Friday, April 10, 2020

महामारी

जब भी आती है कोई महामारी
खतरे पड़ जाती है मनुष्यता सारी
काल के गाल में समा जाती हैं
लाखों करोड़ों जिंदगियां
मनुष्यता पर जब भी आता है वजूद का खतरा
पूंजी के वजूद पर भी मंढ़राने लगता है खतरा
क्योंकि मनुष्य से ही चलता है पूंजी का कारोबार
फिर भी
ऐसे आपदकाल में भी उनकी चिंता का विषय
नहीं होता मौत से जूझता इंसानी वजूद
उनके चिंता का विषय होता है मुनाफे पर मंड़राता खतरा
क्योंकि मरता है जब एक इंसान
कम हो जाता है एक ग्राहक
घटती है जब इंसान की आमदनी
कम हो जाती है उसकी क्रयशक्ति
कहने का मतलब
जब भी आता है खतरा मनुष्यता पर
इंसानी वजूद पर
खतरे में पड़ती है पूंजी और उसकी रखवाली की सत्ता
सेना और युद्ध पर टिकी सरमाए की सभ्यता
समाज को बाजार और इंसान को माल समझने की संस्कृति भी
कहने का मतलब
महामारी से इंसान के वजूद पर मंड़राता खतरा
खतरनाक है पूंजी के वजूद के लिए भी
फिर भी उसके चारण
ढिंढोरे पीटते हैं देश-जाति-धर्म के
नफरत फैलाते हैं हम मेहनतकशों में
बांटते हैं हमें देश-जाति-धर्म तथा इतिहास-भूगोल के नाम पर
जबकि कोई देश नहीं है हम मेहनतकश श्रमजीवियों का
उसी तरह जैसे कोई देश नहीं है पूंजी का
हमारा श्रम ही हमारे जीवन की आत्मा है
सारी धरती हमारा देश, हमारी माता है
दुनिया के मेहनतकशों की एक बिरादरी है
मेहनतकशों की एकता ही हमारा धर्म है
सर्वहारा के स्वशासन से मानवमुक्ति हमारा फर्ज
(ईमि: 10.04.2020)

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