Wednesday, April 1, 2020

लल्ला पुराण 289 (संघी-मुसंघी)

एक ग्रुप में एक कमेंट का जवाब:

मैंने आपको संघी नहीं कहा मैंने तो मुसंघियों से उनका मौसेरापन इंगित किया। इस ग्रुप में मेरा नाम देखते ही तमाम लोग, खासकर मिश्र, तिवारी, दूबे टाइप, ऐसा झपटते हैं जैसे मैंने उनका खेत काट लिया हो, उनमें से कोई शिष्टता से बात कर लेता है तो बहुत शुकून मिलता है। भाषा की तमीज का श्रोत ज्यादातर उन्हीं से पूछना पड़ता है। मैं तो विचारों के विरोध का खुले दिल से स्वागत करता हूं, लेकिन लोग विचारों का विरोध नहीं करते बेहूदे निजी आक्षेप करते हैं, कभी कभी बुरा लग जाता है तो प्रतिक्रिया में कुछ कह देता हूं, इसी प्रतिक्रिया से बचने के लिए कुछ लोगों को ब्लॉक कर देता हूं। मैं उन चंद स्टूडेंट्स को ज्यादा प्यार से याद करता हूं जिन्होंने कभी असहज सवाल पूछे।इसे अन्यथा न लें, वैसे इस ग्रुप में कई लोगों के बौद्धिक स्तर से विवि के स्तर के गिरावट पर तकलीफ होती है। इलाहाबादी मोह में ग्रुप छोड़ा नहीं अभी तक, बहुत समय और दिमागी शांति नष्ट होती है।

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