एक मित्र ने इस उम्र में ईश वंदना की सलाह दी मैंने खुद के ईश होने की समस्या के साथ उन्हें ईश्वर की एक नास्तिक से मुलाकात की कहानी सुना दी। उस पर उन्होंने कहा कि मैं उन्हें नास्तिक बनाना चाहता हूं, जिसे उन्होंने परवरिश के संस्कारों के चलते इस जन्म में असंभव बताया। उस पर:
मैं आपको नास्तिक कहां बना रहा हूं मैंने तो एक नास्तिक और एक ईश्वर के बीच संवाद ही सुनाया। जहां तक परवरिश तो मेरी भी शायद आप जितने या उससे भी अधिक कट्टर कर्मकांडी परिवेश में हुई। मेरे दादा जी पंचांग की गणना के इतने कट्टर अनुयायी थे कि 24-25 किमी दूर सेंटर पर मिडिल की परीक्षा सुबह 7 बजे से थी और साइत उससे पहले की रात 12 बजे। नदी-नाले के बीहड़ रास्तों पर चांदनी रात के प्रकाश में 6 घंटे चलकर परीक्षा केंद्र पर पहुंचे। लेकिन बाद में पता चला कि हर ज्ञान की कुंजी सवाल-दर-जवाब-दर सवाल है। सवालों का सिलसिला भगवान तक पहुंचा और उसके होने का सबूत नहीं मिला तो उसके भय से मुक्त हो नास्तिक हो गया। यदि उसके होने का कभी सबूत मिल गया तो मानने लगूंगा। अब तो 65 साल का होने वाला हूं, उम्मीद कम है, लगता है बाकी जिंदगी भी नास्तिक के रूप में ही कट जाएगी। लेकिन किसी और की आस्तिकता से मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मेरी पत्नी सुबह-शाम पूजा करती हैं, किसमिस का प्रसाद मुझे भी देती हैं। दूर से ही सही।
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