प्रिवीपर्स जमींदारों को नहीं राजघरानों को दिया जाता था। उ.प्र. में कोई राजघराना (Princely State) नहीं था। जमींदारी उन्मूलन के बाद बहुत से जमींदार खुद को राजा कहने लगे। हमारे इलाके का एक माफिया जमींदार अपने को तिघरा नरेश कहने लगा तथा निजी सिपाही रखता था। 1952 से 1974 तक विधायक होता रहा। 1974 में सीपीएम के भगवती सिंह ने उसे हराया।आजादी के समय अंग्रेजी राज की मातहती में छोटे-बड़े 555 राजघराने थे जिनके प्रवीपर्स उनकी औकात के हिसाब से मिलती थी। प्रवीपर्स की समाप्ति और बैंकों का राष्ट्रीयकरण (इंश्योरेंस कंपनियों का राष्ट्रीयकरण नेहरूजी ने किया था) इंदिरा गांधी के दो प्रमुक साहसी कदम थे जिनसे वे लोकप्रियता की चोटी पर पहुंच गयीं, युवाओं में उनकी लोकप्रियता अद्भुत थी। 15-16 साल के बालक के रूप में मैं भी इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व से चमत्कृत था। जौनपुर पॉलीटेक्निक ग्राउंड में उनकी सभा थी मंच पर टका टक चढ़ने की शैली मुझे इतनी पसंद आई कि बहुत दिनों उसी शैली में साढ़ियां चढ़ता था।1973-74 तक इंदिरागांधी और कांग्रेस की राजनीति का आलोचक बन गया था। तब तक कांग्रेस राजनीति में संविधानेतर सत्ता-स्तंभ के रूप में संजय गांधी का भी अभ्युदय हो चुका था।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment