एक ग्रुप में महामारी के सांप्रदायिककरण का विरोध करने पर एक सज्जन ने कहाकि मैं निजामुद्दीन में जमावड़ा करने वाले तब्लीगियों कामैं समर्थन कर रहा हूं। उस पर:
हम किसी धर्मांध जाहिल को क्यों डिफेंड करेंगे? हम तो सरकार की आलोचना कर रहे हैं कि ये जमावड़ा होने क्यों दिया या इन्हें डिपोर्ट क्यों नहीं किया गया बल्कि सरकार का रुख महामारी को हिंदू-मुस्लिम नरेटिव में फिट करने के मकसद से इसके प्रायोजित होने के संदेह को बल देता है। मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि कुछ धर्मांधों की वजह से किसी समुदाय का जनरलाइजेसन गलत है। नाथू राम नामक एक ब्राह्मण ने गांधी की हत्या कर दी तो सारे ब्राह्मण हत्यारे नहीं हो गए। मेरी न मुल्लाओं से कोई सहानुभूति है न पंडों से, मैं एक नास्तिक हूं और सभी धर्मों को प्रतिगाममी मानता हूं क्योंकि वे आस्था की बेदी पर विवेक की बलि देते हैं। अजीब बेवकूफी है इस ग्रुप में तमाम लोग ऐसे प्रतिक्रिया करते हैं जैसे मैं हिंदू धर्मांधता का विरोधीऔर इस्लामी धर्मांधता का समर्थक हूं। भाई मुझे किसी की आस्था से दिक्कत नहीं है वह निजी होना चाहिए। मेरे गांव के एक थे मंदिर को चंदा ्ना करने पर बोले ये मस्जिद को देंगे। एक धर्मांधता के विरोध का मतलब दूसरी की समर्थन नहीं होता बल्कि हर धर्मांधता का विरोध होता है। कल एक को ब्लॉक करना पड़ा क्योंकि वे प्रयास करके मुझे तब्लीगियों की सेवा में पहुंचाना चाह रहे थे। सादर।
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