Monday, April 20, 2020

लल्ला पुराण 304 (जेएनयू)

Satish Tandon मैंने तो कोई खराब शब्दों का प्रयोग नहीं किया। इस मंच पर सक्रिय लोगों में मैं अकेले जेएनयू का हूं। 65 साल का दिल का रोगी होने के बावजूद (कोई विक्टिम इमेज की कोशिस नहीं कर रहा हूं, दिसंबर2018 और नवंबर 2019 के बीच डॉ. की भाषा में 2 'मैसिव' दौरे पड़े और शारारिक स्वास्स्थ्य का असर शायद बौद्धिक क्षमता पर भी पड़ता होगा), सामाजिक सरोकार के लगभग हर विषय पर प्रतिक्रिया की यथा संभव कोशिस करता हूं, पालघर की मॉबलिंचिंग पर भी चिंता व्यक्त किया। मेरी इस पोस्ट पर कई कमेंट भी आए। मझे धिक्कारने के अलावा आपकी कोई पोस्ट नहीं दिखी।

"धिक्कार है...
जेएनयू छाप स्वयंभू बुद्धिजीवियों पर जिन्हें पालघर की मोब लिंचिंग दिखाई सुनाई नहीं दी।"

'जेएनयू छाप' के छिछोरे उपहास का क्या मतलब है? 'स्वयंभू बुद्धिजीवी' क्या होता है? विचारों की कमी किसे है? कौन खराब शब्दों का प्रयोग कर रहा है? मैं कोई बाहुबली तो हूं नहीं कि नाम लेने में डर लगता है, मेरे ऊपर जो कटाक्ष करना हो नाम लेकर कहने का साहस कीजिए। बता देता हूं, मेरा नाम ईश है, बड़ी 'ई' बड़ा 'श', ईश मिश्र। परोक्ष निजी आक्षेप, प्रत्यक्ष से भी निंदनीय है, बाज आएं।

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