हम तो जब इवि में पढने आए तो जानते
ही नहीं थे कि जेएनयू नाम की कोई यूनिवर्सिटी है। फिर सुनने में आया कि दिल्ली के
बाहर अरावली की पहाड़ियों में रईसों के बच्चों के बौद्धिक विलास के लिए इंदिरा
गांधी ने विदेशी भाषाओं का विवि खोला है। जब इवि के सीनियर डीपी त्रिपाठी (
वियोगी) ( दिवंगत) छात्रसंघ के अध्यक्ष बने तब पता चला कि और विषय भी पढ़ाए जाते
हैं। आपात काल में एक सूखद संयोग से भूमिगत रहने की संभावना तलाशते दिल्ली और
त्रिपाठी जी की तलाश में जेएनयू पहुंच गया और पाया कि यहां कि जनतांत्रिक शैक्षणिक
संस्कृति इसे संकीर्ण, सामंती संस्कृति के इवि से अलग करती है। लेकिन जो खुद कुछ
नहीं करेंगे पूछते फिरेंगे जेएनयू वाले क्या कर रहे हैं? उतने ही बड़े
रामआसरे उच्च विद्यालय के बारे में नहीं पूछेंगे। उसके बारे दुष्प्रचार के बावजूद
अपेक्षा क्यों? वह है क्या?
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