Wednesday, April 1, 2020

लल्ला पुराण 288 (धर्म की अफीम)

कोरोना के संदर्भ में धर्म की अफीम बांटने क पोस्ट पर एक सज्जन ने कहा विज्ञान चांद पर पहुंचने का दावा भले करे वह प्रकृति नष्ट करता है....

विज्ञान प्रकृति से सौहार्द में ही आगे बढ़ता है, मानवता वैज्ञानिक प्रयोगशाला में नहीं नष्ट होती अवैज्ञानिक पोंगापंथी में नष्ट होती है, बिल्कुल सही कह रहे हैंकिताब पढ़ने से ही कोई विद्वान नहीं हो सकता, बल्कि सांप्रदायिकता और जातिवाद से ऊपर उठने में असमर्थ जाहिलों में शिक्षितों का प्रतिशत अशिक्षितों से ज्यादा है। वैज्ञानिक दृष्टटिकोण वाले सबको समझाते हैं मुल्लों को भी पंडोंको भी अगर कोई नहींसमझना चाहे तो तो विज्ञान के पास बंदूक तो है नहीं । बाकी पढ़-लिख कर जो इस महामारी में भी हिंदू-मुसलमान ही करता रहे इंसान न बन पाए, धर्म की अफीम में ही मस्त रहे तो उसका पढ़े लिखे होना या न होना एक ही बात है। उसके लिए पढ़ाई सही-गलत ढंग से केवल नोट कमाने का साधन है। यह पोस्ट मौलवियों पर ही है लेकिन आपके दिमाग में बैठा सांप्रदायिक दुराग्रह इसमें मौलवियों का पक्ष दिखाए तो आपको अपनी सोच पर पुनर्विचार की जरूरत है। चांद पर पहुंचना हवाला देना नहीं हकीकत है। सादर।

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