किसी की किसी कुदरती खामी का मजाक उड़ाना अमानवीयता है। हमारे समाज में संवेदना की यह क्रूरता स्वीकार्य है। मेरे गांव के एक मंगला भाई हैं, दुर्घटना में पैर खराब हो गया, उनका नाम लंगड़ पड़ गया। एक आद्या चाचा थे दृष्टिहीन थे कुंए से पानी निकालने समेत सब काम कर लेते थे, ढोलक बहुत अच्छी बजाते और भजन गाते थे, उनका नाम ही सूरदास पड़ गया था। मैंने एक बार एक टेली फिल्म की स्क्रिप्ट में एक पात्र को तोतला बना दिया, स्क्रिप्ट पूरी होने के बाद मुझे गलती का एहसास तथा अफशोस हुआ और फिर से लिखा, शब्दों से हास्य रचें किसी की कुदरती कमी से नहीं।
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