हर अपराध के औचित्य के लिए क्रिया-प्रतिक्रिया का फरेबी तर्क गढ़ा जाता है जैसे मोदी सरकार के किसी कुकृत्य के औचित्य के लिए 70 साल से नेहरू के पापों की प्रतिक्रया की बात की जाती है। 1400 साल का अत्याचार वैसा ही फरेबी तर्क है। बेनेडिक्ट अंडेर्सन की पुस्तक, Imagined communities: reflections on the origin and spread of nationalism पठनीय है। धार्मिक समुदाय एक इमेजिन्ड कम्युनिटी है जिसका अस्तित्व लगभग 100 साल पुराना ही है। जिस तरह समुदाय के रूप में राष्ट्र का सोसल कॉन्स्ट्रक्ट प्रिंट कैपिटलिज्म के साथ शुरू हुआ, उसी तरह धार्मिक समुदाय का कॉन्स्ट्रक्ट अपने देशी दलालों की मदद से सांप्रदायिकता के कॉन्सट्रक्ट के साथ शुरू हुआ। जातीय तथा उपजातीय काल्पनिक समुदायों की निर्मिति जातिवाद (ब्राह्मणवाद) की देन है। यदि मिश्राओं का कोई वास्तविक समुदाय होता तो हम दोनों एक वास्तविक समरस समुदाय के भाग होते। लेकिन मेरे तो सगे भाइयों का ही कोई समरस समुदाय नहीं है तो करोड़ों-लाखों के एक समरस समुदाय की कल्पना कैसे की जा सकती है? यही सवाल मैंने अपने बड़े भाई से पूछा था? दुर्भाग्य से हमारी शिक्षा पद्धति में अनलर्निंग की प्रक्रिया का कोई संस्थातम्क व्यवस्था है नहीं, खुद ही व्यवस्था करनी पड़ती है, कुछ लोग नहीं करते और वे सास्कृतिक रूप से वही बने रहते हैं, जिस रूप में 12वीं के बाद विश्वविद्यालय में आए थे। मुहावरे की भाषा में पीएचडी करके भी, जैसा एक बार एक सहकर्मी को कहा था, 'भूमिहार से इंसान नहीं बन पाते'।
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