Tuesday, April 30, 2013

अंतर-राष्ट्रीय मजदूर दिवस


अंतर-राष्ट्रीय मजदूर दिवस
ईश मिश्र
उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में दृढ हो रहा था जब जर का निजाम
जानलेवा होता जा रहा था मेहनतकश का जी-तोड़ काम
शुरू किया सोचना जब मिलकर मजदूर सारा
समझ गया कि धोखा है स्वतन्त्रता-समानता-एकता का नारा
किया जब उसने अपने हक की लड़ाई का आगाज
दहल गया था जरदारों का पूरा समाज
साम्यवाद के भूत से पीड़ित था जब यूरोप सारा
दिया मार्क्स-एंगेल्स ने दुनिया के मजदूरों की एकता का नारा

 मजदूरों के फर्स्ट इन्टरनेसनल ने भरा इसमें रंग
१८८६ में सिकागो के मजदूरों ने किया यह नारा बुलंद
हो गए हाकिम पुलिस के साथ सारे जरदार गोलबंद
मजदूर ने कहा कि वह भी इंसान है
जर्दारों की शान-ओ-शौकत में भरता वही जान है
रोक दे वह हाथ तो रुक जाए दुनिया का गति विज्ञान
श्रम ही रहा है इतिहास का मूलभूत कमान
कर नहीं सकता वह २४ घंटे काम
उसे भी चाहिए मनोरंजन और विश्राम    
गूँज उठा नारा दिन में आठ घंठे काम का
बाकी वक़्त पर हक है खुद का आवाम का
उमड़ पडा जब हे-मार्किट में मजदूरों का जन सैलाब
गोली बारूद पुलिस की होने लगी बेताब
देख निहत्थे मजदूरों की ऐसी ताकत
झोंक दिया पुलिस ने काफी गोली बारूद
कई मजदूर हो गए थे शहीद इस इन्किलाबी जंग में
क्रांति का फरारा मिल गया उनके लाल खून के रंग में
शहादतें कभी नहीं जातीं बेकार
सालों बाद हुआ उनका आठ घंटे काम का सपना साकार

मनाई जा रही थी १८८९ में जब फ्रांसीसी क्रान्ति की शताब्दी
मजदूरों के सेकण्ड इंटरनेसनल ने पहली कांग्रेस आयोजित की
इस कांग्रेस ने सिकागो संघर्ष का संज्ञान लिया
याद में इसके १९९० से अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन का प्रस्ताव दिया
१९९१ में जब हुई सेकण्ड इंटरनेसनल की दूसरी कांग्रेस
 मुद्दा सिकागो की लड़ाई का फिर से हुआ पेश
हुआ फैसला हर साल मनाने को सिकागो की शहादत
मई दिवस के मिली मजदूरों के अंतराष्ट्रीय दिवस की इज्ज़त
१८९४ के मई में हुआ मजदूरों का उग्र प्रदर्शन
१९०४ में दिखी अद्भुत मजदूर एकता
एक हो गए ट्रेड यूनियनों के साथ सारे क्रांतिकारी नेता
बुलंद किया नारा फिर से आठ घंटे के काम का अधिकार
गूँज उठा था इस नारे से सारा संसार
तब से मनाया जाता है मई दिवस
नव उदारवाद में दिखता मजदूर और भी विवश
करना पडेगा बुलंद मजदूर एकता के नारे भूमंडल के स्तर पर
हो गया है क्योंकि शोषण और पूंजी का भूमंडलीय चरित्र

इन्किलाब जिन्दाबाद
मजदूर एकता जिंदाबाद
[ईमि/०१.०५.२०१३]      

हर छोटी फिसलन इंसान की उसूलों से




हर छोटी फिसलन इंसान की उसूलों से

ईश मिश्र

हर छोटी फिसलन इंसान की उसूलों से
करती है क़त्ल टुकड़ों में ज़मीर का
देती है उसे मुक्ति अंतरात्मा के बंधन से
और करती है पथ-प्रशस्त अंतिम पतन की.
हर फिसलन के साथ
 टुकड़ों में गिरता है वह अपनी नज़रों में
घूमता रहता है दयनीय जीव की तरह
खुशफहमी और वहम-ओ-गुमान में
[ईमि/३०. ०४.२०१३]    

Every times one falls


Every times one falls

kills one's conscience in parts

moves around as arrogant hallow figure

full of agony of and pain

{IM/30.04.2013}

Monday, April 29, 2013

कठपुतली का राज?


ये उन्मुक्त उड़ती तितलियाँ
क्यों बन जाती हैं कठपुतलियाँ?   
शायद यह आसान काम है
दिमाग को मिलता इससे आराम है
और आज जब हो चुकी है इलेक्ट्रानिक क्रान्ति
अदृश्य है रिमोट कंट्रोल,देती है सजीव चरित्र भ्रान्ति
सुदूर ध्वनि की प्रतिध्वनि लगती समचुत की आवाज़
कब तक चलेगा दुनिया में कठपुतली का राज? 
[ईमि/३०.०४ २०१३]

अंतिम विदा गीत


अंतिम विदा गीत
यह अब अंतिम विदागीत है
पिछले विदागीत का भी यही शीर्षक था
और उससे पिछले का भी
चलता रहता है अनवरत यह सिलसिला
मिलन-गान और विदा गीत का.
[ईमि/३०.०४.२०१३]

Sunday, April 28, 2013

आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम

हम हैं भारतवासी बहुत महान
आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम
बाहुबल से जो सीता को जीतता है
प्रेम प्रस्ताव जब सूर्पनखा का पता है
नाक-कान उसके काट लेता है
 जब  बानरी सेना बनाना चाहता है
कपिराज बाली को बाधक पाता  है
करता है उस पर छिप कर कायराना हमला
हो जाता है पीछेउसके भालू बानर का अमला
जब पाला उसका लंका राज रावण से पड़ता है
बांटो और राज करो की नीति अपनाता है
लोभ दे राज-पाट का विभीषण को तोड़ लेता है
जीतने को लंका अपनाता साम-दाम-भेद-दंड की नीति
चली आयी थी यही रघुकुल की गौरवशाली रीति
फहराता है जबविजय लंका पर विजय पताका
सीता को लेकर चिंतित है हो जाता
करता है आयोजित अग्नि परीक्षा
कहा थी यही रघुकुल नीति की इच्छा
जब राजा अयोध्या का बन जाता है
सीता से निजात का रास्ता खोजता है
मिल ही जाता है उसे एक बहाना
था उसे जब महल से सीता को निकालना
समझता था वह गर्भवती सीता का मर्म
निभाना था उसे लेकिन वर्नाश्रमी राजधर्म
तभी हिल जाता है ब्रह्मांड एक शूद्र संबूक की तपस्या से
ह्त्या कर निहत्थे तपस्वी की निजात पाता इस समस्या से
हम हैं भारतवासी बहुत महान
आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम
[ईमि/२८.०४.३०१३]


Saturday, April 27, 2013

लल्ला पुराण ८२

मित्र मैंने आपसे पहले ही आग्रह किया है कि बेहूदी भाषा से ही बात में दम नहें आ जाता है. आप किस साहित्य को दो कौड़ी का कह रहे हैं? फतवेनुमा समीक्षा के पहले कम से कम भूमिका पढ़ लें. तथ्यों-तर्कों की बात यहीं आती है. आपने बताया नहीं कि किस साहित्य की बात कार रहे हैं, और उसमें कौन सी बात दो कौड़ी की है? यही जहालत कहलाती है. यदि पता चले कि आप किस साहित्य की बात कर रहे हैं और क्यों आप उसे दो कौड़ी का कह रहे हैं तो विमर्श हो सकता है, हवाई बातों पर नहीं.  इन एन.जी.ओ. को इन यात्राओं का पैसा खान से मिलता है? आप में तर्क क्या कुतर्क करने की क्षमता ही नहें हाई क्योंकि पढने-लिखने में आपकी रूचि नहें है. आपने कभी भी किसी पोस्ट पर कोइ विषय से सम्बंधित कोइ टिप्पणी नहीं किया,बस आपके सर पर वामपंथ का भूत सवार है स्पेलिंग तो मालुम नहीं. किसी ओझा के मदद लीजिये. मैं बिलकुल नहीं चाहता की आप मेरी बात पढ़ें और मानें, बल्कि प्रतिवाद करे. यह पोस्ट फेक आईडी पर थी. लेकिन मेरा नाम देखते ही आपके सर पर मार्क्सवाद का भूत सवार हो जाता है. फिर प्रतिवाद नहीं कुतर्क हो जाता है. जो छात्र दिमाग पर टाला लगा लें उन्हें कैसे पढ़ाया जाय, फिर तो भैंस के आगे बीन बजाना ही रह जाता है. और ऐसे लोगों का क्या कहें जो पक्ष-विपक्ष सभी पर लाइक बटन दबाते रहते हैं.

Friday, April 26, 2013

पाखंडियों की बात


मैं ऐसे पाखंडियो  की करता नही बात
पाते हैं जो उसूलों की ज़िंदगी से सरल निजात
जो लेकर लाल झंडा करते वाम वाम
और तात है उनका वर्णाश्रमी  राम
होते हैं ऐसे लोग बहुत ही खतरनाक
साथ है ऐसे लोगों का निहायत खतरनाक
विष्णु और लक्ष्मी हैं अवधारणाएँ काल्पनिक
उनके संतानों की बातें करता तर्कविहीन दार्शनिक
[ईमि/२६. ०४.२०१३]

लल्ला पुराण ८१

यह धर्म पर एक पोस्ट पर मेरे कमेंट्स हैं:


मित्रों, यह आभासी दुनिया है जिसमे हमारा संवाद शब्दों से होता है और वही शब्द हमारी आभासी अस्मिता का निर्माण करते हैं. कोइ भी फेक इस लिए नहीं है कि हमारे स्क्रीन पर जो शब्द दीखते हैं वे किन्ही वास्तविक उँगलियों से कीबोर्ड पर टैप होते हैं. आम तौर पर जब तर्क नहीं होता या बातें चाहे कितनी भी विवेक-सम्मत क्यों न हो अपने पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों पर चोट करते हैं तो हम फेक फेक चिल्लाने लगते हैं मैं इस मंच पर शायद ही किसे को वास्तविक दुनिया में जानता हूँ तो मेरे लिए सभी फेक हैं और मैं सबके लिए. मैंने जीवन के अति महत्त्वपूर्ण संक्रमण-कालीन हिस्सा इलाहाबाद (आपातकाल के कुछ दिनों नैनी प्रवास समेत) में बिताये हैं और वे यादें निश्चय ही मोहक हैं, लेकिन इलाबादियों में, अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है की स्वस्थ विमर्श का अभाव खल्कता है. एक बहुत सक्रिय मंच लल्ला का चौराहा इस लिए लगभग समाप्त हो गया कि कुछ लोगों के कुतर्कों को दो लड़कियों ने ध्वस्त करना शुरू किया तो उन्हें लोग फेक कहने लगे. यही हाल एक और कुटुंब का हुआ. उन दो लड़कियों में से एक बहादुर और विद्वान लडकीको मैं खुद जानता हूँ वह जे.एन.यु. की एक्टिविस्ट थी. अरे भाई आगे कोइ बकवास कर रहा/रही है तो लोग उसे खुद ख़ारिज कर देंगे. अगर कोइ लडकी कोई  ऐसी बात कहती है जो   लोगों के दिमाग में बसी लडकी की छवि को तोड़ती हो तो लोगों को लगता है, "बाप रे लडकी होकर....." लडकी लडकी के पहले एक सम्पूर्ण इंसान होती है जैसे की पुरुष. इलाहाब्दियों में अपरिवर्तन का रोग तगादा होता है. बहुत से लोग जिन संस्कारों और सोच के साथ विवि में आते हैं परिवर्तन के गतिविज्ञान को धता बताते हुए उन्हें आजीवन संरक्षित रखते हैं. आइये परिवर्तन के गतिविज्ञान को समझें और स्वस्थ विमर्श करें.
Vikas Singh मैंने पहले भी आप जैसे विवेक-वंचित सर्वग्य विद्वानों से बहस में असमर्थता जाहिर किया है, आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे इलाहाबाद आपके पिटा जी की जागीर हो. हम इलाहाबाद में तब थे जब आप शायद शिशु स्वयंसेवक के रूप में शाखा में बिना समझे तोते की तरह नमस्ते सदा वत्सले... रत रहे होंगे, मैं क्या कर वरहा था वह आप मुरली जोशी और रामकिशोर शास्त्री आदि संघियों से पूंछ सकते हैं. आप तो मुझे अज्ञान की कुंठा से ग्रस्त लगते हैं जिसके ऊपर वामपंथ का भूत सवार रहता है जिसे पुस्तकों से इतनी दुश्मनी है की कम्युनिस्ट शब्द की स्पेलिंग जाने बिना फतवे देता रहता है. इलाहाबाद की बात इसलिए कर रहा हूँ की यह इलाहाबाद का मंच ह. वैसे आप लोगों के मन की बातें जान लेते हैं आपको तो बाबा रामदेव की तराह आश्रम खोल लेना चाहिए धन्धा अच्छा आपकी शिष्ट भाषा आपके संघी प्रशिक्षण के बिलकुल अनुकूल है. संघियों के संस्कार ऐसे ही बेहूदे होते हैं आपका कोइ दोष नहीं. इसके पहले भी इलाहाबाद को  आप अपनी जागीर समझ कर नास्तेजिया शब्द का अर्थ शब्दकोष में देखने के बजाय बेहूदी गाली गलौच पर उतर आये थे. एक अंगरेजी की कहावत है खतरा न लेते हुए हिन्दी में जिसका मतलब है सूरज पर थूकोगे तो अपने ही मुह पर गिरेगा.

@विकास सिंह : मित्र मैंने न तो आप को गरियाया न आपके पिताजी को, मैं शिक्षक हूँ गाली-गलौच करता नहीं. आप मेरे इलाहाबाद के बारे में बोलने पर ऐसे आपत्ति कर रहे हैं जैसे उस पर आपका एकछत्र अधिकार हो, जैसे की पिताजी की जागीर के रूप में आप को विरासत में मिला हो. आपकी समझ से लगता है की आप जरूर मेरी तरह वहां विज्ञान के विद्यार्थी रहे होंगे. मित्र आप साहित्य नहीं पढ़ते, मुहावरों का शदशः अर्थ नहीं होता. मैंने अपने हास्टल के विद्यार्थियों पर एक संधर्भ में कहा था. गधे को रगड़ कर घोड़ा न्ब्नाना एक कहावत है. यही तो आपने एक बार nostalgia का अर्थ शब्द कोष में देखने की बजाय उसे गाली समझ गाली गलौच पर उतर आये थे. याद है. आपको कुछ महिला सदयों ने शब्द का अर्थ समझाया था.

Shashank Shekhar मित्र  कुछ वक्तव्य मिट गए हैं अविचल के. इओ बचे हैं उनमें इनकी भाषा देखो. शिक्षा के कमेन्ट से परेशान हो कर उल-जलूल बातें करने लगे. मैं तो किसी को  भी कभी भी तब तक ब्लाक नहें करता जब तक निराश न हो जाऊँ. वह बिना तथ्यों तर्कों के सिर्फ फतवे जारी कर रहे थे. कुछ लोगों की हाल यह है कि बहस किसी मुद्दे पर हो वे वामपंथ की स्पेलिंग जाने बिना वामपंथ पर फत्वेनुमा गाली-गलौच करने लगते हैं. जब तर्क नहीं होता तो आरोप लगाने लगते हैं एसी सुविधाओं में आदर्श झाड़ने का. मेरे घर में कोइ एसी नहीं है और मैं तो घर के पीछे झोपडी डालकर रहता हूँ, जिसमें गर्मी आने पर कल एक पंखा खरीद कर लाया हूँ आज लगवाऊंगा.आंदोलनों औरकिसानों मजदूरों के कार्यक्रमों में स्लीपर क्लास और कभी बिना रिजर्वेसन के भी चलता हूँ भले एसी में चलने की क्षमता क्यों  न हो. सार्वजनिक जीवन के लिए आवश्यक है कि निजी सुख-सुविधाओं का मोह छोड़ना पडेगा. अविचल जैसे बंद-बुद्धि लोगों पर समय को जाया करूँ. ऐसे लोगों को ब्लाक करने का मातलब सच्चाई से मुह मोड़ना नहें बल्कि सच्चाई को स्वीकार करना है. अगर तुम सुनिश्चित करो कि वे भाषा की तमीज के साथ बहस करेंगे  तो उन्हें अन्ब्लाक कर दूंगा. मेरे लिए यह अहम् का मामला नहीं है. एक बार कुटुंब में नृपेन्द्र/शैलेन्द्र/सीमा चंदेल ने ज्योति मिश्र आदि को अन्ब्लाक करने का आग्रह किया मैंने मान लिया और अगले ही दिन इन लोगों ने फी से गाली गलौच शुरू कर दिया और मुझे ग्रुप छोड़ना पडा और अंततः ग्रुप लगभग बिखर गया. हाँ इन्हें अन्ब्लाक करके भी नज़र अंदाज़ करूँ तो कोइ फायदा नहीं है. शिक्षा एक स्वंतंत्र व्यक्ति है हमारी आपकी तरह उसके व्यक्तित्व को बार बार मेरी चेली के रूप में सीमित करना न सिर्फ उसका अपमान है बल्कि मेरा भी. वह तो तकनीकी रूप से मेरी स्टूडेंट भी नहीं रही. यदि आस्तिक भगवान पर अटूट आस्था रखते हैं तो नास्तिकों भी हक है धाम और भगवान् की आलोचना कर सकें. इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क स्वागत योग्य हैं किन्तु कुतर्क नहीं. 

तोड़ता है उंच नीच की दीवारें मार्क्सवाद


तोड़ता है उंच नीच की दीवारें मार्क्सवाद
खोदता है  कब्र मर्दवादी शरमायेदारी की लेनिनवाद
जरदारी के वर्चस्व मानव मुक्ति है साम्यवाद
नारी प्रज्ञा और दावेदारी हुआ है जो मुक्तनाद
भयभीत  हो हुजूम में घुसपैठ कर रहा मनुवाद
लगाने लगा बेसुरे नारे  नारी-मुक्ति जिंदाबाद
ये फरेबी है जो पढने-लिखने-सोचने से आज़ाद
चाहते भटकाना मर्दवादी घुसपैठिये रास्ते से नारीवाद
 पहचान गया गया है आवाम इनकी फरेबी खुराफात
करना ही होगा लगातार बमबारी मर्दवादी मनुवाद के गढ़ पर
 करना पडेगा तगडा प्रहार भारतीय संस्कृति के पाखण्ड पर  
 खींचती हैं जो नारियों के लिए लक्षमण रेखाएं
आयोजित करती है जो जहालत की अग्नि परीक्षाएं
अब उम्दा है जो समंदर नारीवादी अभियान का
अंत कर देगा नापाक हिन्दुत्ववादी अभिमान का
रोकना है सचमुच अगर बलात्कार
कर दो अग्नि-परीक्षाओं और लक्षण-रेखाओं का  संहार
[२६.०४.२०१३]

Thursday, April 25, 2013

उतरना पड़ेगा मर्दवाद के खिलाफ सडको पर


उतरना पड़ेगा मर्दवाद के खिलाफ  सडको पर
नहीं पड़ेगा एक उड़ती कविता का असर
 मर्दवाद के शिकार  इन लड़कों पर
रोकना है अगर सचमुच में बलात्कार
करना होगा मर्दवादी सोच पर प्रहार लगातार
[ईमि/२५.०४.२०१३]

नारी


नारी
--ईश मिश्र --
दुनिया में शान्ति थी,था सामंजस्य और सदाचार
सुनकर नारी की ललकार,मच गया है हाहाकार
हो गया अनर्थ कर दिया नारी ने आजादी का इज़हार
और जूती/धरती; देवी/भोग्या बनने से इनकार

कहती है अब उसे आजादी चाहिये
मर्दवाद की बर्बादी चाहिए
धंन धरती भी आधी चाहिये
शिक्षा-शासन में उसे उपाधि चाहिए

यह देखो कलयुग का कमाल 
औरत चलती अपनी चाल
अब नहीं बनेगी किसी का माल
क्या होगा इस देश का हाल?
[June 2011]

छः महीने का मुख्यमंत्री


                                    छः महीने का मुख्यमंत्री       
ईश मिश्र
वह छः महीने का पूर्व मुख्यमंत्री है
याद नहीं क्या  नाम है  उसका
यह भी नहीं पता क्या काम है उसका
और इससे कविता में फर्क भी नहीं पड़ता
साइकिल भी नहीं थी इसके वंश में
यह् चलता है अब पवन हंस में
  रहता है ऐश से  सकारी आवासों के बड़े अंश में 
छः ही फार्म-हाउस हैं उसकी घोषित संपत्ति में
जेनेवा भी जाता रहता है, पड़ता जब भी आर्थिक विपत्ति में
उसकी वाणी पर संप्रेषण क्रांति की दशा है
कहता कुछ और है सुनाई कुछ और देता है
कहते हैं, यह दशा तब से है जब यह छात्रा नेता था
पढ़ता यह था, इम्तिहान कोई और देता था.
नाइंसाफी के प्रतिरोध में निकल पड़े जब मजदूर किसान
गिरफ्तारी देने पहुँच गए थाने ये श्रीमान
संप्रेषण क्रांति का असर इनके कृत्यों पर भी है
करते त्याग हैं दिखती नौटंकी है
इन्होंने कहा
यदि होता में मुख्य मंत्री
भेजता नहीं इधर एक भी संत्री
अपनी ही प्रजा पर गोली चलवाना?
इससे अच्छा डूब कर मरना
लोगों ने सुना:
यदि में मुख्य मंत्री होता
प्रतिरोध का कोई मौका ही न देता
सोये रहते जब लोग आधी रात में
भेज देता बुलडोजर तोप-टैंक के साथ में
उजाड़ देता रात-ओ-रात गाँव के गाँव
मिलती नहीं तुम्हें कहीं भी कोई ठान्व
फिर भी बच जाते तुम में से कुछ कमीने
देते नहीं हम तुम्हें चैन से जीने
लोग भी कितने क्रितघ्न हैं
पैदा करते बहुरूपिये का विघ्न हैं
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
श्रीमान तो हैं देश सेवा में ही मग्न हैं
इससे फर्क नहीं पड़ता कि इनका नाम क्या है
ये छः महीने के पूर्व मुख्यमंत्री हैं
और सिर्फ़ छः फार्म हाउसो के मालिक
[ March-June 2011]

Wednesday, April 24, 2013

मुक्ति


                                                  मुक्ति                       
ईश मिश्र
रूसो ने जब सार्वजनिक संप्रभुता का सिद्धांत दिया
सहभागी जनतंत्र की धारणा का सूत्रपात किया
अराजक हो यदि जनतंत्र का आकार- प्रकार
गंदा कर सकती है तालाब एक ही मछली बारंबार
था उसको इस खतरे का उसको पूरा पूर्वानुमान
देस की दुर्दशा का नहीं जिम्मेदार भगवान
बल्कि चालाकी से बन गया जो अपार धनवान
इसीलिये रचा उसने जन-गण-मन का प्रावधन
राजा-रानी को धता बता सम्प्रभू बना जनादेश
नहीं टाल सकता कोई भी जनहित के आदेश 
लुटेरों-जमाखोरो को दिया उसने साफ़-साफ़ संदेश
चूर-चूर हो जाओगे मानोगे नहीं जो संप्रभु का आदेश 
छेडेगा कोई कमीना गर जनता के जज्बात
नहीं होगी बरदाश्त उसकी खुराफात
नहीं कर सकेगी कोई मछली गंदा तालाब
तोड़ दिया जायेगा उसका माल--असबाब
गुलामी नहीं हो सकती किसी का भी अधिकार
जरूरी हुआ तो डंडे से होगा मुक्ति का प्रसार.
द्रौपदी की साडी है उनीस सौ तिरासी
कितना भी फाडे उसे दुर्योधन सियासी
[march-june 2011]

मशालें


मशालें
ईश मिश्र
ले मशालें  हाथ में पढ़ते चलो दीवार पर लिखे नारे
मिटाते चलो जहालत की इबारतें, लिखो नए नारे
पुकारता महाज से हमें,  साथी कोई
अंधेरों से डरने की जरूरत अब नहीं
कर लिया मैंने उसे मिटाने का इंतज़ाम
लगेगी आग, जलेंगे महलों के खँडहर तमाम
बनेंगे उनपर सुन्दर-सुन्दर मकान
होगा नहीं जहां कभी सूर्यावसान
[मार्च-जून २०११]

बर्फ में आग


बर्फ में आग
ईश मिश्र
लगी है बर्फ में आग कश्मीर की घाटी में
मिलें हैं फौजी बूट ही आजादी की थाती में
कश्मीरी युवा ने भी लिया है मन में ठान
आजादी का रहेगा उनका जारी अभियान
सहेंगे नहीं अब वे और अत्याचार
हिमालय से प्रतिध्वनित होती है उनकी पुकार
वे गोली का सामना पत्थर से करते है
तोप और टैंक से वे नहीं डरते हैं
दी है कुर्बानी कितने ही युवावो ने
हिम्मत दी है उन्हें हिमालय की आज़ाद हवाओं ने
आइए दे हम भी आज़ादी की उमंगों का साथ
बढ़ें हम आगे लेकर हाथ में हाथ
जीतेगी अंततः आजादी ही
लाएगी साथ फौजी हुकूमत की बर्बादी भी


[मार्च-मई २०११ ]