खंडन किसी स्थापित बात का होता है, पुनर्जन्म की बात महज कपोलकल्पना है। मार्क्सवाद मानव के दुख के अंत का एक सिद्धांत है। कल अगर लगने लगे कि मार्क्सवाद से अधिक उन्नत मानव मुक्ति का कोई अन्य सिद्धांत है तो उसे मानने में प्रसन्नता होगी। मार्क्सवाद कोई जड़ पंथ नहीं बल्कि एक गतिशील विज्ञान है जो नई प्रस्थापनाओं को स्वीकार करता है। स्वयं मार्क्स के लेखन में संदर्भ के अनुसार बदलाव देखने को मिलता है। भारत पर उपलब्ध श्रोतों के आधार पर उनके 1953 के लेखों की प्रथापनाओं और 1957-58 के लेखों की प्रस्थापनाओं में काफी अंतर है। मार्क्सवाद दुनिया समजने-बदलने का साधन है, साध्य नहीं।
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