Monday, February 29, 2016

सीता और राम

सीता पीड़ित नारी उत्पीड़क मर्दवादी राम
दोनों का रिश्ता है स्वामी दास समान
हो नहीं सकती हृदय की एकता शोषित-शोषक के बीच
शोषण को महिमामंडित करते हैं अब भी बहुत से नीच
भारोत्तोनल की प्रतियोगिता में राम गया जो जीत
पा गया उपहार में सीता सी बेशकीमती चीज
बुढ़ापे में हुई थी जब उसके बाप को जवान बीबी की लालसा
केकेयी को दिया राजनैतिक बरदान बैंक के ब्लैंक चेक सा
किया इस्तेमाल उसने जब प्रणय के वर का इस्तेमाल
उठाया उसने अपने बेटे की गद्दी की दावेरी का सवाल
दशरथ को था इस दावेदारी का पहले से ही एहसास
बनाया जब युवराज राम को भरत था मामा के पास
फेंका तब कैकेयी ने अपना तुरुप का पत्ता
मांगा उसने भरत के लिए अयोध्या की सत्ता
सत्तापलट की राजवंशों में रहा है पुराना चलन
मांगा कैकेयी राम के वनवास का दूसरा वचन
सत्ताच्युत राम को भी आ गयी यह बात
अर्जित कर शक्ति करेगा गद्दी पर घात
ले गया सीता को भी जंगल में अपने साथ
उसीके बहाने करना था जो रावण पर घात
मिली जंगल में उसे सूर्पणखा सी सुंदरी
नाक-कान काट उसके रची रावण से दुश्मनी
दोनों की संस्कृतियों में था एक फर्क बुनियादी
एक में खतरनाक मानी जाती नारी की आज़ादी
दूजा देती थी नारी को भी प्रणय निवेदन की आज़ादी
लक्ष्मण से कहा देने को पौरुष की मिशाल
काट दिया जिनने सूर्पणखा के नाक-कान
करने को पीछे आदिवासी वानर सेना लामबंद
मिल संग सुग्रीव के खोलने लगा बानरों के पैबंद
झोंकना था अपने युद्ध में उसे सुग्रीव समर्थक वानर
कत्ल किया बालि को छिप कर कायरों की तरह
किया लंका पर विभीषण से गद्दारों मिल हमला
छल-कपट के सास्ते जब उसे जीत का फल मिला
बोला तब सीता से नहीं किया रक्तपात उस सी नारी के लिये
यह भीषण रक्तपात था रघुकुल की नाक की रखवाली के लिए
उसे अब पवित्रता की अग्नि परीक्षा देनी होगी
पतिव्रतत्व के मर्दवाद की रक्षा करनी होगी
खोज रहा था सीता से छुटकारे के तरीके
उंगली उठवाया सीता के चरित्र पर एक धोबी से
इज्जत उछाला सीता की भरे राजदरबार में
निकाल दिया महल से मारकर लात
मर्दवाद में नदारत हैं गर्भवती से हमदर्दी की बात
बदला हुआ है मगर आज का सीताओं का आचार
उठा लिया है उनने प्रज्ञा का अमोध हथियार
है सूर्पनखा पर उठते हाथ काटने को तैयार
(बस ऐसे ही)
(ईमिः29.02.2016)

ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है

बेमुखालिफ़ ज़ुल्म बढ़ता ही जाता है
ज़ालिम खुद को क़ौम का खुदा बताता है
मनुस्मृति को ज्ञान का सागर कहता है
अफवाहों से करता वह संसद को गुमराह
हो मुदित भक्तगण करते वाह वाह
मगर जब भी ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है
हिटलर को मांद में छिपकर मरना पड़ता है
लेकिन न्यूटन का नियम हर बात पर लागू होता है
हालात बदलने को जोर लगाना पड़ता है
ज़ुल्म भी खुद-ब-खुद नहीं मिटता मिटाना पड़ता है
कन्हैया-उमर-अनिर्बन बनना पड़ता है
जेयनयू के क्रांतिकारी साथियों को लाल सलाम
(ईमि-28.02.2016)

लड़खड़ाने में खतरा है गिर जाने का

लड़खड़ाने में खतरा है गिर जाने का
कसम तोड़ना है पर्याय मात खाने का
जब भी तोड़ा जाता हैै दानिशमंद का कलम
फैलता है क़ौम में जहालत का गुमान-ओ-वहम
टूटने से कलम खामोश नहीं होता है
बुलंदी से इतिहास को आवाज़ देता है
सुकरात-भगत-चे-कन्हैया बन जाता है
शहादत से इंकिलाब का परचम फहराता है
(ईमिः29.02.2016)

Saturday, February 27, 2016

जेयनयू तथा देशद्रोह

 26.02.2016
  जेयनयू तथा राष्ट्रद्रोह
ईश मिश्र
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद सरकारी मिलीभगत से  विश्वविद्यालयों पर बढ़ते भगवा हमले को देखते हुए आरयसयस शब्द हिटलर के यसयस (युनिस्टोंस) के आतंक की याद दिलाने लगा है. अजीब समानता है कई घटनाक्रमों में. एक एबीवीपी का नेता हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट असोसिएसन(एयसए) के कुछ छात्र नेताओं की शिकाय़त करता है. हैदराबाद में आरयसयस के प्रचारक रहे, केंद्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय मानव संसाधन मंत्री को चिट्ठी लिखते हैं तथा मानव संसाधन मंत्री विश्वविद्यालय कुलपति को. विश्वविद्यालय प्रशासन रोहित वेमुला समेत एयसए के 6 छात्रों को हॉस्टल से निष्कासित कर उन पर कई संस्थानिक प्रतिबंध थोप दिये. निष्कासित विद्यार्थी परिसर में ही खुले आसमान के नीचे बाबा साहब की तस्वीर के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. लेखक बनने की चाह रोहित ने एक खत में समेट कर भविष्य के रोहितों के लिए एक संभावित लेखक की बलि दे दी. फगवा ब्रिगेड को रोहित की संस्थानिकहत्या मंहगी पड़ी. उसकी शहादत ने सारे मुल्क में हड़कंप मचा दिया. देश भर के विश्वविद्यालय परिसरों में एक मंच से जय-भीम तथा लाल-सलाम के नारों की निरंतरता ने ब्राह्मणवादी हिंदुत्व को बेचैन कर दिया. छात्रों का कोई समूह अफजल गुरू की फांसी पर सभा के  वैधता के संकट में एजेंडे का विषयांतर शासक वर्गों की पुरानी चाल रही है. जेयनयू वैसे भी संघ गिरोह के आंखों की किरकिरी रहा है.  एक तीर से दो शिकार एबीवीपी के एक सदस्य की शिकायत पर विद्यार्थियों के एक समूह को कार्यक्रम की नामंजूरी तथा जैसा कि कहा जा रहा है एबीवीपी घुसपैठियों द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजी. जाली वीडियो का प्रशारण तथा पुलिस कार्रवाई. पुलिस-प्रशासन संघ के विभिन्न संगठनों से सांठ-गाठ कर दूसरे संगठनों के कार्यक्रमों पर हमले कर रहा है, उसी तरह हिटलर के तूफानी दस्ते, यसए तथा जर्मन पुलिस की मिलीभगत से राजनैतिक विरोधियों खासकर कम्युनिस्टों के सफाये का अभियान चलाते थे.


जेयनयू पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था. देश के गृहमंत्री ने विश्वविद्यालय को देश-द्रोह का अड्डा घोषित कर दिया तथा स्मृति इरानी ने तुरंत परिसर से देशद्रोहियों के सफाया का ऐलान कर दिया. छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत जेयनयू के अलग-अलग धाराओं के तीन वामपंथी छात्र कई दिनों से पुलिस हिरासत में हैं. लेख लिखे जाने तक वांछित चार अन्य वहां पहुंच जायेंगे. आरोप है कि वे कश्मीर की आजादी जैसे राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहे थे. प्रेस क्लब में कश्मीर पर प्रो गिलानी की मीटिंग के लिए हॉल बुक करने के लिये, प्रगतिशील लेखक संघ के राष्टीय सचिव प्रो अली जावेद को 2 दिन घंटो बैठाकर पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित किया गया. यहां भी कुछ लोग, जेयनयू की ही तरह कश्मीर की आज़ादी के नारे लगा कर चले गये. अली जावेद सीपीआई के हैं तथा कन्हैया सीपीआई की छात्र शाखा का एआईयसयफ का सदस्य है. सीपीआई का कश्मीर पर वही पार्टी लाइन है जो सरकार की. हमारा मानना है कि जनतंत्र में हर आवाम को आत्मनिर्णय का अधिकार होना चाहिये क्यों फौज के बल पर उस पर हमेशा के लिए काबिज नहीं रहा जा सकता. जेयनयू का तांडव तथा देशद्रोह का शगूफा रूपये तथा प्रधानमंत्री की गिरती शाख एवं विकास की खुलती पोल से ध्यान बंटाने और रोहित की शहादत से उमड़े विरोध में जयभीम तथा लालसलाम के सम्मिलित नारे की धार को कुंद करने की पूर्व नियोजित साजिश लगती है.

जेयनयू पर हमला, अध्ययन-मनन, विचार-विमर्श, वाद-विवाद-संवाद, शोध-अन्वेषण के जरिये नवीन विचारों तथा तर्क-विवेक आधाररित विश्वदृष्टि के निर्माण के केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय की अवधारणा पर हमला है. विश्वविद्यालय का काम भक्तिभाव नहीं तार्किक मानस का निर्माण करना है, विद्रोही भाव जगाना है जो बासी पुरातन की नवीन की रचना कर सके, प्रगतिशील विकल्प ढूढ़ सके. जैसे कोई अंतिम सत्य नहीं है वैसे ही कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता. ज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसके चलते मानव इतिहास पाषाण युग से अंतरिक्ष युग तक पहुंच सका. सारी महानताएं तथा परम ज्ञान अतीत में ढूंढ़ना, वर्तमान की समस्याओं से मुंह चुराना तथा  भविष्य के ख़िलाफ साजिश है. जेयनयू इस साज़िश को नाकाम करने का मजबूत गढ़ है, इसीलिए हर तरह के दक्षिणपंथी तथा कट्टरपंथी इस गढ़ को ढहाने के उपक्रम करते रहे हैं लेकिन इसकी जमीन में तर्क-विवेक-विद्रोह के बीज इतनी गहराई तक हैं कि कुतर्क तथा दुराग्रह-पूर्वाग्र जनित सरकारी हमलों से यह गढ़ ढह नहीं सकता. 

देशभक्ति (पैट्रियाटिज्म या नेसनलिज्म), जिसे एंडरसन ने हरामखोरों का पनाहगाह बताया है, एक आधुनिक विचारधारा तथा अस्मिता का नया मानदंड है जो प्रबोधनकाल में राजवंशों के शासन तथा प्रजा की वफादारी की दैविक वैधता के विनाश के बाद अस्तित्व में आया. वैधता के स्रोत के रूप में रूप ईश्वर उसकी विचारधारा के रूप में धर्म की मान्यता अमान्य होने के बाद सामंतवाद के खंडहर पर निर्मित  संवैधानिक, पूंजीवादी राष्ट्र–राज्य की वैधता का श्रोत इसके जैविक बुद्धिजीवी, उदारवादी चिंतकों ने व्यक्तियों में आरोपित किया, यद्यपि व्यक्ति संप्रभुता का सैद्धांतिक स्रोत बना रहा क्योंकि मतदान से वह अपनी संप्रभुता सरकार को हस्तांतरित कर देता है. रूसो ने इस प्रतिनिध्व के जनतंत्र की जगह सहभागी जनतंत्र तथा धर्म की जगह नागरिक धर्म का सिद्धांत दिया. सर्वसहमति से बने कानून के पालन को नागरिक धर्म बताया. प्रसिद्ध इतिहासकार हाबरमास ने आधुनिक राष्ट्र राज्य देशभक्ति को संविधान के प्रति निष्ठा के रूप में परिभाषित किया. संप्रभुता संविधान में निवास करती है न कि सरकार में, या बहुसंख्यक समाज की प्रथाओं, मान्यताओं में और न ही किसी खास धर्मिक-मिथकीय संस्कृति में. मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी ने संसद में एक दुर्गाभक्त होने के नाते जेयनयू में 2013 में महिषासुर आयोजन को देशद्रोह बताया. एबीवीपी के सदस्यों ने इस पर भी हुड़दंग किया था. इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे लोग अगर संविधान के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हों तो देश का दुर्भाग्य है. भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है. मिथकों के सबके अपने अपने आन ख्यान हैँ. बंगाल, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश एवं बिहार की कैमूर पहाड़ियों की कई जनजातियों के आख्यान में महिषासुर न्यायप्रिय असुर राजा था जिसे देवताओं ने छल-कपट से मार दिया था. इन समुदायों में महिषासुर ऐसे ही पूजा जाता है जैसे ऋग्वैदिक आर्यों के वंशजों में दुर्गा. हर समुदाय को अपनी सास्कृतिक गतिविधियों का संवैधानिक अधिकार है. ये समुदाय सांस्कृतिक स्वतंत्रता के अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग कर संविधान के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करते हैं. उनके संवैधानिक अधिकारों मे विघ्न डालने वाले संविधान का अपमान करते हैं अतः देश द्रोही हैं. देश द्रोही महिषासुर उत्सव मनाने वाले नहीं बल्कि धर्मोंमाद फैलाकर उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करने एबीवीपी के लोग ही नहीं संसद में संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली समृति इरानी है. देशद्रोही भाजपा का  वह मर्दवादी महासचिव है जो राज्य सभा के एक सांसद को आंदोलन में शिरकत करने के लिए अपनी बेटी को गोली मारने की हिदायत देता है. गुजरात नरसंहार के लिए ही नहीं, नरेंद्र मोदी को संविधान के प्राक्कथन की धर्म निरपेक्ष राज्य की अवधारणा की धज्जियां उड़ाते हुए खुद को हिंदू राष्ट्रवादी घोषित करने के लिये देशद्रोह में जेल में होना चाहिये. इफरात बच्चे पैदा करने की सलाह देने वाले साक्षी महराज तथा हर बात पर मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने या हिंद महासागर डुबाने की धमकी देने आदित्यनाथ जैसे लंपट सांसद देश द्रोही हैं, अभिव्यक्ति तथा सभा के संवैधानिक मौलिक अधिकारों का उपयोग करने वाले जेयनयू के छात्र. संविधान के धर्मनिरेक्ष चरित्र तथा कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक अधिकार की धज्जियां उड़ाते हुए मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने की बात करने वाला वह केंद्रीय मंत्री, जो लगातार संविधान की धज्जियां उड़ाता रहा है, देशद्रोही है न कि विरोध के संवैधानिक अधिकार का उपयोग कर संविधान को प्रति निष्ठा जताने वाले देशभक्त विद्यार्थी. मोदी सरकार अपने साम्राज्यवादी आकाओं से उच्च शिक्षा को गैट्स में शामिल करने पर सहमति का वाय़दा कर चुकी है, ऩई उच्च शिक्षा नीति तथा विश्वविद्यालयों पर हमला उच्च शिक्षा को खरीद-फरोख्त का माल बनाकर विश्व बैंक को गिरवी रखने का पथ प्रशस्त करने के कदम हैं. जेयनयू के छात्र सरकार की साम्राज्यवादी साजिशों के विरोध के प्रमुख किरदार हैं, इस लिये युवा उमंगों को हतोत्साहित करने का यह कायराना हमला. संविधान का अपमान करने वाले ये दक्षिणपंथी उग्रवादी, देशद्रोही अब देशभक्ति की सनद बांट रहे हैं. अंधेर नगरी, देशद्रोही राजा.     
   
शासक वर्ग समाज के प्रमुख अंतरविरोधों को दबाने के लिये कृतिम अंरविरोधों का हव्वा खड़ा करता है तथा कई बार कामयाब भी होता है. संघ संचालित मोदी सरकार अपनी आर्थिक विफलताओं तथा विश्वबैंक के सम्मुख समर्पण की राष्ट्र राष्ट्रविरोधी नीतियों से ध्यान हटाने के लिये संघ के विभिन्न गिरोहों के अंध-राष्ट्रवाद तथा धर्मोंमाद के मुद्दे निर्मित करती रही है. संघ गिरोहों द्वारा पनसारे, डाभोलकर, कलबुर्गी तथा अखलाक की हत्याएं, इसी रणनीति का हिस्सा लगती हैं. कलबुर्गी तथा अखलाक की हत्याओं के विरुद्ध दुनिया के लेखकों, साहित्यकारों, विद्वानों की आवाज़ आवाम तक पहुंचने लगी थी तो दक्षिणपंथी उग्रवाद को लगने लगा कि चुन-चुन कर तर्कशील चिंतकों की हत्या से धर्मोंमाद की नीति हानिकारक हो रही थी. तब इसने राष्ट्रोंमाद फैलाने का सहारा लिया. रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या कर दी, देशद्रोह का आरोप लगाकर. रोहित का अपराध यह ही नहीं था कि वह दलित था बल्कि वह एक चिंतनशील नागरिक था जिसका तथा जिसके संगठन अंबेडकर स्टूडेंट असोसिएसन के सरोकारों का संसार दलित मुद्दों तक नहीं सीमित था, व्यापक था. एबीवीपी की धमकियों की परवाह न कर वह अभिव्यक्ति की आज़ादी की हिमायत में मुज़फ्फरनगर बाकी है की स्क्रीनिंग करवाता है. गौरतलब है कि दिल्ली तथा कई जगहों पर एबीवीपी के हुड़दंग के चलते ये फिल्म नहीं दिखाई जा सकी थी. वह दुनिया के तमाम और लोगों की तरह फांसी की बर्बर सजा का विरोधी था, चाहे वह याकूब मेमन की हो या बाबू बजरंगी की. वह साम्राज्यवादी, भूमंडलीय पूंजी की दलाली का विरोधी था.  कहने का मतलब कि वह अन्याय के विरुद्ध सभी संघर्षों से सरोकार रखता था.

प्रतिष्ठानात्मक ब्राह्मणवाद अंबेडकरी रामों(राम अठावले, राम विलास, उदिक(राम राज) जैसे भक्त दलित बर्दाश्त कर सकता है, रोहित जैसा संघर्षशील, चिंतक दलित नहीं. स्मृति इरानी ने राष्ट्रवादी झूठ बोला कि रोहित दलित नहीं ओबीसी था. जैसे कि किसी ओबीसी की सांस्थानिक हत्या कम आपराधिक हो? कुछ संगठिदलित मानव संसाधन मंत्रालय का ब्रह्मांड ऐसे हिलने लगा जैसे संबूक की तपस्या से, राम के दरबार का ब्रह्मांड हिल गया था तथा भरत, हनुमान जैसे सेवकों को भेजने की बजाय स्वयं जाना पड़ा था उनका बध करने. इन एकलव्यों का अंगूठा काटने के निर्देश के कई पत्र हैदराबाद केंद्रीय विवि के द्रोणाचार्यों को लिखा. रोहित नामक इस एकलव्य अंगूठा तो नहीं दिया लेकिन द्रोणाचार्यों की ब्राह्मणवादी हिमाक़त के विरोध में जान देती.  शहादत ने उंनीदे शेरों को जगा दिया. देश-विदेश के परिसरों में छात्र-शिक्षक रोहित की शहादत के सम्मान में उद्वेलित हो गये. एक ही मंच पर लाल तथा नीले झंडे लहराने लगे तथा जयभीम और लाल सलाम के नारे साथ साथ लगने लगे. दक्षिणपंथी उग्रवाद बौखला गया. जेयनयू ऑक्युपाई यूजीसी आंदोलन के सा इस विरोध प्रदर्शन का भी का केंद्र बन गया. यहां की विचार-विमर्श तथा वाद-संवाद की संस्कृति भक्तिभाव तथा अधदेशभक्ति के विकास के प्रतिकूल है. इस लिये यह हर किस्म के दक्षिणपंथियों की आंख किरकिरी रहा है. मौका पाकर हमला कर दिया. लेकिन वहां की माटी में तर्क, विवेक, विद्रोह के इतने बीज पड़े हैं कि यह हमला संघी फासीवाद के अंत की शुरुआत साबित होगा.   


दक्षिणपंथी, उग्रवादी अपवादों को छोड़कर दुनिया का समूचा बौद्धिक वर्ग जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेयनयू) के साथ खड़ा है. उस जेयनयू के साथ जो शाखाप्रशिक्षित गृहमंत्री को देशद्रोह का अड्डा नज़र आता है और जिसे सास-बहू सीरियल से राजनैतिक प्रशिक्षण पाने वाली मानव संसाधन मंत्री देशद्रोहियों से मुक्त करने का ऐलान कर देती हैं. जेयनयू में एबीवीपी के प्रचारप्रमुख रह चुके, विकास पाठक ने सरकारी दमन का निंदा करते हुये जेयनयू को विचार-विमर्श का केंद्र बताने साथ खुद को सजग नागरिक बनाने का श्रेय जेयनयू को दिया है. एबीवीपी जेयनयू के दो नेताओं ने संगठन से इस्तीफा दे दिया. कहने का मतलब कि जेयनयू के जनतांत्रिक शैक्षणिक संस्कृति में कुछ खास बात है जो दक्षिणपंथी उग्रवादियों के भक्तिभाव में भी सेंध लगा देती है, उनमें भी सवाल का साहस तथा सोचने की शक्ति भर देती है. यह खास बात भगवान, भूत या देशभक्ति की तरह कोई अदृश्य, अमूर्त, दार्शनिक अवधारणा नहीं बल्कि विचार-विमर्श तथा संघर्षों से ऐतिहासिक रूप से निर्मित विरासत है. इस विरासत से घबराकर  संघ संचालित मोदी सरकार ने जेयनयू पर युद्ध थोपकर दुनिया दो खेमों में बांट दिया ---  तर्क तथा विवेक का खेमा और कुतर्क तथा धर्मोनमादी अंध-देशभक्ति का. नॉम चॉम्स्की समेत विश्व 96 जाने-माने विद्वान इस युद्ध की कड़ी भर्त्सना करते हुए पत्र लिख कर ज्ञान के इस केंद्र को नष्ट होने से बचाने का भारत के राष्ट्रपति से आग्रह किया है. ऐसा ही पत्र जेयनयू की जनतांत्रिक विरासत के निर्माण के सहभागी रहे, ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज जैसे नामी गिरामी विश्विद्यालयों में पढ़ा रहे 556 शिक्षाविदों ने विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखा. 15 अक्टूबर को युवा उमंगों की 3 किमी लंबी कतार जयभीम लाल सलाम के नारों के साथ, दमन से बेपरवाह जंगे-आज़ादी के नग़में गा रही थी. सबके सब देशद्रोही? 18 अक्टूबर को तो देशद्रोहिओं के समर्थन में लगा पूरा शहर ही उमड़ पडा. पिछले 30 सालों का सबसे बड़ा मार्च. सब देशद्रोही हैं. सरकार देशद्रोह का हौव्वा खड़ाकर, सवाल की संस्कृति के इन साहसी सिपाहियों को गिरफ्तार कर परिसरों में भय का माहौल खड़ा करना चाहती है लेकिन इतिहास बताता है कि किसी भी तानाशाही का शिक्षा संस्थान पर हमला आत्मघाती साबित होता है.

गोर्की का मदर दूसरी बार पढ़ा. महान रचनाओं की खासियत है कि जितनी बार पढ़िये तो पहली बार जैसी लगती है, उसी तरह जैसे महान फिल्में जितनी बार देखिये पहली बार सा ही सुख मिलता है. लगभग 40 साल पहले जब आपात काल के दौरान पहली बार पढ़ा तो बिल्कुल समकालिक लगा था. इस बार भी. मौजूदा घटनाक्रम से उपन्यास के दृश्य-पात्र आंखों के सामने सजीव हो उठे – कारिंदे, पुलिस, पहचान में आ जाने वाले सर्वव्यापी गुप्तचर, दमन-उत्पीड़न, मां, पावेल, निकोलाई, शाशा, येगोर इवानोविच, वह क्रांतिकारी डॉक्टर, मां का जेल में बंद बेटे पर असीम नाज़. सभी रचनाएं समकालिक होती हैं महाऩ रचनाएं सर्वकालिक हो जाती हैं. जेयनयू की घेरेबंदी तथा कुप्रचार से, बार बार दुहरा कर झूठ को सच बनाने वाले हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की याद तो आती ही है, लगभग 100 साल पहले की इस रचना की प्रासंगिकता भी साबित होती है. फर्क इतना है कि मदर का परिवेश क्रांति के पहले ज़ारशाही का था, आज जमाना मोदीशाही का है.

संविधान में निष्ठा को दर किनार करने वाले देशद्रोहियों के शासन में संविधान मे निष्ठा रखने वाले निर्दोष देशभक्तों की प्रताड़ना नई बात नहीं है, लेकिन ऐसे देशद्रोही अत्याचारी शासकों का दयनीय अंत होता है चाहे वह मुसोलिनी हो हिटलर या हलाकू. जेयनयू पर अपने वफादार कुलपति के जरिये पुलिस छावनी में तब्दील करने की असंवैधानिक, यानि देशद्रोही कार्रवाई के तुरंत बाद जांच की संवैधानिक औपचारिकताओं को धता बताकर पुलिस कार्रवाई के देशद्रोह के तुरंत बाद गृहमंत्री तथा मानवसंसाधन मंत्री के बैखलाहट के वबयानों तथा इनके उबाल की बेचैनी से साफ ज़ाहिर है कि योजना सत्ता के शिखर पर बनी.

जेयनयू मुक्त विचार-विमर्श के जरिये चिंतनशीलता को प्रोत्साहित करता है, जो भक्ति-भाव के प्रतिकूल रहा है. जेयनयू के प्रति दक्षिणपंथी उग्रवादियों की नफरत पुरानी है, मोदी के सत्तासीन होते ही वह नफरत मुखर आक्रामकता में बदल गयी. कोई मानसिक रोगी जेयनयू की बहादुर वीरांगनाओं को वेश्या से बदतर कहकर अपनी दक्षिणपंथी जहालत का परिचय देता है कोई भाजपा विधायक जेयनयू में इस्तेमाल कंडोमों की गिनती करके महान भारतीय संस्कृति की सेवा करता है तो कोई संविधानद्रोही यानि देशद्रोही केंद्रीय मंत्री मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने की माग करता है. जिन देशद्रोहियों को जेल में होना चाहिए वे देशभक्ति की सनद बांटते हुए, संविधान का सम्मान करने वाले देशभक्तों को देशद्रोही कहकर उन्हैं जेल भेज रहे हैं तथा यदि स्टिंग ऑपरेसन सही है तो ये देशद्रोही कानून हाथ में लेकर, इन क्रांतिकारी छात्रों की हत्या के फिराक़ में थे. जिन गुंडों ने संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए कायर कुत्तों की तरह पुलिस प्रश्रय 15 फरवरी को मीडिया और बुद्धिजीवियों पर तथा 17 फरवरी को कन्हैया पर जानलिवा हमला किया था, उनका सरगना गृहमंत्री का खास कृपा पात्र है. पुलिस प्रशासन तो संविधान का अपमान करने वाले इन देश द्रोही दक्षिणपंथी उग्रवादियों के नियंत्रण में है. लेकिन दरबार-ए-वतन में ये अपनी सजा से नहीं बच पायेंगे.   

पुलिस ने  9 अक्टूबर को जी न्यूज तथा टाइम नाऊ पर दिखाए गये जेयनयू में  पाकिस्तान ज़िंदाबाद जैसे देशद्रोह की नारेबाजी के एक वीडियो का स्वतः संज्ञान लेकर, देशद्रोहियोंकी तलाश में परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया. छात्रवासों पर छापे मारे गये. छात्रसंघ अध्यक्ष, कन्हैयाकुमार को देशद्रोह तथा अपराधिक साजिश की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया. आरोप साबित हुआ तो आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है.  

 इनकी बातों से आपको नाजी जर्मनी गोयेबेल्स तथा नाजी तूफानी दस्ते (यसय़स) की याद नहीं आती जिन्होने विश्वविद्यालयों तथा पुस्तकालयों को तहस-नहस किया? हिटलर की शह पर जिन्होने राइस्टाग (संसद) में आग लगाकर आरोप कम्युनिस्टों पर ललगा दिया तथा हिटलर कम्य़ुनिस्टों के संहार में जुट गया?  1933 में हिटलर अल्पमत की सरकार का नेता था कम्युनिस्टों के निष्कासन से संसद में नाज़ियों का बहुमत हो गया था. 2002 में गुजरात की सरकार की जनविरोधी नीतियों के के चलते भाजपा की लोतप्रियता रसातल को जा रही थी. उस समय भाजपा के कुछ सूत्रों के अनुसार, अडवाणी, प्रमोद महाजन तथा अरुण जेटली की पहल पर मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया. मोदी ने गोधरा के प्रायोजन के माध्यम से प्रदेश में क्रिया प्रतिक्रिया का माहौल बनाकर गुजरात में नरसंहार, लूट, आगजनी तथा फर्जी मुठभेड़ों के जरिये नफरत का माहौल खड़ा किया. धर्मोंमादी ध्रुवीकरण से सत्ता हासिल किया. 2014 के चुनाव के पहले शामली- मुज़फ्फर में इन्होने गुजरात दुहराने की कोशिस की तथा धर्मोंमादी ध्रुवीकरण में सफल रहे. कुतबा गांव में 8 हत्यायें हुईं. कुतबा में जनसंहार का नायक संजीव बालियान मोदी सरकार में मंत्री है. बिहार में दंगे करवाने में असफल इन्होंने दादरी रचा.  दादरी में गोमांस की अफवाह से अखलाक की पूर्वनियोजित हत्या से बिहार चुनाव पर असर न देख इन्होने दलितों तथा जेयनयू को निशाना बनाकर युद्धोंमादी ध्रुवीकरण से आसाम तथा अन्य राज्यों में चुनावी फसल काटना चाहते हैं. लेकिन कुछ लोगों को कुछ समय तक मूर्ख बनाया जा सकता है, सबको हमेशा के लिए नहीं.                                                


कैसी है यह देशभक्ति भागवत भाई

कैसी है यह देशभक्ति भागवत भाई
मर्दवादी विकृति जिसके पोर पोर में समाई
बोलती जय जो भार माता की
देती है वीरांगनाओं को संज्ञा वेश्या की
निक्कर पहन सुबह बंदे मातरम् चिल्लाते इसके ध्वजवाहक
रात को करते जेयनयू में कंडोम गिनने की कवायत
पेश करते हैं बालिका सशक्तीकरण का लेखा
खींचते हैं ललनाओं के लिए लक्ष्मण रेखा
ब्राह्मणवाद की जंजीरों से कसते जब दलित का गला
बयानबाजी में कह देते हैं दलित नहीं था रोहित वेमुला
दावानल की तरह फैल गया रोहित की शहादत का संदेश
जय भीम लाल सलाम के नारों से गूंज गया देश-विदेश
बन गया जेयनयू ज़ुल्म के खिलाफ जंग का किला
शुरू किया देशभक्तों ने इसकी बदनामी का सिलसिला
उमड़ रहा यह जो युवा उमंगों का सैलाब
कर देगा धर्मोंमादी छद्म देशभक्ति बेनकाब
(ईमिः26. 02.2016)

Friday, February 26, 2016

AGAINST SEDITION LAW

Janhastakshep, PUDR and PUCL

Cordially invite you to meeting on

THE RELEVNCE OF THE COLONIAL ACT OF SEDITION
AND ATTACK ON FREEDOM OF EXPRESSION AND RIGHT TO DISSENT

Date: 2nd March 2016

Time: 5 PM

Venue: Gandhi Peace Foundation

Deendayal Upadhyay Marg(Near ITO Metro Station)
New Delhi 110001

Speakers: Justice (Retd.) RS Singh
Justice (Retd.) Rajinder Sachchar
Pakaj Bisht (Editor, SAMAYANTAR)
Nivedita Menon (JNU)
Friends,
The ongoing attacks on constitutional, democratic rights are alarming. We, the democratic rights organizations are seriously concerned with the fascist attacks on right to thought, expression, association and dissent by invoking draconian Sedition Act, a colonial hangover. It is being invoked who ever dares to think and differ and has courage to express the difference. We demand scarping of this anti-national colonial Act, about which Amartya Sen rightly said, “We should not allow the colonial penal code that imposes unfreedoms to remain unchallenged. We should not tolerate the intolerance that undermines our democracy and facilitates a culture of impunity of tormentors.”

It is in this context we seek to initiate an ongoing discourse on attacks on institutions and ideas and on the need of scraping of draconian acts like the one in question that violate the natural and human rights to question, the key to any knowledge. We appeal you to join us in this discourse and ongoing struggle against the fascist designs of right extremism.

Sd sd Sd
Ish Mishra ND Pancoli Deepika
Janhastakshep PUCL PUDR
STAND WITH JNU
RESIST THE FASIST ATTACK ON RIGHT TO EXPRESSION
REPEL THE COLONIAL ACT OF SEDITION

STAND WITH JNU

RESIST THE FASIST ATTACK ON RIGHT TO EXPRESSION
REPEL THE COLONIAL ACT OF SEDITION

Fascists and demagogues so apprehensive of dissenting ideas and their expression that they begin their campaign by attacking universities and libraries through its paramilitary wings like Mussolini’s Black Shirts and Hitler’s Storm Troopers. MS Golwalkar, popularly known as Guruji in RSS circles, its biggest ideologue and the longest serving Sarsanghchalak, while dissuading the ‘Hindus’ from the freedom struggle, had also admired Hitler and pleaded to the ‘Hindus in Hindusthan’ to imitate him. His followers of today seem to have begun to implement his advice by attacking educational institutions and intellectuals since Modi’s ascendance to power at the centre. Its various fronts – ABVP, BJYM, VHP, BAJRANGDAL etc—are working in tandem are acting like Hitler’s storm troopers. Attack on JNU in the name of “antinationalism”, and arrest of young activists under the colonial Sedition Act, though not exactly but broadly compares with the NAZI clamp down on communists and other political opponents after stage-managed fire in the Reichstag (Parliament).  Attack on the intellectuals and students and JNUSU President charged with sedition on the basis of a doctored footage aired by the notorious news channels, Zee and Times Now smacks of long drawn conspiracy against India’s higher Education and suppression of dissent and right to expression and association. The way Rajnath and Smrti Irani enquired about the incident in few minutes and declared JNU, an abode of democratic academic culture not conducive for breeding the traits of devotion and communal superstitions. Umar Khalid, an authentic atheist, with Muslim name was immediately linked with militant groups of Kashmir and that he took training in Pakistan. Fascist rumor machine works very fast with dangerous consequences. The ire with which the Home and HRD ministers thundered with ultimatum of wipe out terrorism, the orchestrated declarations of  JNU being a breeding ground of anti-nationalism smacks of its planning at the highest government level. It is a dangerous omen. Academia and scholars world over are standing with JNU. An inadvertent consequence of its attack on the institutions beginning with ban on Phule-Periyar circle, IIT Madras; FTII; institutional murder of Rohit Vemula in HCU, Hayderabad up to JNU, has been deepening unity of Jay Bhim-Lal Salam slogans, a much awaited natural unity of the forces against social and economic inequality perpetuated by state apparatuses.

We, the democratic rights organizations are seriously concerned with the ongoing trend of fascist attacks on right to thought, expression, association and dissent and terrorizing the ideological opponents in to silence by invoking draconian Sedition Act, a colonial hangover, used by colonial rulers against those who were against the colonial tyranny. Now it is being invoked who ever dares to think and differ and has courage to express the difference. We demand scarping of this anti-national colonial Act. Amartya Sen raightly said, “We should not allow the colonial penal code that imposes unfreedoms to remain unchallenged. We should not tolerate the intolerance  that undermines our democracy and fecilitates a culture of impunity of tormentors.”

It is in this context we seek to initiate an ongoing discourse on attack on institutions and ideas and on the need of scraping of draconian acts like the one in question that violate the natural and human rights to question, the key to any knowledge. We appeal you to join us in this discourse and ongoing struggle against the fascist designs of right extremism. 



Sunday, February 21, 2016

Knowledge & Education 38

Lots of people have rendered this unsought advie removing Mishra from my name. I don't welcome unsolicited such advices, I carry it ince childhood -- Because I had no hand in where I was born and assessment of person on the basis of birth identity is key point of Brahminical ideology, who ever does that practices Brahmanism; because scientic comprehendibilty of reality and history is not biological attribute but result of socialization and creative, critical application of mind as even someone born as a Brahmin can comprehend the oppressive character of Brahmanism; because I want people to know the among those are my ancestors also who through policies of exlusion the country long economic-intellectuals stagnation of the society.

Knowledge & Education 37

The ignorant parents (most of) are the first culprit of making children robots and parrots by overe cariong, over protecting and over expecting; by not being democratic, at par (parity is not quantitative but qualitative concept) and transparently; by blunting the elements of innovation and rebelion in the name obedience, Sanskar and displine; and most importantly by not repecting child wisdom and child right in and by abogating their right to independent thinking..Most of them unknowingly, instill their insecurities into their children want to realize their unfufilled desires through them. They want to make best out of their children by doig everything to enable them to mint money without any consideration of the fact that for one life time you do not need ubundance but sufficient only.Children are intelligent, keen observers and quick learners, parents have to instill values in them by example in the same way as a teacher has to teach by example. I tell my students that unlearning is as important constituent of knowledge process as learning. Many people do not undergo the process of unlearning and remain half educated.

Saturday, February 20, 2016

ज़ंग-ए-आज़ादी

मुल्तवी करता हूं अभी लिखना नग़्में और अफ्साने
वक़्त है ये लिखने का दीवारों पर ज़ंग-ए-आज़ादी के नारे
(ईमिः20.02.2016)

वर्णाश्रम की कब्र

वर्णाश्रम की कब्र खुदेगी जेयनयू की पहाड़ी में
बौखला गया है जो लाल-ऩीले झंडों की एका से
बम गोलों से नहीं दबेंगी उमड़ती युवा उमंगें
जय भीम लाल सलाम के नारों से आसमां रंग देंगे
तक़लीफों की चिंगारी बनेगी दावानल
ख़ाक हो जायोंगे फिरकापरस्ती के महल
अरावली की पहाड़ियों से निकला है जो जनसैलाब
दुनिया भर में फैल रहा है उसका इंकिलाबी आब
मार कर रोहित को प्रफुल्ल हुआ ब्राह्णणवाद
जाना नहीं मगर वह कि कर रहा है आत्मघात
साथ लगने लगे नारे जय-भीम और इंकिलाब जिंदाबाद
देख यह जुझारू एकता हो गया उसे मानसिक सन्निपात
करने लगा पागलपन में ऊल-जलूल उत्पात
मिल गये आपस में जेयनयू और हैदराबाद
कर दिया जेयनयू पर सोचा-समझा हमला
छोड़ दिया देश द्रोह का अंग्रेजी राज का जुमला
अपना रहा है ये सारे हिटलरी हथकंडे साज़िश के तहत
जानता नहीं मगर कि दुहराता इतिहास खुद को त्रासदी की तरह
लेकिन चलता है चाल जो हिटलर की मरता है वह उसकी ही तरह
हैदराबाद से शुरू हुआ है जो जय भीम लाल सलाम का काफिला
जेयनयू में ध्वस्त कर देगा कॉरपोरेटी ब्राह्मण का नफरत का किला
(ईमिः20.02.2016)

Thursday, February 11, 2016

मार्क्सवाद 23

ये भारत कौन है? आमजन की खून पसीने की कमाई से सरकारी बैंकों पर साढ़ 14 लाख की डकैती डालने वाले अडानी-अंबानी समेत कॉरपोरेट या फर्जी मठभेड़, हत्या बलात्कार के आयजक इनके राजैतिक चाकर या इनकी लूट तथा लालच के चलते अमानवीय जीवन को अभिशप्त दलित, आदिवासी, किसान , मजदूर? राष्ट्रवाद पूंजी की सेवा में जनता के खिलाफ पूंजीवाद की विचारधारा है. जनतंत्र हर किसी को आत्मनिर्णय का अधिकार है, कश्मीरियों को भी. किसी आवाम को फौज के बल पर कुछ समय तक कब्जे में रखा जा सकता है, सदा के लिये नहीं.

Wednesday, February 10, 2016

Marxism 11

I haven't read Prabhat Patnaik's article in Telegraph, shall read it. Capitalism, ever since the 2nd path(late development) of development, has not only stopped confronting the feudal vestiges but allieswith and uses them to enhance the capitalist interest. I am writing a review article of Arun Maheshwari's book SAMAJVAD KI SAMASYAYEN for Samkalin Teesri Duniya's March issue and shall try to deal with the caste and communism in India. The question of solving the caste problem in India would arise if it seeks to or is intersted in. In Europe too, it was not capitalism that eradicated the birth qualification and replaced it . That was an inadvertent consequence. The invention of printing press broke the monopoly of clergy over scriptures and that of gun powder broke the monopoly of nobility over warfare, which coincided with the emergence the new species of risk-free hero, the hero of finance, who, in course 150 years time since Rainessance was going to be "the Hero". Confronting the old hero in its early development was not a choice but expediency.In India and other colonial countries, capitalism entered through colonial root with the purpose of plunder and not the development. European countries and America opted the Welfare capitalism to rescue the capitalism from crumbling down in the wake of its crumbling down. In India and other British colonies there was no capitalism to rescue, but to build. Therefore wefare capitalism was not a choice but copulsion of capitalism. So much water flowed down ever since in world's various oceans. The global capital and its neo-states, instead of combating pre-capitalist social schisms are intersted in perpetuating them. In order to blunt the edge of economic contradiction, it overplays the caste and communal contradictions. (Tought of writing just 2 sentences before beginning to plan the lecture for th class, but as is my wont of intellectual vagabondism). We must seriously debate the interlinkages between social and economic contradictions, ignoring that has been a blunder on the part of Indian Communists. Kuldeep Kumar bhai.