागीर हो. श्रीनिवास का हत्यारा सिर्फ वह अमेरिकी जाहिल नहीं है, संघी भक्तों समेत नफरत की सियासत करने वाला हर नस्लवादी उसका हत्यारा है.

भक्तिभाव 2

पहली बात वह मोहम्मद खालिद नहीं, उमर खालिद है. नास्तिक मेरी तरह. मुझे फक्र है कि दोनों ही प्रतिभाशाली उदीयमान इतिहासकार, अनिर्बन और उमर मेरे अजीज दोस्त और आंदोलन के साथी हैं. दोनों के ऊपर एक ही आरोप था. दोनों ही बराबर की एक ही भाषा में फासीवाद के विरुद्ध मुखर हैं लेकिन आप जैसे भक्तों के दिमाग में भरा सांप्रदायिक जहर मुझसे उमर का हिसाब मांगता है अनिर्बन का नहीं. भक्तिभाव असाध्य मानसिक रोग है. बाभन से इंसान बनना मुश्किल तो है नामुमकिन नहीं. नहीं तो पंजीरी खाकर भजन गाते रहिए. वैसे उमर से मिल लीजिए तो थोड़ा बहुत दिमाग खुल जाएगा. और बेचारे-सेचारे आप जैसे भक्त होते हैं.

भक्तिभाव 1

भक्त के दिमाग में एक अफवाह घर कर जाए तो निकलती नहीं. कितनी बार प्रमाणित हो चुका है कि नारे संघी घुसपैठिए लगा रहे थे. वह वीडियो में दिख चुका है. क्यों नहीं उन्हें खोज कर पुलिस पकड़ती. ये बच्चे भारत को सुंदर बनाने वाले हैं तोड़ने वाले नहीं. देश की सामासिक संस्कृति तो संघी देशद्रोही तोड़ रहे हैं. अगर कोई नारे भी लगा रहा है तो उसके लिए कानून है आपको किसने ठेका दे दिया है देशभक्ति की रखवाली का जो सड़क छाप गुंडे-मवालियों की तरह लड़कियों और शिक्षकों को पीटें, बलात्कार की धमकी दें. लड़कियों को गुप्तांग दिखाकर 'आजादी' की पेशकश करें? यही देशभक्ति है? आप पहले पढ़ लें देशभक्ति है क्या? अब विदा लें.

Thursday, February 23, 2017

नवब्राह्मणवाद 16

वामपंथियों को गाली देकर आप ब्राह्मणवाद और कॉरपोरेट की ही सेवा कर रहे हैं. संघियों की तरह बात कुछ भी हो आपको भी वाम का भूत तंग करने लगता है. यही नवब्राह्मणवाद है जो ब्राह्मणवाद का पूरक है. मायावती का योगदान उप्र में दलित दावेदारी में कैटलिस्ट का रहा है. भाजपा के सहयोग से और अलग से भी जब भी सत्ता में रहीं दलित विरोधी क़रपोरेटी नीतियों को आगे बढ़ाया. इलाहाबाद-कौशांबी के बालू खनन मजदूरों और इलाहाबाद के विस्थापन विरोधी आंदोलनों का दमन ज्वलंत उदाहरण हैं. गुजरात के अभूतपूर्व नरसंहार और सामूहिक बलात्कार के नायक के साथ मंच साझाकर नरसंहार के नायकों का प्रचार करने गुजरात गयीं थी. अस्मिता राजनीति की सीमाएं हैं, क्रांतिकारी बदलाव के लिए सामाजिक चेतना का जनवादीकरण जरूरी है. मायावती के राजनैतिक सलाहकार और पैसा उगाहने वाले सदा सवर्ण रहे हैं.

नवब्राह्मणवाद 15

हा हा. वामपंथियों की गलतियों पर सबसे ज्यादा वामपंथी ही लिखे हैं. कम्युनिस्ट पार्टी ने मार्क्सवाद सामाज को समझने का विज्ञान की जगह मॉडल मान लिया. जन्माधारित सामाजिक विभाजन यूरोप में नवजागरण में खत्म होगया था इसीलिए मार्क्स ने लिखा कि पूंजीवाद ने अंतर्विरोध को सरल कर दिया और समाज को पूंजीपति ऐर सर्वहारा वर्गों में बांट दिया. भारत में बुर्जुआ डेमोक्रेटिक आंदोलन हुआ ही नहीं. कबीर के साथ शुरू हुआ सामाजिक-आध्यात्मिक समानता का नवजागगण अपनी तार्किक परिणति तक न पहुंच सका. इसलिए जनमाधारित सामाजिक विभाजन का मुद्दा सर्वोपरि होना चाहिए था. यदि ऐसा होता तो शायद अंबेडकर कम्युनिस्ट नेता होते. जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध कम्युनिस्ट ही लड़े, लेकिन इसे प्रमुख मुद्दा न बना सके. देर आए दुरुस्त आए. जयभीम-लाल सलाम का नारा दिया, जिसे ठोस रूप देने की जरूरत है. इस मुद्दे को मैं फरवरी 2016 के बाद कई लेखों में उठाया है. भारत में शासक जातियां ही शासक वर्ग रही हैं. मैं अपने लेखों के कुछ लिंक दे रहा हूं. सीपीआई-सीपीयम ने कब से कम्युनिस्ट होना बंद कर दिया.

नवब्राह्मणवाद 14

फूले, अंबेचकर पेरियार हर शोषित के दार्शनिक हैं उन पर किसी की बपौती नहीं है. इन्हें पढ़िए भी सिर्फ इनका नाम मत क़ोट कीजिए. पेरियार का जोर हमेशा एक समतामूलक समाज पर रहा है तथा ब्राह्मणवादी पाखंडों के खंडन पर, मायावती की तरह ब्राह्मणवाद से समझौते पर नहीं. मैं तो 40 सालों से फूले, पेरियार अंबेडकर पढ़ रहा हूं. मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य से अंबेडकर पर फार्वर्ड प्रेस के लिए लिख रहा हूं (जल्दूी पूरा करूंगा). मित्र मैं मार्क्सवादी हूं किसी पार्टी में नहीं हूं. हम आप साथ-साथ मिलकर ही ब्रह्मणवाद-क़रपोरेटवाद के खिलाफ कामयाब हो सकते हैं. आइए जयभीम-लालसलाम के नारों की प्रतीकात्मक एकता को ठोस रूप दें. माओ की भाषा में हमारे अंतरविरोध शत्रुतापूर्ण नहीं हैं.

Wednesday, February 22, 2017

Janhastakshep (DU Press release)

Janhastakshep:a campaign against fascist designs
Contact: 9811146 846 (Ish Mishra), mishraish@gmail.com; 9810275314 (Dr Vikas Bajpai); E mail: drvikasbajpai@gmail.com;
Press Release:
22 February 2017
Hooliganism by ABVP goons in complicity of Delhi Police
Janhastakshep condemns in no uncertain terms the hooliganism and vandalism ABVP goons against the tradition of debate and discussion in connivance of the Delhi Police that has been acting on the pattern of Gujrat Police that actively helped and facilitated the massacres, rape and plunder as private army of Modi & Co. in 2002 and subsequent fake encounters. When the ABVP goons were vandalizing the Ramjas College to disrupt a seminar, the Delhi Police, instead of booking the hoodlums, pressurized the organizers to cancel the program who were forced to postpone it. ABVP has been acting in the manner of NAZI storm troopers who used to attack the meetings of opponents and terrorize the minorities in active connivance of the German Police. Today when students and teachers tried to take out a protest demonstration from Ramjas College to Mauricenagar Police station, the ABVP goons attacked the procession with bricks, iron rods and Lathis. Delhi Police under the command of the SHO, Mauricenagar Police station initially was mute witness and subsequently joined them. Many teachers and students including girls have sustained serious injuries. The Janhastakshep condemns the unconstitutional criminal complicity of Delhi Police, in violation of constitutional provisions of aiding and abetting the criminal activities of ABVP goons and expresses solidarity with Delhi University community and supports their call for a larger protest on March 1, 2017 against the culture of hooliganism under the protection of Home Minister Rajnath Singh whose protégées had attacked Kanhaiya, the then JNUSU president and teachers and students in Patiala House last year. Is it real fascism?
Janhastakshep demands arrest of the goons and an impartial probe into the role of Delhi Police for facilitating the criminal acts of the hooligans in disrupting the academic programs of the seminars and peaceful protests. Janhastakshep also demands an explanation from the country’s home minister under whose dictates Delhi Police acts as auxiliary force of goons instead of refraining them.
Ish Mishra Dr. Vikas Bajpai
(Convener) (Co-Convener)


दस्तूर सम्राटों का

जब तक है दस्तूर सम्राटों का कायम
नहीं चलेगा सरकार बदलने से काम
चाहिए ग़र सचमुच का इंसाफ
बदलना पड़ेगा ज़र का निज़ाम
इसीलिए कहा जाता है इसे तताकथित जनतंत्र
खाता है जनता की जपता है धनकुबेरों का मंत्र
गायब है जैसे पब्लिक प्लेटो की रिपब्लिक से
वैसे ही जन गायब है इस पूंजीवादी जनतंत्र से
कहा था कार्ल मार्क्स ने कोई डेढ़ सौ साल पहले
शोषित-वंचितो को मिलता है हक़ तयशुदा वक्त सेे
उत्पीड़कों में से जिसे चाहे अपनी मर्जी से चुन ले
कार्ल मार्क्स ने ही कही थी यह भी बात
शासक वर्ग के विचार ही हैं शासक विचार
नहीं करता पूंजीवाद उत्पादन महज माल का
चलाता है कारखाने भी विचारों के उत्पादन का
पराधीन हैं भौतिक उत्पादन के श्रम के साधन से
निर्भर होते मालिक पर ही बौद्धिक उत्पादन के लिए
मुक्त करना है आवामी सोच वक्त की युगचेतना से
लैस करना होगा इसे खुद को जनवादी वर्गचेतना से
तब बन पाएगी आवाम का जनवादी संगठन
बनाएंगे दुनिया के मजदूर मानव-मुक्ति का चमन
तब तक जुमलेबाजों में से चुनने को अभिशप्त
चुनें उसे जो लूट और क्रूरता में हो थोड़ा कम
(ईमिः 22.02.2017)

Tuesday, February 21, 2017

नई जनता का चुनाव

जनता देशद्रोही हो गयी है

जुमले को वायदा समझ रही है
सम्राट से सवाल-जवाब कर रही है
धनकुबेरों के 'बुरे कर्ज' पर उंगली उठा रही है
राष्ट्रवाद की धज्जियां उड़ा रही है
जयजयकारे की बजाय शोर मचा रही है
विकास को श्मसान पहुंचाने के इल्जाम लगा रही है
यानि कि अनुशासनहीनता की हद पार कर गयी है
सरकार को नई जनता चुनना पड़ेगा
संसद को सेना के हवाले करना पड़ेगा
जैसा जियाउल हक ने किया था पाकिस्तान में
इस्लाम का टोटका पढ़ा
इस्लामिक जनतंत्र का मंत्र गढ़ा
झोंक दिया इतिहास को
जेहादी जहालत की खाई में
मरा तो वह भी बुरी मौत
मगर छोड़ गया तारीख़ के दामन पर
कई अमिट काले धब्बे.
कहा ही था परमपूज्यगुरू जी ने
साढ़े सात दशक से भी पहले
आयातित प्रणाली जनतंत्र
देता है समानता का 'अस्वाभाविक' मंत्र
लेकिन जनता हो गयी है इतनी देशद्रोही
समानता के सैद्धांतिक संभावना को
सच बनाना चाहती है
हदों की भी कोई हद होती है
खो चुकी है सरकार का विश्वास यह कृतघ्न जनता
करना ही पड़ेगा इसे बर्खास्त
और चुनना ही पड़ेगी नई जनता
इसके पहले कि जनता नई सरकार चुन ले
(यों ही कलम की एक और प्रातकालीन आवारगी)
(ईमि: 22.02.2017)

जनहस्तक्षेप (सासाराम)

Janhastakshep:a campaign against fascist designs
Contact: 9810275314 (Dr Vikas Bajpai); E mail: drvikasbajpai@gmail.com
 


प्रेस विज्ञप्ति
१८ फरवरी २०१७
बिषय: बिहार में रोहतास जिले के कोचस ब्लाक में  नव्वा गाँव के भूपतियों द्वारा गाँव के दो मजदूर युवकों पर बर्बरतापूर्ण पाशविक हमले की जांच
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक ईश मिश्र और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के डाक्टर विकास वाजपेयी की जनहस्तक्षेप की दो सदस्यीय टीम ने २९ जनवरी को रोहतास जिले के कोचस ब्लाक के नव्वां गाँव के भूपतियों द्वारा गाँव के ही दो युवा मजदूरों को जानलेवा, बर्बर यातना देने की घटना की जांच के लिए गाँव का दौरा किया. जनहस्तक्षेप ने सोसल मीडिया पर इस घटना का एक वीडियो देख कर इस दौरे का फैसला लिया था. टीम ने गाँव के विभिन्न तपकों के लोगों तथा पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत की.
घटना: २९ जनवरी को सुबह ८ बजे सुरेश चौहान (नोनिया जाति) और विजय शर्मा (लोहार) गाँव के ही कुर्मी जाति के भूपति रमाशंकर चौधरी से उनके निर्माणाधीन घर में साल भर काम की अपनी बकाया मजदूरी माँगने गए. गौरतलब है कि यद्यपि गाँव की ये जातियां ओबीसी कोटि में चिन्हित हैं लेकिन इनकी स्थिति गाँव के दलितों सी भी बदतर है.
मरणासन्न सुरेश चौहान का बनारस के एक अस्पताल में इलाज़ चल रहा है, लकिन दूसरे पीड़ित विजय से हमारी मुलाकात हुई. विजय ने बताया कि जब उसने बकाया मजदूरी के हिसाब-किताब पर जोर दिया तो रमाशंकर, उनका बेटा पाताली और परिवार के अन्य लोंगों ने अधिक बोलने पर गंभीर परिणामों की धमकी दी.
                                                                                                                                                                                                                                दोनों मजदूरी की जिद करने लगे तो चौधरी के परिजन दोनों को खींचकर घर के अन्दर ले गये. छत पर लेजाकर दोनों को नंगा कर डंडों और लोहे की सरिया से अंधाधुंध पिटाई शुरू कर दी. धीरे धीरे यह बर्बरतापूर्ण “तमाशा” देखने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया जिसमें से ज्यादातर उत्पीड़क के सजातीय थे. काफी पिटाई के बाद उन पर ट्रैक्टर की बैटरी की चोरी का आरोप लगाने लगे. घटना के चश्मदीद गाँव के एक लड़के ने इसकी सूचना विजय की माँ कौशल्या को दी. वह दौड़कर घटनास्थल पर पहुँची और उत्पीड़कों से लड़कों पर रहम की गुजारिश करने लगी. उसकी बात का उनपर उलटा असर हुआ और उसको भी बाहों पर लोहे की सरिया से पीटने लगे. मार खाकर, हार कर वह घर वापस चली गयी. 2-3 बजे तक पिटाई और शरीर को गर्म लोहे की छड़ों द्वारा दागने के बाद और ‘बेचारे से सरपंच’ की याचना के बाद दोनों युवकों को बेहोशी की हालत में उनके दवाजों पर फ़ेंक दिया. गाँव के किसी आदमी की सूचना पर गाँव के सरपंच, इम्तियाज़ अंसारी और मुखिया रमाकांत शाह भी 11 बजे के आस-पास मौके पर पहुँच गए. सरपंच ने फोन पर टीम सदस्यों को बताया की जमींदार के परिवार वाले मुखिया को ‘खिलाने-पिलाने घर के अन्दर ले गए और लड़कों पर रहम की उनकी फ़रियाद से उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगा. सपंच ने बताया कि सुरेश के भाई की शिकायत पर जब मुखिया के पास थाना-प्रभारी का फोन  आया तो उन्होने ‘गांव् में सबकुछ ठीक-ठाक’ होने की बात कही. सरपंच पर उत्पीड़क परिवार और मुखिया ने सुरेश और विजय के चोरी के ‘इकरारनामे’ पर दस्तखत का दबाव डाला लेकिन उन्होंने दस्तखत नहीं किया.
इस दौरान सुरेश का भाई उसकी पिटाई की खबर सुनकर १२ बजे दिनारा थाने पहुंचा और थाना प्रभारी अभिनन्दन कुमार सिंह को घटना से अवगत कराया. सुरेश का भाई थाना प्रभारी से पुलिस सहायता की गुजारिश करता रहा. थाना प्रभारी उसकी फ़रियाद सुनने की बजाय मुखिया को फोन किया और जैसा ऊपर कहा जा चुका है मुखिया द्वारा किसी गंभीर बात से इन्कार कर दिया था. लानेवाले क्षत-विक्षत, बेहोशी की हाल में दोनों युवकों को लेकर 8 बजे थाने पहुंचे.
एक निजी चिकित्सालय से उपचार के बाद घर लौटे विजय की शरीर के अंग-अंग पर चोटों और गर्म लोहे से पिटाई के दाग  दिल दहला देने वाले हैं. उसके बांये हाथ की कलाई हर गर्म सूजे के इतने छेदों के निशान देख, गोदे जाते वक़्त की पीड़ा की कल्पना रोंगटे खड़ी करने वाली थी. विजय जितनी ही प्रताड़ना सुरेश को भी दी गयी. जैसा कि वजय और अन्य लोगों ने बताया कि जालिमों ने इम्तहां कर दी जब उन्होंने सुरेश के गुप्तांग में लोहे की गर्म छड घुसेड दी. हम जब रमाशंकर के घर, घटना-स्थल पर गए तो 2 दिन पहले पटना से आई रमाशंकर की बेटी ने उन दोनों और विजय की माँ पर चोरी का इल्जाम दोहराते हुए ‘गाँव वालों’ द्वारा ‘चोरों’ को सजा देने को उचित ठहराया. गौरतलब है की रमाशंकर और उसके बेटे फरार चल रहे हैं. यह भी गौर तलब है कि नोनिया समुदाय के ज्यातर लोग उस दिन गुप्ता धाम, तीर्थ लयात्रा पर थे.

राजनैतिक दलों की भूमिका
यद्यपि विभिन्न राजनैतिक दलों के लोगों ने गाँव का दौराकर घडियाली आंसू जरूर बहाया लेकिन न तो किसी ने कोई सहायता की न ही कोई आश्वासन दिया. स्थानीय यमयलए और नोनिया समुदाय की ही पर्यटन मंत्री भी गाँव में जा चुकी हैं. जिसका मतलब सरकार को घटना के बारे में भली भांति जानकारी है, लेकिन न तो पीड़ितों को कोई मेडिकल सहायता मिल पायी है न ही २० दिन बीत जाने के बाद भी मुख्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी. यह क़ानून-व्यवस्था की हालत पर एक गंभीर बयान तो है ही, सरकार का रवैया यह भी बताता है की सरकार अपने ठोस चुनावी आधार, कुर्मी जाति को नाराज नहीं करना चाहती है. इससे भी आश्चर्यजनक शोषितों की पैरोकारी का दावा करने वाली सीपीआई, सीपीयम और सीपीआई(यमयल) लिबेरेसन जैसी पार्टियों की चुप्पी है. अखबारों की खबरों और गाँव वालों से बात-चीत से पता चला कि सीपीआई(यमयल) न्यू डेमोक्रेसी एकमात्र पार्टी है जिसने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है.

पुलिस-प्रशासन की भूमिका
हम थाना प्रभारी से मिलने दिनारा थाने गए, वे कहीं गए हुए थे. हम जांच अधिकारी राजकुमार चौधरी और सहायक थाना प्रभारी बी सत्येन्द्र सत्यार्थी से मिले. उनमें से किसी के पास इस बात का कोइ जवाब नहीं था की पुलिस शिकायतकर्ता, पीड़ित की भाई की शिकायत को नज़र-अंदाज़ कर मुखिया के आश्वासन पर क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी रही? यह न सिर्फ ड्यूटी के प्रति लापरवाही है बल्कि अपराध के प्रोत्साहन और उसमें संलिप्तता जैसा है. जांच अधिकारी ने यह दावा जरूर किया की यदि ३ दिनों में अभियुक्तों ने समर्पण नहीं किया तो उनके घर कुर्क कर लिए जायेंगे. डीयसपी नीरज कुमार ने थाना प्रभारी की लापरवाही से अनभिज्ञता जताते हुए विभागीय कार्र्वाई का वादा  किया. आश्चर्य है की जिस बात का पता हमें दिल्ली में चल गया उसकी जानकारी सम्बद्ध डीयसपी को नहीं थी? 18 फरवरी को हम संभाग से डीआईजी से मिले तो उन्होंने घटना की बर्बरता पर सरोकार व्यक्त किया और हमारे सामने, शायद अपने कनिष्ठ अधिकारी से फरार आरोपियों के घर कुर्क करने के आदेश देने लगे. उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि घटना के 21 दिन बाद भी पीड़ितों तक कोई सरकारी सहायता क्यों नहीं पहुंची और आरोपियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? डीआईजी महोदय ने भी थाना प्रभारी की भूमिका के बारे में अनभिज्ञता दिखाया और विभागीय जांच का आश्वासन दिया.

सिविल प्रशासन की भूमिका
जिलाधीश अनिमेष कुमार पराशर हमारे मिलने के आवेदन को नज़र-अंदाज़ कर दफ्तर से निकल कर  जाने लगे और हमें उन्हें रास्ते में रोककर बात करनी पडी. वे कानून हर्जाने के बात करने लगे.  उनके पास २० दिनों तक प्रशासन की निष्क्रियता का कोई जवाब नहीं था. उनके पास पीड़ितों को मेडिकल सहायता के सवाल का भी कोई जवाब नहीं था. उन्हें इस घटना के वीडिओ की भी कोई जानकारी नहीं थी. इन सब बातों से इस जघन्य घटना के प्रति स्थानीय प्रसाशन का यही रवैया जाहिर होता है कि उसकी पूरी कोशिश इसे दबाने की है.

निष्कर्ष
स्थानीय नागरिक व पुलिस प्रशाशन की यह आपराधिक निष्क्रियता यही ज़ाहिर करती है की राज्य सरकार के उच्चतम हलकों से इस पूरी घटना तो चुपचाप दबाने की ही कोशिश की जा रही है. यहाँ तक की विपक्षी पार्टियाँ भी सरकार की इस कोशिश में सम्मलित हैं क्योंकि उन्हें इस मामले से कोई राजनैतिक फ़ायदा होता नज़र नहीं आ रहा है. अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने 22 फरवरी को कोचस में जन-प्रदर्शन का आह्वान किया है.

हम क्या चाहते हैं:
·         जनहस्तक्षेप मांग करता है कि इस घटना के पीड़ितों के इलाज की तुरंत व्यस्था की जाये और उसका सारा खर्चा सरकार वहन करे. फिलहाल गाँव के गरीब चंदे कर के नका इलाज करवा रहे हैं.

·         हम रोहतास जिले और समस्त राज्य के लोगों से अपील करते हैं कि वे इस मध्य युगीन हैवानियत के खिलाफ लामबंध हों ताकि पीड़ितों व उनके परिवारों को न्याय मिल सके और राज्य में सक्रिय सामंती, उत्पीड़क शक्तियों को हराया जा सके.

·         हम राज्य सरकार से मांग करते हैं कि दोषियों को सजा दिलवाने के लिए वह बिना किसी लाग-लपेट के सख्त से सख्त कदम के उठाये और दिनारा थाने के थाना प्रभारी की दोषियों के साथ शामिल मिली-भगत सख्त प्रशाशनिक कार्यवाही करे और उनके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करे.   

·         सरकार को पीड़ित परिवारों के लिए बिना तुरंत समुचित मुआवजा घोषित करे.

·         हम इस मामले को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सम्मुख भी रखेंगे और मांग करेंगे किवह राज्य सरकार पर उपरोक्त मांगों की आपूर्ति के लिए दबाव बनाये.
-हस्ताक्षरित-                                                                                               -हस्ताक्षरित -
(ईश मिश्र)                                                                                               (डॉ विकास बाजपाई)
    संयोजक                                                                                                          सह संयोजक




कब्रिस्तान और श्मशान

एक साथी ने बदरपुर गांव में अगल-बगल कब्रिस्तान और श्मशान की तस्वीर शेयर किया, उसपर मेरा कमेंट:

इस गांव के कब्रिस्तान और श्मशान के बेदीवार सहअस्तित्व की तस्वीर की आपकी यह पोस्ट डालकर गांव की सामासिक संस्कृति के लिए खतरा पैदा कर सकती है. खट्टर जी का कोई पुरातत्वशास्त्री कब्रिस्तान को किसी मध्यकालीन श्मशान या मंदिर की जगह बना हुआ है और देशभक्तों की फौज निकल पड़ेगा गैता-कुदाल लेकर. लेकिन वहां तो खोदा जाता है, वे ढहाएंगे क्या? वैसे गुरात में मजारें ढहाकर वहां 'हुल्लड़िया हनुमान' की मूर्ति रख दिया और मस्जिदों की जगह 'गोधड़िया हनुमान की'. मनाइए कि किसी देशभक्त पुरातत्ववादी की नज़र आप की पोस्ट पर न पड़े.

Monday, February 20, 2017

नवब्राह्मणवाद 13

सासाराम से परसों सुबह ही आ गया लेकिन अपने समाज में व्याप्त क्रूरता और दिल दहला देने वाली संवेदनहीनता से गहरे अवसाद के चलते अब यह लिखने बैठ पाया. कब तक बनी रहेगी जाति और जातीय उत्पीड़न बदले चोंगो में? 29 जनवरी को रोहतास जिले के कोचस ब्लॉक के नव्वा गांव में कुर्मी जमींदारों ने दो पिछड़े वर्ग (नोनिया और लोहार) के मजदूरों को बकाया मजदूरी मांगने पर नंगा करके 6 घंटे बेरहम पिटाई की. लोहे की गर्म सरिया से उनके अंग-प्रत्यंग को दागा. सुरेश चौहान (नोनिया) अभी भी बनारस के एक अस्पताल में जिंदगी मौत के बीच झूल रहा है. गर्म लोहे की पिटाई के बाद उसके गुप्तांग में गर्म लोहे की छड़ डाल दी. 100 से अधिक लोग तमाशा देख रहे थे. विजय शर्मा (लोहार) कोचस से निजी अस्पताल में इलाज के बाद घर वापस आ गया है. वह न तो खड़ा हो सकता है न बैठ सकता है. उसका बांया हाथ और दाहिना पैर टूट गया है. 17 फरवरी तक गुनहगारों की न तो गिरफ्तारी हुई न ही पीड़ितों को कोई मदद मिली है. कुर्मी नीतिश की पार्टी का समर्थन आधार है इसलिए सरकार मौन है. विजय की हथेली को गर्म सूजे से छेद दिया गया था. सुरेश के घर वाले गांव-गांव घूमकर उसके इलाज़ के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं. ताज्जुब तो इस बात पर है कि सीपीआई-सीपीयम या लिबरेसन ने भी कोई वक्तव्य नहीं दिया. 22 फरवरी को किसान-मजदूर सभा ने कोचस में प्रदर्शन का आह्वान किया है. भूपति ओबीसी का भूमिहीन ओबीसी पर अत्याचार. यह वर्गीय अत्याचार है. अस्मिता की राजनीति वालों आंखें खोलो.

Sunday, February 19, 2017

नीरो

बड़े वसूक से लिखा था नीरो का मर्शिया
लेकिन अब तो अक्सर दिखाई देता है

हमेशा ही नीरो बजाता है बांसुरी
इतिहास का कोई भी रोम जब जलता है

नीरो का मर्शिया क्यों लिखता है शायर?
कौन था वह और कहां दिखाई देता है?

नीरो कौन था इसकी कहानी बताता हूं
कहां की बात क्या हर जगह दिखाई देता है

नीरो पहली शताब्दी में रोम का एक सम्राट था
शान-ओ-शौकत और क्रूरता का ऐतिहासिक नज़ीर

रहते थे नतमस्तक दरबारी, क़ाजी और सेनापति
वाह-वाही करते थे दानिशमंद आलिम और वजीर

बनाना चाहा उसने रोम में एक अभेद्य किला
सोचा उसने शहर खाली कराने का अचूक तरीका

वफादार कारिंदों ने कर दिया शहर आग के हवाले
खुद मना रहा था पिकनिक शहर से कुछ दूर

जलता रहा रोम छः दिन और सात रात
तमाम लोग और घर-बार जलकर खाक हो गए

धू-धू कर लजल रहा था जब रोम
कहते हैं नीरो तब चैन से बांसुरी बजा रहा था

हो गया जब शहर जल कर खाक़
नीरो चिग्घाड़ कर मातमी विलाप करने लगा

किया उसके विश्वस्त सूत्रों ने तुरंत उसको सूचित
इस जघन्य अपराध के दोषी अल्पसंख्यक ईशाई थे

किया नीरो ने सभी ईशाइयों की सजा-एमौत का ऐलान
मौत ऐसी कि फिर कोई विधर्मी ऐसे जुर्म की जुर्रत न करे

भर कर जानवर की खाल में फेंक दिया गया उन्हें कुत्तों के आगे
देखने को तमाशा-ए-मौत अपने उद्यान में उत्सव का आयोजन किया

मेहमानों में शामिल थे सारे हाकिम-हुकुम और जाने-माने लोग
सुरा-सुराही के परिवेश में वे नाच-गाने के साथ तमाशा देख रहे थे

घिरने लगा जब अंधेरा मौत के इस सर्कस में
जला कर बाकी ईशाइयों को रौशनी का इंतज़ाम किया

ज़ुल्म बढ़ता है तो बढ़ता ही जाता है
मगर मिट जाता है जब हद करता है

समझ के रोमवासी उसकी यह बर्बर चाल
आवाम ने मिलकर उसे सबक सिखाने का फैसला किया

ताकतवर हो कितना भी कोई भी तनाशाह
आवाम की एकता की ताकत अथाह होती है

देख उमड़ता जनसैलाब उड़ गए नीरो के होश
घबराकर अपने आप से उसने खुदकुशी कर लिया

लग रही होगी आपको यह परिचित कहानी
पैदा होते रहे हैं नीरो और करते रहे हैं खुदकुशी

बात नहीं है सिर्फ नीरो की
तमाशबीनों की भी कमीनगी कम नहीं होती
(कलम की लंबी आवारगी काफी वक़्त खा गई)
(ईमि: 20.02.2017)