आपको और आपकी सरकार को साधुवाद। सरकारी भंडारों में बहुत अनाज है सब भूखों में बांटने के लिए खोल देना चाहिए। मुल्क में कामगरों का विशाल बहुमत, रोज कुंआ खोदकर पाननी पीने वाले, तरह तरह के दिहाड़ी और ठेका मजदूरों का है जिनमें ज्यादातर के पास कागज-पत्र और बैंक खाते नहीं हैं। कल हमारी काम वाली ने फोन किया कि बड़े परिवार में राशन बिल्कुल नहीं है। बेटी ने खाता नंबर पूछा तो पता चला पूरे परिवार में केवल उसकी बहू का खाता है, यानि उप्र सरकार द्वारा खाते में 1000/ की सहायता एक को ही मिली होगी। पति रिक्शा चलाता है बेटा बैटरी रिक्शा। बहू भी घरों में काम करती है। सबकी आमदनी से घर चल जाता था। सरकारी सहायता मिल तो रही है लेकिन नाकाफी है। कम वालियों को तो ज्यादातर लोग मध्यवर्गीय नैतिकता में मजदूरी दे दे रहे हैं, लेकिन प्रेस वाली, गाड़ियां साफ करने वाले. रिक्सा वालों........... का काम कैसे चल रहा होगा? गरीब मुल्कों हर महामारी में जितने लोग बीमारी से मरते हैं उतने ही भूख से मरते होंगे।
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