Tuesday, January 31, 2017

नवब्राह्मणवाद 9

Santosh Kumar Jha बात दिलीपवादी विमर्श का नहीं है. दिलीप मंडल 'इंटेलीजेंट' लेखक हैं फेसबुक पर उनके लाखों अनुयायी हैं जिनका भक्तिभाव मोदी के भक्तों से कम नहीं है. रोहित वेमुला की शहादत से निकले जयभीम-लालसलाम नारों की प्रतीकात्मक एकता से ब्राह्मणवाद और नवब्राह्मणवाद (दिलीप मंडल फेसबुक पर जिसके प्रतीक बन गए हैं) दोनों बौखला गए हैं. दिलीप मंडली इस एकता को तोड़ने पर तुली है. दिलीप मंडल जैसे लोग आज फासीवाद के विरुद्ध आंदोलन में वही भूमिका अदा कर रहे हैं जो उपनिवेश विरोधी आंदोलन में आरयसयस और जमाते इस्लामी कर रहे थे -- युवकों के एक तपके को स्वतंत्रता आंदोलन से दूर करके अतीत के किसी अमूर्त अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए संगठित करके. दिलीप का कहना है ब्राह्मण ब्राह्मणों के ही मुद्दे उठाए यानि ब्राह्मणवाद को मजबूत करे. नंदिनी सुंदर, बेला भाटिया, महाश्वेता देवी, विनायक सेन आदि जिन पर संघी ब्रिगेड और राज्य का गाज गिर रहा है उनके हिसाब से बथानी टोला आदि के नरसंहारियों की कोटि में आते हैं. वे खुद (फेसबुक के अलावा) कभी कोई संघर्ष नहीं करेंगे और जन्मना सवर्ण क्रांतिकारियों के जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष को 'पापी' वामपंथियों की भर्त्सना के नाम पर तोड़ने की कोशिस करेंगे. शनिवार को प्रेसक्लब में कॉरपोरेटी मीडिया की लंबी-लंबी गाड़ियों में चलने वाले कुछ दिलीप भक्तों से बहस हो रही थी, जिन्होंने स्वीकार किया कि उन्होने नौकरी के संघर्ष के अलावा जीवन में कोई और संघर्ष नहीं किया लेकिन नंदिनी सुंदर जैसे लोग इस लिए संघर्ष कर रही हैं कि संघर्षों के अनुभव पर किताब लिखकर रॉयल्टी और पुरस्कार पा सकें. अजीब मूर्खतापूर्ण तर्क है, अंबेडकर की मूर्ति की पूजा करेंगे और अंबेडकर के पढ़ने-लिखने के सिद्धांत को ध्वस्त करेंगे. अंबेडकर मुक्ति के लिए पढ़ने-लिखने को प्राथमिक मानते थे. अरे भाई आपको किसने रोका है पढ़ने-लिखने और किताब से रॉयल्टी कमाने पर? लेकिन संघर्ष करेंगे नहीं तो उस पर लिखेंगे क्या? इन नवब्राह्मणवादियों की दुश्मनी ब्रह्मणवाद या भूमंडलीय साम्रज्यवाद से नहीं, वामपंथ से है. इसीलिए इनको एक्सपोज करना जरूरी है. महाश्वेता देवी के आदिवासी लेखन पर दिलीप की आपत्ति पर मुझे 1987 में सांप्रदायिका और नारी पर लिखे अपने एक शोधपत्र पर प्रतिक्रियोओं की याद आती है जिसमें ज्यादातर ने मुझे 'मिस मिश्रा' संबोधित किया था. भोगा हुआ यथार्थ निश्चित ज्यादा प्रमाणिक होता है लेकिन बिना भोगे भी पीड़ा को आत्मसात किया जा सकता है.

मोदी विमर्श 57

Smt Ira Mukherjee कौन सी भ्रांति पैदा कर रहे हैं मैडम? पुलिस कर्मी वहां जंगल में क्यों गए थे, आदिवासियों की सेवा करने? नक्सल को कत्ल करने आदिवासियों को लूटने, बलात्कार करने जिससे उनकी जमीनें कॉरपोरेट को दिया जा सके. उन गरीब पुलिस वालों के हत्यारे वे कमीने नेता हैं जो उन्हें गरीब आदिवासियों को मारने भेजते हैं. यह दो हथियारबंद समूहों के बीच की लड़ाई होती है जिसमें कभी वेतनभोगी हत्यारे मारे जाते हैं कभी सिर पर कफन बांध कर निकले खुद को र्रांतिकारी समूह के लोग. आप छत्तीसगढ़ में रहती हैं, शायद यह जानने में आपकी रुचि नहीं होगी कि हर रोज पुलिस वाले राजनेताओं के आदेश पर कितने आदिवासी उजाड़ते हैं, कितनी मासूम लड़कियों का बलात्कार करते हैं कितनों की बलात्कार के बाद हत्या? जो भी उनके साथ खड़ा होता है सरकार, पुलिस और बजरंगी गुंडे उनकी क्या हाल करते हैं? आपने शायद पढ़ा नहीं होगा कि आदिवासियों के बीच काम करने वाली बेला भाटिया पर पुलिस और गुंडे किस तरह जुल्म ढा रहे हैं, उन्हें वहां से भगाने के लिए? आपने शायद सोनी सोरी की कहानी नहीं पढ़ी होगी जिसे प्रताड़ित करके पुलिस ने उसके गुप्तांगों में कंकड़-पत्थर ठूंस दिया था और सरकार ने उस अपराधी पुलिस अधिकारी अंकित गर्ग को बदले में पुरस्कृत किया था? आप भी गजब करती हैं, माओवादियों को मारने गए हथियारबंद पुलिसकर्मियों और हथियारबंद माओवादियों के बीच लड़ाई को डर से पलायन कर रही बेगुनाह औरतों के बलात्कार हत्या से तुलना करती हैं? हैरत होती है आपकी इस संवेदनशीलता पर. जी, नक्सलो से मुठभेड़ में मारे गए गरीब-किसान के बेटों पुलिसकर्मियों से मुझे सहानुभूति है और उनकी मौत पर भी मेरा दिल वैसे ही रोता है जैसे गुजरात के बेगुनाहों की हत्या बलात्कार पर. लेकिन उनके हत्यारे वे शासक हैं जो अपने निहित स्वार्थों के लिए अपने वातानुकूलित दफ्तरों में बैठ कर उन्हें अपने ही तरह के अपने गरीब भाई-बहनों पर ज़ुल्म करने भेजते हैं. इतिहास ही शासकों द्वारा गरीब को गरीब से आपसी खून खराबे का इतिहास है. वह दिन कभी-न-कभी आएगा जब गरीब हरामखोर रईशों के इशारों पर एक दूसरे की बजाय बंदूकें अपने-अपने शासकों पर तान देंगे और खत्म कर देंगे खून-खराबे का इतिहास. पता नहीं इल सबका आपके पूर्वाग्रह-दुराग्रहों और मोदी भक्ति पर इसका असर पड़ेगा और मासूमों की हत्या बलात्कार को मानवीय संवेदना से देख सकेंगी. सादर.

Monday, January 30, 2017

सिंदूर

सिंदूर सनद है स्त्री पर मिल्कियत का
पुरुष पर ऐसी कोई सनद नहीं चेपी जाती
मालिक तो मालिक है
उसे सनद की जरूरत नहीं होती.
(ईमि:31.01.2017)

International Proletariat 58

Keith Petreman National interest is a bogey to defend imperialist policies. After decimation of revolutionary ideas and individuals in 1950s under the McCarthyism in "national interest and making universities skill producing factories, the revolutionary left has been marginalized in the US and elsewhere, a new revolutionary upsurge and a new International is needed. CPSU suffered from many degeneration that eventually led to the disintegration of USSR. A new revolutionary upsurge is long due tom begin with the US. I am planing a write up on ant-Marxist attributes of existing CPs world over and the need of a new Socialist International. There is crisis of theory in Capitalism and also there is crisis of theory in the only alternative the Socialism.

Sunday, January 29, 2017

फुटनोट 85 (मैक्यवली)

यूरोपीय नवजागरण काल के दार्शनिक मैक्यावली समझदार शासक को सलाह देता है कि राज-काज के लिए छल-फरेब, धोखा-धड़ी जरूरी है लेकिन दिखना समझदार राजा को संत-महात्मा; दयासागर-करुणानिधान चाहिए. जनता भीड़ होती है, वह दिखावे को ही हक़ीकत मान लेती है. कुछ लोग हकीकत जान लेते हैं लेकिन राज्य मशीनरी तो उसके पास है ही और जनता का बड़ा हिस्सा साथ हो तो इनकी कौन सुनेगा और इन्हें आसानी से ठिकाने लगाया जा सकता है. पता नहीं 500 सालों में मष्तिस्क का कितना विकास हुआ कह नहीं सकता. लेकिन कई बार पीड़ाजनक एहसास होता है कि मैक्यावली एक सर्वकालिक लेखक है जो नवजागरण के निरंकुश राजशाही से लेकर उदरवादी; उदारवादी जनतांत्रिक; कल्याणकारी और नवउदारवादी राज्यों तक के लिए प्रासंगिक लगता है.

Saturday, January 28, 2017

बेतरतीब 14 (गुजरात)

कल जल्दी (10 बजे) सो गया और जबसे याद है 4-5 घंटे से अधिक नहीं सो पाता और एक तरह से यह वरदान रहा है कि सुबह जब सब सो रहे होते हैं तो मैं कुछ पढ़ाई-लिखाई कर लेता हूं. स्कूल में इस समय होमवर्क कर लेता था. लेकिन कभी-कभी वरदान अभिशाप बन जाता है यदि दिमाग की बजाय दिल सोचने लगता है और यदि कोई दुखद याद आ जाती है तो एकांत में मन रोने लगता है. आज 3 बजे उठ गया. 1987 का कम्युनिस्ट आंदोलन में संसदीय भटकाव पर अंग्रजी में एक लेख लिखा था जिसे मैंने कुछ महीने पहले कम्यूटर पर टाइप करवा लिया और सोचा आज उसका प्रूफ पढ़कर बीस साल बाद के हालात के संदर्भ में अपग्रेड करना शुरू करूंगा. पहली चाय के साथ फेसबुक खोल लिया और जेयनयू से "गायब" छात्र नजीब के बदायूं घर पर दिल्ली पुलिस के छापे की खबर दिख गयी. 2002 मार्च में गुजरात यात्रा की यादें कचोटने लगीं. 15 साल पहले गोधरा कैंप में मिली बिलकिस बानो की शकल आंखों के सामने घूमने लगी जिसे उसी के गांव के लोग सामूहिक बलात्कार के बाद मरा समझ छोड़ दिए थे. उसके बच्चे को उसी के सामने मार डाला था. उसके साथ की और औरतों के साथ भी बलात्कार कर मार डाला था जो वाकई मर गयीं और सबकी कहानी बताने के लिए केवल वही बची थी. हम किस युग में जी रहे हैं? किस गौरवशाली संस्कृति पर हमें गर्व होना चाहिए? उस यात्रा की बाकी बातें याद आने लगी और मन बेचैनी से छटपटा रहा है. क्या मनुष्य वाकई अन्य जीवों से श्रेष्ठतर है? वापसी में राजधानी य़क्सप्रेस की जिस कैबिन में हमारी टीम के 3 सदस्य (मैं, पत्रकार राजकुमार शर्मा, बचपन बचाओ आंदोलन के राजीव भारद्वाज) के अलावा 3 गुजराती थे, उनमें एक सीबीआई के छोटे अधिकारी और एक युवा शॉफ्टवेयर इंजीनियर था. वह युवा इंजीनियर बहुत गर्व से बताने लगा कि किस तरह आरयसयस के यनजीओज के जरिए भूकंप राहत के पैसों से बचत करके साल भर से तलवार-त्रिशूल बांटे जा रहे थे और गैस सिलिंडर तथा बारूद का इंतजाम किया जा रहा था. बाकी सहयात्रियों की उसे मौन सहमति प्राप्त थी. मेरा नाम ईश मिश्र की बजाय इर्शाद अहमद होता तो बहस में वे मुझे अगर लिंच न करते तो अधमरा जरूर कर देते, हमारे साथी हमें न बोलने की नेक सलाह दे रहे थे और अंततः बेबसी में ज्यादातर समय मैं दरवाजे के पास सिगरेट पीते हुए बिताया. क्योंकि गुंडे और कुत्ते झुंड में शेर हो जाते हैं. वह युवा इंजीनियर सर सर करते हुए मुझसे बहुत "सम्मान" से पेश आ रहा था. तीसरे गुजराती ने कहा "सर आप जानते नहीं शहर (गोधरा) के उस हिस्से (मुस्लिम बहुल इलाके) में रोज कितनी गायें कटती हैं?" मैंने कहा मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता लेकिन अमेरिका और यूरोप में तो गोमांस नियमित भोजन है, तुम्हारे आका उनकी अभ्यर्थना करते रहते हैं. मैंने युवा बजरंगी से जब यह पूछा कि 10-12-13 साल की लड़कियों के साथ सामहिक बलात्कार में कौन सी बहादुरी है तो उसका हंसते हुए जवाब आज भी मेरे कानों में गूंजता रहता है. "सर जब ऊपर भेजना ही है तो संतुष्ट करके भेजो". मैं छटपटाहट में उठकर बाहर चला गया. सीबीआई वाले महोदय ने यह जानने के बाद कि मैं आज़मगढ़ का हूं, आपके जिलें में कट्टे के अनेक कारखाने मुसलमान चलाते हैं. लौट के सोचा इस पर एक कहानी लिखूंगा, लेकिन जब भी लिखने बैठा दिमाग की बजाय दिल सोचने लगता और मन रोने लगता. एक बार 3-4 पेज लिखा भी, वह कागजों में कहीं खो गया. फिर कभी शायद लिखूं. आज की सुबह 15 साल पुरानी गुजरात यात्रा की यादों ने खा लिया.

Friday, January 27, 2017

भिखारी

बढ़ते जा रहे हैं मुल्क में साल-दर-साल भिखारी
भरती जा रही है हरामखोर धनपशुओं की तिजोरी
कहा एक धनपशु ने इसका कारण है कामचोरी
मकसद है उसका छिपाना खुद की हरामखोरी
फैलाया है हाथ रोटी के लिए जो नहीं है कामचोर
श्रम के साधनों पर काबिज हैं धनपशु हरामखोर
(ईमि: 28.01.2017)

कशमकश

जिंदगी की कशमकश ही है इसकी खूबसूरती
बदसूरत बनाती हैं इसे सांकलें वफा-बेवफा की
(ईमि: 28.01.2017)

Thursday, January 26, 2017

जनगणमन

कौन है ये जन-गण-मन का भाग्यविधाता
मारक तोपों की जो कई सलामी खाता
अरबी सुल्तान को जो मेहमान बनाता
मुसलमानों को आतंकवादी करार देता
युद्धक विमानों से जो जन को डराता
मारक हथियारो की नुमाइश लगाता
(ईमि: 26.02.2027)

नवब्राह्मणवाद 8

Atul Katiyar ऐसा नहीं है कि वामपंथी हर विरोधी को संघी बोलते हैं. अस्मितावादी महज अस्मिता की राजनीति करते हैं, संघर्ष नहीं, दलित उत्पीड़न समेत सभी उत्पीड़न के के खिलाफ संघर्ष मार्क्सवादी ही करते हैं. दिलीप मंडल और उनके चेले उसी तरह वामपंथियों को गरियाते हैं जैसे संघी, वौसी ही भाषा में.जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्रह्मणवाद का मूल मंत्र है जो भी ऐसा करतान है ब्राह्मणवाद के पूरक की भूमिका निभाता है, इसीलिए वह नवब्राह्मणवादी है. जबकि कम-से-कम उप्र में दलित उत्पीड़न सवर्ण नहीं, यादव करते हैं. लगता है कि संघियों और ओबीसी के संघी मानसिकता के लोगों की दुश्मनी ब्राह्मणवाद और क़रपोरेटवाद से नहीं, वामपंथियों से है, प्रकारांतर से वे जनवादी आंदोलनों का नुक्सान कर संघियों के कारिंदों का काम करते हैं. लेफ्ट को गाली देने के पहले थोड़ा इतिहास पढ़ लें. अस्मिता की राजनीति की सीमाएं हैं जो अंततः रामविलास और राम अठावले के रास्ते जाती है. विनय कटियार और मोदी तथा नीतीश जैसों की तार्किक परिणति संघ की गोद में बैठना है.

नवब्राह्मणवाद 7

मित्र, सहमत हूं, लेफ्ट सिर्फ चुनावी कम्युनिस्ट पार्टियां नहीं हैं, बहुमत उसके बाहर है. मैंने कई लेखों में लिखा है कि यदि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, कॉमिंटर्न की निर्देशित पार्टी न होकर भारतीय वस्तुस्थिति के सही विश्लेषण के हिसाब से कार्यक्रम बनाती तो शायद अंबेडकर उसमें ही होते. मार्क्स जब यूरोपीय पूंजीवाद के बारे में लिख रहे थे तो वहां नवजागरण और प्रबोधन आंदोनों के चलते जन्म के आधार पर समाजविभाजन खत्म हो चुका था. भारत में कबीर से शुरू हुआ नवजागरण तमाम ऐतिहासिक कारणों से अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका. चेतना के विकास के स्तर के अनुरूप हमने सोचा कि हम तो संपूर्ण समानता की बात कर रहे हैं जिसमें जातीय और जेंडर समता भी शामिल है. मैं कई जगह लिख चुका हूं कि यह हमारी (कम्युनिस्टों की) गलती थी. जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध हमीं लड़ रहे थे लेकिन इसे प्राथमिक मुद्दा नहीं बनाए. रोहित की शहादत ने हमें गलती सुधारने का मौका दिया और जयभीम-लाल सलाम नारों की एकता और जेयनयू के आंदोलन ने उम्मीद जगाई लेकिन इस एकता को तोड़ने वाली शक्तियां भी सक्रिय हो गयीं. मैं ब्रह्मा की बेहूदगी से यदि जन्मना ब्राह्मण पैदा हो गया तो क्या मुझे वैज्ञानिक सोच विकसित करने और ब्राह्मणवाद की विद्रूपताओं को समझने का अधिकार नहीं है? शुरुआती दौर में कम्युनिस्ट नेता ज्यादातर ब्राह्मण हुए क्योंकि वही तो इतिहास की वैज्ञानिक समझ हासिल कर सकते हैं जिनको बौद्धिक संसाधनों की सुलभता होगी. बौद्धिक संसाधनों की सुलभता की सार्वभौमिकता से हालात बदलने लगे लेकिन अस्मिता की राजनीति से उसमें बिखराव आने लगा. वाम और अस्मितावादी ताकतों को खुले दिमाग से साथ बैठकर विमर्श की जरूरत है एक दूसरे की आलोचना-प्रत्यालोचना के साथ. जयभीम-लालसलाम की एकता से फासीवाद बौखला गया और तोड़ने की जुगाड़ में लग गया, उसे कुछ हद तक सफलता भी मिल रही है. जेयनयू प्रतिरोध का पहला और सबसे मजबूत मोर्टा है, यह टूटा तो और मोर्चे तोड़ना आसान हो जाएगा. मैं पहले दशक का जेयनयूआइट होने के नाते इस एकता को बरकरार रखने का पक्षधर हूं. जेयनयू पर हिंदी अंग्रेजी के अपने कई लेखों में मैंने इसे रेखांकित किया है. फिर मैं जेयनयू के युवा मित्रों से अपील करता हूं कि इस गढ़ की रक्षा करें.

मार्क्सवाद 40 (क्रांति की संभावना)

कॉमरेड जगदीश्वर जी, इतने निराश न हों. मौजूदा कम्युनिस्ट पार्टियां सूखा कुआं भले हो गई हों लेकिन पानी की संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं. किसी भी संकट के अवसर पर हजारों लोग जो सड़कों पर निकल आते हैं उनमें ज्यादातर मार्क्सवाद/समाजवाद की विचारधारा वाले लोग होते हैं. बहुत दिन हुआ अरुण माहेश्वरी जी की किताब की समीक्षा लिखने के पहले या लिबरेशन की कांग्रेस के बाद फेसबुक पर, 'इंटरनेसनल प्रोलेटेरियट' ग्रुप पर समाजवाद के संकट पर कुछ अमेरिकी कॉमरेडों (लेनिन की परिभाषा में अकम्युनिस्ट - निर्दल) से विमर्श पर एक लंबा कमेंट (2000 शब्दों के आस-पास) लिखा था, सोचा था कभी उसको इस मुद्दे पर व्यापक विमर्श के लिए ड्राफ्ट में तब्दील करूंगा, लेकिन बौद्धिक अनुशासनहीनता और आवारगी में ऐसा कर न सका, ब्लॉग में खोजूंगा. आप (अब तुम की जगहआप लिख दिया तो चलने दो) अरुण जी, मनमोहन शुहेल भाई आदि की ही तरह बहुत से गंभीर और अनुशासित लोग हैं जो समाजवाद के सैद्धांतिक संकट को लेकर बेचैन हैं. पूंजीवादी देशों में भी बहुत से ऐसे लोग हैं. सभी कम्यनिस्ट पार्टियों के जनसंगठनों, खासकर छात्र संगठनों में, बहुत से ऐसे लोग हैं जो इस संकट से बेचैन हैं, जो विकल्प के अभाव में इन दलों में हैं.अरुण जी जैसे बहुत लोगों को संगठन अनुभव और क्षमता है. मैंने अरुण जी की पुस्तक की समीक्षा में कई बातें रेखांकित की थी. कम्युनिस्ट पार्टी अन्य पार्टियों से इस मामले में अलग होती हैं कि वे सिद्धांत पर जोर देती हैं(कम-से-कम सिद्धांततः). हम लोग इस संकट पर एक लंबा विमर्श शुरू कर नए सिरे से, मार्क्सवादी सिद्धांतो पर नए संगठन की शुरुआत कर सकते हैं. बाकी समाजवाद पर एक लेख के बाद. शुरुआत सोसल मीडिया से की जा सकती है. संकट का प्रमुख कारण इन पार्टियों की मार्क्सवाद की जगह स्टालिनवादी प्रवृत्ति है जिसे अरुण जी ने अपनी पुस्तक में अच्छी तरह रेखांकित किया है. आप दोनों पहल में अति सक्षम हैं. शुरुआत विश्व स्तर पर संकट के कारणों से करनी पड़ेगी. ऐसा मुझे लगता है.

नवब्राह्मणवाद 6

Dilip C Mandal आपकी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर? आप बहुप्रतीक्षित जयभीम-लाल सलाम के नारों की एकता को तोड़ने के अलावा जोड़ने का कोई काम क्यों नहीं करते. सुना है आप ओबीसी मोदी की ओबीसी मंत्री अनुप्रिया पटेल के सलाहकार हैं? आपने आजतक कितने दलित आंदोलन किए हैं? लक्ष्मणपुर बाथे आदि जनवाद विरोधी फैसलों के विरोध में कितने आंदोलन शुरू किए हैं? किसके राज में दलितों के सबसे अधिक नरसंहार हुए हैं? लालू के, वह तो ब्रीाह्मण नहीं है. किसके मुख्यमंत्रित्व में नराधम ब्रह्मेश्वर मुखिया की मौत के मातम में कुहराम मचा था? नीतिश के, वह भी शायद ब्राह्मण नहीं है. किसके मंत्री ने मुखिया जैसे जातिवादी दानव को गांधी कहा था? नीतिश के, क्यों नहीं नीतिश ने उस अपराधी को मंत्रिमंडल से नहीं निकाला? आप से उम्मीद थी कि सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में सकारात्मक भूमिका निभाएंगे लेकिन अब तो विश्वास हो गया है कि फासीवादी 'ओबीसी' मोदी ने जनवादी आंदोलनों तो तोड़ने-भटकाने के लिए आपको खरीद लिया है. आपकी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर? मुझे तो शक 2014 के संसद चुनाव के वक्त ही हुआ था लेकिन लगा मेरा भ्रम है. वामपंथ के खिलाफ इतना जहर उगल रहे हैं मैंने फासीवाद -साम्राज्यवाद-ब्राह्मणवाद के खिलाफ आप का लिखा कुछ नहीं पढ़ा. क्या है आपकी पॉलिटिक्स पार्टनर? क्यो आप वाकई ब्राह्मणवादी 'ओबीसी' मोदी के हाथों बिक चुके हैं? हां तो कितने में?

Wednesday, January 25, 2017

नवब्राह्मणवाद 5

Dilip C Mandalनंदिनी, बेला आदि को बथानी टोला आदि के नरसंहारियों के साथी बताने वाली पोस्ट पर अपने अनुयायियों की मां-बहन की गालियां आपने शायद नहीं पढ़ा? यहां तो कोई गाली नहीं दे रहा है, यही कहा जा रहा है कि दलित-वाम एकता तोड़कर आप फासीवादी गिरोह को मदद कर रहे हैं. आपने दलितों की लड़ाई का नेतृत्व के लिए कोई जनमतसंग्रह किया है? लक्ष्मणपुर बाथे आदि नरसंहार नक्सल नरसंहार थे. शासक वर्ग शासक जातियां एक ही रहे हैं. आप सारे वामपंथियों को जातीय सर्टिफेकेट बांटकर प्रकारांतर से मोदी के लठैत का ही काम कर रहे हैं. उप्र में यादव बाहुबलियों द्वारा दलित उत्पीड़न पर आपने कभी कुछ लिखा? मैंने उदाहरण देकर आपकी पोस्ट पर लिखा कि वहां दलित उत्पीड़न सवर्ण गुंडे नहीं यादव गुंडे कर रहे हैं. मैं कई बार लिख चुका हूं विचार और काम की बजाय जन्म के आधार व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल मंत्र है वही आप कर रहे हैं इसीलिए आप नवब्राह्मणवादी हैं और ब्राह्मणवाद को मजबूत कर रहे हैं. सादर.

नवब्राह्मणवाद 4

Dushmanta Kumar Majhi आप उसी तरह दलितों की भावनाओं को आत्मसात कर उनके प्रवक्ता बन गए हैं जैसे मोदी-तोगड़िया हिंदुओं की भावनाओं को. आपने जनमत संग्रह किया है? आप बताएंगे कि क्रांतिकारी को क्या करना चाहिए? आपको रमन सिंह के लठैत 'ओबीसी' कल्लूरी की हमदर्दी चाहिए. आप जैसे नवब्राह्मणवादी लोग दलितों के हित के लिए ब्राह्मणवादियों से भी अधिक खतरनाक हैं. दलितों पर जुल्म के खिलाफ संघर्ष में आप और मंडल जैसे लोग बिलों में घुस जाते हैं. कौन लड़ रहा है लक्ष्मणपुर बाथे के नरसंहारियों के खिलाफ? आप लोग वामपंथ को अपना मुख्य दुश्मन बनाकर ब्रह्मणवाद की गोद में खेल रहे हैं, उभरते जयभीम-लाल सलाम नारों की एकता तोड़कर आप मोदी के लठैत का काम कर रहे हैं, उ.प्र. में दलितों का दमन सवर्ण नहीं ओबीसा यादव बाहुबली कर रहे हैं, वही दलितों की हत्याएं कर रहे हैं और उनकी बस्तियां उजाड़ रहे हैं, उन्ही गुंडों ने मायावती पर हमले किए थे. जनांदोलनों को तोड़ने वाले लोग 'ओबीसी' मोदी के बिके हुए गुर्गों का काम कर रहे हैं. मंडल संघी प्रभु चावला की पत्रिका का संपादक कैसे बने?

नवब्राह्मणवाद 3

Dilip C Mandal और उनके अनुयायी नवब्राह्मणवादी जयभीम-लालसलाम नारों की एकता से अपनी अवसरवादी रियासत-सियासत मड़राते पर खतरे से भयभीत, इस एकता को तोड़ने की अपनी मुहिम में जन्मना सवर्ण वामपंथियों को सलाह दे रहे हैं कि सवर्ण दलितों के संघर्ष को आगे बढ़ाने की बजाय अपनी जातियों में सुधार आंदोलन चलाएं. गोल्वलर की प्रतिध्वनि सुनाई दे रही है इनकी बातों में कि हिंदू अंग्रेजों से लड़ने की बजाय अपने को एक करें. स्वतंत्रता संग्राम के वक्त ये होते तो भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, भगवतीचरण वोहरा, दुर्गा भाभी, रामप्रसाद विस्मिल, सचिन सान्याल, राममोहन रॉय .... (सभी सवर्ण) को सलाह देते कि क्रांतिकारी आंदोलन की बजाय वे अपनी अपनी जातियों में सुधार आंदोलन चलाएं. वे 'ओबीसी' पुलिसिए कल्लूरी को सलाह नहीं देते कि वह आदिवासियों की हत्या-बलात्कार-विस्थापन का प्रायोजन बंद कर दे या 'ओबीसी' मोदी देश बर्बाद करना छोड़ दे.

नवब्राह्मणवाद 2

Ajay Prakash Rajesh Singh इस सवाल का जवाब मैं 18 साल की उम्र से ही देता आया हूं. 1991 में मंडल विरोधी उंमाद के वक़्त इस सवाल की भीड़ लग गयी थी तो मैंने नवभारत टाइम्स में 'मेरिट और आरक्षण' पर 3 लेखों की एक लेखमाला लिखा था. उनमें से एक लेख इसी पर था क्योंकि लोगों की निराधार अपेक्षा के प्रतिकूल मैं विभाजन रेखा के दूसरी तरफ था. जनेऊ तोड़ने की मुझे जरूरत हुई, मिश्र हटाने की नहीं. कहां पैदा हो गया इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है, आप लोग अगर अपनी मर्जी से पैदा हुए हों तो मैं नहीं जानता. कर्म और विचोरों की बजाय जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल मंत्र है, जो भी ऐसा करता है वह जाने-अनजाने ब्रह्मणवादी है. मिश्राओं को वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करने पर रोक है क्या? जितने भी ब्राह्मणवादी और नवब्राह्मणवादी हैं जब उन्हें मेरी बातों को काटने का तर्क नहीं मिलता तो यही कुतर्क करते हैं. अजय जी देर से हटाने की बात नहीं है, तफरीह में हटा दिया फिर पता चला अब 2 महीने इसे ही रखना पड़ेगा. और थोड़ा हल्के अंदाज में कहूं तो इसलिए भी नहीं हटाता कि लोगों को पता रहे कि इस समाज को बौद्धिक जड़तान में हजारों साल जकड़े रखने वालों में मेरे पूर्वज भी शामिल हैं. फेसबुक पर मिश्र को लेकर सबसे ज्यादा गालियां मिश्र-शुक्ल-... ही देते हैं. बंददिमाग लोग मैं क्या कहता हूं और क्या करता हूं उनमें एका है कि नहीं, यह सवाल नहीं पूछते, यही पूछते हैं कि मैं खास मां-बाप के यहां क्यों पैदा हो गया? 60 दिन पूरा होते ही फिर से पूरा नाम लिखूंगा. भाई, मेरे बारे में राय मेरे कर्म-विचारों पर बनाइए, जन्म की जीवनवैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता के आधार पर नहीं. बौद्धिक संसाधनों की पारंपरिक सुलभता के चलते जन्मना ब्राह्मणों पर ज्यादा जिम्मेदारी बनती है कि वे ब्राह्मणवाद की विचारधारा की विद्रूपताओं को समझें. इस सवाल का यह अंतिम जवाब है, आगे यह मूर्खतापूर्ण सवाल करने वालों को अपनी मित्रसूची से बाहर कर दूंगा. अजय प्रकाश जी, आप सरनेम नहीं लिखते लेकिन वह कोई गारंटी नहीं है कि आप आप जातिवादी नहीं है. घनघोर जातिवादी डॉ. जगन्ननाथ और चंद्रशेखर क्रमशः मिश्र और सिंह नहीं लिखते थे. जो भी जन्म के आधार पर मेरे व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हैं मैं उन्हे ब्राह्मणवादी समझ खारिज कर देता हूं.

Tuesday, January 24, 2017

नवब्राह्मणवाद 1

मैं तो दिलीप यादव के समर्थन में सारे वामपंथी संगठनों को खड़ा देख रहा हूं. यार दिलीप मंडल, जेयनयू प्रतिरोध का पहला और बड़ा मोर्चा है. रोहित की शहादत से निकले जय-भीम -- लाल-सलाम नारे की एकता को पुख्ता कीजिए, निहित स्वार्थों के लिए तोड़ो मत. लक्ष्मणपुर बाथे नक्सल नरसंहार था. शासक जातियां और शासक वर्ग हमेशा एक रहे हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न सवर्ण नहीं यादव कर रहे हैं. मायावती पर शारीरिक हमला किसी सवर्ण ने नहीं, बसपा-सपा के रास्ते भाजपा तक का सफर करने वाले माफिया रमाकांत यादव के भाई उमाकांत ने किया था. आज़मगढ़ की फूलपुर तहसील में जमीन कब्जा करने के लिए दलितों की बस्ती पर बुल्डोजर उसी ने चलाया था. सड़क का ठीका न मिलने पर शाहगंज के दलित जूनियर इंजीनियर की हत्या तब बसपा के यमयलए रमाकांत यादव ने कराई थी और बसपा से सपा में चला गया था, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम ने बचाया. अस्मिता राजनीति की सीमाएं होती हैं, उससे ऊपर उठकर जनवादी चेतना की तरफ बढ़िए. ब्राह्मणवाद और कॉरपोरेटी लूट की बजाय वामपंथ को गरियाकर आप प्रकारांतर से ब्राह्मणवाद और कॉरपोरेटवाद को ही मदद कर रहे हैं, बाकी आपकी मर्जी. आदिवासियों के हकों की हिमायती नंदिनी सुंदर को सवर्ण कह कर खारिज करके आप कॉरपेरेटी लूट का ही समर्थन कर रहे हैं. काम या विचार की बजाय जन्म के आधार पर व्यकित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल मंत्र है, ऐसा करके आप नवब्राह्मणवादी खेमे मे शामिल हो ब्राह्मणवाद को शक्ति प्रदान कर रहे हैं. बाकी आप बहुत बड़े विद्वान हैं, आपको मैं क्या समझा सकता हूं.

न्यायतंत्र

भारत की न्यायपालिका क्या वाकई बिकी हुई है? जिस सूचना आयुक्त ने दिल्ली विवि को मोदी की डिग्री की सूचना सार्वजनिक करने का निर्देश दिया उसे हटा दिया गया और माननीय न्यायालय ने उसपर रोक लगा दी. जिस जज ने तड़ीपार को अदालत में पेशी से छूट नहीं दी उसे हटाकर किसी वफादार जज को बैठा दिया जो उसे क्लीनचिट देकर रिटायर होने के बाद राज्यपाल बन गया. महामहिम न्यायाधीश महोदय दिविवि द्वारा 1978 का बीए की परीक्षा के दस्तावेज मुहैय्या कराने से देश की सुरक्षा या न्याय व्यवस्था पर क्या खतरा आ जाएगा? इससे यही तो पता चलेगा कि भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी शिक्षा के बारे में गलत हलफनामा दिया है जो इतना फरेबी है कि इतना हो-हल्ला के बाद भी अपनी डिग्री के सवाल पर मन की बात कहने से बच रहा है. क्या रिटायर होने के बाद राज्यपाली या ऐसे ही किसी पद के लिए अपनी जमीर और न्यायिक नैतिकता को बेच दिया है? आपकी प्रतिबद्धता संविधान के प्रति है या फर्जीबाड़े के? क्या उर्जित पटेल की तरह आपने भी गले में पट्टा बंधवा लिया है? यदि यह अदालत की अवमानना है तो मुझे जो सजा देना चाहें, मैं राजी हूं..

Judiciary

Is the Indian judiciary really sold out? The judge who denied exemption to Amit Shah the organizer of fake encounters from personal appearance in court was transferred and the one who replaced him and gave him clean chit was rewarded with governorship. The CIC who ordered the Delhi University to make the 1978 examination, records public, when the PM Narendra Modi is supposed to have passed his BA examination from Delhi University, has been removed from the post and the High Court stayed the order. Your honor Mr. Justice! whatever is your name, how does that poses any threat the the security of the country or judiciary? This will only expose the obduracy of the lie that India's PM gave in his affidavit, who is such a cunning fraud that is keeping mum about it despite so much hue and cry.Is your commitment to Constitution or to deceit?Have you sold out your conscience and judicial morality for a post-retirement post like Governor or so? Have you also got the strap around your neck like the RBI governor Urjit Patel? If it amounts to the contempt of court, go ahead, I am ready.

गीता विमर्श 4

पहली बात तो वेदव्यास के महाभारत में गीता आठवीं शताब्दी के बाद का प्रक्षेपण है और कमजोर हो रहे वर्णाश्रम की पुनर्स्थापना का प्रयास. महाभारत भी हर हाल में मौर्यकाल के बाद का ग्रंथ है क्योंकि 4थी-3री शताब्दी पूर्व रचित शासनशिल्प पर कौटिल्य की कालजयी कृति अर्थशास्त्र में इसका वर्णन नहीं है. कौटिल्य तब तक उपलब्ध शासनशिल्प पर सभी विचारों का उद्धरण देने के बाद ही अपने विचार रखते हैं. ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी तबतक नदारत थे. महाभारत के शांति पर्व में वर्णित और मनुस्मृति में वर्णित शासनशिल्प लगभग शब्दसः एक ही है. किसने किससे कॉपी पेस्ट किया नहीं कहा जा सकता. श्रुति परंपरा का ध्यान रखते हुए हमलोग किसी ग्रंथ को पढ़े बिना फैसलाकुन राय दे देते हैं. अर्थशास्त्र में कंस और कृष्ण को दानवों की कोटि में एक साथ रखा गया है. कौटिल्य के ही समकालीन मेगस्थनीज कृष्ण को सूरसेन (मथुरा क्षेत्र) का एक लिजेंड्री नायक बनाते हैं. इसका मतलब हुआ कि कौटिल्यकाल तक कृष्ण एक अनार्य (दानव) नायक माने जाते थे. कृष्ण की आराधना की परंपरा चैतन्य महाप्रभु ने शुरू किया.

International Proletariat 57

True, with change of strategies in the dynamics of the imperialist global capital, the strategy of raising/radicalization of social consciousness must change. A new international of workers is needed with new formations world over. Biggest hurdle is chauvinistic nationalism among the workers world over. Till 1914, all the sections of 2nd international were adhering to ant-war campaign but as soon as the war commenced, except for the sections of workers of Russia, the rest joined the the warmongering of their national governments. Com. Rosa Luxemburg was brutally assassinated not by Nazis but on the behest of the Social Democratic government. Traditional Communist Parties, having stopped reading Marx have been marginalized world over and have lost revolutionary zeal. I am always optimistic about the future generation. There is crisis of theory in capitalism and also there is crisis of theory in its only alternative, the socialism. We must get together and work it out.

दलित विमर्श 13

मैं तो दिलीप यादव के समर्थन में सारे वामपंथी संगठनों को देख रहा हूं. यार दिलीप मंडल, जेयनयू प्रतिरोध का पहला और बड़ा मोर्चा है. रोहित की शहादत से निकले जय-भीम -- लाल-सलाम नारे की एकता को पुख्ता कीजिए, निहित स्वार्थों के लिए तोड़ो मत. लक्ष्मणपुर बाथे नक्सल नरसंहार था. शासक जातियां और शासक वर्ग हमेशा एक रहे हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न सवर्ण नहीं यादव कर रहे हैं. मायावती पर शारीरिक हमला किसी सवर्ण ने नहीं, बसपा-सपा के रास्ते भाजपा तक का सफर करने वाले माफिया रमाकांत यादव के भाई उमाकांत ने किया था. आज़मगढ़ की फूलपुर तहसील में जमीन कब्जा करने के लिए दलितों की बस्ती पर बुल्डोजर उसी ने चलाया था. सड़क का ठीका न मिलने पर शाहगंज के दलित जूनियर इंजीनियर की हत्या तब बसपा के यमयलए रमाकांत यादव ने कराई थी और बसपा से सपा में चला गया था, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम ने बचाया. अस्मिता राजनीति की सीमाएं होती हैं, उससे ऊपर उठकर जनवादी चेतना की तरफ बढ़िए. ब्राह्मणवाद और कॉरपोरेटी लूट की बजाय वामपंथ को गरियाकर आप प्रकारांतर से ब्राह्मणवाद और कॉरपोरेटवाद को ही मदद कर रहे हैं, बाकी आपकी मर्जी. आदिवासियों के हकों की हिमायती नंदिनी सुंदर को सवर्ण कह कर खारिज करके आप कॉरपेरेटी लूट का ही समर्थन कर रहे हैं. काम या विचार की बजाय जन्म के आधार पर व्यकित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल मंत्र है, ऐसा करके आप नवब्राह्ममणवादी खेमे मे शामिल हो ब्राह्मणवाद को शक्ति प्रदान कर रहे हैं. बाकी आप बहुत बड़े विद्वान हैं, आपको मैं क्या समझा सकता हूं.

Saturday, January 21, 2017

क्षणिकाएं 62 (831-40)

831
2012 की एक पोस्ट पर इलाहाबाद के मेरे सीनियर वीपी संह जी ने कमेंट किया कि इश्क में भी इंक़िलाब, वह पोस्ट दिखा गई और कलम आवारा हो गया.
Virendra Pratap Singh
सही साबाशी दी है इश्क में इंकिलाब की
प्रेम ही है गाढ़ा-माटी इंक़िलाब के बुनियाद की
इंकिलाब नहीं है संसद का चुनाव
इंकिलाब है दुनिया बदलने का भाव
बदलाव नहीं महज मसला-ए-निज़ाम में
बल्कि ज़िंदगी के हर मुमकिन मुकाम में
आता है जब समाज में इंकिलाब
बदल जाता है आशिकी का मिज़ाज
होता नहीं कोई हुस्न के जलवे का पिजड़ा
न ही किसी धनुर्धर की तीरअंदाजी का जलवा
होती है बुनियाद विचारों की साझेधारी
हमराह-हममंजिल होती है आशिक जोड़ी
(ईमि:04.12.2016)
831
एक देश में एक राजा था बिल्कुल फकीर
एक भिखारी था उसी देश में बेहद अमीर
राजा करता था लखटकिया सूट में तकरीर
भिखारी मांगता था स्वाइप मशीन से भीख
राजा ने कहा अगर देश में लाना है खुशहाली
तो चाहिए मॉल कल्चर और कैशलेस इकॉनामी
मर रहा है वही नोटबंदी की पवित्र मार से
मर सकता था जो वैसे भी बे-दवा बुखार से
ऐसे लोग जो ज़िंदगी में उठ नहीं पाते
राष्ट्र के लिए त्याग कर नहीं पाते
रोजी-रोटी में ही जीवन खपा डालते
या बेरोजगारों की फौज खड़ी करते
मिटा देते हैं उनकी जीवन रेखा भगवान
नोटबंदी तो है महज एक माध्यम नादान
राजा की लफ्फाजी से हो गया भिखारी बोर
चढ़ महल की मीनार पर मचाने लगा शोर
चिल्लाकर गाने लगा राजा है फरेबी चोर
नौटंकी में दिया इसने मुझे स्वाइप मशीन
करके मेरी नुमाइश दिखाता सपने रंगीन
सेठों का कारिंदा है नहीं है ये फकीर
खींच रहा दिमागों में वह छल से लकीर
कहता हटाने को गरीबी हटाता है गरीब
बनाता है उनके लिए नोटबंदी का सलीब
(आज दूसरी बार कलम की आवारगी, ये तब कुछ ज्यादा आवारा हो जाता है जब इसके पास कोई गंभीर काम होता है.)
(ईमि:04.12.2016)
832
एक था अहंकारी राजा
डाला आवाम की संपत्ति पर भयंकर डाका
ऐश करते रहे सब हरामखोर थे जो उसके आका
मच गई प्रजा में त्राहि त्राहि घरों में पड़ने लगा फाका
मरने लगा आवाम हुआ न काला धन को बाल भी बांका
देश भक्ति के नाम पर शुरू हुआ मेहनतकशों का हांका

पेट की आग ने मुर्दों जान भरना शुरू किया
भक्तिभाव को बगावत में बदलना शुरू किया
हथियारबंद सैनिक भी परिजनों के दुख से दुखी हुआ
हथियारबंद मशीनों में चिंतनशक्ति का संचार हुआ
देख हलचल मशीनों में अंहकारी राजा सनक गया
विक्षिप्त हो मुल्क के आवाम पर पागल सा भड़क गया
भूखे-नंगों का बगावती जज्बात हो गया भक्ति भाव पर हावी
छीन लिया दरवान से राजा के गुप्तकोष की चावी
लूट लिया प्रजा ने महल से पीढ़ियों से लुटा अपना धन
राजा का सिर धरती पर गिरा मिट्टी में मिला अहंकारी मन
(यों ही)
(ईमि: 07.12.2016)
833
हम गुरुकुल संस्कृति के ज्ञानी हैं
शाष्टांग परंपरा के अभिमानी हैं
गुरुवाणी में ही छिपा परम ज्ञान
सवाल पूछना है गुरु अपमान
कालक्रम में समझना इतिहास
है गौरवशाली मिथकों का परिहास
भूत-ओ-भविष्य का सारा ज्ञान-विज्ञान
वैदिक पूर्वजों ने कर लिया था संधान
सवाल पूछना या करना गुरू से वाद-विवाद
है पूर्वजों के रटंत ज्ञान पर बज्र कुठाराठाराघात
(ईमिः 12.12.2016)
(यों ही)
835
उस वक्त की बात है जब लिखी गयी थी यह कविता
चहकती थी हर शाख और महकती थी हर दिशा
मौसम में थी जीने-खाने की सहजता
सीमित कमाई से भी था घरबार चलता
बिछाकर सरकार ने नोटबंदी का भयानक जाल
लूट लिया मौसम से खून-पशीने बना जान-माल
बंद कर दिया है दिशाओं ने महकना
और शाखों ने चहकना
छा गया है दिशाओं पर नोटबंदी का घटाटोप
सरकार लगा रही है नंगे-भीखों पर कालाबाजारी के आरोप
शाखाएं ऊंघ रही हैं एटीम की लंबी कतारों में
भूल गए हैं खग-मृग झूमना, फुदकना और चहकना
लेकिन ये दिशाएं महकना भूली नहीं हैं
शाखाओं के तेवर में चुप रहना नहीं है
फिर से मंहकेंगी दिशाएं और चहकेंगी शाखाएं
नोटबंदी के फरेब की टूटेंगी मृगमरीचिकाएं
(यों ही)
(ईमि: 20.12.2016)
836
मितरों मैं हूं चायवाला नरेंद्र दामोदर मोदी
सामासिक संस्कृति की कब्र हमने खोदी
देते हैं ऐसे-ऐसे दिलफेंक बयान
फेल हो जाते खुदाओं के फरमान
सूली पर चढ़ा देना मुझको ताजशाही के सौ दिन बाद
 किया न अगर पंद्रह-पंद्रह पेटी से हर घर को आबाद
 मिली न पेटी किसी को हजार दिन बाद
समझना न इससे मुझे महज जुमलेबाज
लटका नहीं सकते वैसे तुम मुझे शूली पे
रहता हूं मैं ज़ेड-प्लस की किलाबंदी में
 ले आता मैं विदेश से अपार काला धन
विपक्ष बन गया मगर रास्ते की अड़चन
 करता जब तक मुल्क काले धन से आबाद
राष्ट्रवाद पर लगा गुर्राने नापाक आतंकवाद
 काले धन पर पलते हैं आतंकवादी और नक्सल
 नोटबंदी से ठिकाने लाऊंगा इनकी अकल
मितरों अद्वितीय है राष्ट्र के लिए यह आत्मबलिदान
 बैंकों की कतारों में दे रहे लोग देशभक्ति का इम्तहान
 नमकहलाली के उसूलों से भटका
विदेशी कालेधन का वादा
अडानी की जहाज में चलने का है कुछ अलग ही फायदा
भूल जाइए मितरों विदेशी काले-पीले धन की बात
पैदा कीजिए काले धन केराष्ट्रवादी स्वदेशी जज्बात
बहुत से काले बाजारिए भेष बदल चीथड़ों में घूमते हैं
रिक्शा या ऑटो चलाकर भोली जनता को लूटते हैं
इसीलिए मितरों मैंने फेंका नोटबंदी का अचूक जाल
भूखे-नंगे ही नहीं मध्यवर्गीय कालाबाजारियों का भी काल
 नोटबंदी ने लगा दिया कालाबाजारियों को लंबी लंबी
कतारों में खंघाल कर काले धन की पाई-पाई रख दिया
बैंक लॉकरों में मितरों था देश में
 बैंकों में नगदी का संकट विकास में बाधा
कुछ देशभक्त पूरा न कर सके बैंकों से कर्ज लौटाने वादा
टल गया फिलहाल देश से बैंकों के दिवालिएपन का संकट
 भारतमाता की खातिर झेलिए थोड़ा और भुखमरी का कष्ट
किया था पंद्रह पेटी विदेशी काले धन का वायदा
मिलेगा हर किसी को देशी काले धन का फायदा
विदेशी काले धन के लिए रखा था सौ दिन की मियाद
 देशी काले धन का वायदा महज पचास दिन बाद
शूली पर चढ़ाने की तब की थी गुजारिश
ज़िंदा जलाने की करता हूं अबकी सिफारिश
 मितरों देख रहा हूं नहीं कमती बैंकों की कतार
 देशभक्ति की परीक्षा देनी पड़ती बार बार
 पांच दिन बाद हो जाएगी पूरी पचास दिन की मियाद
 करूंगा का मुल्क से तब कोई नई राष्ट्रवादी फरियाद
इस बार भी आप ज़िंदा जलाने का अपना फर्ज
न निभा पाएंगे जबतक है सिर पर ताज़
हम ज़ेड-प्लस से बाहर न आएंगे पांच साल
नाकाफी है मिटाने को 70 साल की देशद्रोही दुर्गंध
 अगले पांच साल में मितरों फैला दूंगा राष्ट्रवादी चंदन की सुगंध
मांगता हूं पिछले पांच सालों की भूलचूक की राष्ट्रवादी मॉफी
अगले पांच सालों में लगाऊंगा चिलम में हिंदू राष्ट्र की साफी
(यूं ही) (ईमि : 24.12.2016)
837
ऐसा ही फरेबी एक शख्स था स्वयंभू भगवान
कहते किसी द्वापर युग में
आज भी मानते भगवान उसको इस कलियुग में
था शेर सा खूंखार लोमड़ी सा चालाक
वाक्पटुता से कर देता था लोगों को अवाक
था उसके पास एक अद्वितीय क्षेपक अस्त्र
दूर से ही कर सकता था दुश्मन को त्रस्त
नाम रखा था उसका नरसंहारी सुदर्शन चक्र

पला-बढ़ा वह एक पशुपालक परिवार में
बचपन में करता था गाय बृंदाबन में
चतुराई से खेल खेल-चुटकुलों में
सरमौर बन जाता साथी चरवाहों में
चुराता था दही लगाता था औरों का नाम
कहावत है बद अच्छा बुरा है बदनाम
जैसे जैसे बड़ा होता गया
लड़कियों का चहेता बनता गया
करता था उनके कपड़े चुराने की क्रीड़ा
रचता था उनके साथ रासलीला
सहता था परनारी गमन के आरोप की पीड़ा
अदालत ने शिकायतियों पर लगाया प्रत्यारोप
घोषित किया उसे सब आरोपों से निर्दोष
जवानी तक पूरे गांव का हो गया वह बेत़ाज बादशाह
ख़ाहिश मगर थी उसकी बनने की चक्रवर्ती सम्राट

इसके लिए उसने दूरगामी योजना बनाया
एक छोटे से रजवाड़े को कर्मभूमि बनाया
पहुचते दिखाया कुछ चमत्कारी कारनामें
सर्वज्ञ बन बैठ गया परदेश के चिलमन में
चली फिर उसने एक अचूक चाल
बिछाया राजकुल में फूट का जाल
कराने गया बनकर बिचौलिया दावेदारों में समझौता
दिलाया दोनों से रणभूमि में मिलने का आपसी न्योता
बनाया अपना भक्त था जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
साबित किया था मछली की आंख भेदकर
जंगखोरी जमकर किया गुणगान
युद्ध कर्म को बताया दैविक विधान
कहा खून-खराबे में फायदा ही फायदा है
जीतने पर राज हारने पर स्वर्ग बदा है
करने लगा धनुर्धर युद्ध के प्रलयंकारी परिणामों की बात
दिखाने लगा सगे-संबंधियों से मोह-माया ओ नैतिक जज्बात
देखा स्वघोषित प्रभु ने जब धनुर्धर की भावना युद्ध-विरक्ति की
दिखलाया अपना विराट रूप और माया जादुई शक्ति की
उंगलिओं पर घूमने लगा महान सुदर्शन चक्र
देखा धनुर्धर को करके आंखें थोड़ा वक्र
कहा मैं ही हूं भगवान श्रृष्टि रचने वाला
दुनिया को वर्णाश्रम की सौगात देने वाला
हुआ दोनों पक्षों में खून खराबा घमासान
हुंकार-ललकारों से गूंजा साराआसमान
गिरने लगे धरती पर बड़े-बड़े महारथी ऐसे
आंधी में पेड़ों से से फल गिरते हों जैसे
खुशी से नाचने लगे आसमान में चील्ह-बाज
मानव-मांस है जिनके भोजनों में सरताज
चंद दिनों में धरती बन गई सुनसान श्मसान
हो गई कोख उसकी जैसे एक टापू वीरान

प्रलय के बाद शांत था धरती-आसमान
पूरा किया उसने चक्रवर्ती का अरमान
बनाया राजधानी समृद्ध द्वारका नगरी में
करके विवाह एक कुलीन राजकुमारी से
स्थापित किया उसने विशाल यदुबंशी साम्राज्य
लोगों की भक्तिभाव से करता रहा एकक्षत्र राज्य
लेकिन है प्रकृति का एक ऐतिहासिक नियम
टूटता है लोगों का कभी-न-कभी भक्ति से भ्रम
करता रहा वह दिमागों पर तब तलक राज
खुला नहीं जब तक उसकी खुदाई का राज़
सिखाया था जो औरों को कुनबाई रक्तपात
यदुवंशियों ने भी कर लिया आत्मसात
कहावत है मियां के सिर मियां का लात
छिड़ गया भयानक गृहयुद्ध द्वारिका में
छिप गए खुदा घनी राज वाटिका में
जैसे ही हटा खुदा से किलेबंदी का घेरा
बेनकाब हो गया उसकी खुदाई का चेहरा
एक बहेलिए ने उसे मार गिराया
चक्रसुदर्शन किसी काम न आया
(अधूरी. क्या भाई बोधिसत्व जी आपने खुदाई पर ऐसा उकसाया कि डेडलाइन की नैतिकता भूल कर, कलम आवारा हो गया, सठियाए लोगों का कलम भी उन्ही जैसी आवारगी करता है.)
(ईमि: 24.12.2016)
838
जनता देशद्रोही हो गयी है
नहीं दे रही है सबूत देशभक्ति का
सहकर नोटबंदी की घातक मार
जनता खो चुकी है विश्वास सरकार का
ब्रेख्ट ने लिखा था हिटलर की जर्मनी में
सरकार द्वारा नई जनता चुनने की बात
यह सरकार चुनेगी नई जनता
जो हाफ नहीं अब फुलपैंट पहनकर आएगी
नोटबंदी के विरोधियों का खोज खोज पता लगाएगी
और देशद्रोहियों को एक एक कर
देश भक्ति का पाठ पढ़ाएगी
नमस्ते सदा वत्सले का गीत गवाएगी
जो करेगा देशभक्ति से इंकार
पाकिस्तान भेज देगी यह सरकार
सरकार आसमान से उतरी थी जब
नवाब शरीफ के घर
लेने उनकी मां का आशीस
नवाया था भक्ति भाव से शीष
शरीफ ने पहनाया थो मोदी को जब फूलो का हार
दोनों ने महसूसा
अपने अपने देशद्रोहियों को निपटाने की दरकार
किया दोनों ने देशद्रोहियो की अदलाबदली का करार
हिंदुस्तानी देशद्रोही डूबेगा अरब सागर में
पाकिस्तानी देशद्रोही हिंद महासागर में
मिलेंगे दोनों वहां
हिंद महासागर मिलता है अरब सागर जहां
दोनों मिलकर साझा रणनीति बनाएंगे
जनता चुनने वाली सरकारों को
समुद्र में डुबाएंगे
ख़ाक में मिलाएंगे सरकार द्वारा जनता चुनने के रिवाज़
( यूं ही, सुबह सुबह कलम की आवारगी)
(ईमि: 29.12.2016)
839
मुबारक हो नया साल
देश में पड़ने वाला है भयानक अकाल
नोटबंदी की भीषण प्रलय का कमाल
बर्बाद हो रहे गरीब अमीर हो रहे मालामाल
नहीं हो रहा कहीं मगर कोई हाहाकार
नाइंसाफी की सहिष्णुता है यहां अपरंपार
काला धन है देश का सात समुंदर पार
बदले में उजाड़ रही नोटबंदी गरीबों का घरबार
लोगों की लाचारी को समर्थन बताती यह सरकार
झूठ और मक्कारी की माया है अपार
(ईमि: 01.01.2017)
840
गरज उठे उठे सारे राष्ट्रवादी चैनल
दे दिया आयकर विभाग पक्की सनद
नहीं खाई कभी बंदानवाज ने कोई रिश्वत
सहारा ने किया था एक गरीब सीयम की मदद
देने लगे जब कोई जवाब बिन पूछे सवाल
दाल में काला नहीं काली है पूरा दाल
अब किसी आयकर अधिकारी पर
नहीं पड़ेगी सीबीआई की नज़र
करके धन पशुओं से घूसखूरी
भरते रहें अपनी तिजोरी
मगर एक बात साफ है
भक्तों का हजार खून माफ है

(ईमिः 05.01.2017)