Monday, April 13, 2020

बेतरतीब 70 (चरण स्पर्श)

अपने छात्रों से मेरा संबंध चरणस्पर्श वाला नहीं हाथ मिलाने और गले मिलने वाला रहा है। बच्चों की जगह पैर में नहीं दिल में होती है। हमारे बच्चों को चरणस्पर्श की अनुमति नहीं थी। चरणस्पर्श, समता के सुख का निषेध करने वाला अभिवादन का सामंती (ब्राह्मणवादी) तरीका है। जब मैं हॉस्टल का वार्डन था तो खुद को उ.प्र. के एक बाहुबली का रिश्ते का नाती बताने वाला एक बालक चरणस्पर्श की जिद पर अड़ गया, तो मैंने पैर ही ऊपर उठा दिया कि लो झुकोगे क्यों? तबसे वह भी मान गया। ये सब बच्चे फेसबुक पर मुझसे जुड़े हैं। बेहतर इंसान बनकर निकला, कुमायूं विवि से शिक्षा में पीएचडी करके बस्ती जिले में किसी कॉलेज में पढ़ा रहा है।

हमें बचपन से यही बताया जाता है और सम्मान के एकमात्र तरीके के रूप में हम चरणस्पर्श को आत्मसात कर लेते हैं। मेरे सभी छात्र मेरा अत्यधिक सम्मान करते हैं, बिना चरणस्पर्श किए। वे मेरा सम्मान मेरी शिक्षा को आत्मसात कर तथा ईमानदार, बेहतर इंसान बन कर करते हैं न कि चरणस्पर्श करके। मेरे क्लास में पहुंचने पर खड़े होने की भी मनाही थी, जब तक यह मालुम न हो कि क्यों खड़े हो रहे हैं? पीढ़ी-दर-पीढ़ी सम्मान प्रदर्शन का रटा जवाब मान्य नहीं। बेंच से 6 इंच ऊपर उठने से सम्मान की कोई गारंटी नहीं होती। हम सब क्लास में खड़े हो जाते थे, बाहर निकल कर दुष्ट शिक्षकोंको गाली देते थे। इज्जत मिलती नहीं कमाई जाती है और पारस्परिक होती है। कोई कहता कि तुमारे छात्र तुम्हारी बहुत इज्जत करते हैं, मैं कहता कौन सा एहसान करते हैं, मैं भी तो उनकी इज्जत करता हूं। कई बार पुराने स्टूडेंट्स मिलने पर आभार व्यक्त करते कि मैंने उनसे मित्रवत व्यवहार किया। मैं कहता कि दो बाते हैं। पहला तो आपने मेरा कोई खेत नहीं काटा है कि मैं आपसे शत्रुवत व्यवहार करूं। दूसरी बात यह कि आप सही अर्थों में किसी भी रिश्ते का आनंद तभी ले सकते हैं जब वह जनतांत्रिक; समतामूलक; और पारदर्शी हो। बहुत से शिक्षक तथा बाप अभागे होते हैं समता के सुख से अनभिज्ञ बच्चों से मित्रता नहीं करते और टेंसन सिंह बने घूमते रहते हैं। कई शिक्षक तो ऐसे दिखाते हैं जैसे किसी और ग्रह से आए हों। अरे भाई हमारे बच्चे इतने बुद्धिमान तो हैं ही कि जानते हैं कि आप भी इसी ग्रह के हैं।

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