Tuesday, June 30, 2020

नारी विमर्श 12 (विचारधारा)

मिथ्या चेतना के अर्थ मेंं हम अन्य विचारधाराओं की ही तरह, मर्दवाद की विचारधारा को भी सांस्कृतिक मूल्य के रूप में आत्मसात कर लेते हैं जिससे मोहभंग में बहुत प्रयास तथा साहस की जरूरत होती है, इसीलिए इसमें समय लगता है। विचारधारा उत्पीड़क तथा पीड़ित दोनों को प्रभावित करती है। पति को ही नहीं लगता कि रसोई और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी पत्नी की ही होती है, बल्कि पत्नी को भी ऐसा ही लगता है। आर्थिक परिवर्तन के साथ कानूनी और राजनैतिक अधिरचनाएं तुरंत बदलती हैं, लेकिन सांस्कृतिक संरचना इतनी गहरी पैठी होती है कि समय लगता है। हमारी पीढ़ी की नौकरीशुदा ज्यादातर स्त्रियां डबल रोल करती हैं -- फुलटाइम प्रोफेसनल और फुलटाइम हाउस वाइफ। इसमें न तो भौतिक बलप्रयोग (coercion) होता है न आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक। एंतोनियो ग्राम्सी का वर्चस्व सिद्धांत इसकी सटीक व्याख्या करता है। लेकिन स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी का रथ जिस गति से आगे बढ़ रहा है, चीजें बदलेंगी ही। कई लड़कियों ने शादी के बाद नाम में पति का सरनेम जोड़ना बंद कर दिया है। कुछ ने आधा रास्ता तय किया है शादी के पहले का सरनेम छोड़े बिना साथ में पति का सरनेम जोड़ लिया है। यह परिवर्तन प्रतीकात्मक है लेकिन प्रतीकों का बदलाव की राजनीति में अपना महत्व है।

नारी विमर्श 11 (मर्दवाद)

विचारधारा के रूप में मर्दवाद का इतिहास उतना ही पुराना है जितना वर्ग-विभाजन के साथ शुरू हुई सभ्यता तथा संबद्ध असमानताओं की विचारधाराओं का। अन्य विचारधाराओं की ही तरह मर्दवाद भी एक मिथ्या चेतना जै जिसे नित्य प्रति के विमर्श, रीति-रिवाजों, प्रतीकों तथा कर्मठृकर्मकांडों द्वारा निर्मित-पुनर्निर्मित एवं पुष्ट किया जाता है। म्रदवाद को पुष्ट करने के सबसे अधिक प्रभावशाली औजार विवाह एवं सेक्सुअल्टी से जुड़े कर्म-कांड, प्रतीक, रीति-रिवाज, मान्यताएं एवं वर्जनाएं हैं। कन्यादान जन्म के रीतिरिवाजों से शुरू स्त्री के उपभोक्ताकरण की प्रक्रिया का अगम सोपान है।

Saturday, June 27, 2020

बेतरतीब 75 (एसपी सिंह)

सुरेंद्र जी ('आज तक' शुरू करने वाले एसपी सिंह)बहुत बड़े आदमी थे, बहुत जल्दी चले गए, बड़प्पन के साथ उनका हास्यबोध भी उच्च कोटि का था। मेरी पहली मुलाकात जब नभाटा के संपादक बनकर दिल्ली आए, उसके कुछ ही दिनों बाद पंकज सिंह के साथ उनके प्रेस इंक्लेव घर पर हुई। नव भारत टाइम्स या टाइम्स ऑफ इंडिया में लेख देने जाने पर यदा-कदा मुलाकात हो जाती थी। एक बार संपादकीय पेज के आठवां कॉलम के लिए राज किशोर जी को लेख देकर शनिवारी के आगामी अंक के लिए परवेज से बात कर रहा था। एसपी आ गए और बोले क्या भई मेरा कमरा भी इसी दफ्तर में है कभी आ जाया करो। मैंने कहा छपने की सिफारिश नहीं लगानी होती। मैं कुछ दिन एक पाक्षिक में नौकरी करता था, हिंदी पत्रकार एसपी एसपी करते रहते थे। एक बार मैंने कहा 'अबे एसपी हिंदी पत्रकारिता के मोगांबो हैं क्या?' एक बार हम कुछ लोग प्रेस क्लब में लंच कर रहे थे। एसपी पहुंचते ही बोले कि बड़ी खुशी की बात है कि हिंदी के पत्रकार अपने पैसे से प्रेस क्लब में खाना खाने लगे हैं। मेरी किसी हास्य की बात बर ठठाकर हंसते हुए बोले 'मोगांबो खुश हुआ'। मैंने कि 'अच्छा यह बात आप तक पहुंच गयी'. बोले, 'हमारे आदमी हर रफ फैले हैं'। ऐसे में जब मेनस्ट्रीम मीडिया मृदंग मीडिया हो गया है, एसपी की कमी बहुत खलती है।

Friday, June 26, 2020

लल्ला पुराण 341 (पाकिस्तान)

मेरे तो कई पाकिस्तानी दोस्त हैं, यहां के बहुत से चिरकुटों से बहुत अच्छे। कभी पाकिस्तान जाना हुआ तो अगर उन्हें पता चल जाए कि आप हिंदुस्तानी हैं तो होटल वाला, पान-सिगरेट वाला आटो वाला पैसा नहीं लेगा। लेकिन बताना पड़ेगा क्योंकि शकल-सूरत से पता नहीं चलता। मैं 1983 में लाहौर गया तो एक लगभग मेरी ही उम्र का (27-28 साल का) आजमगढ़ी रेलवे गार्ड मिल गया। रेलवे क्वार्टर में अकेले रहता था उसने अपने साथ रुकने का इतना अधितक आग्रह किया कि रुकना ही पड़ा। बाजार बिल्कुल चांदनी चौक सी लगी। होटल में मजीद के साथ कआने गया तो वेटर को पता चला कि हिंदुस्तानी हूं तो बोला मेरा ऑर्डर वह अपने मन से लाएगा। पैसा लेने से मना कर दिया, मैनेजर से बात किया तो बोला हिंदुस्तानी मेहमानों से पैसा नहींलेता। वही जवाब सिगरेट की दुकान पर और ऑटो वाले से मिला। रावी में बहुत कम पानी था। कई बातें अगली बार के लिए छोड़ आया था अगली बार फिर कभी नहीं आया। शैतान सरहद नहीं जानता, इधर भी हो सकता है, उधर भी।

Tuesday, June 23, 2020

शिक्षा और ज्ञान 292 (भगत सिंह)

Shikha Singh भगत सिंह की साथियों को लिखी यह अंतिम चिट्ठी शेयर करने के लिए साधुवाद.@ Jagdish Keshav: तमाम नवजवान भगत सिंह के पदचिन्हों पर चल रहे हैं और इंकिलाबी हालात में बलिदान देने में नहीं डरेंगे, भगत सिंह के बाद भी बहुत से क्रांतिकारी शहीद हुए. क्रांतिकारी युवाओं में क्रांतिकारी जज़्बे की कमी नहीं है. कमी (जरूरत) है तो उस तरह की अद्भुत प्रतिभावान विचारक और संगठन तथा नेतृत्व क्षमता के युवाओं की. किशोर अवस्था में किसानों, धर्म, औपनिवेशिक शासन और क्रांति की समझ और युवाओं की भूमिका के महत्व को रेखांकित करते हुए, स्पष्टता से उनकी साहसी अभिव्यक्ति क्षमता एवं 22 साल तक पहुंचते पहुंचते विचारों और कामों से अंग्रेजी शासन को दहला देने वाले चरित्र इतिहास में विरले हैं. शहीदों के प्रति सारे सम्मान के साथ, मैं निजी तौर पर शहादत के महिमामंडन का विरोधी हूं. "मृत्वा भोग्यसे स्वर्गम्" भ्रामक है. मौत से डरे बिना उसे छकाते हुए जिंदा रह कर शोषक शासकों की नीद हराम करते रहना मानव-मुक्ति के मक्सद में शहादत से अधिक उपयोगी है. संसद में बम फेंक कर भगत सिंह और इनके साथी बहरों के कानों तक आवाज़ पहुंचा चुके थे. इनके भाग निकलने का पूरा इंतजाम था. लेकिन भागने की बजाय इन लोगों ने गिरफ्तारी देना पसंद किया. मौलिक योजना में बम फेंकने की योजना में भगत सिंह का नाम नहीं था क्योंकि एक सिद्धांतकार और रणनीतिज्ञ के रूप में भगत सिंह की क्षमता का पार्टी को एहसास था. इन्होंने जिद करके अपना नाम डलवाया कि किसी कॉमरेड की जान उतनी ही प्यारी है जितना कि उनकी. मुझे लगता है कि अंतरात्मा-भावुकता और विवेक के द्वंद्व में अंतरात्मा हावी हुई. इसी तरह एक बार जेल से कचहरी के रास्ते में पुलिस की गाड़ी से भगाने की योजना बनी. शुरू में भगत सिंह राजी भी हो गये थे, लेकिन अंत में उसी तर्क पर मुकर गये कि अगर वे निकल भी पाते तो मुठभेड़ में कुछ साथी शायद मारे जाते. सिद्धांततः मैं भगत सिंह से सहमत हूं लेकिन रणनीति के अर्थों में नहीं. शासक विचारों से डरता है और बौखलाहट में विचारक को खत्म कर देता है. क्या होता तो क्या होता की बहस अर्थहीन है. फिर भी कयास में क्या जाता है. यचयसआरए में क्रेतिकारी जज़्बे और बलिदान की भावना की कमी नहीं थी, कमी थी जनाधार की. हो सकता है बम की घटना से देशभर में महानायक बन चुके भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारी जनाधार बनता, हो सकता है कांग्रेस के काफी युवा क्रांति के समर्थक हो जाते और राष्ट्रीय आंदोलन का आयाम और आजादी अलग होते. जैसा लेनिन ने कहा है कि कभी कभी 7 साल तक कुछ नहीं होता और कभी 7 दिन में बहुत कुछ हो जाता है. लेकिन जो हुआ वही इतिहास है. आज जरूरत जनवादी चेतना के प्रसार और जनवादी जनाधार बनाने की है. भगत सिंह के एक वाक्य से अपनी बात खत्म करता हूं, जो मुश्किल कामों में प्रेरणा देते हैं. Revolutionaries fought for the oppressed because they had to.

24.06.2014

Footnote 20 (pension)

Some one has made repeated comments about my being a pension holder that is still held up in the university bureaucracy. On being pointed out he made a clarification that pensioners must put in social input, on that:

Words carry meaning through tone, connotation and intentions and those in your comments were quite pejorative and disdainfully contemptuous, which was completely uncalled for. You have made ill willful comments about my pension earlier too. A worker's pension is his earned right and not a charity from a parasite capitalist or a petty bourgeois. I have been a public person all my life and have been creatively contributing to social cause in my own way and no one else except me has right or perspective to decide about the kind of my contribution. Putting in effort and investing time in making people ration beings is also a creative social task. All the investments do not always proportionately pay back. Any one who does not directly participate in the social production of material or intellectual goods and lives on (manages) others' productive labor is by definition parasite on workers' labor from which he/she corners surplus, though I said it in the rage of reaction to your intended insulting comment. Good luck, have no malice, try to avoid casting baseless personal aspersions. Good luck and regards.

Sunday, June 21, 2020

फुटनोट 237 (चीन से टकराव)

यदि हम अंधविश्वास, धर्मांधता तथा जातीय एवं सांप्रदायिक नफरत के निर्माण में ऊर्जा व्यर्थ करने तथा अति प्राचीनकाल में महानताएं खोजने की बजाय उसे वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञानार्जन एवं उपयोग की सामग्रियों के निर्माण में निवेश करें तो हम उनके लिए चीन या किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं होंगे, न ही सरकार को सैनिकों की शहादत पर झूठ बोलना पड़ेगा। मुंहतोड़ जवाब देने की जुमलेबाजी के बाद कल प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक में कहा कि कोई भी भारतीय क्षेत्र में नहीं घुसा है न कोई सैनिक चौकी कब्जा किया है तो महामारी के भयानक काल में इतना युद्धोंमाद क्यों? सरकार के इस दावे के बाद कि कोई भारतीय सैनिक चीन के कब्जे में नहीं है, चीन ने अगवा किए 10 सैनिकों को मुक्त किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति युद्ध-युद्ध का बच्चों का खेल है क्या? सैनिकों की जान की कीमत केवल चुनावी वोट है क्या? चीनी सामान के बहिष्कार की शगूफेबाजी तथा युद्धोंमाद से आगे औद्योगिक स्वालंबन पर गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है। युद्ध अपने आप में एक गंभीर समस्या है यह किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।

फुचनोट 236 (चीनी बहिष्कार)

महामारी काल में जब गरीब-मजदूर-किसान को रोजी-रोटी के लाले पड़े हैं, भूख से मौतों का सिलसिला शुरू हो चुका है ऐसे में सीमा पर तनाव, युद्धोंमाद, चीनीअतिक्रमण व सैनिकों की शहादत के बीच मोदी का बयान कि चीन ने कोई अतिक्रमण नहीं किया है क्या संदेश देता है?कहीं गुजरात का व्यापारिक हित राष्ट्रहित पर भारी तो नहीं पड़ रहा है? भारत में कुल चीनी निवेशका 70% गुजरात में है। जनवरी में वहां चीनी स्टील प्लांट लग जाएगा। युद्ध गुजरात के व्यापारिक विकास में बाधक होगा।

फुटनोट 235 (चीनी माल का बहिष्कार)

इस तरह के चीनी माल के बहिष्कार के छद्म राष्ट्रवाद का कोई मतलब नहीं है। आज पूंजी का चरित्र भूमंडलीय है वह न तो निवेश के अर्थ में राष्ट्रीय है न श्रोत के। अडानी को ज्यादा फायदा होगा तो वह अपने चाकर राजनेताओं की मदद से सरकारी कर्ज (जिसे बाद में उन्हीं राजनैतिक चाकरों की मदद से बट्टाखाता में डाल दिया जाएगा) का निवेश आस्ट्रेलिया में करेगा और सस्ते कच्चे माल और सस्ते श्रम से ज्यादा मुवाफा कमाने के लिए अमरीकी धनपशु भारत में। आम आदमी चीनी पूंजी का शिकार बने या हिंदुस्तानी का. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। मौका मिलते ही हिंदुस्तानी धनपशु माल्या. चोकसी आदि की तरह लूट का माल लेकर विदेश भाग जाएगा और ऐश करेगा। हम बुतपरस्त मुर्दापरस्त मुल्क के गुलाम मानसिकता के लोग हैं और वैज्ञानिक-तकनीकी ज्ञान की बजाय अंधविश्वास तथा जातीय (वर्णाश्रमी) तथा धार्मिक (सांप्रदायिक) नफरत का प्रसार करते हैं जीवनोपयोगी वस्तुओं के निर्माण की बजाय गोबर और गोमूत्र के जीवनदायी गुणों का महिमामंडन करते हैं। सारी महानताएंअतीत में खऱोजकर वर्तमान में कैंची और नेलकटर भी आयात करते हैं। हमारा खून लाइब्रेरी और विद्यालय की मांग को लेकर नहीं खौलता, मंदिर के लिए खौलता है। इंसानों को बौना बनाकर देश महान नहीं बन सकता मंदिर कितना भी भव्य बन जाए। सीमा विवाद में 20 सैनिक शहीद हो जाते हैं, हमारे प्रधानमंत्री चीनी अतिक्रमण को जायज छहराते हुए कहते हैं कोई सीमा विवाद ही नहीं है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है, चुनावी फरेब की नहीं। सादर।

Thursday, June 18, 2020

Footnote 21 (Indo-China trade)

Why India does not cancel trade deals with China that runs into lakhs of crores?

You cannot get answer to this question from government's blind devotees with closed mind, who orchestrate mugged up maxims issued by IT cell and IT cell has not been able to work out a clear guide line as yet. Statue of unity cost Rs. 3000 crore to Indian exchequer. Tender accepted for the construction of few Kms tunnel for Rapid Rail, would cost it 126 crore if granted. The trade between India and China is around Rs 6 lakhs crores in which India's import is 80%, while its export is around 20% of it. Reason for disparity lies in the difference of the character of capital;ism in 2 countries. Indian capitalism is mostly crony capitalism dealing in financial matters and government contracts. Most of the medicinal raw materials and electrical and electronic goods are imported from China at cheaper rates. Some (very little) of it locally produced by national-multinational companies would cost almost double and their import from Europe or US would cost almost 10 times. China produces utilities, we produce superstitions, castism, communalism and jingoism. Writing this would invite the adjectives of Chinese agent from the blind devotees.

Tuesday, June 16, 2020

लल्ला पुराण 340 (भ्रष्टाचार)

Prabhakar Bhatt अब न्याय का मजाक बनाने में जस्टिस रंजन गोगोई जस्टिस दीपक मिश्रा के भीबाप निकलें तो मोदी जी क्या कर सकते हैं? अब रेलवे स्टेसन खाली पड़े-पड़े क्या करेंगे, अडानी-अंबानी, ट्रंपानी (इसका तो नाम पहली बार सुन रहे हैं) जैसे धनपशुओं को बेचकर मोदी जी की सरकार दरिद्र देश के लिए राजस्व जुटाएगी और ये धनपशु वहां व्यापार करके मुनाफा कमाकर, ऐडम स्मिथ के शब्दों में, राष्ट्रीय संपत्ति (वेल्थ ऑफ नेसन) को समृद्ध करेंगे। अब जज लोया होने से डर कर क्लीनचिट का धंधा कर लें, तो मोदी जी क्या कर सकते हैं? गोधरा के प्रायोजन से आयोजित नरसंहार में हुई हत्या-बलात्कारों, फर्जी मुठभेड़ों में से किसी में भी मोदी जी या उनके कोई सिपहसालार दोषी पाए गए? माया कोदनानी, बाबू बजरंगी, अंजारा-बंजारा सब निर्दोष पाए गए कि नहीं? बाकी देश अथाह है हजारों सालों से तरह तरह के नादिरशाह, लॉर्ड क्लाइव ... लूटते रहे लेकिन अभी तक बचा है। थोड़ा सा अंबानी-अडानी-आल्या-माल्य भी लूट लेंगे तो क्या हो जाएगा? अब सीबीआई, आरबीआई... सब पट्टाधारी हो जाएं तो मोदीजी क्या करें? खैर...

Monday, June 15, 2020

खुदा सजा ही देता रहता है

खुदा सजा ही देता रहता है
लुटेरों-हत्यारों को नहीं,
उनकी तो चाकरी करता है
पानेको भारी-भरकम चढ़ावा
सजा देता है
गरीब और असहाय मजदूरों को
कर्ज से दबे आत्म हत्या करते किसानों को
देशबंदी से बेरोजगार हुए
सूरत से पैदल चलकर गोरखपुर पुर जाते
रिक्शा-खोमचा वालों को
अस्पताल-दर-अस्पताल भटकते
किस्मत के मारे बीमार दहकानों को
कितना छोटा हो जाता है खुदा
देकर सजा
जमाने की मार से परेशानों को
खुदा से बड़ा है माफ करने वाला इंसान
जो खुदा को भी माफ कर देता है।
वैसे राज की बात है कि
इंसानों के वहम के अलावा
खुदा कुछ नहीं होता।
(ईमिः 16.06.2020)

Sunday, June 14, 2020

विश्वविद्यालय का स्तर

संसाधन की कमी का रोना महज बहाना है
इवि में लाइब्रेरी संस्कृति के अभाव का रोग पुराना है
जाति-धर्म की मिथ्या चेतना की रही है यहां पुरानी रीति
फेस बुकियों में व्यापक चलन में है अंधभक्ति की नीति
चलता नहीं दिमाग अंधभक्तों का जब किसी विषय पर
शुरू कर देते हैं गाना रटा हुआ भजन वामपंथ पर
करते हैं छात्र जब लाइब्रेरी में पढ़ाई देर रात तक
होता है विचारों का आदान-प्रदान चाय के प्याले पर
पढ़ते-लिखते, बोलते बतियाते सब मिल साथ साथ
खतम हो जाती है दिमाग से यौनिक भेद-भाव की बात
पढ़ने-लिखने के साथ साथ साथ वे प्यार भी करते हैं
लिए हाथों में हाथ वे समाज बदलने के लिए लड़ते हैं
बागुबली जो बाकी जगहोंपर साना तान के चलते हैं
जेएनयू में वे पहचान छिपाकर चुपचाप रहते हैं
जेएनयू है और जगहों से इस मायने में कर्क
हर तरह के हमले का उसका जवाब है तर्क
(ईमि: 14.06.20200)

Footnote 20 (US & Cuba))

No, US and Cuba cannot be compared. Two qualitatively different things cannot be compared. Cuba is a small island country facing sanctions and ideological attack from the imperialist gang of countries under the leadership of imperialist ring master USA. When the CIA monster responsible for killing Che was suffering from life threatening diseases, he was cured by Cuban doctors, free of cost. England and Italy are part of tormentors of Cuba but when English Cruise with corona infected passengers was stranded in Caribbean sea, Cuba provided it with safe haven, treated and sent back. “Let’s reinforce healthcare, solidarity and international cooperation,” said Cuba’s foreign minister, Bruno Rodriguez. “Thanks once more to the people of Cuba for their generosity and humanity,” wrote one passenger, Steve Dale, on Twitter. “Hoping to come back here one day when we’ve all forgotten about #Covid19.”
Cuba sent its medical team to Italy, when it was in dire need. Cuba is 100% literate.

Anyway, this post is about Che's views on creating socialist men and women out of comoditified capitalist ones.