Saturday, January 31, 2015

ईश्वर विमर्श 31

Shashank Shekhar ईश्वर का 1 टूटा चश्मा है जिसके पार कुछ नहीं दिखता, ईश्वरविहीन व्यकति की उड़ान असीमित होती है, ईश्वरवान व्यक्ति की उड़ान कल्पित ईश्वर की कल्पना से बौनी हो जाती है, जिसकी कल्पना किसी अाशय पर टिकी होती है उनकी कल्पना अनंत की स्वतंत्र ऊंचाई तय करने में असमर्थ होती है, जिनको अपनी कल्पनाशक्ति में अास्था नहीं होती वे कल्पना के लिये वाह्य, कल्पित स्रोतों की तलाश करते हैं. जो ईश्वर को नहीं मानता वह किसी मानव के चरणों में गिरने से रहा. कमजोर को ईश्वर का सहारा चाहिये, सक्षम को नहीं. ईश्वर से वह शक्ति मांगता फिरता है जिसो अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता. अात्मबल मजबूत करो ईश्वर के शिकंजे से मुक्ति मिल जायोगी. ईश्वर असहाय की बैशाखी है.

नास्तिकता

फरमाया एक ईश्वर भक्त ने
कि वंचित रहते हैं ईश कृपा से वे
होते  नहीं जो विचलित उसकी अाभा से
देखते नहीं उसे जो उदारता से
यह कैसी सर्वशक्तिमान पुकार
 जिसे इंसानी उदारता की दरकार
नास्तिक करता साहस अलौकिक के पर्दाफाश का
रखता नहीं मोह ईशकृपा की झूठी अास का
साहस करता वो जानने की लौकिकता
अौर नाज़ खुद की समझ पर अमल करने का
ईश्वर-कृपा देती है सकून का उतना भरम
हो जैसे चुनावी वायदों  का कोई मरहम
धरम-जाति है सरमाये की सियासी रोटी-पानी
साधू-साध्वी अब बनने लगे हैं राजा रानी
नकारते हैं जो बातें ईश्वर की मान्यताओं की
समझते हैं वो चालाकी मजहबी अाकाओं की
जानते हैं वे कि होती नहीं कोई अलौकिक हस्ती
होती जिनकी विवेकजन्य प्रमेयों में निष्ठा
चाहिये नहीं उन्हें किसी ईश्वर की कृपा
साहस है जिनमें खुदा को ललकारने का
होता उनका ज़ज्बा कृपाओं को दुत्कारने का
खुदा को नहीं मानने से नाराज़ हो जाते नाखुदा
सुझाते हैं मौत तक नास्तिकता की सजा
 झेलता है नास्तिक खानाबदोश पलायन की यातना
गिरवी मगर रखता नहीं धर्म-मुक्त अपनी चेतना
सुकरात ने दे दी थी जान मगर छोड़ी न सच्चाई
सुकरात की बात फिर गैलेलियो ने दुहरायी
दिदरो अौर वोल्तेयर ने झेला कारावास
तोड़ न सका ज़ज़्बा उनका खुदा का संत्रास
भटकते रहे रूसो तहे ज़िंदगी दर-बदर
छोड़ा नहीं उन्होंने मगर जनपक्ष की डगर
बहुत लंबी है हमारे पूर्वजों की फेहरिस्त
कार्ल मार्क्स हैं जिसकी एक अहम किस्त
झेल लिया उनने अाजीवन देशनिकाला
बदला नहीं मगर कभी नास्तिकता का पाला
करते रहे भगत सिंह खुदा की हस्ती पर प्रहार
लटक रही थी सर पर जब मौत की तलवार
खुद बनाता है अपनी नयी राह नास्तिक
 घिसी-पिटी लीक पर चलता है अास्तिक
नहीं मानता मैं भी किसी खुदा की हस्ती
हो जाये दुश्मन चाहे धर्मांधों की बस्ती
(ईमिः01.02.2015)

मोदी विमर्श 36

मोदी के नुक्कड़ सभाओं पर अाश्चर्य क्यों? आज तक अाज तक भगत सिंह को क्रांति के लिये शहादत की जगह कोई अासान रास्ता अपनाने की नसीहत किसी प्रधानमंत्री ने दिया क्या?अाज तक कोई हत्या-बलात्कार-लूट-अांतरिक विस्थापन के संचालन से लामबंदी करके प्रधानमंत्री हुअा है क्या?बुतपरस्तों-मुर्दापरस्तों-चमत्कार प्रेमियों के मुल्क में सब कुछ संभव है. जब एक ऐसा इंसान दुनिया के सबसे बड़े प्रतिनिधि-अाधारित तथाकथित जनतंत्र का मु ससे ज्खियादा हो या हो सकता है जो विश्वबैंक के अलावा कभी किसी का निर्वाचित प्रतिनिधि न रहा हो. मुझे इस मुल्क के ज्ञानियों की जहालत पर इससे ज्यादा अाशचर्य होता है. दिल्ली विवि के ज्यादातर शिक्षक (सर्वोच्च ज्ञानी) अच्छे दिन के समर्थक थे, चुनाव से पहले किसी से उनके नये अाराध्य का एक गुण बताने को कहिये तो अाम बजरंगियों की तरह 16 मई को बतायेंगे का जवाब देते थे. जिस मुल्क में शिक्षित जाहिलों का प्रतिशत अशिक्षिततों से ज्यादा हो वहां का प्रधानमंत्री नुक्कड़ सभाओं में लफ्फाजी करे तो आश्चर्य क्यों?

लल्ला पुराण 182(ईश्वर विमर्श 30)

गाफ़िल जी, अाप पर किसी की अनुपस्थिति में उसके बारे में प्रतिकूल जनमत बनाने के नैतिक अारोप में अाप पर नैतिकेतर अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है. शशांक समझदार बालक है किसी महत्वपूर्ण लौकिक-अलौकिक मिशन पर निकला होगा, उसके वापसी तक यह विमर्श थम जाना चाहिये. मेरा ईश्वर तो चिरंतन नीद में है, लेकिन जिनके पास अपने अपने ईश्वर जीवित हैं वे उनसे प्रार्थना करें कि उसका अलौकिक-लौकिक मिशन जल्द पूरा हो अौर वह वापस बगिया में अाकर अपने मिशन की रोमांचक यात्रा अौर उपलब्धियों का ब्योरा पेश करे. मैं तो केवल दुअा ही कर सकता हूं.

तुगलकी धमाल

मचा लो कुछ दिन अौर तुगलकी धमाल
करवा लो जितना चाहो बजरंगी बवाल
लेकिन जिस दिन जानेगा मेहनतकश यह हक़ीकत
उसी के खून-पसीने से की पूंजी बनी उसी की मुसीबत
दिखेगी उसे जब विकास के नारे में ढकी साज़िश अावाम के विनाश की 
शुरू हो जायेगी गिनती तुम्हारे सत्यानाश की
(ईमिः31.01.2015)

Friday, January 30, 2015

जमाना है दोनों का रक़ीब

होता है है प्यार में विचारों का भी मेल
होती नहीं मुहब्बत महज दिलों का खेल
इसीलिये नहीं होती जूता लात की बात
 चूकते नहीं मगर करने से शब्दाघात
 होती रहती जो शब्दों की भिड़ंत
 फ्रायडियन चुम्बकत्व का हो जाता है अंत
 रहता है ऐसी मुहब्बत का सिलसिला अाबाद
 होते हैं विचार जिनकी बुनियाद
होता है इस इश्क में इक त्रिकोण अजीब
 जमाना बन जाता है दोनों का रक़ीब
होता महबूब भी बस इक अज़ीज़ हमसफ़र
साझे सरोकारों पर करते जो जिरह-ओ-बसर
करते हैं इक-दूजे को जब अलविदा
साथ ले जाते हैं मोहक यादों का पुलिंदा.
(ईमिः31.01.2015)

सरसों के फूलों की मस्ती

ऋतुओं का सार है का वसंत
प्यार का मौसम है वसंत
चूर करता है ठंड की ठुठुरन की हस्ती
लाता है धरती पर सरसों के  फूलों  की मस्ती
लहलहाती फसलें सूरज की किरणों से
पुलकित अासमान होता खुशियों के झरनों से
वसंत में ही तो अाता होली का त्योहार
करता जो प्यार मुहब्बत का इज़हार
 करते हैं तो करते रहे लोग इस ऋतु को बदनाम
लेंगे ही हम प्यार की ऋतु में प्रियतम का नाम
देखे हैं अब तक कितने ही वसंत 
यादों की जिनके न अादि है न अंत. 
(ईमिः30.01.2015)

Monday, January 26, 2015

Intentional Proletariat 53

I do remember him, CARTER, continuing the legacies of his predecessors and accentuated promotion of fundamentalists in the region with Saudi money. There is no qualitative difference between both the major political rivals of the US as for as war against humanity is concerned. In fact the ruling class parties overplay their minor differences/contradiction to make it appear major contradiction so that the edge real-economic-contradiction is blunted. In India both the major claimants of the power are 2 camps of the agents of the imperialist globalization.

Sunday, January 25, 2015

जानती हो जब रहता नहीं वो अब तुम्हारे शहर में

जानती हो जब रहता नहीं वो अब तुम्हारे शहर में
क्यों वक़्त बरबाद करती हो ढूंढ़ने में उसको 
(ईमिः26.01.2015)

ईश्वर विमर्श 29

Shashank Shekhar 1. इंसान होने का दावा ज्यादा होता है इसी लिये निष्ठा स्व-हित से परे सर्वहिताय विचारों के प्रति होती है. नास्तिकता वाद नहीं उह लोक के अस्तित्व के निषेध के साथ इहलोक की भौतिकवादी व्याख्या अौर तथ्य-तर्कों के अाधार पर किसी दैवीय शक्ति के अस्तित्व का निषेध है. 2. ईश्वर मेरे जीवन -तेरे जीवन क्या जिस का अस्तित्व ही नहीं वह कहीं नहीं हो सकता उसका वहम हो सकता है जैसा कि भूत का वहम. ईश्वर ऐतिहासिक कारणोॆ से मनुष्य निर्मित अवधारणा है इसीलिये देश-काल के अनुसार उसका चरित्र अौर स्वरूप बदलता रहता है. 3. अनंत अौर असीम परिभाषित अवधारणायें हैं. ईश्वर एक ऐतिहासिक अवधारणा है जिसे हम जानते हैं कि मनुष्य ने गढ़ा अौर गढ़ता रहता है इसलिये उसके अस्तित्व को नकारते हैं. दुनिया में बहुत कुछ जाना जा चुका है बहुत कुछ जानना बाकी है  जो अज्ञात है वह ईश्वर नहीं बल्कि भविष्य के शोध का विषय है, जैसे अतीत की कई अज्ञात बातें अाज ज्ञात है.4. बिल्कुल सही कह रहे हो कि अालमारी पर स्थिति पेन ब्रह्मांड में भी है, अालमारी पर न पाकर कहूंगा कि पेन लगता है कहीं गायब हो गयी है. इसलिये नहीं कहता कि मेर मन मे नहीं है इसलिये नहीं है बल्कि इस लिये कि भय अौर प्राकृतिक परिघटनाओं की समझ की अक्षमता से उपजी दैविक शक्ति की अवधारणा के विकास का संपूर्ण इतिहास है. भगवान की अवधारणा सार्वभौमिक नहीं ऐतिहासिक है इसी लिये ऐतिहासिक जरूरतों के अनुसार उसका सव्रूप अौर भूमिका बदलते रहे हैं. पहले वह गरीब अौर दुकिया की मदद करता था अब उसकी जो ताकतवर है. पुनश्चः वमैं बहस के लिये बहस में यकीन नहीं करता, इसलिये जो कहता हूं ईमानदारी की सनक के साथ.

Saturday, January 24, 2015

शिक्षा अौर ज्ञान 50

सवाल-दर-सवाल है किसी भी ज्ञान की कुंजी
जवाब-दर-सवाल है हरेक ज्ञान की पूंजी
करो सवाल सबसे अौर सब पर 
नहीं है कोई भी सवालों से ऊपर 
सवाल का पहला सबब है खुद का अदब
खुद पर करो सवाल हो बिल्कुल बेअदब
नास्तिकता का खतरा है मगर सवालों की अनंत कड़ी में  
खो गया ईश्वर सवाल-दर-सवाल की ऐसी ही किसी घड़ी में
करना  होता है सबको खुद-ब-खुद ये चुनाव 
बनना है दानिशमंद या करना परंपरा का बचाव
पूछोगे नहीं गर खुदा-ना-खुदाओं से कोई सवाल 
करना न पडेगा उनको मिथ्याचार का बवाल 
बनना है अगर देश-काल का दानिशमंद
करो न कभी सवालों का सिलसिला बंद
(ईमिः25.01.2015)


Education & Knowledge 28

Key to any knowledge is questioning; questioning anything and every thing, beginning with the own mindset. But the process of the unceasing questioning  involves the risk of turning into an atheist,as it happened with me. The choice is yours.

संदर्भ इलाहाबदः

संदर्भ इलाहाबदः

चले थे साथ-साथ सब पहन गणवेश
कुछ समा गये काल के गाल में कुछ बन गये देश
एक थे शिवेंद्र शिवेंद्र तिवारी बहुत बड़े बकैत
कहते हैं मार दिया उनको कोई परिचित डकैत
बृंदा मिश्रा थे बाहुबली बहुत सन्नाम
सुनते हैं कोई नहीं उनका लेनेवाला नाम
धीन-धीन करते रहे नेताजी रामाधीन
बन गया बैक डोर से अमितशाह अलाउद्दीन
नेता जी बजा रहे हैं प्रवचनों की बीन
बना दिये गये ये अब कथामंडली के पीठासीन
इतिहास गवाह है अलाउद्दीनों का
साज़िश-ए-क़त्ल जलालुद्दीनों का
पढ़ लें मन से गर मैक्यावली रामाधीन
बन सकते हैं मुल्क के अगले अलाउद्दीन
(अग्रज, Ramadheen Singh से क्षमायाचना के साथ)
(ईमिः25.01.2015)

Friday, January 23, 2015

प्रेम

प्रेम इतना कि छलक जाये तो बन जाय झूमता दरिया
बह जाय तो उमड़ता सागर
नहीं है दिल में नफरत का नामोंनिशाँ
हां अदावत जरूर है इंसानियत के दुशमन खयालों से
हो जाते हैं वसंत में वसंतमय इस कदर
होती नहीं दरकार सरस्वती पूजने की
ज्ञान का श्रोत है मन की बेचनी
 अौर अादत सवाल-दर-सवाल की
न कि कृपा किसी ज्ञान की देवी की
(ईमिः24.01.2015)

ईश्वर विमर्श 28

विवेक के साथ कल्पना भी मनुष्य का वह नैसर्गिक गुण है जो उसे पशुकुल से अलग करता है. ईश्वरवान व्यक्ति की कल्पना अास्था के बंधनों से सीमित हो जाती है, ईश्वरविहीन व्यक्ति की कल्पना असीम, अनंत होती है.

वसंत 3

याद अाती है वसंत की वह सुहानी रात
थी जो प्रियतम से पहली मुलाकात
(ईमिः24.01.2015)



Thursday, January 22, 2015

गरीब सिपाही

 इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1970 के दशक के वुद्यार्थी परिषद के नामी-गिरामी नेता अौर छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष उप्र भाजपाबौद्धिक सेल के प्रभारी राजनैतिक बेरोज़गारी से जूझते हुये मन बहलाने के लिये फेसबुक पर महाभारत-रामायण के हिंदुत्व संसकरण पोस्ट करते रहते हैं. अाज उन्होंने मन की पीड़ा किसी का शेर पोस्ट कर व्यक्त किया कि मंज़िल पर वे पहुंचे जो सफेर में शरीक ही न थे. उस पर यह टिप्पणी लिा गयी.

लडता रहा है हमेशा ही गरीब सिपाही
मिलती नहीं मगर कभी उसे जीत की मलाई
लड़ता था जब अौरंगजेब-ओ-शिवाजी की लड़ाई
लेता था लूट के माल का चौथाई
हड़प जाता था राजा बाकी तीन चौथाई
न था राष्ट्रप्रेम न राष्ट्रवाद का बवाल
जान की जोखिम के पीछ था पेट का सव
न था हिंदु-राष्ट्र न ही निज़ाम-ए-इलाही
मकसद था माल मचाकर तबाही
हुआ जब पूंजीवाद का आगाज़
सल्तनतें बन गयीं राष्ट्र-राज्य
खिसकने लगी ब्रह्मा से वैधता की बुनिीयाद
लोगों की नई अफीम बन गया राष्ट्रवाद
पुराने की तरह अमूर्त है यह नया धर्म
समझता नहीं जो सिपाही के मन का मर्म
करता है सिपाही ही आज भी लड़ाई
 सात घेरे की सुरक्षा में वो हड़पता मलाई
लेता है सिपाही मार-काट की मुसीबत
समझता नहीं वो निज़ाम-ए-ज़र की हक़ीकत
समझेगा जिस दिन वो अट्टलिकाओं की बुनियाद का राज़
करेगा एक नयी ज़ंग-ए-आज़दी का आगाज़
तानेगा न बंदूक अपने ही बंधु-बांधवों पर
साधेगा निशाना ताज़-ओ-तख्तों पर
बदल जायेगा राज-पाट का अंदाज़
 धरती पर होगा मजदूर-किसान का राज. (हा हा ये तो कविता सी हो गयी. )
(ईमिः23.01.2015)

क्षणिकाए 40 (611-620)

611
ज़ुल्मत के इस दौर में 
प्रतिध्वनियों के कानफाड़ू शोर में
किसी प्राचीन गुफा की दीवारों टकराकर गूंजती
तुम्हारे पुकार की प्रतिध्वनि पहचान में नहीं अातीं
(ईमिः24.12.2014)
612
तुम क्या जानो कितने फसाने हैं तुम्हारी इक मासूम बात में
क्या कुछ मिल जाता है एक ही मुलाक़ात में
नित नया अन्वेषण खुद का करते हैं अाप
साहस से करें ग़र खुद से निरंतर संवाद.
हा हा एक और फसाना
(ईमिः24.12.2014)
613
कम ही सुनायी देती है कोई आवाज़ अब
सुनायी देता है शोर प्रतिध्वनियों का
निलती जो बात किसी सुमुख से
होता है भाव रट्टू तोते का
बंदानवाज ने कहा विकास
कास-कास की प्रतिध्वनियों से गूंज गया अाकाश
कहा वाशिंगटन में किसी ने अार्थिक सुधार
सुनायी पडा दिल्ली में धार-धार-धार
जानते नहीं क्या है धारा तीन सौ सत्तर
खात्मा मगर है इसका राष्ट्रवाद का उत्तर.
(ईमिः24.12.2014)
614
कविता के जंमदिन की कविता में बधाई कैसे न दूं
अमूर्त ज़ज़्बातों को मगर शब्दों में कैसे कसूं
दुवा करता हूं अाज के होने का नई उड़ान का दिन
सुंदर सपनों के नये विहान का दिन
लिखो तुम मुक्तिगान की कविता
खत्म हो जाये दुख-दर्द की अंधेरी सविता
 भरो ऐसी उड़ान कि खुद-ब-खुद रास्ता दे दे अासमान
 अोझल न हो अांखों मगर धरती का अनमोल जहान. जंमदिन मुबारक.
(ईमिः24.12.2014)
615
यह मान है नतीजा अधूरे ज्ञान का
निराधार वायवी अभिमान का
अारर होता है यह जामुन की डाल की तरह
अौर नाज़ुक मोम से मजहबी ज़ज़्बात की तरह
आँच से ही जल जाता है होता  इतना ज्वलनशील
परिहास पर गुर्राता है होता इतना सहनशील
कितना रोमांचकारी है रास्ते से भटकना रास्तों का
सुखद संयोग हो सकता है भटकाव नये वास्तों का
हो ग़र ग़म-ए- जहां से वास्ता
मिल ही जाता है ज़िंदगी को नया रास्ता
टूट जाता है लीक पर चलने की ऊब से नाता
साझे सरोकारों का हमसफर जो मिल जाता    
(ईमि/24.12.2014)
616
ख़ुदी की गफलत के शिकार एक शायर के हैं ये विचार
तख़ल्लुस है उनका ग़ाफ़िल
जानते नहीं मगर निज़ाम-ए-ज़र का आचार 
कहते हैं 
आसाँ है सोच रोटी की मगर मुश्किल है उसे बनाना
बताना पड़ेगा इनको वह बात
जानता है जिसे मुद्दत से सारा जमाना
खेलता-खाता जो रोटियों में और करता रोटी का धंधा
किया नहीं आँटे से उसने कभी भी हाथ गंदा
आता है जिसे बनाना और बनाता है जो रोटी
बिना नाश्ते के स्कूल जाती है उसकी बेटी
ईंट-गाढ़े की होती नहीं उन्हें तनिक पहचान
महलों-दुमहलों में रहते हैं जो धनपशु महान
बनाते हैं दिन-ओ-रात जो औरों की अट्टालिकायें
खुले आसमां के नीचे सोती हैं उनकी ललनायें
भूखा है मगर नहीं है कामचोर 
श्रम के साधनों पर क़ाबिज हैं हरामखोर
झेलेगा अब और नहीं पीड़ा इस त्रासद अवस्था की
समझेगा जब साज़िश सरमाये की व्यवस्था की
दुनियां के भूखे-नंगे मिल जायेंगे जब साथ
तोड़ देंगे ज़ालिमों के सारे खूनी हाथ
 भूखे न सोयेंगे तब रोटी बनाने वाले
बेघर न रहेंगे शहर बसाने वाले 
करना पड़ेगा धनपशुओं को भी काम
बिन मेहनत होगी रोटी हराम 
(ईमिः27.12.2014)
617
देखो तो जरा इस पतनशील पत्नी के रंग-ढंग
पहुंच गया मयखाने तक पतितपन का रंग
किया इसने पहले तो मनु महराज का निषेध
मिल शूद्रों के साथ पढ़ने लगी अनधिकृति वेद
इससे भी होता नहीं राष्ट्रवाद को इतना खेद
भूल गयी यह तो मगर औरत-मर्द का भेद
खिंचाती है जाम छलकाती खुद की तस्वीर
संस्कृति के पहरुए कब तक धरेंगे धीर?
इसी लिये बनाया था मनु महराज ने कानून ऐसे
आज़ादी के ज़ुनून से बचाई जा सके औरत जिससे
बचपन में रहे वह अपने पूज्य पिता के अधीन
मालिक बने पति परमेश्वर होते ही औरत हसीन
खतरे भांप लिया था उनने औरत की आज़ादी के
कुलक्षण है जो पुरुखों की पावन परंपरा की बर्बादी के
हो जांय पतिदेव उसके जब ईश्वर को प्यारे
कटेगा कलंकित वैधव्य तब बेटों के सहारे
लगती है औरत को जब आज़ादी की आदत
ढाती है गौरवशाली मनुवादी संस्कृति पर आफ़त
किया गोलवल्कर ने जब अपना विचार-पुंज पेश
फैलाने को फिरकापरस्ती के पावन-पुनीत संदेश
बताया मनु महराज को इतिहास सर्वोच्च न्यायविद्
और कहा मनुस्मृति है कानून का सवोत्तम संविद
औरत की आज़ादी ही नहीं शिक्षा भी है खतरनाक
पढ़ी-लिखी औरतें करती ऐसी ही हरकतें शर्मनाक
सतयुग की महान नारी पति का माल होती थी
इंसानों की मंडी में बिकने पर भी नहीं रोती थी
त्रेता में होने लगा संदेह उसके सतीत्व पर
मिटाती थी जिसे वह चलकर अंगारों पर
रह जाता ग़र फिर भी संदेह किसी के मन में
स्वीकारती थी निर्वासन खुशी-खुशी किसी वन में
द्वापर में भी नारी नहीं हुयी थी इतना पतित
करती नहीं थी पति को उसे जुए के दांव से वंचित
कलयुग की नारी का देखो यह पतनशील हाल
करने लगी मनुस्मृति की पवित्र संहिता पर सवाल
करती है मर्दों की बराबरी करने का बवाल
करती नहीं सीता-सावित्री के इतिहास का खयाल
पढ-लिख कर जो चार पैसा कमाने लगी
पतिव्रता की पवित्रता से दूर भटकने लगी
इसीलिये मनु ने लगाया था नारी-शिक्षा पर रोक
पढ़-लिख कर ये बकती हैं कुछ भी बेरोकटोक
लेकिन है देश में अभी भी बची यही गनीमत
करती नहीं ज्यादातर मर्यादा तोड़ने की हिम्मत
पतनशील पत्नियों का है दुनियां में अल्पमत
फैलेगा ग़र पतनशीलता का रोग संक्रामक बनकर
कहर बरप जायेगा मर्दवाद के प्राचीन दुर्ग पर
वैसे तो पतनशीलता अंतर्निहित है हमारे इतिहासबोध में
चोटी से शुरू होकर गिरते जाते हैं काल की अंधेरी खोह में
कह गये हैं ऋषिमुनि पहले ही यह पवित्र बात
चरमोत्कर्ष से होती हमारी संस्कृति की शुरुआत
सतयुग था हमारी गौरशाली संस्कृति का उत्कर्ष
कलियुग की तरफ बढ़ता रहा पतनशील निष्कर्ष
सतयुग था ऐसा स्वर्णयुग महान
खुली बाजार में बिकते थे इंसान
होगा ही एक दिन पतनशील पत्नियों का बहुमत
आयेगी उस दिन गौरवशाली मर्दवाद की शामत.
(ईमिः2 जनवरी 2015)
618
मैं तो कर रहा था तोड़ने की बात संग-ए-चट्टान
कहां से अा गया फ़साने में ये संग-ए-दिल इंसान
हमने तो सुना था में पत्थरों में पनाह लेते हैं बेचारे देवता
इंसान भी अब पत्थरों में छिपने लगा?
(ईमिः18.01.2015)
619
मैं तो कर रहा था तोड़ने की बात संग-ए-चट्टान
कहां से अा गया फ़साने में ये संग-ए-दिल इंसान
हमने तो सुना था में पत्थरों में पनाह लेते हैं बेचारे देवता
इंसान भी अब पत्थरों में छिपने लगा?
(ईमिः18.01.2015)
620
क्यो बढ़ाना चाहती हो अाबादी-ए-दानिशमंद
रखकर दिमाग ताक पर लिखते हैं जो छंद
चिंतन-प्रवृत्ति से पशुकुल से अलग हुअा इंसान 
रखकर दिमाग ताक पर हो जाता वह पशु समान
यंत्रवत घूमते हैं उसके हाथ-पैर, अांख-कान
टेपरिकॉर्डर बन जाती है उसकी जुबान
होता नहीं भरोसा खुद पर जीता भरोसा-ए-भगवान
इसलिये ऐ शरीफ इंसानों दिमाग चलता रहे तो बेहतर है
इंसान दिमाग लगाये जानवर न बने तो बेहतर है
(ईमिः22.01.2015)







रखकर दिमाग ताक पर लिखते हैं जो छंद

क्यो बढ़ाना चाहती हो अाबादी-ए-दानिशमंद
रखकर दिमाग ताक पर लिखते हैं जो छंद
चिंतन-प्रवृत्ति से पशुकुल से अलग हुअा इंसान 
रखकर दिमाग ताक पर हो जाता वह पशु समान
यंत्रवत घूमते हैं उसके हाथ-पैर, अांख-कान
टेपरिकॉर्डर बन जाती है उसकी जुबान
होता नहीं भरोसा खुद पर जीता भरोसा-ए-भगवान
इसलिये ऐ शरीफ इंसानों दिमाग चलता रहे तो बेहतर है
इंसान दिमाग लगाये जानवर न बने तो बेहतर है
(ईमिः22.01.2015)

Wednesday, January 21, 2015

शिक्षा अौर ज्ञान 49

मणी बाला यह मेरी बात की मशीनी व्याख्या है. जन्म एक जीववैज्ञानिक दुर्घटना का परिणाम है इसमें हमारा न तो योगदान है न अपराध. इस लिये जन्म की अस्मिता चिपके रहना विरासत में मिली, हमारी सचेत इच्छा या प्रयास से स्वतंत्र संस्कारगत नैतिकता है. उस पर सवाल करने अौर यदि अवांछनीय हो तो उसे त्याग विवेकसम्मत नैतिकता अर्जित करने की जरूरत होती है. यदि मैं विरासत में मिली नैतिकता से चिपका रहता तो मर्दवादी पोंगापंथी पंडत बना रहता. इसके लिये जरूरी है लगातार अपने अाप से सवाल अौर लगातार खुद को जवाब कि मनुष्य होने के नाते हम चिंतनशील प्राणी हैं अौर हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है जिसके परिणाम स्वरूप हम पाषाणयुग से अंतरिक्ष युग तक पहुंचे हैं अौर यह कि चिंतनशीलता ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करती है, यह भी कि अतीत में सारी महानताओं की तलाश अनैतिहासिक होने के साथ वर्तमान के संघर्षों से भटकाव अौर अनजाने में भविष्य के विरुद्ध साज़िश है. जैसे संस्कारगत नैतिकता के तहत मैं तुम्हें बेटा कहकर साबाशी दूंगा अौर संस्कारगत नैतिकता के तहत तुम भी इसे साबाशी लोगी, हम दोनों अनजाने में मर्दवादी विचारधारा को पोषित करते हैं. किसी बेटे को बेटी कह दो तो सारे लडके-लड़कियां हंसने लगेंगे. विवेकसम्मत नैतिकता यह होगी कि मुझे बेटी को बेटी कहकर साबाशी देना चाहिये अौर तुम्हें दावेदारी से कहना चाहिये, "Excuse me, I don't take it as complement.". Education should be not only about learning but also unlearning, unlearning the irrational acquired attributes independent of conscious will and replace them with rational ones.

Tuesday, January 20, 2015

Education & knowledge 27

Singh Arun SORRY, SOMETHING WRONG WITH HINDI FONT. ITS NOT SUB-CONSCIOUS BUT CONSCIOUSLY IMBIBING AND INTERNALIZING THE VALUES WE NEGATE AS A RESULT OF OUR SOCIALIZATION AND EDUCATION. I CALL IT "ACQUIRED MORALITIES" INDEPENDENT OF OUR CONSCIOUS WILL. IN ORDER GO GROW WE NEED TO QUESTION AND "UNLEARN" THEM IF NEEDED AND REPLACE THEM WITH RATIONAL MORALITY. UNIVERSITY DOES NOT HAVE UNLEARNING AGENDA, ONE HAS TO DO THAT ON ONE'S OWN. MANY PEOPLE DO NOT OR REFUSE TO GO UNDER THE UNLEARNING PROCESS AND DESPITE PHD DEGREE REMAIN SOCIALLY AS EDUCATED OR UNEDUCATED AS THEY WERE AT THE TIME OF JOINING THE UNIVERSITY. THAT IS WHY THE PERCENTAGE OF EDUCATED DUFFERS IS HIGHER THAN THEIR UNEDUCATED COUNTERPART.

ईश्वर विमर्श 27

Shashank Shekhar नीत्से की ईश्वर की मृत्यु की घोषणा इतिहास अौर समाज की धार्मिक व्याख्या के अंत का प्रतीक है. नीत्से नास्तिक थे यहूदीवाद(JUDAISM) की ही नहीं, ईशाई मान्यताओं-रीतियों की भी कटु अालोचना करते हैं. ईशायियत को मनुष्य की असीम सर्जक संभावनाओं के विकास की बाधा मानते हैं. ईशायियत को वे दयाभाव (पिटी) का धर्म मानते हैं.. दयाभाव मनुष्य की सर्जनात्मक ऊर्जा को बल देने वाली जीवंत भावनाओं को क्षीण करता है. तरस की भावना कष्ट की पीड़ा कई गुना बढ़ा देती है. तथा कष्ट को संक्रामक बनाती है. अनकी SUPERMAN की अवधारणा किसी हिटलर की अवधारणा नहीं है, बल्कि अपने समकालीन मनुष्यों को उनकी असीम सर्जक संभावनाओं का एहसास दिलाने का दार्शनिक प्रयास है. "A man in this state transforms things until they mirror his power—until they are reflections of his perfection. This having to transform into perfection is—art". जब वे कहते हैं, "Run wildly, run free, live dangerously and seize the day", वे किसी सिकंदर, मुसोलिनी या हिटलर का नहीं बल्कि धर्मभीरु अावाम की सर्जक ऊर्जा की मुक्ति का अाह्वान कर रहे थे. नीत्से अराजक, अस्तित्ववादी थे. पुनश्चः मार्क्स के भूत के साश्वत शिकार, मनुसंहिता के श्रुति परंपरा के ज्ञानियों अाग्रह करो कि गंभीर विषयों पर फैसलाकुन वक्तव्य के पहले कम-से-कम विकीपीडिया से तथ्यों की जांच कर लें.

Monday, January 19, 2015

ईश्वर विमर्श 26

Singh Arun अौर अाभासी दुनिया के इस द्वीप अभाषी मित्रों, मेेरी किसी से खेत-मेड़ की लड़ाई तो है नहीं, अौर बिना जाने-मिले अाप सब इतना सम्मान-स्नेह दिखाते हैं, उसकी अकृतज्ञता नैतिक अपराध होगा. इस ग्रुप में शायद महज़ नृपेंद्र को जानता हूं, वह भी 39 साल पुरानी बात हो गयी तो परिचय अपरिचय सा ही है, तो नाराज होने का मतलब ही नहीं होता. निराधार निजी अाक्षेप से बचना चाहिये. बचपन में मेरे पिताजी की अतिशयोक्तियों का उनके मित्र मज़ाक उड़ाते थे तो मुझे बुरा लगता था. मोदी जी जैसे धरती के प्रभुओं की अालोचना पर उनके भक्त धमकियां देने लगते हैं तो प्रभुओं के प्रभु के मज़ाक बनाये जाने पर अास्थावानों का थोडा-बहुत गुस्सा तो लाजमी है.अादिम कबीलों में ईश्वर की उत्पत्ति प्राकृतिक घटनाओं की समझ की बौद्धिक अक्षमता अौर भय के चलते हुई. ऋगवैदिक अार्यों सहित सभी प्राचीन धर्म प्राकृतिक शक्तियों -जीवनदायी तथा प्रलयकारी-- के ही उपासक रहे हैं, सभ्यता के विकास के साथ चतुर-चालाक लोगों ने असमानता पर अाधारित यथास्थिति की वैधता के श्रोत के रूप में उसे धर्म का जामा पहना दिया. धर्म ऐतिहासिक इसलिये भी है कि देश-काल के हिसाब से उसके चरित्र अौर स्वरूप, शासक वर्गों की ऐतिहासिक जरूरतों के हिसाब से बदलते रहे हैं. ब्रह्मा-विष्णु महेश की पैदायिश मौर्य शासन काल के बहुत बाद की है.

one v/s all बहस की अादत पड़ गयी है. कुछ लोग समय से पीछे होते हैं जैसे माननीय गृहमंत्री को पंडितों के पंचांग में विज्ञान से बेहतर विज्ञान हैं; ज्यादातर लोग समय के साथ होते हैं, नये रास्ते नहीं बनाते, कुछ लोग समय से अागे होते हैं अौर वक़्त के ठेकेदारों के कोपभाजन बनते हैं, जैसे गैलेलियो, रूसो, मार्क्स, भगत सिंह.

ईश्वर विमर्श 25

yoti Mishra Raka विमर्श में शब्दों के प्रयोग में लापरवाही, विमर्श को विकृत करती है. अराजकतावाद एक सम्मानजनक दर्शन है, सांप्रदायिकता की तरह कोई लंपट, प्रूदों, बकूनिन, क्रोपोत्कीन अौर महात्मा गांधी अराजकतावादी दार्शनिक हैं, अराजकतावाद सत्ता का निषेध करता है लेकिन अावश्यक रूप से हर अराजकतावादी नास्तिक नहीं होता न हर नास्तिक अराजक. जैसे गाँधी जी नहीं थे. मैं प्रामाणिक नास्तिक हूं लेकिन अराजकतावाद विरोधी. अराजकतावाद राज्य को समाप्त करना चाहता है, हम उन हालात को जो राज्य की शर्ते हैं, राज्य खुद-ब-खुद बिखर जायेगा.

ईश्वर विमर्श 24

ईश्वर की बहस से अब विदा लेता हूं, क्योंकि ईश्वर के बंदों का धैर्य टूट रहा है अौर अऩाप-सनाप बक रहे हैं. ईश्वर इतना अारर है कि उसकी रक्षा में बंदे बौखला जाते हैं. जिनमें अात्मबल की कमी नहीं होती, जिनके पास विचारों की दृढ़ता होती है उसे किसी काल्पनिक ईश्वर के संबल की अौर धर्म की वैशाखी की जरूरत नहीं होती. बस जरा सोचिये यो इतने अलग अलग ईश्वर क्यों हैं अौा करते हैं वह उनके बंदे इतना रक्तपात उत्पात क्यों करते हैं. उन्हें रोकने में में अक्षम है क्या? उसके बंदे जरा सी अालोचना पर बौखला कर भाषा की अपनी धर्मपरायण तमीज जाहिर कर ही देते हैं. यूरोप के प्रबोधकाल पर लेख लिख रहा हूं जिस दौर में बड़े-बड़े दार्शिनकों को ईश्वर के बंदों को दर-ब-दर भागना- भटकना, जेलयातना सहन करना पडा था. ईश्वर के अस्तित्व को चुनौती देने वाले वोल्तेयर, दिदरो अौर रूसो कष्टों से डरने वाले नहीं थे, न ही गैलेलियो डरे थे पादरियों के खौफ से न भगत सिंंह डरे मौत के खौफ से.भगत सिंंह का नास्तिकता का लेख पढ़ें. कहें तो लिंक दूू. शुभ रात्रि.

ईश्वर विमर्श 23

Shashank Shekhar सहमत हूं, न ईश्वर का दंगों से कोई ताल्लुक है न सांप्रदायिकता का धर्म से. न जिन्ना धार्मिक था न सावरकर. सांप्रदायिकता ईश्वर के नाम पर, धार्मिकता अौर धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाकर धर्मोंमादी राजनैतिक लामबंदी की विचारधारा है. यह तो बस 1 व्यंग्य है. Jyoti Mishra Raka ईश्वर कौन होता है अधिकार देने वाला, मैंने तो मांगा नहीं, अधिकार मांगा नहीं, लिया जाता है. Nripendra Singh मुसीबत में वही ईश्वर-ईश्वर करते हैं, जिनमें अात्मबल की कमी होती है. वैसे यह संयोग भी हो सकता है कि जितने भी जितने बड़े हरामखोर नेता, टैक्सचोर, घूसखोर, मुनाफाखोर,चोर... होते हैं वे उतने ही ईश्वरभक्त अौर पूजा-पाठ वाले होते हैं. मेरा किसी के धर्म से नहीं हर तरह के धर्मोंमाद अौर धर्मांधता से विरोध है. मेरी पत्नी का तो मानना है कि उनकी पूजा पाठ से ही मेरा जो भी भला होता है, होता है.

ईश्वर विमर्श 22

Pushpa Tiwari दंभ तो कभी किया नहीं, ल कभी किसी से डरा न भगवान से न भूत से. हां साधारणता अौर निर्भयता की थोडी अकड़ जरूर है.विद्यार्थी से बदले की भावना रखनेवाला शिक्षक शिक्षक नहीं हो सकता. इंसान से बदले की भावना वाला भगवान नहीं. एक बार की बात है, 23-24 साल पहले की. मैं फ्रीलांसर यानि बेरोजगार था. किसी बात पर मेरी पत्नी ने कहा भगवान के बारे में उल्टा-सीधा बोलते हो इसी लिये तुम्हारे साथ गड़बड़ होता है, मैंने कहा भगवान इतना चिरकुट है कि मेरे जैसे अदना इंसान से बदला लेने अा जाता है, तो अौर ैसी-तैसी करूंगा, अौर जो बिगाड़ना हो बिगाड़ ले. वह तो नहीं उसके बंदे बिगाड़ने की कोशिस करते रहते हैं.

ईश्वर विमर्श 21

Arti Srivastava मैें अनाध्यात्मिक व्यक्ति हूं क्योंकि अध्यात्म के शगूफे यथार्थ पर परदा डालने अौर उसे समझने की अक्षमता को रहस्यात्मकता का लबादा पहनाने के लिये छोड़े जाते हैं. जेंडर की तरह दंभ भी जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं, समाजीकरण का परिणाम है. ईश्वर अज्ञान से उपजी मानवनिर्मित अवधारणा है इसीलिये उसका स्वरूप देश-काल के हिसाब से बदलता रहा है. पहले ईश्वर गरीब अौर असहाय की मदद करता था, सामाजिक डार्विनवाद के बाद अब सक्षम की मदद करता है. जो सक्षम है उसे किसी की मदद की क्या जरूरत.

ईश्वर विमर्श 20

Shashank Shekhar मुझे संबोधित तुम्हारे कमेंट पर गंभीरता से लंबी प्रतिक्रिया की दरकार है. पहले छोटी-मोटी/हल्की-फुल्की टिप्पणियों से फारिग हो लूं. लेवर किन ईश्वर को ईश्वर की तरह रहने की तुम्हारी हिदायत पर मुझे बचपन में अपने एक पूर्वज के भूत को दी हिदायत याद अा गयी. मेरा गांव एक छोटी नदी कि किनारे था, उसके बीहड़ों, तटीय खेतों के अास-पास के पेड़ों, बागों अौर वन में कई प्रभावशाली भूत रहते थे. उनमें कई हमारे पूर्वज थे. नदी के किनारे के एक खेत में गूलर के पेड़ पर हमारे किसी पूर्वज ढ़वा बाबा की अात्मा रहती थी. तब तक मैं भूत के डर से उबर चुका था. बुढ़वा बाबा से संवाद कर चुके कई लोग थे. रात में मक्के खेत में मचान पर सोने का मन मार कर जाता था. मेरे पिताजी से रात में सुर्ती मांग कर खाते थे. मेरे पिताजी को रोचक गल्पकथाओं का बहुत शौक था. धान के खलिहान में भी कई भूत-चुड़ैलों को भगा चुकने की कहानियां भी बताते थे. मैं 13-14 साल का थै तथा तब तक भूतों को ललकारने लगा था कोई मेरा कुछ बिगाड़ न पाया. एक बार बुढ़वा बाबा को कुछ उल्टा-सुल्टा बोल दिया तो एक दोस्त ने कहा कि हमारे पूर्वज हैं, तो मैंने कहा पूर्ज हैं तो पूर्वज की तरह प्यार से रहें, बच्चों को डराते क्यों हैं.

Sunday, January 18, 2015

ईश्वर विमर्श 19

Pushpa Tiwari नमस्कार पुष्पा जी. तुलना समान गुड़ों की वस्तुओं में होती है. ईश्वर एक अदृष्य, अमूर्त, अप्रमाणित काल्पनिक अवधारणा है अौर ईश एक सत्यापित, प्रमाणित, ठोस यथार्थ. वैसे भी जिसे साधारणता(सरलता नहीं) अौर समता के सुख में अानंद अा ने लगे वह किसी तुलना की जरूरत नहीं होती. हा हा. 1 वाकया याद अा रहा है. बाद में.

ईश्वर विमर्श 18

Nripendra Singh मित्र, मैंने तो किसी खास धर्म के किसी खास ईश्वर की बात नहीं किया, मैं तो सब ईश्वरों की बात कर रहा हूं जो अपने झगडे खुद नहीं निपटाते, इंसानों का अमन-चैन बरबाद करते हैं. अाप जो कह रहे हैं, उतने में भी दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते सब ईश्वरों के रट्टू तोतों की तरह दुहरा देते हैं - किसी अौर धर्म पर कहने की हिम्मत नहीं होती. हर तरह के खुदाओं के बंदों से यही वाक्य सुनता अाया हूं.

ईश्वर विमर्श 17

Shashank Shekhar यार ईश्वर जी पर मेरी अौकात कि हमले करूं, सुबह 3-4 बजे से सुनसान झोपड़ी में अकेले बैठ जाता हूं.मेरी तो ईश्वर से कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन तुमने अपनी ईर्श्या के चलते मुझे  उसके चक्कर में फंसा दिया जो है नहीं. मुझे अपने  students के लिये European Enlightenment के अंधेरे कोनों पर 1 नोट लिखना था. मैं बता दूंगा कि मुझसे दुश्मनी का बदला तुम उनसे ले रहे हो, हा हा. यार अच्छा बुरा वह होता है, जो होता है. जब कल्पना ही करना हैतो कैसी भी कर लो. जब मन की ही करनी है तो बहुरी क्यों चबाओ रसमलाई खाओ. लेकिन अास्तिक दिमाग के इस्तेमाल में इतने अालसी होते हैं कि कल्पना भी मौलिक नहीं करते, पूर्वजों की कल्पनाओं को रटंत विद्या की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी अागे बढ़ाते हैं.  जो है नहीं उसपर हमला नहीं बोला जाता, उसका मज़ाक उड़ाया जा सकता है.  प्रमोद जी सही कह रहे हैं जो नहीं है उसके बारे मे क्यों लिखना. दर-असल जो है उसे समझने में असमर्थता के चलते सभ्यता के क्रूर यथार्थ छिपाने के लिये जो नहीं है उसी के बारे में ज्यादा लिखा जाता है. इसीलिये यूरोप अौर  भारत के लंबे अंधकारयुग में जो नहीं हैं, ईश्वर, दौविक शक्तियां अादि के बारे में ही लिखा जाता रहा है. पुष्पा जी मैं बुराई कहां कर रहा हूं मैं तो 1 अदृष्य, कल्पित, सैद्धांतिक अवधारणा का मज़ाक उड़ा रहा हूं जिसके नाम पर सभ्यता का इतिहास रक्तरंजित होता रहा है. साधरणता का अद्भुत अानंद इतना रास अाता है कि खुद हाईलाइट करने की जरूरत न महसूस हुई.

मैं तो कर रहा था तोड़ने की बात संग-ए-चट्टान

मैं तो कर रहा था तोड़ने की बात संग-ए-चट्टान
कहां से अा गया फ़साने में ये संग-ए-दिल इंसान
हमने तो सुना था में पत्थरों में पनाह लेते हैं बेचारे देवता
इंसान भी अब पत्थरों में छिपने लगा?
(ईमिः18.01.2015)

पत्थर पिघलते नहीं टूटते हैं

पत्थर महज मुहावरों में पिघलते हैं हक़ीकत में नहीं
पत्थर पिघलते नहीं टूटते हैं
न्यूटन के नियमों के तहत खुद कुछ नहीं होता
कुछ होने के लिये लगाना पडता है जोर
करना पड़ता है हथौड़े का वार बार-बार
निराला की इलाहाबाद की पत्थर तोडती अौरत की तरह
जब मानव जोर लगाता है तो पत्थर पानी नहीं होता
चूर-चूर हो जाता है
देवता की प्राण-प्रतिष्ठा के बावजूद.
(ईमिः18.01.2015)

Saturday, January 17, 2015

ईश्वर और नास्तिक 3

नास्तिक की बातों से मगन हो ईश्वर जी के मन में अाया कि पुरी जाकर समुद्र तट स्थित अपने धाम का भ्रमण करने का मन हुअा सो दिल्ली से पु रुषोत्तम मेल के जनरल डब्बे में बैठ गये. सहयात्रियों से अपनी महिमा सुन मगन हो रहे थे जगन्नाथ जी. जगन्नाथ जी के बारे में बहुत सी ऊल-जलूल किम्वदंतियां हैं कि वे अदिवासी देवता हैं जिन्हें ब्राह्मणों ने हिंदूकरण करके अपना बना लिया, पेड़-पक्षी पूजने वाले अदिवासी क्या खाकर जगन्नाथ जैसा भगवान पूजते. म्लेच्छों को तो मंदिर के दरवाजे तक भी नहीं फटकने दिया जाता. खैर जो भी हो, एक किम्वदंति है कि जगन्नाथ किसी भी भेष में भक्त को दर्शन दे देते हैं. इसीलिये जगन्नाथ जी का प्रसाद खाते वक़्त कोई भी—मैला-कुचैला भिखारी हो या कुत्ता – या कोई भी भक्त के पत्तल में साझीदारी करे तो भक्त मना नहीं करता बल्कि मेहमान को भगवान मान प्रसाद साथ-साथ खाता है. अंदर मंदिर में क्या-क्या होता है मालुम नहीं क्योंकि मैं तो अंदर जा पाने का साहस न जुटा सका और मंदिर के बाहर से महिमा देख, लौट आया था. लौटते वक़्त परसाई जी की पंक्ति याद अा रही थी कि प्रयाग जाकर संगम स्नान न करने की बात जिसने भी सुना थूका. खैर कहानी पर वापसी करते हैं. भुवने्वर तक तो प्रभु उल्लसित होते बेराक-टोक पहुंच गये. न टीटी मिला न पंडा. उल्लास का कारण था कि कलियुग में अपेक्षा के प्रतिकूल, भक्ति भाव अौर भक्त-संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि. लेकिन ईश्वर जी का उल्लास भुवने्श्वर में ट्रेन में चढ़ कर एक पंडे ने भंग कर दिया. ईश्वर जी से पंडे ने कहा कि 1000 रुपये में वह पूरा दर्शन करा देगा अौर प्रसाद कांप्लीमेंट्री. ईश्वर ने अपना परिचय देना चाहा, पंडे ने कहा कि गोलीबाजी बंद करो, सीधे-सीधे मेरे साथ चलो, जानते नहीं पुरी के पंडे कितने ठग अौर शातिर होते हैं. इंसानों को सदा के लिये भी गायब कर सकते हैं.मैं सीधा शरीफ हूं, भक्तों को लूटता नहीं. ईश्वर ने कहा कि वे चमत्कार कर सकते हैं, पंडा बोला तुम पीसी सरकार हो क्या? सहयात्री हक्के-बक्के भगवान-पुजारी का संवाद सुन रहे थे, तय नहीं कर पा रहे थे कि गुरू का विश्वास करें कि गोविंद का. पंडे ने भक्तों को संबोधित कर कहा कि जगन्नाथ जी को कहीं अाने-जाने की जरूरत न पडे इसलिये हम खुद उन्हें रथयात्रा करवा देते पड़ेगा, किसी शातिर पंडे के हत्थे चढ़ गये तो जिंदगी भर पछताओगे, अौर अंतिम भाव 300, इससे कम में कोई पंडा नहीं मिलेगा. अौर सुनो यह गोली किसी अौर को देना, तमाम फरेबी इस मुल्क में खुद को भगवान बता देते हैं अौर तमाम मूढ़ उनकी पूजा शुरु कर देते हैं. देखो पंडा तो करना ही, मैं अंतिम रेट-250, सब काम उसी में. अपने ही मंदिर में जाने के टैक्स की बात से दुखी हो भगवान जी अंतरधान हो गये.

Monday, January 12, 2015

फुटनोट 25

एक बार (2012 में) अपने गांव के इलाके में, अाज़मगढ़-जौनपुर के सीमात के एक अपरिचित चौराहे पर चाय की चुस्की के साथ चाय की अड्डेबाजी की बतकुच्चन का भी रसास्वादन कर रहा था. मोबाइल महिमा पर विमर्श चल रहा था. तभी एक सज्जन को एकाएक क्रोध अा गया अौर चिल्लाकर बोले इसी मोबाइल का नतीजा है कि हर गांव से 5-5 लड़कियां भाग रही हैं. 30 सेकंड का सन्नाटे के बाद तूफान सा अा गया. लोगों को एक जोगदार अावाज सुनाई दिया -- भागने वाली बहादुर लड़कियों को सलाम. कल्चरल शॉक. ऐसी पापपूर्ण बात कहने वाला कोई लौंडा-लफाड़ी नहीं सफेद दाढ़ी वाला बुज़ुर्ग सा दिखता अादमी था. लोग हक्का-बक्का हो मुझे एकटक देखने लगे. उसके बाद के दृष्य की कल्पना कीजिये.


उसके बाद तो रण ठन गया -- एक बनाम सब--वृद्ध-बालक समेत- एक 46 किलो का बुजुर्ग बनाम 15-20 हट्टे-कट्टे लोग. अंत में जब तर्क से पराजित होकर 1 अादमी गुस्से में बोला अाप अपनी बहन-बेटी की शादी चमार से कर देंगे? मैंने कहा मैं तो खुद चमार हूं. सबकी बोलती बंद. अाक्राम कुतर्की मर्यादित विद्यार्थी बन गये. कहने लगे अापकी बात ठीक है लेकिन यहां नहीं चलेगी. मैंने कहा तो 5 के बदले 10 लड़कियां भागेंगी.

पीटा तो नहीं उन लोगों ने, कुछ लडके कुनमुना रहे थे, लेकिन मैं शरीर का वजन अौर संख्या देख कर बात मान लूं तब तो मुझे दुनिया के लगभग 99.9% मर्दों से डरकर रहना पड़ेगा इसलिये मैंने डरना बंद कर दिया. भीड़ में बहादुरी दिखाने वाले नायक डरपोक होते हैं. भीड़ में कुत्तों की तरह शेर बन जाते हैं अौर अकेले में पत्थर उठाने के नाटक से ही दुम दबाकर भाग जाते हैं. युगचेतना को चुनौती देने के चलते अक्सर विमर्श में अल्पमत रहता हूं संख्या से डर जाऊं तो चुप ही रहना पड़ेगा, अौर अगर अापकी बात में दम है तो अंततः लोग मानेगे ही व्र्यवहार तुरंत भले न करें. जैसा उन लोगों ने सिद्धात में ततो मान ही लिया. मेरे चमार बनने पर तो वही सब सकपका गये. लोगों के दिमागों में संस्कारजन्य पूर्वाग्रह भरे होते हैं. सबसे पहले तो उनकी समझ में यह नहीं अाया कि मरियल सा बुड्ढा अकेला उपस्थित जनमत के विरुद्ध इतने विश्वास अौर अकड़कर तर्क कर रहा है. हास्य का स्तर भी ऐसा ही. एक नवजवान ने पूछा मोटरसाइकिल मैं ही चला कर लाया हूं, मैंने कहा नहीं सिर पर रख कर लाया हूं. बाद में पता चला कि वह प्राइमरी का शिक्षसक था.मेरे चमार बनते ही उनके दूसरे पूर्वाग्रह को झटका लगा. "बाप रे, चमार होकर इतना निडर अौर तर्कशील!" तीसरा डर कि कहीं मैं न कह दूं कि तुम अपनी बहन बेटी की शादी मेरे घर में करोगे. उनको यह नहीं समझ में अाया होता कि मेरी बेटी जिससे प्यार करेगी उससे शादी करेगी (किया) यदि उसे शादी करना होगा क्ययोंकि हमने उसे नहीं सिकाया कि जाति देखकर प्यार करे. अौर कहीं न कहीं यससी-यसटी ऐक्ट का भी डर रहा होगा. गुंडों का अातंक भय पर अाधारित है, लोग डरना बंद कर दें तो गुंडे भी मजबूरन इंसान बन जाते हैं. क्या कर लोगे? जान ले लोगे? कोई किसी की जान ले सकता है. 5 बच्चे किसी पहलवान को पीट सकते हैं, वैसे रहस्य की बात यह है कि सत्ता तथा गुंडे का भय होता है, ईमानदारी का अातंक.

Saturday, January 10, 2015

Education & Knowledge 26

Lalit Mishra Bajarangi terrorism is equally dangerous, the percentage of educated duffers who would recite like parrot to mugged up lines irrespective of the topic of discourse, is higher than their uneducated part. How many Marxist professors in JNU/DU, who do not go beyond the "superficial talk of "secularism", you know? I haven't met any. Please let us no the real talk of secularism? Bajrangi terrorists and Talibani terrorists are twins born out of the womb of capitalism, having nothing to do with religion, overtly-covertly serve the interests of imperialist global capital. Terrorism/communalism is not an attribute of biology but an ideology that is preached by fundamentalist organizations like RSS and Jamat-e-Islami.catin &

शिक्षा अौर ज्ञान 48

Ramadheen Singh अग्रज प्रणाम, तथ्यों-तर्कों से रहित फतवेबाजी विचार नहीं तोतागीरी की लफ्फाजी होती है. विटार अायातित नहीं होते, गतिमान होते हैं, रूमाल-माल तो यहां की शासक पार्टियां कर रही हैं बाजार को विदेशी पूंजी के हवाले. अगर वाकई अायातित विटारो-माल से विरोध है तो अायातित बजरंगी फासीवाद का विरोध करे, खुदरा बाजार से लेकर रेल तक को विदेशी पूंजी के हवाले करने का विरोध करें, लेकिन शाखा में तो फिरकापरस्ती का मंत्र रटाया जाता है दिमाग का इस्तेमाल नहीं. तमाम जाहिल तोते तथाकथित बुद्धिजीवी अौर तथा कथित सेकुलर रटते हैं, दिमाग से दिवालिये ये तोते यह नहीं बताते के वास्तविक सेकुलर क्या होता है, अग्रज अाप तो अमितशाह की पार्टी के बौद्धिक प्रकोष्ठ के मुखिया हैं, कभी-कभी बुद्धि को भी गतिमान होने दें. सादर.

Thursday, January 8, 2015

लल्ला पुराण 181 (शिक्षा अौर ज्ञान 47)

Ramadheen Singh अग्रज, प्रणाम. अब लगता है कि अाप वर्तमान अौर भविष्य के बारे मे विचारशून्य हो गये हैं अौर अतीत के रट्टू तोते, परजीवी, ब्राह्मणों की श्रेष्ठता की होड़ की गल्प कथाओॆ में जनता को उलझाकर रखना चाहते है. नये जमीन अधिग्रहण के अध्यादेश से लाखों किसानोॆ के सिर पर लटक रही विस्थापन की तलवार पर भी कभी मुखारविंद को थोडा कष्ट दें. अध्यादेशों की हड़बडी पर भी कभी कुछ कहें. लगता है कि अमित शाह की भाजपा के बेरोजगार बौद्धिक प्रकोष्ठ(जिसकी प्रदेश इकाई के अाप संयोजक हैं) को लोगों को पूर्व-उत्तर मीमांसाओं में उलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है. लोग मंडन मिश्र अौर शंकर के शास्त्रार्थ में उलझे रहें अौर सरकार बेहिचक देश की नीलामी करती रहे. कभी तो देश अौर जनता के बारे में सोच लिया करें. सादर.

Wednesday, January 7, 2015

DU 58(Education & Knowledge 25)

Rakesh Pandey So kind of you that you and your co-contractors of the religion that allow "Ish Mishra ji to keep abusing and barking on Hindus and still enjoying an "intellectual" leash in a Hindu society. People like him flourishing in our society gives me enough reasons to feel proud of my Hinduism that is not my religion but much more than that."  I  don't blame you but the glorious sense of language of calling a differing  colleague (or even one's own father for that matter)  a dog acquired in long devotional Shakha training. Habituated sense of abusive language does not go away with a PhD. I do not think with Modi's ascendance to power you have begun to own the country. You can kill me but cant silence me. This is my last fb interaction.in terms of reacting to your comments. I shall feel grateful if you stop tagging me. 

लल्ला पुराण 180 (शिक्षा अौर ज्ञान 46)

Sumant Bhattacharya मित्र ऋगवैदिक कबीलों के बारे में मेरी सारी जानकारी ऋगवेद (हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद) अौर अन्य किताबों के पाठ पर ही अाधारित है व्यक्तिगत अनुभव पर नहीं. संगीत शून्य व्यक्ति हूं इसलिये ध्वनि की शुद्धता क्या होती है नहीं जानता. हां कई खानाबदोश कबीलों को जानता हूं जिनकी अाजीविका नृत्य-गायन से ही चली थी. तुमने ऋग्वेद अगर पढ़ा होगा, (न पढा हो तो गोविंद मिश्र का अनुवाद काफी अच्छा है) तो सोमरस, हरे चारागाहों, अस्थाई पिंड(गांव)च पशुधन की महिमा (अौर चोरी), सोमरस, अश्व समान बल अौर नये चारागाहों की तरफ प्रयाण के प्रसंगों की बारंबारता है. जो लोग किसी कृति को पढ़े बिना उसे ज्ञान-विज्ञान का सार्वजनिक स्रोत या धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने वाला घोषित कर देते हैं वे ज्ञान की प्रक्रिया अौर समाज दोनों के लिय़े घातक होते हैं. जनश्रुति के अाधार पर फैसलाकुन वक्तव्य देने के पहले ग्रंथ के कतिपय हिस्ले पढ़ लेना चाहिये. Anshuman Pathak अापकी गलती नहीं है जनश्रुति पर अाधारित ज्ञान से ऐसी ही गैरजिम्मेदार टिप्पणी होती है. इंद्र ऋगवैदिक अार्यों के देवता थे अौर कबीले के मुखिय को भी इंद्र कहा जाता था, जिसके सम्मान में, अन्यथा अबध्य अश्वमेध होता था. ऋगवेद न पढ़ सकें तो राहुल सांकृत्यायन को ही पढ़ लें. सादर.

Sumant Bhattacharya मैंने कहा नहीं कि मैं सुर-संगीत के बारे में राय देने में अक्षम हूं, लेकिन खानाबदोश या अर्ध कानाबदोश कबीले क्यों नहीं बेहतर सुर संयोजन कर सकते? ऊपर मैंने लिखा है कि कई खनाबदोश कबीले अाज भी नृत्य-संगीत से जीवनयापन करते हैं. अमरीका के अरिजोना के अर्ध-खानाबदोश अादिवासी अस्थायी गांव बसाकर रहते थे अौर संगीत में निपुण माने जाते थे. सभी समाज कबीलाई समाजों से ही विकसित हुये हैं. मैं दुबारा दुहराता हूं कि अतीत में महानतायें खोजना वर्तमान संघर्षों से मुंह मोडकर, जाने-अनजाने भविष्य के विरद्ध साजिश का हिस्सा होने जैसा है.

Tuesday, January 6, 2015

शिक्षा अौर ज्ञान 45

हर समाज अपने क्रमिक विकास के हर चरण में, ऐतिहासिक-,भौगोलिक जरूरतोंं के अनुसार अपने जीविकोर्पाजन के साधन,भाषा, मुहावरे, कहावतें, धर्म, देवी-देवता की अवधारणाओं का विकास करते हुये, फल-फूल; कंद-मूल से जीविका से शुरू करके पाषाण-युग से अंतरिक्ष युग तक पहुंचे. लेकिन हमारे ऋगवैदिक पूर्वजों को व्रह्मा जी ने ज्ञान-विज्ञान अौर सोमरस से लैस कर सर्वगुण संपन्न पैदा किया था, जहाज अौर अंतरिक्षयान का उन्हें ज्ञान था. यह अलग बात है कि वे इस नाम से अपरिचित थे, अौर महज़ अनुभूत प्राकृतिक शक्तियों -- अरुण, वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा करते थे, ब्रह्मा की पैदाइश बाद की है. यह भी अलग बात है कि पूरे ऋगवेद में पशुधन पर ही जोर दिया गया है.

Monday, January 5, 2015

शिक्षा अौर ज्ञान 44


मित्र रानिश की 1 पोस्ट अौर मेरा कमेंटः
Ranish JainDecember 2, 2014
"हमारे यहाँ देश में रहने का परमिट रामनामी बेहद सस्ती दरों पर उपलव्ध हैं !
नोट- हमारे यहाँ जैन , बौद्ध , ईसाई , मुस्लिम ,पारसी आदि अल्पसंख्यकों को डिस्काउंट चालू है
फेशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा नहीं करें"      

                                        तुम जैन होकर  नासमझी मेंजैन को अलग धर्म बता रहे हो. महावीर महान हिंदू ऋषि थे, इसका प्रमाण है जितने भी रसूख वाले जैन हैं,ज्यादातर ने संघ से राष्ट्रभक्ति दीक्षा ले रखी है. भगवान बुद्ध तो साक्षात विष्णु अवतार थे जिनके लाम पर साजिश करके विदेशी हमलावरों ने अलग पंथ खोल दिया  अौर कई तो राजा भी बन गये. लेकिन हमारे पूर्वजों ने यह विधर्मी प्रथा यहां नहीं पनपे दिया तो चीन-जापान भाग गयी. रामनामी इंडिया में रहने का वीज़ा है? नास्तिकों को भी मिलेगी? लेकिन मुस्लिम-पारसी-ईशाई जैसे म्लेच्छों के साथ जैन-बौद्ध क्यों जोड़ दिया, वे तो पथविचलित हिंदू ही हैं. उनकी पहली "घरवापसी" परमपूज्य ब्रीह्मण-शिरोमणि, सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने की थी, उसके बाद बौद्धों के होश ठिकाने लगाने के लिये शंकराचार्मय को कितने मठ खोलने पड़े. अब अच्छे दिन अा गये हैं बौद्ध-जैनों की सम्मान के साथ व्यापक "घरवापसी" के  कार्यक्रम चलेंगे, विदेशी कंपनियों को इनके पूर्वजों की जाति-अन्वेषण का ठेका दिया जायेगा जिससे सबको उनके जाति-कुल गोत्र में पुनर्स्थाजित किया जा सके. संघं शरणं जाओ.