Tuesday, December 31, 2013

क्षणिकाएं 7 (251-75)

                                                                          251
सोचकर तुम्हारे रेत में चलने की बात
मेरे पांव नहीं दिल झुलस जाता है
[ईमि/8.10.2013]
252
कुछ भी नहीं रहता वैसे ही बदलता सब वक़्त के साथ
नहीं होता वही दरिया करते हैं जब दुबारा पार
अंत निश्चित है सबका है जो भी अस्तित्ववान
कुछ भी नहीं सास्वत तब्दीली के सिवा
[ईमि/09.10.2013]
253
तुमने तो मुझे वाचाल बना दिया है
बुढ़ापे में जवान बना दिया है. हा हा
[ईमि/09.10,2013]
254
कुछ बात खास तो है तुममें ज़िगर
वरना यूं ही वाह वाह नहीं कहता
तेरी वफा ने कर दिया दिल बाग बाग
जवानी तो हर उम्र में आती है
हो कोई ग़र तुम सा हमसफर
[ईमि/09.10,2013]
255
तेरे चाहने वालों में नहीं कोई मुझ सा
चाहत की कतार में मैं नहीं खड़ा होता
[ईमि/09.10,2013]
256
मैं तो कभी करता नहीं वजूद हावी
यकीन करता हूं जनतांत्रिक समानता में
[ईमि/09.10,2013]
257
सच है नहीं किया तुमने मुहब्बत का गुनाह
हेकड़ी दिखाया मगर मुहब्बत नाकबूली की
[ईमि/10.10.2013]
258
आशिकी के वहम-ओ-गुमाँ वालों से हमें क्या लेना
हम तो अज़्म-ए-ज़ुनू वाले हैं मैदान-ए-इश्क में
[ईमि/10.10.2013]
259
मिल जाती है दोस्ती जो अनायास
टूटती है जल्दी देकर संत्रास
लेते हैं बनने में वक़्त जो रिश्ते
चलते हैं आजीवन और नहीं टूटते
[ईमि/12.10.2011]
260
था यह उसका फिरकापरस्ती का उन्माद
घर ही नहीं कर दिया पूरा गाँव ही बर्बाद
[ईमि/16.10.201]
261
होता आया है अक्सर हमारे साथ
खोजा जब तन्हाई पकड़ा किसी ने हाथ
[ईमि/16.10.2013]
262
बुरे नहीं लगते कुछ लोग तब तक
खोलते नहीं हैं वे अपना मुंह जब तक
उच्चारित करते हैं ये कुछ शब्द जब
टपकने लगती है टप-टप मूर्खता तब
[ईमि/16.10.2013]
263
सफर अकेला नहीं लाता इंक़िलाब
चाहिए उसके लिए उमड़ता जनसैलाब
[ईमि/16.10.2013]
264
ख्वाहिश तो मेरी भी है तेरे साथ  चलने की
दो कदम ही नहींलंबा सफर करने की
पहन ली हैं तुमने मगर बेड़ियां पाजेब समझ कर
रस्मो-ओ- रिवाज़ की तहजीब तहजीब समझकर
करना है अगर विचरण मेरे साथ उन्मुक्त
तोड़ कर बंधन-ओ-बेड़ियां करो पैरों को मुक्त
[ईमि/16.10.2013]
265
खुद से मिलना होता है बहुत मुश्किल
आत्मावलोकन से कतराता है दिल
होने लगे  अगर अपने से बात
खत्म हो जाये जीवन का संताप
[ईमि/17.10.2013]
266
यही तो खूबी है सपनों की
कोई नहीं रोक सकता उन्हें
पहरा हो कितना भी कड़ा
खुद तय करते हैं नियम और मुहूर्त
अपने आवागमन के
[ईमि/23.10.2013]
267
दिल-ओ-दिमाग में आते हैं जितने आवारा खयाल
गर हो जायें थोड़े भी कलमबद्ध तो मचा दें बवाल
[ईमि/24.10.2013]
268
हुआ जब निजी सम्पत्ति का आगाज़
ऊँच-नीच के खेमों में बंट गया समाज
लड़ते थे आपस में आदिम कबीले भी
ज़िंदा दुश्मन का था कोई उपयोग नहीं
बढ़ा पशुपालन और खेती का काम-काज
धातु-ज्ञान से हुआ नये शिल्पों का आगाज़
ज़िंदा दुश्मन का श्रम तब आने लगा काम
दिया गया उनको ज़रृखरीद गुलाम का नाम
लिया जाने लगा उनसे जानवरों सा काम
शुरू हुआ मनुष्य के क्रूरतम शोषण का निज़ाम
दिया इतिहास ने उसे मानव सभ्यता का नाम
[ईमि/24.10.2013]
269
वफ़ा की उम्मीद
वफ़ा की उम्मीद क्यों रखते हो मुझसे
विचारों के मेल से ही मिला था तुझसे
निष्ठा आज भी है उन विचारों में
नहीं है रुचि रंग-विरंगी तस्वीरों में
नहीं मानता मैं तर्कहीन भावुकता का सबब
मुहब्बत-ए-जहां में ही है मुहब्बत-ए-माशूक का अदब.
[ईमि/२४.१०.२०१३]
270
इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता
न ही इतिहास कभी खुद को दुहराता
वापसी पशुकुल में नहीं है समाधान
क्यों न बन जायें हम बेहतर इन्सान
खत्म करके शोषण दमन के विधान
दें हर शख्स को इन्सानी सम्मान
[ईमि/25.10.2013]
271
वफा तो कभी सीखा ही नहीं
दूंगा मगर यारी को पूरा सम्मान
बार बार काटता हूं राह तेरी
देखता नहीं मगर हुस्न का अभिमान
[ईमि/October 26, 2013]
272
बात तो मैं जमाने की ही कर रहा था
ज़फा-ओ-वफा के विमर्श में
तुम्हारा ज़िक्र एक इत्तेफाक था
[ईमि/October 26, 2013]
273
बोलने का मन नहीं आपका जो आज
क्या करेगा उत्सुक यह श्रोता समाज?
कीजिए मन की थोड़ी मन से मनुहार
छेड़िए फिर एक नया राग-ए-बहार
हो जाए टूटकर जड़ता तार-तार
और श्रोता सुख-चैन से सरोबार
[ईमि/26.10.2013]
274
मत पिघलो लौ देखते ही मोम की तरह
अड़ जाओ तूफान में अडिग चट्टान बनकर
फुसलायेगा जमाना तुम्हें नादान समझकर
ध्वस्त कर दो उरादा उसका बनके दानिशमंद
[ईमि/27.10.2013]
275
है नहीं बुराई लत में मुहब्बत की
देती हो दिशा जो व्यक्तित्व के आयाम को
जनतांत्रिक पारस्परिकता के पैगाम को
और दे  बुलंदी इरादों के उड़ान को

[ईमि/२७.१०.२०१३]