Monday, July 7, 2025

क्रांति

 5 दशक पहले दीवारों पर लिखते हुए नारे

70 के दशक को मुक्ति का दशक होने के

पिछले चौराहे तक पहुंची क्रांति का करते हुए इंतजार
जो रूस में 10 दिनों की उथल-पुथल से
हिला-चुकी थी दुनिया
जिसकी कंपन से घबराए
यूरोप के धनपशुओं ने एडम स्मिथ को कह दिया था अलविदा
और लगाया था कीन्स को गले
अपनाया था कल्याणकारी राज्य
पहुंची जब चीन गांवों से शहरों को घेरते हुए
रुकी नहीं बड़ती ही गयी
चीन से चलकर क्यूबा और फ्रांस होते हुए
वियतनाम पहुंच कर दिगदिगंत को गुंजायमान कर
हो हो हो ची मिन्ह वी शैल फाइट वी शैल विन के नारों से
आगे बढ़ पहुंची हिदस्तान के दूर दराज के गांव नक्सबाड़ी
देश भर में निकल पड़े थे लोग लगाते हुे नारे
आमार बाड़ी तोमार बाड़ी सबेर बाड़ी नक्सबाड़ी
लेकिन क्रांति चौराहे से आगे नहीं बढ़ी
ढक लिया उसे प्रति क्रांति के गुबार ने
भक्तिभाव के अहंकार ने
पूछा था मार्क्स से तब मैंने अब क्या?
उन्होंने कहा संघर्ष संघर्ष और संघर्ष
(ईमि: 08.07.2025)

शिक्षा और ज्ञान 375 (राजपूत से इंसान)

 राजपूत से इंसान बनना जरूरी है

सारे राजपूत पहले मुगलों के दरबारी थे
फिर अंग्रेजों के दरबारी हो गए
दरबारी संस्कृति ही राजपुताने की शान है।

यादवेंद्र सिंह परिहार उम्र का लिहाज न करता हूं, न अपेक्षा रखता हूं, एक राणा प्रताप विद्रोह की ज्वाला जलाए रखे, बाकी उनके भाइयों समेत राजपुताने के सारे रजवाड़े अकबर के दरबारी थे और मेवाड़ के रजवाड़ों समेत राजपुताने के सारे जरवाड़े औरंगजेब के दरबारी थे। राणा प्रताप से युद्ध में अकबर का सेनापति आमेर का राजा मान सिंह था और शिवाजी के साथ युद्ध में औरंगजेब का सेनापति उनका वंशज जय सिंह। 1857 के विद्रोह में में रानी लक्ष्मी बाई से कुछ रजवाड़ों के छोड़कर सभी मराठे और सारे राजपूत रजवाड़े अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे उनके वंशज अब मोदी के भक्त हैं। औरंगजेब मानलिंह की बहन का परपौत्र था और इस तरह राजस्थान की उपमुख्यमंत्री का पूर्वज था। आप यदि राजपूत से इंसान बन गए हों तो अलग बात है, मैं तो 13 साल में ही जनेऊ तोड़कर बाभन से इंसान बनना शुरू तकर दिया था।

Thursday, July 3, 2025

शिक्षा और ज्ञान 374 (प्रचीन फारस-यूनान)

 एक पोस्ट पर कमेंट


490 ईशापूर्व डेरियस के नेतृत्व में फारस की सेना ने कई यूनानी नगर राज्यों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन 480 ईशापूर्व मैराथन की लड़ाई में फारस एथेंस से हार गया था। 431 ईशापूर्व फारस फिर यूनानी राज्यों पर काबिज होना चाहता था लेकिन एथेंस और स्पार्टा के सैनिक गठजोड़ से हार गया था। उसके बाद स्पार्टा और एथेंस में लंबी लड़ाई छिड़ गयी जिसका अंत स्पार्टा की जीत में हुआ। स्पार्टा की मदद से धनिकतंत्र के नेताओं ने जनतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंका और निरंकुश धनिकतंत्र स्थापित किया जिसे 30 निरंकुशों का शासन कहा जाता है। इनमें प्लैटो का चाचा भी था, उसे भी सरकार में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उसने मना कर दिया। 4 सालों में दूसरे राज्यों में निर्वासित जनतांत्रिक नेताओं ने शक्ति अर्जित किया और धनिकतंत्र को उखाड़ फेंका तथा फिर से जनतांत्रिक सरकार की स्थापना किया। धनिकतंत्र की सरकार में सुकरात के भी कई चेले थे, इसीलिए सुकरात पर जनतांत्रिक नेता एनीटस ने नास्तिकता फैलाने तथा ईशनिंदा का फर्जी मुकदमा दायर किया और न्यायिक सभा में बहुमत ने सुकरात को मृत्युदंड दिया।

मार्क्सवाद 354 (रूसो)

 एक पोस्ट पर कमेंट


1750 में फ्रांस की प्रतिष्ठित दिजों अकेडमी ने इसी विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता विज्ञापित की । "क्या विज्ञान और कला की बहाली नैतिकताओं के शुद्धिकरण में सहायक रही है?" हवा को पीठ न देने वाले भावी दार्शनिक रूसो अखबार में यह विज्ञापन पढ़कर रो पड़े थे। जैसा कि वे अपनी आत्मकथा, 'इकबालनामा (Confessions)' में लिखते हैं कि यह विज्ञापन पढ़ते ही उन्होंने एक अलग दुनिया दिखने लगी, वे एक अलग इंसान बन गए। इस निबंध ने रूसो का कायापलट कर दिया, उन्हें दुनिया के जाने-माने विद्रोही दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया और वे आजीवन मनुष्यता को सभ्यता की विध्वंशक प्रवृत्तियों के बारे में आगाह करते रहे। रूसो ने लिखा कि कला और विज्ञान के साथ नैतिकताओं में विकृति आना शुरू हुई। यह रूसो का 'पहला विमर्श' कहलाता है। इस निबंध को पहला पुरस्कार मिला और पुरस्कार राशि से उन्हें काफी राहत मिली। वे निबंध से उतने नहीं मशहूर हुए जितने उसकी आलोचनाओं और उनके जवाब से। कुछ साल बाद उन्होंने फिर एकेडमी की निबंध प्रतियोगिता में शिरकत की इस बार उनका निबंध पुरस्कृत नहीं हुआ लेकिन इसने उनके भविष्य के दार्शनिक जीवन की बुनियाद डाली। यह निबंध असमानता पर था। यह दूरा विमर्श या असमानता पर विमर्श नाम से जाना जाता है। समानता के बिना स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं। इसी लिए वे अपनी कालजयी कृति, 'सामाजिक अनुबंध (सोसल कॉन्ट्रैक्ट)' इस वाक्य से शुरू करते हैं, "मनुष्य पैदा स्वतंत्र होता है लेकिन जंजीरों में जकड़ा हुआ पाता है"। दुर्भाग्य से वह इन जंजीरों को माला समझ सहेजता है। बाभन से इंसान बनना इन्हीं जंजीरों से मुक्ति का मुहावरा है।

मार्क्सवाद 353 ( इतिहास)

 एक पोस्ट पर एक कमेंट:


इतिहास में क्या होता तो क्या होता, की बहस निरर्थक है, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन ने जिस बात पर इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त किया वह आज के संदर्भ में कोई मुद्दा ही नहीं होता जब चुनाव आयोग ही सरकार का पट्टाधारी बना हुआ है। लोया ने तो मोदी को नहीं अमित शाह को भी सजा नहीं दिया था, बस क्लीन चिट देने से इंकार किया था। वैसे कोर्ट ने इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट जाने का समय दिया था, फैसले के स्टे होने की पूरी संभावना थी। लेकिन न्यायिक संकट को साथ राजनैतिक संकट भी जुड़ गया था। बिहार छात्र आंदोलन ने राजनैतिक रूप से अप्रासंगिक होकर राजनैतिक वनवास झेल रहे जेपी को नायक बना दिया तथा महानायक बनने के लिए उन्होंने सेना से बगावत की गुहार लगा दी। आज कोई नेता किसी नुक्कड़ सभा में ऐसी बात कह देता तो संवैधानिक प्रावधानों का सहारा लेकर उसकी गिरफ्तारी की नौबत ही नहीं आती, देशद्रोही घोषित कर भक्त उसे वहीं लिंच कर देते। आपकी बात में भी दम है कि फैसले के बाद इस्तीफा देकर इंदिरा जी को संजय गांधी को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए था, कांग्रेस के 350 सांसद वफादार सिपाहियों की तरह संजय का जयकारा करते। तुर्कमानगेट जैसे कांडों के डलते आरएसएस भी समर्थन देता और न इमर्जेंसी लगती न जनता पार्टी बनती, हो सकता है संजय गांघी मोदी सा ही तानाशाह होता, लेकिन आरएसएस सा फासिस्ट सामाजिक आधार न होने से फासिस्ट न बन पाता। वैसे मैं भी उस समय इंदिरा-संजय का कट्टर विरोधी था। न जेपी भ्रमित संपूर्ण क्रांति का नारा उछालकर महानायक बनते न आरएसएस की सांप्रदायिकता को सामाजिक स्वीकृति मिलती। लेकिन क्या होता तो क्या होता बेकार की बात है, जो हुआ वही होता।

शिक्षा और ज्ञान 373 ( विज्ञान)

 विज्ञान के विद्यार्थियों के धार्मिक होने की एक पोस्ट पर 3 कमेंट के साथ नई शिक्षा नीति पर 5 साल पहले लिखाया लेख


मुझे जब कोई अवैज्ञानिक तेवर में कुतर्क करता मिलता है तो पूछ लेता हूं, विज्ञान के विद्यार्थी रहे हो? ज्यादातर मामलों में जवाब सकारात्मक मिलता है। दरअसल, विज्ञान विज्ञान की तरह नहीं, कारीगरी (स्किल) की तरह पढ़ाया जाता है।

हम लोगों को तोता बनाने की पढ़ाई कराई जाती थी, नई शिक्षा नीति में गधा बनाने की, इन बच्चों को इंसान बनने के लिए हमलोगों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।

हम हॉस्टल के वार्डन थे तो परीक्षा के दिन यदि 10 बच्चे बगल के कॉलेज के पास मंदिर में हनुमानजी का आशिर्वाद लेने जाते दिखते थे तो उनमें 7 विज्ञान के होते थे और 7 विज्ञान वालों में 5 भौतिकशास्त्र के। भौतिकशास्त्र करण-कारण (कॉज-इफेक्ट) फ्रेमवर्क के बाहर किसी भी बात का संज्ञान नहीं लेता; किसी भी चीज का संज्ञान तभी लेता है जब उसमें भौतिकता हो, किसी बात को तभी मानता है जब वह प्रमाणित हो। हमारे भौतिकशास्त्र के गुरुजी 3 फुट लंबा त्रिपुंड लगाकर घूमते हैं, प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी ज्योतिषी के कहने पर किसी बालटी बाबा को 6 पैर के बकरे की तलाश का ठेका दिए थे।

बेतरतीब 172 (जन्मदिन)

 परसों रात से आज तक, फोन, व्हाट्सअप और फेसबुक पर इतनी बधाइयां और शुभकामनाएं मिलीं कि दिल गदगद हो गया। सब मित्रों का दिल से आभारी हूं। ल मैंने जीवन के 70 वर्ष पूरे कर लिए, और पलटकर देखता हूं कि अपनी शर्तों पर जीने के अलावा कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया। वैसे तो जीवन का कोई जीवनेतर उद्देश्य नहीं होता, एक अच्छी जिंदगी जीना अपने आप में संपूर्ण उद्देश्य है। अब बाकी बची जिंदगी में कोशिश करूंगा कि पिछले कामों को संकलित करूं और जो भी हो सके नया करूं। मेरे लिए अच्छी जिंदगी का मतलब करनी-कथनी में एकता स्थापित करना या यों कहें कि सिद्धांतो को जीना। रूसो अपनी कालजयी कृति सोसल कांट्रैक्ट की बहुत छोटी सी भूमिका में लिखते हैं कि वह अपनी शक्ति की सीमाओं के जाने बिना इसे राजनीति पर एक बृहद काम के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन वही हो सका। मैंने सोचा था जीवन में क्रांति करना है, लेकिन क्रांति तो एक अनवरत प्रक्रिया है और इतिहास क्रांति-प्रतिक्रांति का चक्र है। युवावस्था की शुरुआत में क्रांति की संभावनाएं सामने थीं और आगे बढ़ते बढ़ते प्रतिक्रांति शुरू हो गयी, इतिहास ने खतरनाक यू टर्न ले लिया। कुछ मित्र आत्मकथा लिखने का आग्रह करते हैं, मैं कहता/सोचता हूं कुछ उल्लेखनीय तो किया नहीं फिर सोचता हूं उल्लेखनीय करने वालों की जीवनी तो और लोग भी लिख देंगे साधारण लोगों को खुद लिखना पड़ता है। इस लिए आत्म कथा तो नहीं सोसल मीडिया पर बेतरतीब संस्मरण लिखता रहता हूं, जिनकी बेतरतीब शीर्षक से श्रृंखला अपने ब्लॉग RADICAL (ishmishra.blogspot.com) में सेव करता रहता हूं जिन्हें तरतीबवार करना बहुत मुश्किल है, हां यदि तरतीबवार आत्मकथा लिखना हो तो उनमें से कुछ कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है।


आखिर में एक बार फिर से सभी मित्रों का हार्दिक आभार