भीड़ हिंसा
ईश मिश्र
मार्टिन नीम्वैलर (1892-1984) ने जर्मनी में नाज़ी शासन के अंतिम 7 साल यातना शिविरों में बिताए, वे पेशे से प्रोटेस्टेंट पादरी थे तथा प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन
नेवी में रह चुके थे। उनकी निम्न सुविदित पंक्तियां आज भी चर्चित हैं :
पहले उन्होंने समाजवादियों को पकड़ा
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं समाजवादी नहीं था
फिर उन्होने ट्रेडयूनियन वालों को
पकड़ा
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन वाला नहीं था
फिर उन्होंने यहूदियों को पकड़ा
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
और जब वे मुझे पकड़ने आये
तो बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं
था।
यह कविता लिखी तो नाजी जर्मनी के
संदर्भ में गयी थीं, लेकिन सार्वभौमिक लगती हैं। ये
पंक्तियां महापृराष्ट्र के पालघर जिले में भीड़ द्वारा 2 साधुओं और ड्राइवर की निर्मम हत्या का वीडियो देखते याद आयीं।
पालघर महाराष्ट्र में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की भीड़ ने निर्मम हत्या कर दी। इस
घटना का हृदय विदारक वीडियो देखना असह्य लगा। साधु एक वक्त के लिए पुलिस की
मौजूदगी के कारण राहत महसूस करते दिखते हैं लेकिन पुलिस को भी भगा दिया विशाल
हत्यारी भीड़ ने। अफवाहजन्य भीड़ हिंसा पर चुप्पी और प्रोत्साहन ने उन साधुओं को
मारा है। और आगे भी बहुत से लोग यूँ ही मरते रहेंगे। पालघर में साधुओं की हत्या 2015 में अखलाक की हत्या से शुरू अफवाहजन्य भीड़ हिंसा की ताजी कड़ी है।
जितना हृदयविदारक व साधुओं की हत्या का वीडियो देखना था उससे अधिक हृदयविदारक सैकड़ों
साल से 300-400 घरों की त्यागियोऔर राजपूतों की
बस्ती में 3-4 परिवार के खानदान के साथ रहते अखलाक
की हत्या का वीडियो था जिसमें अफवाह प्रायोजित थी और हत्यारे पड़ोसी।
अखलाक की हत्या
गोमांस की अफवाहजन्य भीड़ हिंसाओं की श्रृंखला की पहली को उस क्षेत्र के सांसद और
तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने हादसा बताया था तथा उसे सांप्रदायिक रंग न
देने की चेतावनी दी थी। अखलाख की लिंचिंग पर उतना विवाद भीड़ द्वारा हत्या करने पर
नही हुआ जितना इस बात पर कि उसके फ्रिज में गाय का माँस था कि बकरी का। बहुतों ने
इस हत्या का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन किया क्योंकि मरने वाला उनके धर्म का नहीं, उस धर्म का था जो उनकी परिभाषा में क्रूर है। चोरी की अफवाह में, उंमादी भीड़
हिंसा साधुओं की हत्या को भी मृदंग मीडिया के कुछ अफवाहजन्य चैनल तथा सोसल मीडिया
पर कई अंध भक्त हिंदू-मुस्लिम नरेटिव में फिट करने तथा फिरकापरस्त नफरत के जहर से
सामाजिक प्रदूषण फैलाने में लग गए। महाराष्ट्र सरकार घटना के सांप्रदायिक
दुष्प्रचार के खंडन के लिए साधुवाद की पात्र है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने
पत्रकार सम्मेलन करके और गृहमंत्री ने गिरफ्तार आरोपियों की लिस्ट जारी करके,
जिसमें एक भी गैर-हिंदू नाम नहीं है। फेसबुक पर साधुओं की हत्या को अखलाख की हत्या
से शुरू अफवाहजन्य हिसा की कड़ी बताने पर एक भक्त नाराज होकर बोले कि अखलाक की
हत्या के आरोपियों को तत्कालीन अखिलेश सरकार ने गिरफ्तार किया था तथा मुआवजा मिला
था। “साधुओं को कितना मुआवजा मिला”?
अखलाक की हत्या को 3 साल बाद गोहत्या की अफवाह में बजरंग दल के नेता द्वारा आयोजित
भीड़ हिंसा में मामले के जांच अधिकारी, इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या से
जोड़ने पर भी वे नाराज हो गए।
साधुओं के
परिवार हैं कि नहीं, उनको कितना मुआवजा मिला यह तो महाराष्ट्र
और केंद्र सरकारें बताएंगी। अखलाक की हत्या
के आरोपी जब जमानत पर छूट गए तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उन्हें
एनटीपीसी में नौकरी दिला दी, एक हत्यारा
जेल में मर गया था, केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं की उपस्थिति में तिरंगे
में लपेट कर उसकी शव यात्रा निकाली गयी। जिस इंस्पेक्टर ने अऱलाक की हत्या के
आरोपियों को गिरफ्तार किया था उसी को बजरंगदल द्वारा इकट्ठी की गयी अफवाहजन्य
हिंसा में मार दिया जाना महज संयोग नहीं हो सकता । साधुओं की भीड़ हत्या के पीछे
वही मकसद या मकसद-विहीनता थी जो महाराष्ट्र. आसाम और झारखंड तथा अन्य जगहों में
चोरी, बच्चाचोरी या डायन की अफवाहजन्य भीड़ हिंसा में मासूमों की हत्याओं के पीछे थी। भीड़ हिंसा पर सेलेक्टिव
प्रतिक्रिया देने वालों का आंसू बहाना पाखंड है। जहां तक यह सवाल है कि लाक डाउन
में साधू वहां पहुंचे कैसे तथा उस गांव में इतनी भीड़ कैसे जुटी और इतनी हिंसक
कैसे हुई? ये सवाल
सरकार तथा गांव कि भाजपाई मुखिया से पूछना चाहिए। वैसे भीड़ हिंसा को वैधता
मिलेगा तो हिंसक भीड. उस नरभक्षी जानवर की तरह होती है जिसके मुंह इंसानी खून लग जाता
है वह स्त्री-पुरुष, हिदू-मुसलमान, साधू या भिखारी के खून में फर्क नहीं करता।
किसी संवेदनशील इंसा के लिए मौत मौत में फर्क नहीं होता। अखलाक, पहलू, या इंस्पेक्टर सुबोध की मौतें उतनी ही दर्दनाक
हैं जितनी साधुओं की। मौत-मौत या
जिंदगी-जिंदगी में फर्क करने वाले उतने ही दुर्दांत अपराधिक मानसिकता के हैं जितने
साधुओं के हत्यारे। एक हत्या का जश्न मनाने वालों का दूसरी हत्या पर आंसू बहाना
उनके चरित्र के दोगलेपन का परिचायक है।
झारखंड में
पशुव्यापारी और उसके नाबालिग भतीजे की भीड़ हिंसा का वीडियो भी कम हृदय विदारक नहीं
था। केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने मॉब लिंचिंग की उस घटना में जमानत पर छुटे आरोपियों
का फूल-माला पहना कर, लड्डू स्वागत किया बहुतों ने जयंत सिन्हा के कसीदे पढ़े
क्योंकि मृतक उनके धर्म के नहीं थे। हत्या और हत्यारों का महिमामंडन भाजपा की
एकमात्र राजनैतिक रणनीति, हिंदू-मुस्लिम नरेटिव से सांप्रदायिक राजनैतिक ध्रुवीकरण
की निरंतरता बरकरीर रखने के सुविचारित कार्यक्रम का हिस्सा है।
पशुपालक पहलू खां की मॉब लिंचिंग का
वीडियो भी कम हृदयविदारक नहीं था लेकिन उसका भी धर्म अलग था, वही हाल सैकड़ों तमाशबीनों के बीच जुनैद की मॉब लिंचिंग का था।
चोरी, बच्चाचोरी और डायन के अफवाह में भी
कई भीड़ हत्याएं हुईं।
बुलंदशहर में
गोहत्या के अफवाह में भीड़ हिंसा के शिकार, इंस्पेक्टर सुबोध सिंह उन्ही के धर्म
वाले थे, लेकिन साधुओं की मौत पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों ने ने उस पर न सिर्फ
कुछ नही बोला बल्कि जमानक पर छूटने पर हत्यारे का महिमामंडन के साथ स्वागत किया था
क्योंकि मारने वाली भीड़ खास राजनीतिक विचारधारा की थी।
जब कुछ कलाकारों
तथा बुद्धिजीवियों ने ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा तो
उन्हें भारत को बदनाम करने वाले, टुकड़े टुकड़े गैंग, अर्बन नक्सल और भी क्या क्या उपाधियाँ दी गयी। उनकी चिंताओं को
गालियों में तब्दील कर दिया गया। और तो और कुछ पर देशद्रोह का केस भी दर्ज कर
दिया।
और आज जब दो साधुओं की निर्मम हत्या
हो गयी तो इन्ही सेकुलर, अर्बन नक्सल और कम्युनिस्टों को कोसा जा रहा है। ये क्यों नही बोल रहा, वो क्यों नही बोल रहा? हम तो दरसल सब हत्याओं के लिए चिंतित है। हमने कल अखलाख की हत्या
पर भी चिंता व्यक्त की थी और आज इन दो
साधुओं की हत्या पर भी। लेकिन उन्हें जवाब देना चाहिए जिनकी चिंता सलेक्टिव है।
नफरत के
झंडाबरदार और मृदंग मीडिया इसमें भी हिन्दू मुसलमान का एंगल खोज रहे थे जो नही
मिला। जो लोग जो साधुओं को न्याय दिलाने के लिए लड़ रहे है कान खोल कर सुन लें कि
मृदंग मीडिया इस घटना को ज्यादा नहीं चलाएगी क्योंकि टीआरपी के लिए नफरत फैलाने का कुछ एंगल नही बन पा रहा है ।
सेलेक्टिव होकर
बभीड़ हिंसा का विरोध करेंगे तो हार जाएंगे। यदि आप चुप्पी साधेंगे अखलाक की मौत
पर, जुनैद की मौत पर, तबरेज की मौत पर, उस मौत पर जिसमें एक महिला को डायन बता कर मौत के घाट उतारा जा रहा
था, तो साधुओं की मौत का हिसाब नहीं कर पाएंगे।। भीड़ हिसा में साधुओं की हत्या
में न्याय चाहिए तो हर तरह की अफवाहजन्य भीड़ हिंसा का विरोध कीजिए।
22.04.2020
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