धर्मनिरपेक्षता की आपकी यह अवधारणा निराधार एवं समाजीकरण की विरासत के पूर्वाग्रह-दुराग्रहों का परिणाम है। दर-असल कम्यूनल लोग कम्यूनलिज्म की अतार्किकता का औचित्य साबित नहीं कर सकते तो सांप्रदायिकता विरोधियों को तथाकथित कहने लगते हैं। मैं सेकुलरिज्म पर कंटेंपरेरी एशिया (राउतलेज, लंदन) में 15-16 साल पुराना लेख खोज कर शेयर करने की कोशिस करता हूं तब ब्लॉग, फेसबुक था नहीं तो पुराने कंप्यूटर से निकालकर किसी फाइल में सेव किया है। मैं तो न किसी धर्म को गाली देता हूं न किसी की तारीफ करता हूं, धर्मांधता का विरोधी हूं, तबलीगी दर्मांधता पर्भी पोस्ट शेयर किया था। धर्म पर अपने विचार एक लंहे लेख में शेयर किया है, ग्रुप में है, कहेंगे तो ब्लॉग से या हस्तक्षेप में छपा है वहां से फिर से कर दूंगा। किसी भी शब्द का लूज प्रयोग व्यक्तित्व को ओछा प्रस्तुत करता है। आपतो शायद पीएचडी किए हैं जो सर्वोच्च शिक्षा है। मैंने तो थेसिस जमा करने के बाद ऐसा महसूस कियाथा जैसे बहुत बड़ा यज्ञ कर लिया।
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