Tuesday, July 28, 2015

फुटनोट 42

1969 में गांधी जन्म शताब्दी के ही साल हमारे कॉलेज (तिलकधारी क़ॉलेज) के संस्थापक तिलकधारी सिंह की भी जन्म शताब्दी थी. मैं हाईस्कूल में था. कई समारोह डिग्री कॉलेज तथा इंटर कॉलेज संयुक्त रूप से मनाते थे. उस समारोह की दो बातें याद रह गयीं, एक तो यह कि संस्थापक जौनपुर जिले के पहले ग्रेजुएट थे दूसरी यह कविता जिसे बीए के छात्र, तब के राजेश उपाध्याय तथा अब राजेश विवेक ने सुनाया था. मैंने इसे उन्ही की कविता समझ लिया था. इलाहाबाद विवि में एक गोष्ठी में नीरज जी को सुनकर वास्तविक कव तथा संदर्भ का भान हुआ

Friday, July 24, 2015

लल्ला पुराण 169 (फुटनोट 41)

यह एक पोस्ट के कमेंट्स पर कमेंट है.
संदर्भ से काटकर दुष्प्रचार की इस पोस्ट परअंतिम कमेंट. सबको अपनी भाषा के संस्कार जाहिर करने का हक़ है. मैं बेबाक भाषा में बात करता हूं अशिष्ट या अश्लील नहीं. मूर्खता को मूर्खता या धूर्तता को धूर्तता, शासको के महिमामंडन को चारण प्रवृत्ति कहना, बेबाकी हो सकती है, अशलीलता नहीं. जिस  किसी ने मेरे प्रोफेसर होने पर आश्चर्य व्यक्त किया है मैं उनके आ्रश्चर्य का सहभागी हूं, जहां तिकड़म से शिक्षकों की  नियुक्तियों की तिजारत चलती हो, वहां मुझे नौकरी मिल जाना हैरत की ही बात है. मुझसे कोई कहता है कि मुझे देर से नौकरी मिली तो मैं कहता हूंॆ सवाल उल्टा है मिल कैसे गयी. बाकी मैं कैसा शिक्षक हूं यह तो मेरे स्टूडेंट्स ही बतायेंगे, कहीं सौभाग्य से किसी से मिल जाओगे तो इसी बात पर सर पर बैठा लेंगे कि ईश मिश्र को जानते हो. इलाहाबाद में भी 2 दर्जन के आस-पास स्टूडेंट्स एक क्लास बन गया है. इलाहाबाद यात्रा में 5-6 घंटे उनके लिए आरक्षित रखता हूं.

दानिशमंद

हम मुल्क के दानिशमंद हैं  
पाबंद नियम-कानून के
पैबंद नये निज़ाम के 
दुश्मन नैतिकता के खोखले पैगाम के
हम सोने की कुर्सी के हक़दार
संस्कृति के हम पहरेदार 
कथनी-करनी का साश्वत अलगाव
मजबूत करता उनका सैद्धांतिक लगाव
हम विमर्श में दक्ष हैं
बोलना हो चाहे पक्ष मे चाहे पक्ष विपक्ष हो 
पक्ष-विपक्ष माया है वफा के आराध्य के समक्ष
जिनकी खायेंगे गुण भी तो उन्हीं का गायेंगे
बदलता है जैसे ही परवरदिगार
बदल जाता है हमारे दिल का उद्गार 
 प्रभु तो व्यापारी हैं हम हैं महज शिल्पकार
बाजार की मांग पर हम गढ़ते विचार 
शिल्पकार से बन गये व्यापारी
दोगलापन तो व्यवस्था का अभिन्न अंग है
हम तो बस निर्धारित आचरण के पाबंद हैं
 (एक अजन्मी कविता की भूमिका)
(ईमिः24.07.2015)

Monday, July 20, 2015

न हिंदू धर्म खतरे में न ही इस्लाम खतरे में

न हिंदू धर्म खतरे में न ही इस्लाम खतरे में
न गीता है खतरे में न ही कुरान खतरे में
न भगवान खतरे में न ही अल्लाह खतरे में
इनके खतरों से है अमन-ओ-चैन खतरे में
(ईमिः21.07.2015)

Thursday, July 16, 2015

janhastakshep (Teesta)

Janhastakshep: a campaign against fascist designs

Press release                                                                                     Date: 15th July, 2015

Harassment of human rights activist Teesta Setalvad

Janhastakshep expresses it condemnation and outrage at the brazen raid by CBI at the residence and office premises of noted human rights activist Teesta Setalvad yesterday in Mumbai. The reason why she is being harassed likewise are very obvious and directly linked to her efforts to fight for getting justice to the victims of post-Godhra pogrom that was presided over by the then Gujarat chief minister, Mr Narendra Modi.

It is a matter of shame that the government has stooped low to such an extent. The clear idea behind this attack on Ms Setalvad is to derail the ongoing court cases in which the leading lights of BJP are involved. It is noteworthy that final hearings in Zakia Jafri case begin from July 27, and the appeals in Naroda Patiya case involving BJP leaders Maya Kodnani and Babu Bajrangi were to be heard in the Gujarat High Court from today.

Janhastakshep calls upon all concerned citizens and human rights activists to come together to strongly resist  the fascistic attempts of the present NDA government at the center to stifle democratic and human rights of peace and justice loving citizens in the country.

-sd-

( Ish Mishra)
Convener

जनहस्तक्षेपः तीस्ता

जनहस्तक्षेप
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान

नई दिल्ली           
गुरूवार, 16 जुलाई, 2015
मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ का उत्पीड़न
जनहस्तक्षेप सुपरिचित मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के मुंबई स्थित निवास और कार्यालय पर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के मंगलवार के छापों पर क्षोभ जाहिर करते हुए इसकी कड़ी निंदा करता है। उन्हें इस तरह परेशान किए जाने की वजह जगजाहिर है। इस घटना का सीधा संबंध प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की शह पर राज्य में 2002 में हुए दंगों के पीडि़तों को इंसाफ दिलाने की तीस्ता की कोशिशों से है। 
सरकार का ओछेपन के इस निचले स्तर तक उतर आना शर्मनाक है। तीस्ता के उत्पीड़न का एकमात्र मकसद उन अदालती मामलों को पटरी से उतारना है जिनमें भारतीय जनता पार्टी के कई प्रमुख नेता फंसे हुए हैं। इसकी जीती-जागती मिसाल गुजरात उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों का नरोदा पटिया मामले में अपीलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति केएस झवेरी ने बुधवार को खुद को सुनवाई से अलग करते हुए कहा कि कुछ अभियुक्तों ने उन पर दबाव डालने की कोशिश की है। अल्पसंख्यक समुदाय के 97 सदस्यों की हत्या के इस मामले के 29 दोषियों में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और विश्व हिंदू परिषद के नेता बाबू बजरंगी समेत संघ परिवार की अनेक प्रमुख हस्तियां शामिल हैं।
इन दंगों के मामले में श्री मोदी और 58 अन्य अभियुक्तों को निचली अदालत से क्लीन चिट दिए जाने के खिलाफ जकिया जाफरी की अर्जी पर गुजरात उच्च न्यायालय में निर्णायक सुनवाई 27 जुलाई से होनी है।
जनहस्तक्षेप सभी नागरिकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से अपील करता है कि वे देश की शांतिप्रिय और न्यायप्रिय अवाम के लोकतांत्रिक और मानवीय अधिकारों को कुचलने की केन्द्र की मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की फासीवादी कोशिशों का एकजुट होकर सख्ती से विरोध करें।
0/ईश मिश्र
संयोजक, जनहस्तक्षेप

मोबाइलः 9811146846

Wednesday, July 15, 2015

क्षणिकाएं 51 (721-30)

721
नहीं जानता क्यों लिखता हूं कविता
लेकिन लिखता हूं कविता
इल्म नहीं बिंब-प्रतीकों के तिलस्म का
फिर भी लिखता हूं कविता
नहीं मालुम अमिधा-व्यंजना का रहस्य
तब भी लिखता हूं कविता
नावाकिफ हूं छंद-ताल के नियमों से
मगर छोड़ता नहीं लिखना कविता
अनभिज्ञ हूं मात्रा-लय कि मजमून से
बावजूद इसके लिखता हूं कविता
कह सकूं मन की बात
शायद इसीलिए लिखता हूं कविता
भले ही लोग कहें सपाटबयानी
जब तक करेगा मन लिखता रहूंगा कविता
(ईमः29.06.2015)
722
यह इक्कीसवी सदी की मूर्तिभंजक औरत है
जिसने बंद कर दिया है किस्मत का रोना-गाना 
 प्रज्ञा से बना दिया है मर्दवाद को  हास्यास्पद खिलौना
तोड़ती है सब प्रतिबंध सेंसर, कर्फ्यू और वर्जना
करता है कलम इसका बेबाक बुलंद सिंह गर्जना
इक्कीसवी सदी की यह औरत नहीं है अब अकेली
सारा कायनात है अब इसके संघर्षों की सहेली
नहीं करती पूज्या बन किसी मंदिर में अंतर्नाद
न ही बन भोग्या किसी गैर का घर आबाद
जलाकर करती है रीति-रिवाज़ों के बंधन बर्बाद
लगाती है अब नारा-ए-इंक़िलाब ज़िंदाबाद 
नहीं गाती यह अब नगाड़े की चोट पर नौटंंकी की बहर
लाती नई सबा गढ़ती नया खुशनुमा सहर
इसके हाथ में श्रृंगार की डिबिया नहीं बंदूक होती है
यह औरत कॉफी नहीं बनाती क्रांति करती है
(ईमिः 29.06.2015)
723
कल्पना  नहीं हकीकत है यह औरत
भावी इतिहास की नसीहत है यह औरत
छुई-मुई नहीं वाचाल है यह औरत
आज्ञाकारी नहीं दावेदार है यह औरत
जी हां, ख़ौफनाक है यह औरत
मर्दवाद के पैरोकारों के लिए
परंपरा के रखवालों के लिए
सरमाए के किलेदारों के लिए
हो रहा है मुखर उसका कलम 
बढ़ रहा है आगे उसका कदम 
खाई है मानव-मुक्ति की कसम
रुकेगी नहीं जब तक है दम
(एक अजन्मी कविता का प्राक्कथन)
(ईमिः 30.06.2015)
724
बस ऐसे ही. बौद्धिक वारागर्दी का एक नमूना--

वो खुदा जो तेरे करीब है
वही तो मेरा रकीब है

ज़िंदगी की क्यों तलाश है
वह तो निशदिन तेरे पास है

गलियों में भटकने  से भटकता रास्ता
मिल जाता है हो ग़र मकसद से वास्ता

भटको मत संधान करो
मार्गों का अनुमान करो

लगा दो विवेक को अनुसंधान के काम पर
मानो उसकी बात दिल को अपने थाम कर

मक़सद ग़र बड़ा तो राह मुश्किल होगी
नीयत की पाकीज़गी राह आसान कर देगी 
(ईमिः 02.07.2015)
725
न बंद किया होता लिखना कविता ग़र तस्वीरों पर
जरूर लिखता इस काव्यमय तस्वीर पर एक उड़ती कविता
शब्दों में पिरोता आंखों में छिपा तक़लीफ़ का उमड़ता समंदर
चेहरे पर  आत्मविश्वास से लबरेज दुनिया बदलने का संकल्प-भाव
जब भी फिर कभी शुरू करूंगा कविता लिखना तस्वीरों पर
जरूर लिखूंगा इस तस्वीर के विद्रोही तेवर पर एक लंबी कविता.
(ईमिः 05.07.2015)
726
जहालतों में जहालत-ए-आज़म है सियासी ज़हालत
वह न सुनता है न बोलता है न ही शरीक होता किसी प्रदर्शन में
क्योंकि वह नहीं समझता सियासत का मतलब
वह सियासी जाहिल है
नहीं जानता कि सियासत ही तय करती है
रोटी-पानी दवा-दारू आज़ादी-गुलामी के मूल्य
इतना ही नहीं वही तय करती है कीमत ज़िंदगी की भी
ये ज़ाहिल इतने ज़ाहिल हैं कि शर्म की तो बात दूर
फ़क़्र करते हैं सियासी जहालत पर
और सियासत से नफरत सौतेली औलाद की तरह
वह बंद दिमाग नहीं जानता
कि उसी की जहालत के नतीजे हैं
लावारिश बच्चे तथा वेश्यावृत्ति
उसी का नतीजा है
चोर उचक्कों का बन जाना सियासत के सिररमौर
जो खुले आम करते हैं देशी-विदेशी कंपनियों की दलाली
और मुल्क की नीलामी
रोकना है ग़र आवाम की तबाही तथा विनाश का विकास
समझना पड़ेगा सियासत का अर्थशास्त्र
और तय करना पड़ेगी अपनी सियासत
गर चाहते हो मानवता की मुक्ति
कॉरपोरेटी हैवानों से
खोलने पड़ेंगे सियासत के मदरसे
हर शहर में हर गली हर गांव में
जैसे जैसे छंटेंगे सियासी जहालत के बादल
एक-एक कर ध्वस्त होतते रहेगे 
दलाली की सियासत के खंभे
तब शुरू होगी एक नई सियासत
सचमुच के जम्हूरियत की सियासत
(ईमिः08.07.2015)
727
चलो ! मिलते हैं फिर एक बार
ऐसे जैसे मिल रहे हों पहली बार
यहाँ नहीं. कहीं और
जहां तुम मुझे सुन सको
और मैं पहचान सकूं तुम्हारी आवाज़ 
आओ चलें किसी अनजाने द्वीप पर 
यहाँ न तुम सुन पाती मुझे
और मुझे सुनाई देती है
तुम्हारी बातों में अनकही बातें
प्रतिध्वनियों से दम घुटता है
आओ मिलते हैं फिर से
ऐसे जैसे पहले मिले ही नहीं
लेकिन कहीं और
और अजनबी बनकर 
आपरिचित चेहरों के साथ
खोजें एक दूजे को
आँख बंद कर टटोलते हुए
पुकारें अनकहे अनसुने शब्दों में
शुरू करें नया संवाद
समझ सकें हम जिससे
पारस्परिक अस्मिताएं
उनकी सम्पुर्णता में
अंशों में नहीं
आओ मिलते है
लेकिन कहीं और यहाँ नहीं
क्योंकि मिलने की जरूरत है
संभव है मिलने से
उन बातों पर हो सके बात
जिन्हें नहीं होना चाहिए था
और एक नई धुप की रोशनी में
हो सकता है हम झाँक सकें
एक दूसरे की दुनिया में
मुक्त कर सकें जहां
अपने अंश नहीं सम्पूर्ण अस्तित्व
और सत्यापित कर सकें
साश्वत परिवर्तनशीलता का सिद्धांत
आओ मिलते हैं
यहाँ नहीं, कहीं और
किसी नए द्वीप में जहां न हों दीवारें
और न सुनाई दे प्रतिध्वनियां
संवाद के गढे जा सकें नए स्वर
अनकहे अनसुने
अनक्षर अनश्वर
आओ मिलते हैं लेकिन कहीं और.
यहाँ नहीं.
[ईमि/07.07.2015]
728
हिंद-ओ-पाक
पढ़ रहा था हबीब जालिब की गजल का वो मिसरा
है जिसमें ज़ुल्म की रात के बाद का नया सवेरा
होगा नहीं इन मुल्कों में अमरीका का कोई डेरा
फ़क़्र से कहेगे हिंदुस्तान भी मेरा पाकिस्तान भी मेरा
गहन अंधेरे ने लेकिन फिर से हम सबको घेरा है
पूरी दुनिया मे अब तो अमरीका का ही डेरा है
अाया है जब से भूमंडलीकरण का दौर
तीसरी दुनिया बन गया साम्राज्यवादी ठौर
लॉर्ड क्लाइव की नहीं है अब कोई दरकार
सिराज्जुदौली भी निभाता मीरज़ाफरी किरदार
खत्म होना ही है सबको है जिसका भी वजूद
ये घना अंधेरा भी रहेगा न सदा मौजूद
आयोगा ही धरती पर इक नया सवेरा
स्वतंत्रता समानता का बनेगा बसेरा
अपनी ही चालों में फंस रहा जब पूंजीवाद
हिंद-ओ-पाक में फैला रहा है वो फासीवाद
जगेगा जमीर जब दोनों मुल्कों का आवाम का
समझेगा वह हकीकत विश्वबैंक के पैगाम का
भूमंडलीय पूंजी की साजिश नाकाम कर देगा
फासीवाद को उसके अंजाम तक ले जायेगा
हिंद-पाक मिल साथ हिंदुस्तान बन जायेगा
बचेंगी न बंटवारे की कड़वी स्मृतियां शेष
हिंदुकुश से अरबसागर तक होगा एक ही देश
(ईमिः12.07.2014)
729
ग़म-ए-गर्दिश के दौरा की इनायत बेगुनाहों पर ही होती है
गुनहगार तो गम-ए-जमाखोरी के दौरा से परीशां रहते हैं
(ईमिः13.07.2015)
730
गुजरे वक्त की याद बहुत ज्यादा आती है
जब वक्त गुजरा ही हो
उनके बिना जो छूटते हैं उस वक्त 
होती है नये वक्त की कल्पना भी मुश्किल 
गुजरते वक्त के साथ
जुड़ती हैं नई यादें 
धूमिल करते हुए उस गुजरे वक़्त की यादों को
जो अब कभी-कभी प्रसंगवश ही आती हैं
(अरे ये भी कविता हो गई हा हा )
(ईश मिश्रः 15.07.2015)










गुजरे वक्त की याद

गुजरे वक्त की याद बहुत ज्यादा आती है
जब वक्त गुजरा ही हो
उनके बिना जो छूटते हैं उस वक्त 
होती है नये वक्त की कल्पना भी मुश्किल 
गुजरते वक्त के साथ
जुड़ती हैं नई यादें 
धूमिल करते हुए उस गुजरे वक़्त की यादों को
जो अब कभी-कभी प्रसंगवश ही आती हैं
(अरे ये भी कविता हो गई हा हा )
(ईश मिश्रः 15.07.2015)

Tuesday, July 14, 2015

DU 66 (शिक्षा अौर ज्ञान 56)

Inder Mohan Kapahy  सर, भूमंडलीय पूंजी के जरखरीद गुलामों को विश्वविद्यालय व्यवस्था नष्ट करके शिक्षा के पूर्ण  बाजारीकरण का एजेंडा लागू करने से रोकने के लिए चिट्ठी लिखना बेअसर होगा. इसे करो-मरो के संघर्ष से ही रोका जा सकता है. विश्वबैंक से अायातित शिक्षा नीति से दिमागों का उपनिवेशीकरण, भूमंडलीय साम्राज्यवाद की समग्र नीति का हिस्सा है. शिक्षक अांदोलन को छात्र आंदोलन के साथ मिलकर किसान-मजदूर आाांदोलनों से जोड़ना पड़ेगा. मुल्क के भविष्य को विकृत तथा नष्ट करने वाली सांम्राज्यवादी शिक्षा नीति को नाकाम करने के लिए समग्र हड़ताल की जरूरत है, एक शैक्षणिक सत्र को ज़ीरो ईयर क्यों न घोषित करना पड़े क्योंकि इतिहास को विकृत होने से बचाने के लिए एक साल का बलिदान दिया जा सकता है. डूटा के प्रमुख घटक सौभाग्य से इस मुद्दे पर एकमत  हैं, वामपंथी छात्रसंठन पहले से ही डूटा के साथ हैं अन्य संगठनों तथा सामान्य छात्रों सा बातचीत की जा सकती है क्योंकि मूलतः मुद्दा तो छात्रों का ही है. सिद्धांततः समग्र हड़ताल वांछनीय ही नहीं संभव भी है. शिक्षक को भयमुक्त हो चारण-प्रवृत्ति त्यागना होगा. उन्हें शिक्षक की गरिमा तथा शिक्षक होने के महत्व को आत्मसात करना होगा. सुरक्षा एकता तथा संघर्ष में  है, बय तथा चाटुकारिता में नहीं. इतना लिखने के बाद प्राइमरी में पढ़ी वह कविता याद आती है -- यदि होता किन्नर नरेश.......... दिवि के शिक्षकों एक हो खोने को तुम्हारे पास मानसिक गुलामी है पाने को इतिहास रचने का खिताब.   प्रोफेसनल "कर्तव्यबोध" से य़फवाईयूपी का तथा  TINA(There is no alternative) तर्क के तहत सीबीसीयस का साथ देने वाले एक "क्रांतिकारी" प्रोफेसर ने मेरी इस बात को यूटोपिया की संज्ञा दी. जब तक कुछ घटित नहीं होता, यूटोपिया रहता है, होने के बाद इतिहास बन जाता है. आइये यूटोपिया को सच कर इतिहास रचें.

सियासत 19

इनकी बात से दिवि में ऩंदीग्राम पर एक सेमिनार की याद आती है. वक्ता थीं सीपीयम समर्थक अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष. मेरे एक असुविधाजनक सवाल पर श्रोताओं में से एक भक्त (भक्तिभाव पर संघ का एकाधिकार नहीं है) ने मुझे डांटते हुए कहा था, "इस बार हम और ज्यादा बहुमत पायेंगे", मैंने पूछा, "मोदी से भी ज्यादा?". सूबे को मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि विषयों के  फर्जी छात्रों तथा फर्जी सरकारी कर्मचारियों से भरने वाले 45 जानें से चुके घोटाले को छोटी घटना बताते हुए पत्रकार अक्षय की मृत्यु के सवाल पर विद्रूप हंसी हंसने वाले मप्र भाजपा नेता तथा राष्ट्रीय महासचिव का कहना है कि इससे न तो उनकी पार्टी का माराल घटेगा न ही उसका जनाधार. कैलाश विजयवर्गीय जी, आपने सीपीयम का हश्र देख लिया. जनाधार किसी की रखैल नहीं होता, खिसक जाता है.  जनता को देश लूटने-बेचने की आपकी साज़िश जैसे ही समझ आयेगी, जनाधार खिसक जायेगा तथा  आप जैसे मानसिक दिवालए लुटेरे इतिहास के कूड़ेदान की शोभा बढ़ाएंगे.

फुटनोट 36

Pushpa Tiwari अापकी भक्ति काबिलेतारीफ है. सारे मंत्री- मुख्यमंत्री घोटालों में फंसे जा रहे हैं, घोटाले को उजागर करने वाले उसी तरह 1-1 कर मरते जा रहे हैं जसे मोदी-सुषमा-अटल के बलात्कारी गुरु अाशाराम मामले के गवाह. शिक्षा-सवास्थ्य अपने अाकाओं को बेच मुल्क की नीलामी का जो अालम है, यदि 5 साल मोदी-अमित की देशद्रोही जोड़ी सलामत रही तो भरपाई में 20 साल लग जायेंगे, फक्सर अरुण जेटली कह रहा है विरोध को चुचल दिया जायेगा, ज़िंदगी भर हर तरह पैसे के चक्कर में पड़ा रहा इस लिये मोदी की तरह उसका बी इतिहासबोध दयनीय है. जानता नहीं कि सत्ता जब भी अावाम को चुनौती देती है चूर चूर हो जाती है तथा अहंकारी तानाशाह हिटलर की तरह इतिहास के कूड़ेदान में बजबजाते हैं. लेकिन भक्तिभाल इंसान को विवेकशून्य कर देता है.

Monday, July 13, 2015

ग़म-ए-गर्दिश

ग़म-ए-गर्दिश के दौरा की इनायत बेगुनाहों पर ही होती है
गुनहगार तो गम-ए-जमाखोरी के दौरा से परीशां रहते हैं
(ईमिः13.07.2015)

Sunday, July 12, 2015

हिंद-ओ-पाक

पढ़ रहा था हबीब जालिब की गजल का वो मिसरा
है जिसमें ज़ुल्म की रात के बाद का नया सवेरा
होगा नहीं इन मुल्कों में अमरीका का कोई डेरा
फ़क़्र से कहेगे हिंदुस्तान भी मेरा पाकिस्तान भी मेरा
गहन अंधेरे ने लेकिन फिर से हम सबको घेरा है
पूरी दुनिया मे अब तो अमरीका का ही डेरा है
अाया है जब से भूमंडलीकरण का दौर
तीसरी दुनिया बन गया साम्राज्यवादी ठौर
लॉर्ड क्लाइव की नहीं है अब कोई दरकार
सिराज्जुदौली भी निभाता मीरज़ाफरी किरदार
खत्म होना ही है सबको है जिसका भी वजूद
ये घना अंधेरा भी रहेगा न सदा मौजूद
आयोगा ही धरती पर इक नया सवेरा
स्वतंत्रता समानता का बनेगा बसेरा
अपनी ही चालों में फंस रहा जब पूंजीवाद
हिंद-ओ-पाक में फैला रहा है वो फासीवाद
जगेगा जमीर जब दोनों मुल्कों का आवाम का
समझेगा वह हकीकत विश्वबैंक के पैगाम का
भूमंडलीय पूंजी की साजिश नाकाम कर देगा
फासीवाद को उसके अंजाम तक ले जायेगा
हिंद-पाक मिल साथ हिंदुस्तान बन जायेगा
बचेंगी न बंटवारे की कड़वी स्मृतियां शेष
हिंदुकुश से अरबसागर तक होगा एक ही देश
(ईमिः12.07.2014)