भूमंडलीकरण के तहत सारे मजदूर-पक्षीय कानूनों और नीतियों को अलविदा कर दिया गया।Hire and fire नीति के तहत मालिक जब चाहे अपनी शर्तों पर जिसे चाहे रखे, जब चाहे जिसे निकाले। तमाम आईटी कंपनियां बंद करके अपनी पूंजी निकालकर चल दीं, उद्योग के नाम पर रियायत में मिली भूसंपदा, रीयल एस्टेट के रूप में उनके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गयी, कर्मचारी दर-ब-दर भटके। 'नेहरू की अर्थव्यवस्था' में ऐसा नहीं हो सकता था, कोई कंपनी बिना उपयुक्त मुआवजा दिए नहीं बंद कर सकती थी या उसे सरकार अधिग्रहित कर चलाती। मेरा एक परिचित इंजीनियर गुड़गांव की आईटी कंपनी में पौने दो लाख की नौकरी करता था, कंपनी बंद कर चली गयी। कई (3-4) साल से वह बेरोजगार है, फिलहाल लखनऊ के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में 20-25 हजार में पढ़ा रहा है। प्राइवेट स्कूल-कॉलेजों में उपयुक्त वेतन सुनिश्चित करना भी सरकार का काम है।
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