तुष्टीकरण एक शगूफा है जो संघ परिवार 95 साल से भजन की तरह गाता आ रहा है, लोग बिना दिमाग लगाए उसी को दोहराने लगते हैं। चुनावी जनतंत्र में जहां संख्याबल निर्णायक भूमिका निभाता है, सभी दल बहुसंख्यक तुष्टीकरण करते हैं। 70 सालों में मुस्लिम तुष्टीकरण हुआ होता तो शिक्षा, शासन, प्रशासन, राजनीति में वे अपनी आबादी के अनुपात से अधिक नहीं तो उतना प्रतिनिधित्व तो पाए होते? सभी क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व दयनीय है। संघ परिवार तो अपनी स्थापना से ही हिंदू-हिंदू करता आ रहा है, मुलायम मुजफ्फरनगर दंगों में जाट वोटों के चक्कर में मोदी से मिलीभगत करते हैं, अखिलेश खुद को योगी से बड़ा राम भक्त घोषित करते हैं तो राहुल गांधी मंदिरोंकी परिक्रमा करते हैं तथा उनके चमचे उनका जनेऊ दिखाते फिरते हैं। अडवाणी शिलापूजन शुरू करते हैं तो राजनैतिक अशिक्षित राजीव गांधी मस्जिद का ताला खुलवा कर चबूतरे के लिए जमीन अधिग्रहीत करते हैं और मेरठ-मलियाना-हाशिमपुरा करवाते हैं। लेकिन लोग दिमाग लगाने की आदत छोड़ चुके होते हैं, तुष्टीकरण का भजन शुरू कर देते हैं।
18.04.2020
18.04.2020
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