विभाजन रेखा खिंच गयी है, हिंदू फिरकापरस्ती को नाजी नस्लवाद सी स्वीकृत सी मिल गयी है, जहालत की प्रतिस्पर्धा हो रही है, बौद्धिक और धर्मनिरपेक्ष शब्द लोगों का मजाक बनाने की लोकोक्तियां बन गयी है, फासीवाद की सामाजिक स्वीकृति का माहौल बन चुका है। 14-15 करोड़ मुसलमान सौ-सवा सौ करोड तथाकथित हिंदुओं (तथाकथित इसलिए कि हिंदू कोई होता नहीं कोई ब्राह्मण होता है कोई दलित, दोनों एक दूसरे के ऊपर क्रमशः जातीय और आरक्षण से हक मारने के उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं) को देशहित के काम ही नहीं करने दे रहे हैं। यह अलग बात है कि मुसलमान डरे दुबके हुए हैं। यही हाल नाजी जर्मनी में यहूदियों का था। हर व्यक्ति हम और वे की भाषा बोलने लगा है। भीषण आर्थिक संकट ने क्रांतिकारी ताकतों के अभाव में तनाशाही के उभार की अनुकूल परिस्थितियां तैयार कर दी है।
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