Wednesday, April 29, 2020

लल्लापुराण 314 (बट्टाखाता)

इस ग्रुप से मेरे 17-18 घंटे दूर रहने से लगभग सन्नाटा सा रहा, मैं भी काफी सुकून में रहा। मैं कई गंभीर लेख पोस्ट करता हूं जिन पर एकाध लाइक के अलावा कोई कमेंट नहीं आता, बाकी पोस्ट पर व्हाट्सअप विवि ज्ञान के कुछ विद्वान काफी कांव-कांव करते हैं वह भी अपनी मौलिक सोच से नहीं, आईटी सेल की प्रचारित, प्रचलित भाषा -- टुकड़े-टुकड़े गैंग, अवार्ड वापसी गैंग, तथाकथित सेकुलर, लिबरल, वामी कामी आदि -- शब्दावली में। दिमाग या तो खाली है या इस्तेमाल का कष्ट नहीं करना चाहते, लिखे पर बोलने की बजाय अलिखे का ताना देते हैं। एक पोस्ट धनपशुओं के बैंकों के कर्जमाफी पर डाला तो कुछ अर्थशास्त्री मेरे अर्थशास्त्र ज्ञान का मजाक उड़ाने लगे कि Write off करना (बट्टाखाते में डालना), कर्ज माफ करना नहीं होता। वैसे तो मैं राजनैतिक दर्शन के साथ राजनैतिक अर्थशास्त्र भी पढ़ाता और उस पर लिखता रहा हूं, लेकिन बट्टाखाते में डालने और कर्ज-माफी के संबंध समझाने के लिए, राजनैतिक अर्थशास्त्र के ज्ञान की नहीं, सहजबोध (Common Sense) की ही जरूरत है। मान लीजिए नागरिक न ने महाजन म से क रूपए ख% सालाना सूद वपर कर्ज लिया अ साल बाद न पर कर्ज सूद समेत ग रूपए हो गया। न ने कर्ज लौटाने से मना कर दिया। सूदखोर अपना पैसा आसानी से छोड़ नहीं सकता वह अपने लठैतों या भाड़े के गुंडों से न के बैल-भैंस खुलवा लेता है और बेच कर अपना कर्ज पूरा करता है। दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि न इतना बड़ा बकैत है कि उसके बैल-भैंस खोलने की औकात नहीं होती। तीसरी स्थिति यह हो सकती है कि न पहले ही अपने बैल-भैंस बेचकर खा चुका होता है, उसके पास कुछ है ही नहीं जिसे कब्जियाकर म अपना कर्ज वसूल सके। दूसरी और तीसरी स्थिति में म दिल पर पत्थर रख कर अपना नुक्सान बर्दाश्त कर न का कर्ज बट्टाखाते में डाल (write off कर) देता है। मेहुल तो भगा दिया गया है, रामदेव-बालकृष्ण का फलता-फूलता धंधा है, ऋषिकेश से रुड़की तक सारी जमीनों पर कब्जा है, उसका कर्ज क्यों माफ कर (बट्टाखाते में डाल) दिया गया?

अंधभक्त कौन होता है? जो सरकार के हर काम या नीति का आंख बंद कर समर्थन करे और किसी भी आलोचना का ऐसे बौखलाकर विरोध करे जैसे वही सरकार हो। ऐसे ही लोगों की पोस्ट-कमेंट देख शायद डॉ. रामचंद्र शुक्ल (Ram Chandra Shukla) ने ग्रुप के बारे में लट्ठमार भाषा में राय दे दी थी जो भी सही नहीं था क्योंकि सीमित डाटा के आधार पर generalization उचित नहीं है।

इस पोस्ट के बाद कल तक फिर चुंगी से अवकाश। बुद्धिजीवी पर ग्राम्सी के विचार पर एक लेख पूरा कर लूं। कल के लिए मई दिवस पर दूसरा भी लिखना है।

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