Thursday, April 2, 2020

लल्ला पुराण 292 (फिरकापरस्ती)

आपकी असहमति का स्वागत है, और आपकी पहली ही बात गलत है कि मैंने तबलीगियों की निंदा नहीं की, मैंने अपनी वाल पर, इस और अन्य ग्रुपों में निंदा करते हुए लिंक शेयर किया। मैं भी आपसे असहमत हूं कि कोई पूरा समुदाय अच्छा या बुरा होता है सबमें धर्मांधता बुरी है। 2002 में गुजरात में हत्या-बलात्कारकी असंख्य घटनाएं हुईं, गर्भ फाड़कर भ्रूण भाले पर उछाला गया तो क्या कहा जा सकता है कि समस्त हिंदू समुदाय हैवान है? इस्लाम सबसे अलग आपको इसलिए नजर आता है कि आपकने बचपन से पल रहे दुराग्रहों पर सवाल नहीं किया। आपके शक के दायरे की व्याख्या आपको खुद करनी पड़ेगी। जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना व्यक्तित्व नहीं तय करती बल्कि सामाजिककरण और शिक्षा-दीक्षा। मन से सांप्रदायिक नफरत का जहर निकाल दीजिए तो आप को भी लगेगा कि कुछ बुरे लोगों के बावजूद मुसलमान वैसे ही इंसान हैं जैसे हिंदू। हिंदू सांप्रदायिक और मुसलमान सांप्रदायिक एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसा तभी कर पाएंगे यदि हिंदू-मुसलमान से ऊपर उठकर एक व्वेकशील इंसान के रूप में स्वागत करेंगे। बाकी असहमति का स्वागत है। संवाद के लिए गुंजाइश बनी रहेगी, आपसे सहमति के लिए मैं फिरकापरस्त नहीं बन सकता। सभी तरह की फिरकापरस्त मौसेरे हैं, मेरा सबसे विरोध है।

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