Monday, September 29, 2014

नारा-ए-जम्हूरियत

पड़े हैं लाले रोजी-रोटी के तो क्या हुआ 
मुद्दों की भीड़ में इंसानों सी भेडचाल है
लगा रहा जो नारा-ए-जम्हूरियत
वो सियासत का अदना दलाल है 
गाता है गीत वसुधैव कुटुम्बकम का
इंसानियत को करता हर रोज हलाल है 
खडा करना आतंकवाद का हौवा 
साम्राज्यवाद की नस्लवादी चाल है 
पालता है कितने ही नरेंद्र-ओ-शरीफ 
रक्तपात का इसको नहीं कोई  मलाल है
(हा हा यह भी कविता सी हो गयी)
(इमि/३०.०९.२०१४)

Wednesday, September 24, 2014

शिक्षा और ज्ञान १५

इंदौर विव में काश्मीरी छात्रों की सहायता के बयान पर कुलपति के कार्यालय में लाठीधारी बजरंगियों की उत्पात से संत्रस्त कुलपति जवाहरलाल कॉल को आईसीयू में भारती होना पडा. मैं कॉल के बारे में उनके संघी झुकाव की खबरों अधिक नहीं जानता. लेकिन १०-२० बजरंगी लम्पटों द्वारा देश की वर्णाश्रमी अपसंस्कृति और संघी-अंधदेशभक्ति के ठेकेदार बन शिक्षा संस्थानों में हुडदंग देश भर में एक ढर्रा बन गया है और अपने आकाओं की कृपा से ये अपराधी खुले आम घूमते हुए लम्पटता का आतंक फैलाते रहने का एक ढर्रा सा बन गया है. इनको मुहतोड़ जवाब न मिला तो देश लम्पटता का गढ़ बनकर रह जाएगा.

इन्किलाबी जज़्बातों की बात

यह  हुई न बुलंद इन्किलाबी जज़्बातों की बात 
मुबारक हो फैसला देने का मुक़द्दर को मात 
सच में मोहताज़ नहीं ज़िंदगी हाथ की लकीरों की 
कौन रोकेगा उड़ान अज्म-ए-यकीं के फकीरों की
बढ़ती रही इसी रफ़्तार से गर जनवादी जनचेतना 
ठिठक जायेगी निजाम-ए-ज़र की फरेबी युगचेतना 
आयेगा तब जगे ज़मीर का युगकारी जनसैलाब 
इंसानियत के सारे दुख-दर्द हो जायेंगे बे-आब 
होंगे आज़ाद दलित-आदिवासी और मजदूर-किसान
बचेगा नहीं निजाम-ए-ज़र का कोई नाम-ओ-निशान
इंसानों में होगा भाईचारा और समता का संवाद 
खारिज हो जाएगा श्रेणीबद्धता कोई भी अपवाद 
होगा स्त्री-पुरुषों में जनतांत्रिक मेल-मिलाप 
नहीं करेगा कोई मौत-ए-मर्दवाद पर विलाप
धुल जायेंगे धरती से शोषण-दमन के पाप  
कहते हैं आयेगा तब दुनिया में समाजवाद 
(इमि/२५.०९.२०१४)

मोदी विमर्श ३५

मुझे संदेह है कि मोदी ने मैक्यावेल्ली के राजा को मशविरे पढ़ा है जिसमें वह बताता है कि राजा को यह मानकर चलना चाहिए उसके इर्द-गिर्द के लोग संभावित हत्यारे हैं जो हर बार उसके सामने सर झुकाते समय यही सोचते होंगे कि वे भी राजा हो सकते हैं क्योंकि वे वाकिफ हैं कि असाधारणता के आवरण में वह भी उन्ही के सामान साधारण जीव है इसलिए उसे सबसे अधिक सजगता अपने दरबारियों से बरतनी चाहिए. 

Tuesday, September 23, 2014

मशीनी ज़िंदगी

है यह मशीनी ज़िंदगी ४० पार के उन मर्दों की बात 
एक की जनसंख्या में सिमटती हो जिनकी कायानात 
शेष पार कर जाती है दृष्टिसीमा जैसे कोइ बेसुरा  राग  
हो जैसे वो तीरंदाज़ अर्जुन के  लक्ष्य का  व्यर्थ भाग
होती है सारी कायानात जिनका मुद्दा-ए-सरोकार  
जवाँ बने रहते हैं कर जाएँ कितनी भी उम्र पार 
बीबी-बच्चे तो पाल ही लेते हैं पशु-पक्षी भी 
अब गूंजनी  चाहिए इन्किलाब की गुहार भी
बीबी-बच्चे ही नहीं अपना होता है सारा संसार 
कर नहीं पाता कोइ भी उनकी दृष्टि-सीमा पार 
मिला दें गर निजी हित हितों की सामूहिकता में 
मिलता है निज को सामूहिक सुख प्रचुरता में 
दुनिया की जनसंख्या सिर्फ एक है जिनके लिए 
जीते हैं मशीन से अमूर्त असुरक्षाओं से घिरे हुए 
जीने का नहीं है मकसद कोई और  जीवनेतर 
खुद एक मकसद है जीना एक ज़िंदगी बेहतर 
चलते हैं साथ साथ ज़िंदगी के और भी प्रकरण 
बनते हैं जो बिन-चाहे परिणामों के उदहारण 
इसलिए कहता हूँ जियो एक सार्थक ज़िन्दगी 
न बनो कभी भगवान न करो किसी की बंदगी 
(हा हा यह भी कविता हो गयी)
(इमि/२४.०९.२०१४)

मुकद्दर एक भरम है

मुकद्दर एक भरम है भूत की तरह का 
और वजह हो सकती है महबूब से विरह का 
माना कि चाहत में आपकी है नहीं कसर 
उसकी चाहत की हो-न-हो और भी डगर 
जरूरी नहीं होना सभी चाहतों में टकराव 
कम होगा इश्क में मिलकियत का भाव  
लाने से हर बात में मुक़द्दर की बात 
कमजोर होते हैं हिम्मत के जज्बात 
बेफिक्र मिलो महबूब से होकर आज़ाद 
है कहीं कोई मुक़द्दर तो दे दो उसे मात 
(हा हा यह तो कविता सी हो गयी)
(इमि/२४.०९.२०१४)

लल्ला पुराण १७३

भूतों को लlकारा जब था १३ साल का था और भगवान् को 17 के आसपास दोनों अभी तक मेरा कुछ भी नहें बिगाड़ पाए. एक बार मेरी पत्नी ने कहा कि मैं भगवन के बारे में उलटा सीधा कहता हूँ इसी लिए गड़बड़ होता है. मैंने कहा कि भवान अगर इतना नीचे गिर सकता है कि मेरे जैसे अदना इन्सान से बदला लेने आ जाता है तो उसकी और भी ऐसी-तैसी करूंगा जो बिगाड़ सकता है बिगाड़ ले. वह तो कुछ नहीं बिगाड़ पाया उसके बन्दे बिगाड़ देने की खुशफहमी में भले ही रहें

मौत का खौफ

मौत का खौफ मुर्दा कौमों की निशानी है
जैसे विकल्पहीनता 
ज़िंदा कौमें कभी विकल्पहीन नहीं होतीं
क्योंकि खौफ़ नहीं खातीं वे मौत का
न डरती हैं भूत से न ही भगवान से.
(इमि/२३.०९.२०१४)

Monday, September 22, 2014

क्षणिकाएं ३२ (५३१-४०)

531
चे को क्या जरूरत थी 
मंत्रिपद छोड़ बोलीविया जाने की
दुनिया में इन्किलाबी जूनून जगाने की
और सीआईए का शिकार होने की ?
लिखते रहते मर्शिया पूंजीवाद का क्रिस्टोफर काड्वेल
बैठ लन्दन की लाइब्रेरी में करते और फर्दर स्टडीज 
क्या जरूरत थी जाकर स्पेन में 
फासीवाद से जंग में शहीद होने की?
जैसा फरमाया श्रीमन् ने उस दिन
लालकिले की प्राचीर से 
करते हुए संवाद मुल्क की तकदीर से
और भी रास्ते थे जीने के 
तख़्त-नशीं होने के 
क्या जरूरत थे भगत सिंह को 
हंसते हुए चूमने की फांसी का फंदा?
पूछते हैं हैं जो ऐसे सवाल
होता नहीं जिन्हें दुर्बुद्धि का मलाल 
नहीं जानते वे इतिहास का मर्म 
और इन्किलाब का मतलब. 
(इमि/१४.०९.२०१४)
532
जागेगा जब मजदूर किसान 
होगा लामबंद साथ छात्र नवजवान 
लिखेगा तब धरती पर नया विधान 
होगा जो मानवता का नया संविधान 
बदल देगा इतिहास का जारी प्रावधान 
होगा बहमत का अल्पमत पर शासन 
मनाने को उसे समानता का अनुशासन 
भोगेंगे मिल साथ समता का सुख अनूठा
न कोइ होगा भूखा न कोइ किसी से रूठा. 
(इमि/१४.०९.२०१४)
533
एक पुलिस अधिकारी मित्र ने पोस्ट डाला कि अच्छे काम करने पर भी बदनाम होते हैं और मौत के शाये में जीते है, उस पर मेरा कमेन्ट:

करते रहोगे गर काम नेक
करते हुए इस्तेमाल दिमाग का
मिलेंगी दुवाएं अनेक
होगा भला गर आवाम का
माना नहीं हो वर्दीधारी गुंड़ा
यह भी माना की वर्दीधारी शेर हो
समझ नहीं पाता
कि  कौन ज्यादा खतरनाक है
 मानवता के लिए, शेर या गुंडा?
नहीं समझ पाता हूँ और भी एक बात
होता क्यों नहीं वर्दीधारी भी साधारण इंसान
मिले जिसे तालीम न महज हुक्म तामील करने की
बल्कि विवेक का भी इस्तेमाल करने की
और सुनने की आवाज़  अंतरात्मा की?
उसी तरह जैसे समझ नहीं पाता
कि क्यों नहीं समझता शिक्षक
शिक्षक  होने की अहमियत?

मौत के खौफ में नहीं जी जा सकती सार्थक ज़िंदगी
मौत के खौफ में धीरे धीरे मरता है इंसान
मौत माना कि है अंतिम सत्य मगर अनिश्चित है
ज़िंदगी सुन्दर सजीव और सुनिश्चित है
जीना है वाकई गर एक मानिंद जिन्दगी
डालनी पड़ेगी आदत बेखौफ़ जीने की
सादर
(इमि/१४.०९.२०१४)
534
अगर दुनिया से ख़त्म हो जाए पुलिसतंत्र
हो जाएगा किसान और मजदूर स्वतंत्र
करता है जो क़ानून व्यवस्था का कोरा प्रपंच
 हिफाज़त करता है मुल्क के के थैलेशाहों की
और जरायमपेशा सियासतदां आकाओं की
वर्दी के नाम मचता है आवाम में कोहराम
यह बात और है देता है वही इस वर्दी का दाम
हो जाए अगर धरती से पुलिस की जमात ख़तम
दुनिया में लहराएगा अमन-चैन का परचम
किसानों के पैसे से खरीदता है बन्दूक और गोली
टाटा के आदेश से खेलता उन्ही के खून से होली
चाहिए टाटा को कलिंगनगर के किसानों की जमीन
किसानों ने कहा देंगे जान पर देंगे नहीं अपनी जमीन
हुई नहें टाटा को आदिवासियों की यह बात बर्दास्त
जमशेद नगर बनाने में नहीं हुई थी ऐसी कोइ बात
हुए थे उस वक़्त हजारों आदिवासी बेघर
उनके वंशज रखे है आस में अब तक सबर
जमीन न देने की आदिवासियों की मजाल
कायम होगी इससे एक बहुत बुरी मिसाल        
किया टाटा ने बीजू पटनायक के बेटे को तलब
कहा उससे आदिवासियों को सिखाने को सबब
भेज दिया उसने कलेक्टर और पुलिस कप्तान
हुक्म दिया मारने को अदिवासी किसान
मार दिया उनने कितने ही मासूम इंसान
सिखाया जाता है पुलिसियों को मानना आदेश
हो जाए चाहे विवेक और जमीर  का भदेश
पुलिसियों में होते हैं कई बेहतर इंसान भी
फ़र्ज़ अदायगी में खतरे में डालते हैं वे ज़िंदगी
ऐसे लोग अपनी जमात में अपवाद होते हैं
अपवादों  से नियम ही सत्यापित होते हैं
होगा जब कभी ऐसे दिन का आगाज़
वर्दियां सुनेंगीं अंतरात्मा की आवाज़
सुनेंगीं आवाम का इन्किलाबी सन्देश
मानेंगीं  नहीं हाकिम का अनर्गल आदेश
बदल देंगी दिशा बन्दूक की नली का
हाकिम दिखेगा गुंडा पतली गली का
मारेंगी नहीं तब वे मजदूर किसान
बंदूकों पर होगा उनके लाल निशान
(इमि/16.०९.२०१४)
535
भीड़ मंजिलों की और रास्तों की तलाश 

हमने तो कभी सोचा ही नहीं ख़ास मंजिलों की बात 
अपनी तो तयशुदा मंजिल है मंजिल-ए-इन्किलाब  
खोजना नहीं पडा बनाते रहे रास्ते जंग-ए-हालात 
दिशा-निर्देशक रहे मगर मेरे ज़ज्बात-ए-इन्किलाब 
हम हालात से और हालत हमसे लगातार लड़ते रहे
द्वंद्वात्मक एकता के साश्वत सूत्र पर आगे बढ़ते रहे
हार-जीत का द्वंद्व नियम है ज़िंदगी के खेल का 
अहम है गुणवत्ता दिमाग-ओ-जमीर के मेल का 
समझ नहीं पाते कभी बदलाव की दिशा-रफ़्तार
हो जाते हैं दिशाभ्रम के विकट जाल में गिरफ्तार
बेहतर है भ्रम मगर आस्था के स्पष्ट मिथ्या चेतना से 
उभर नहीं पाती जो जन्म की दुर्घटना की वेदना से
फंसे नहीं रहते मान नियति हम जाल में चुपचाप
करते रहते उसे काटने के लगातार क्रिया-कलाप 
जीना भर नहीं है मकसद नायाब ज़िंदगी का 
तोड़ते रहना है किले खुदाओं(ईशों) की बंदगी का
करते रहेंगे सवाल पर सवाल पर सवाल 
सवाल-ए-इन्किलाब है अज्म-ए-सवाल 
विषय है भीड़ मंजिलों की और रास्तों की तलाश 
भटक गया शायर निकालने लगा दिल की भड़ास 
इन्किलाब ही अंतिम मंजिल है, यह तय है 
जिसके प्रारूप देश-काल पर छाया अनिश्चय है 
निश्चित है अंत किसी भी  अस्तित्ववान का 
 साश्वत नियम  है इतिहास के गतिविज्ञान का
नए निजाम का आगाज़ है अवश्यम्भावी 
जिसका नक्शा बनायेगी हमारी भावी पीढी 
हमें देता रहना है मौजूदा संघर्षों में अपना योगदान 
आयेगा ही एक-न-एक दिन एक सुन्दर नया विहान 
[इमि/१८.०९.२०१४)
536
बहुत ही लंबा है यादों का कारवां
बुनते जो खट्टी-मिट्ठी बातों का सिसिला
छद्म नाम में  मगर है बड़ा लोचा
जब भी है हक़ीकात बयानी की सोचा
मेरे संसमरणों के हैं ऐसे ऐसे उदाहरण
बड़े बड़े ज्ञानी-मानी दिखते हैं चारण
वैसे भी अपन तो काम है इतिहास बनाने का
करेंगी भावी पीढियां काम बाकलम करने का
मिली गर कभी फुर्सत लिखेंगे आपबीती भी 
जरूरत है अभी लिखने की जंग-ए-आजादी के नारों की.
[इमि/२०.०९.२०१४]
537
तानाशाह हर बात से डरता है 
डरता है रामानुजम के लेख से मेधा पाटकर के पाठ से 
जो डरते नहीं तानाशाही आतंक के खौफ से
उन सबसे डरता है तानाशाह 
विरोध के बदले मौत से होते हैं जो बेख़ौफ़  
मौत के घाट पहुंचा देता है उन्हें तानाशाह 
ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है
यह हकीकत जानता नहीं तानाशाह
कब्रगाहों से उठे बगावत के बवंडर में 
तिनके माफिक उड़ जाता है हर तानाशाह 
होता है  शून्य इतिहासबोध से 
इतिहास की किताबें जलाता है तानाशाह 
अनभिज्ञ ऐतिहासिक सच्चाई से
कि इतिहास के कूड़ेदान में समाता है हर तानाशाह
तोड़ता है दानिशमंद का कलम 
और फोड़ता है अदाकार का साज़ 
इससे तो और उभर जाती है आवाज़
यह बात जानता नहीं तानाशाह 
[इमि/२०.०९.२०१४]
538
मत करो कोई सवाल
सुनना नहीं है गर झूठे जवाब
जानना है गर हकीकत रिश्तों की
हो बेनक़ाब खुद
कर दो हर चेहरा बेनकाब 
मगर ओढ़कर नकाब खुद
करते हैं लोग औरों को बेनकाब 
दोगलापन है मर्म सभ्यता का
करनी-कथनी का रिश्ता लाज़वाब
होने से इतर दिखने में 
नहीं सभ्यता का कोई जवाब 
इतिहास एक सिसिला है रिवाजों के समुच्चय का
हैं जिसमें रवायती सवाल और जाहिराना झूठे जवाब
 रहते हैं बच्चे सालों माँ-बाप के साथ
होता है सम्प्रेषण उनमें, नहीं कभी कोइ संवाद
अंतरंग कहा जाता है मुहब्बत का रिश्ता
कहना कुछ चाहते है प्रेमी, करते हैं कुछ और बात
चाहिए ग़र सवाल का जवाब और एक दुनियां बेनकाब
करना पडेगा रिश्तों को स्वामित्व से आज़ाद
होगा जब ऐसा आ जाएगा इन्किलाब
मैं भी अनजाने कर गया गुस्ताखी
हो रही थी कुछ करने लगा कोई और बात
मामला है झूठे जवाबों और चेहरों के नकाबों का
मैं करने लगा सभ्यता को ही बेनकाब
बोल गया जूनून में
पाक मुहब्बत-ओ-जन्नत-ए-खानदान के खिलाफ
यकीकन सभ्य लोग मुझे कर देंगे माफ़
(हा हा यह तो शायरी सी हो गयी)
(इमि/२०.०९.२०१४)
539
नई रवायत की एक अपील
यह नई रवायत की एक अपील है 
वर्चस्व से मुक्ति की दलील है 
माफी की तो है पुरानी परंपरा 
बुद्ध-ओ-कबीर से है इतिहास भरा 
पिछली सदी में की मंटो ने पहल 
किया खुदा को बडप्पन से बेदखल 
("खुदा कभी माफ़ नहीं करता/खुदा से बड़ा है स-आदत हुसैन मंटो")
मैं तो मंटो का एक अदना सा मुरीद हूँ
सज़ा-से-सुधार के उसूल के विपरीत हूँ 
सभ्यता का यही आचार 
कथनी-करनी में बड़ी दरार 
मेल नहीं होता सार और सन्देश में 
मिलते हैं लोग बहुरूपिये के भेष में 
माना, सभ्यता के गुणों से महरूम हूँ  
शब्द-ओ-कर्म की एका मकदूम हूँ 
इसीलिये कहता हूँ बात साफ़ साफ़ 
चाहें तो कर दें सभ्य लोग माफ़ 
(इमि/२१.०९.२०१४) 
540
ज़िंदा कौमें ज़िंदगी में यकीन करती हैं 
करर्ती नहीं इंतज़ार-ए-मौत 
मौत है ज़िन्दगी की आख़िरी सच्चाई 
देश-काल से परे और समय-तालिका से भी 
इतिहास बताता है  
कि निश्चित है बे-वजूदी है जो भी बा-वजूद
ज़िंदा कौमें मरतीं नहीं मर कर भी जीती हैं
जीती हैं जो इंतज़ार-ए-मौत या मौत के खौफ़ में 
होती हैं मुर्दा कौमें जो जीती नहीं 
जी-जी कर मरती हैं पल-पल हर पल 
ज़िंदा क़ौमें मरती नहीं 
मर मर कर जीती हैं युग-युग 
बदलते हुए देश काल 
निश्चित अंत की अनिश्चितता से बेख़ौफ़ 
(इमि/२३.०९.२०१४)



ज़िंदा कौमें

ज़िंदा कौमें ज़िंदगी में यकीन करती हैं 
करर्ती नहीं इंतज़ार-ए-मौत 
मौत है ज़िन्दगी की आख़िरी सच्चाई 
देश-काल से परे और समय-तालिका से भी 
इतिहास बताता है  
कि निश्चित है बे-वजूदी है जो भी बा-वजूद
ज़िंदा कौमें मरतीं नहीं मर कर भी जीती हैं
जीती हैं जो इंतज़ार-ए-मौत या मौत के खौफ़ में 
होती हैं मुर्दा कौमें जो जीती नहीं 
जी-जी कर मरती हैं पल-पल हर पल 
ज़िंदा क़ौमें मरती नहीं 
मर मर कर जीती हैं युग-युग 
बदलते हुए देश काल 
निश्चित अंत की अनिश्चितता से बेख़ौफ़ 
(इमि/२३.०९.२०१४)

Saturday, September 20, 2014

नई रवायत की अपील

यह नई रवायत की एक अपील है 
वर्चस्व से मुक्ति की दलील है 
माफी की तो है पुरानी परंपरा 
बुद्ध-ओ-कबीर से है इतिहास भरा 
पिछली सदी में की मंटो ने पहल 
किया खुदा को बडप्पन से बेदखल 
("खुदा कभी माफ़ नहीं करता/खुदा से बड़ा है स-आदत हुसैन मंटो")
मैं तो मंटो का एक अदना सा मुरीद हूँ
सज़ा-से-सुधार के उसूल के विपरीत हूँ 
सभ्यता का यही आचार 
कथनी-करनी में बड़ी दरार 
मेल नहीं होता सार और सन्देश में 
मिलते हैं लोग बहुरूपिये के भेष में 
माना, सभ्यता के गुणों से महरूम हूँ  
शब्द-ओ-कर्म की एका मकदूम हूँ 
इसीलिये कहता हूँ बात साफ़ साफ़ 
चाहें तो कर दें सभ्य लोग माफ़ 
(इमि/२१.०९.२०१४) 

मत करो कोई सवाल

मत करो कोई सवाल
सुनना नहीं है गर झूठे जवाब
जानना है गर हकीकत रिश्तों की 
हो बेनक़ाब खुद 
कर दो हर चेहरा बेनकाब  
मगर ओढ़कर नकाब खुद 
करते हैं लोग औरों को बेनकाब  
दोगलापन है मर्म सभ्यता का
करनी-कथनी का रिश्ता लाज़वाब 
होने से इतर दिखने में  
नहीं सभ्यता का कोई जवाब  
इतिहास एक सिसिला है रिवाजों के समुच्चय का 
हैं जिसमें रवायती सवाल और जाहिराना झूठे जवाब 
 रहते हैं बच्चे सालों माँ-बाप के साथ 
होता है सम्प्रेषण उनमें, नहीं कभी कोइ संवाद 
अंतरंग कहा जाता है मुहब्बत का रिश्ता 
कहना कुछ चाहते है प्रेमी, करते हैं कुछ और बात 
चाहिए ग़र सवाल का जवाब और एक दुनियां बेनकाब 
करना पडेगा रिश्तों को स्वामित्व से आज़ाद 
होगा जब ऐसा आ जाएगा इन्किलाब 
मैं भी अनजाने कर गया गुस्ताखी 
हो रही थी कुछ करने लगा कोई और बात 
मामला है झूठे जवाबों और चेहरों के नकाबों का 
मैं करने लगा सभ्यता को ही बेनकाब 
बोल गया जूनून में 
पाक मुहब्बत-ओ-जन्नत-ए-खानदान के खिलाफ 
यकीकन सभ्य लोग मुझे कर देंगे माफ़ 
(हा हा यह तो शायरी सी हो गयी) 
(इमि/२०.०९.२०१४)

Friday, September 19, 2014

तानाशाह 3

तानाशाह हर बात से डरता है 
डरता है रामानुजम के लेख से मेधा पाटकर के पाठ से 
जो डरते नहीं तानाशाही आतंक के खौफ से
उन सबसे डरता है तानाशाह 
विरोध के बदले मौत से होते हैं जो बेख़ौफ़  
मौत के घाट पहुंचा देता है उन्हें तानाशाह 
ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है
यह हकीकत जानता नहीं तानाशाह
कब्रगाहों से उठे बगावत के बवंडर में 
तिनके माफिक उड़ जाता है हर तानाशाह 
होता है  शून्य इतिहासबोध से 
इतिहास की किताबें जलाता है तानाशाह 
अनभिज्ञ ऐतिहासिक सच्चाई से
कि इतिहास के कूड़ेदान में समाता है हर तानाशाह
तोड़ता है दानिशमंद का कलम 
और फोड़ता है अदाकार का साज़ 
इससे तो और उभर जाती है आवाज़
यह बात जानता नहीं तानाशाह 
[इमि/२०.०९.२०१४]

बहुत ही लंबा है यादों का कारवां

बहुत ही लंबा है यादों का कारवां
बुनते जो खट्टी-मिट्ठी बातों का सिसिला
छद्म नाम में  मगर है बड़ा लोचा
जब भी है हक़ीकात बयानी की सोचा
मेरे संसमरणों के हैं ऐसे ऐसे उदाहरण
बड़े बड़े ज्ञानी-मानी दिखते हैं चारण
वैसे भी अपन तो काम है इतिहास बनाने का
करेंगी भावी पीढियां काम बाकलम करने का
मिली गर कभी फुर्सत लिखेंगे आपबीती भी 
जरूरत है अभी लिखने की जंग-ए-आजादी के नारों की.
[इमि/२०.०९.२०१४]

Thursday, September 18, 2014

Marxism 6

Nirnaya Bhatta  this was one lecture prepared on computer for 2008 batch and I must have given its print out to your batch. Your question needs little long lecture probably you wee not present in 3-4  classes on Class and Class conflict, that is not just ban economic relation but a social relation of domination. the dominant classes try to enhance the domination and subordinated ones to reduce and eventually end it. Anyone earning livelihood by selling labor is by definition a worker and part of class in itself vis-a-vis corporate capitalism but remain a lump of mass as long as they do not acquire class consciousness and organize themselves on the basis of common class interest. The link between class in 'itself and for itself' is class consciousness that is a complex and difficult task -- the task of radicalizing the social consciousness against all the attempts of the powerful ideological apparatuses to blunt it. Thanks, Nirnay, I will add to it one more section on this for this batch's students. Tight now I shall tell you just 3 things: 1. The capitalism has learnt enough from Hindu caste system in which almost everyone finds some one to look down at. That is why the working class unity is more difficult.2. Capitalism is different from previous ruling classes that it democratizes and some of its privileges to the upper echelons of the working classes inducing them to harbor the illusion of being part of the ruling classes. Gunter Andre Frank's definition of lumpen bourgeois can be extended to encompass this class into its ambit. 3. The bureaucracy is a class apart. I will elaborate these but right now have other things to do.  

Wednesday, September 17, 2014

भीड़ मंजिलों की और रास्तों की तलाश

भीड़ मंजिलों की और रास्तों की तलाश 

हमने तो कभी सोचा ही नहीं ख़ास मंजिलों की बात 
अपनी तो तयशुदा मंजिल है मंजिल-ए-इन्किलाब  
खोजना नहीं पडा बनाते रहे रास्ते जंग-ए-हालात 
दिशा-निर्देशक रहे मगर मेरे ज़ज्बात-ए-इन्किलाब 
हम हालात से और हालत हमसे लगातार लड़ते रहे
द्वंद्वात्मक एकता के साश्वत सूत्र पर आगे बढ़ते रहे
हार-जीत का द्वंद्व नियम है ज़िंदगी के खेल का 
अहम है गुणवत्ता दिमाग-ओ-जमीर के मेल का 
समझ नहीं पाते कभी बदलाव की दिशा-रफ़्तार
हो जाते हैं दिशाभ्रम के विकट जाल में गिरफ्तार
बेहतर है भ्रम मगर आस्था के स्पष्ट मिथ्या चेतना से 
उभर नहीं पाती जो जन्म की दुर्घटना की वेदना से
फंसे नहीं रहते मान नियति हम जाल में चुपचाप
करते रहते उसे काटने के लगातार क्रिया-कलाप 
जीना भर नहीं है मकसद नायाब ज़िंदगी का 
तोड़ते रहना है किले खुदाओं(ईशों) की बंदगी का
करते रहेंगे सवाल पर सवाल पर सवाल 
सवाल-ए-इन्किलाब है अज्म-ए-सवाल 
विषय है भीड़ मंजिलों की और रास्तों की तलाश 
भटक गया शायर निकालने लगा दिल की भड़ास 
इन्किलाब ही अंतिम मंजिल है, यह तय है 
जिसके प्रारूप देश-काल पर छाया अनिश्चय है 
निश्चित है अंत किसी भी  अस्तित्ववान का 
 साश्वत नियम  है इतिहास के गतिविज्ञान का
नए निजाम का आगाज़ है अवश्यम्भावी 
जिसका नक्शा बनायेगी हमारी भावी पीढी 
हमें देता रहना है मौजूदा संघर्षों में अपना योगदान 
आयेगा ही एक-न-एक दिन एक सुन्दर नया विहान 
[इमि/१८.०९.२०१४)

DU 49 (Education & Knowledge 16)

I really find it beyond comprehension, why people don't learn to be happy by realizing the importance of being the teacher. it is futile to debate over the ubiquitous concept of Godfather (I was already an authentic atheist and how can a Godless person have a Godfather?). teachers should conduct themselves in a way that their words  become the matter of academic debate among the students and not of complaint. We should interact and plead with our colleagues that once they become teacher, they should realize the gravity of its role by preparing and presenting their lectures well along with unlearning the acquired presumption and prejudices through socialization, substitute them with rational values and by treating the students as the inhabitants of the same planet.

क्षणिकाएं ३१ (521-33)

521
तानाशाह 1
तानाशाह हर बात से डरता है
अपने पाप से डरता है, अपने आप से डरता है
हमारे गीतों से डरता है, अपने भीतों से डरता है
कायर कुत्तों की तरह झुंड में शेर हो जाता है
पत्थर उठाने के नाटक से ही दुम दबाकर भाग जाता है
(ईमि/तारीख याद नहीं)
522
डर डर कर नहीं जियी जाती ज़िंदगी
डर डर कर नहीं जियी जाती ज़िंदगी
डर में जीने वाले लोग जीने मे मरते हैं
बार बार  धीरे धीरे मंद गति से
किसी पुरानी रुमानी फिल्म के निराश नायक की तरह.
नामुमकिन की ही तरह डर भी एक सैद्धांतिक अवधारणा है
शासन का मूलमंत्र है vkSj  शासित के शोषण की साधना है
जब से आयk पूंजी की दुनिया में भूमंडलीकरण का दौर
डर बन गया आवारा पूंजी का स्थायी ठौर
डर मौत का ही नहीं मौत के बाद का भी
बीमाओं के निगमों में बंद हो जाते हैं जीवन
मौत ही इकलौता अंतिम सत्य है मगर वक़्त अनिश्चित
ज़िंदगी इक सुंदर ज़िंदा सच्चाई है
मक्सद है जीना इक खूबसूरत ज़िदगी
जी जा सकती है जो हो निडर
डर डर कर जियी नहीं जाती ज़िंदगी
खिंचती है वह मौत के इंजार में.
(ईमिः31.08.2014)
523
तानाशाह 2
वह निकलता नहीं बाहर
हथियार बंद बंद मानव मशीनों के सुरक्षा कवच से
वह डरता है इस बात से कि मशीनें सोचने न लगें
अौर बदल जाय बंदूक की नली का रुख़
डरता है ज्ञान की शक्ति से
जला देता है लाइब्रेरी
वह डरता है इतिहास से
विकृत करता है उसे गल्प-पुराणों के महिमा मंडन से
वंचित करता है नई पीढ़ियों को उनके इतिहास से
लेकिन हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है
तोड़ देती है तानाशाह की कुचेष्टा का मकड़जाल
इन विघ्नों के बावजूद नया इतिहास रचती है
तानाशाह का मर्शिया लिखती है
डरता है तानाशाह नई पीढ़ियों से
निर्बल बनाता है उन्हें कुशिक्षा और कुज्ञान से
लेकिन हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है, आगे ही निकलती है 
तोड़कर कुज्ञान और कुशिक्षा के सारे ब्यूह 
मटियामेट हो जाता है तानाशाह
                             जागता है जब और जागता ही है आवाम का ज़मीर               (ईमिः30.08.2014)
524
दंभ में बैठ जाता है मुडेर पर कहता है उसे जब कोई यस सर
चरणों में लेट जाता है कहता है वह जब किसी को यस सर
[ईमि/०६.०९.२०१४]
525
सुना था होता है मुंह काला दलाली में कोयले की 
कर लिया मुंह काला खरीद-फरोख्त में घोड़ों की 
उन घोड़ों में कुछ चतुर-चालाक लोमड़ियाँ भी थीं 
छुपे कैमरों से मोल-भाव की बोलती तस्वीरें ले लीं
युवराज के भांट ने किया खबरनवीशों से संवाद 
बताया तस्वीर को विपक्षी चाल और बेबुनियाद 
युवराज ने लगाया आक्रामक शैली में प्रतिआरोप 
 दुश्मन के दिमाग पर छाया है बादल का घटाटोप 
दिया है मैक्यावाली ने सियासतदानों का पैगाम
सियासत में सदाचार और नैतिकता का क्या काम
है गर धोखा-धडी खून-खराबे से कोइ भी परहेज 
छोड़ कर तख़्त-ओ-ताज अपनाये सन्यासी भेष 
हों कितनी भी बेतुकी-बेहूदी मजहबी रवायतें  
कट्टर मुल्ले से पढो कुरआन की आयतें 
मज़हब है सियासत का कामयाब औज़ार 
अलग-अलग रूपों में आजमाओ बार बार 
हो जब मुल्क के किसी मसले का सवाल 
मचा दो सारे मुल्क में मजहबी बवाल 
हो गर कभी आवाम के हक का विवाद 
हिचको  मत फैलाने में धार्मिक उन्माद 
वायदा करो देने का सारा आकाश 
गर पड़े जरूरत कर दो सत्यानाश 
देता है युवराज को और भी नायाब सलाह
"प्रिंस" है सियासी मशविरों का भण्डार अथाह
चुनते हुए जीवंत मिशाल पडा नहीं दुविधा में
रोड्रिगो बोर्जिया को चुन लिया था सुविधा से 
छलता था लोगों को चमात्कारिक निपुणता से 
पा जाता था अवसर काफी प्रचुरता में 
उसकी अपनी थीं जेलें जल्लाद जहरनवीश
करता था कारिंदों की बारीकी से तफशीश 
किया इस कार्डिनल ने कुछ अद्भुत तिकड़म 
बन गया आसानी से पोप अलेक्जेंडर षष्टम 
चुनना हो गर जीवंत मिसाल मैक्यावाली को आज 
बहुत दुविधा में पड़ जाएगा उसका सियासी अंदाज़ 
दुनिया की छोड़ो होंगे हिन्दुस्तान से ही अनेकों दावेदार 
नहीं रहेगा किसी से पीछे अपना राष्ट्रभक्त सूबेदार 
समझेगा ग़र वह भूमंडलीय सियासत का मिजाज़ 
लाजिम है चुनेगा हिन्दुस्तान से मिसाल-ए-युवराज 
(इमि/०९.०९.२०१४)
526
बन्दूक नहीं है वाजिब हथियार अभी
जनवादी जनचेना की दरकार अभी
(इमि/०९.०९.२०१४)
527
पाश के जन्म दिन को याद करता विप्लवी आवाम
कामरेड पाश को लाल सलाम लाल लाल सलाम
भूल जायेंगे लोग सुरेन्द्र शर्मा की कवितायें
क्योंकि वे एक लडकी से प्रेम की कवितायें हैं
लेकिन याद रखेंगे पाश की कवितायें
क्योंकि वे जहान से प्यार की कवितायेँ हैं
शामिल है जिसमें माशूक का भी प्यार
काम्ररेड  पाश को लाल सलाम
याद रखेगा तुमको साथी
दुनिया का इन्किलाबी आवाम
लाल लाल लाल सलाम
देखकर धार तुम्हारी कविता की
उसमें बहती निर्मल सरिता की
दहशत खा गए हुक्मरान
हो गए थे दहशतगर्द हैरान
असुरक्षित कायर होता है फासीवादी
विचारों में देखता है अपनी बर्बादी
नहीं सह पाता वह विचारों की धार
घबराहट में करता है विचारक पर वार
ऐसा ही किया था उसने गैलेलियो के साथ
नहीं थे भगत सिंह इपाश सके अपवाद
रोकना चाहा ग्राम्सी के विप्लवी विचार
बंद कर जेल में किया भीषण अत्याचार
ऊंची थीं मुसोलिनी के जेल की दीवारें
उससे भी ऊंचे थे बुलंद इरादे ग्राम्सी के
रुका नहीं कलम कभी ग्राम्सी का
सिद्धांत दिया वर्चस्व की त्रासदी का
चे को भी उसने इसे कायरता से मारा
प्रेरित होता रहेगा उनके विचारों से सर्वहारा
शहीदों की श्रृंखला की एक कड़ी हैं पाश
होने नहीं देंगे उनके सपनों को उदास
नहीं मरने देंगे हम पाश के सपनों को
जोड़ेंगे साथ सभी मेहनतकश अपनों को
लड़ेंगे साथी क्योंकि लड़ने की जरूरत है
लाल सलाम साथी पाश! लाल लाल सलाम
फैलाती रहेंगी अगली पीढियां तुम्हारा पैगाम.
(इमि/०९.०९.२०१४; 8.52 PM)
528
जातिवाद का एक ही जवाब इन्किलाब जिंदाबाद 
नहीं टूटेगी जाति प्रतिजातिवाद से 
टूटेगी वह वर्गचेतना के आगाज़ से 
शासकवर्गों की है यह पुरानी चाल 
फैलाते हैं मिथ्याचेतना का जाल 
अंत:कलह को बताते सामजिक अनार्विरोध 
कुंद करने को धार आवाम से अंतर्विरोध की 
और रोकने को लूट का कोई सशक्त प्रतिरोध 
है एक बात काबिल-ए-गौर 
वर्ण भी वर्ग है नहीं कुछ और 
शासक वर्ण ही था शासक वर्ग 
मनुवादी कहते जिसे धरती का स्वर्ग 
करना है उजागर गर हकीकत वर्णाश्रमी स्वर्ग की 
सजग हो कीजिये शिनाख्त अपने वर्ग की 
लम्बे बहुआयामी वर्गसंघर्षों के बाद 
बनेगा ही अंतत: जब वर्गहीन समाज 
न रहेगा कोइ राजा न ही कोइ राज 
छूमंतर हो जाएगा खुद-ब-खुद जातिवाद
(इमि/१०.०९.२०१४)
529
नहीं है जरूरत बदलाव के लिए खून बहाने की
जरूरत है जनचेतना को जनवादी बनाने की
(इमि/१०.०९.२०१४)
530
कितना सरल है लीक पर चलना 
और रहना भगवान भरोसे के छलावे में 
लेकिन आनंद है अद्भुत उन जोखिमों में  
उठाने पड़ते है जो बनाने में नए रास्ते 
और उन दुस्साहसी इरादों में 
देते हैं जो शक्ति बढ़ते रहने के आगे 
नकारते हुए खुदा की सल्तनत 
और ललकारते हुए उसकी खुदाई  
कराती है जो रक्तपात 
और नफ़रत की उत्पात   
अपने मजहबी चोलों में 
(इमि/१०.०९.२०१४)
531
चे को क्या जरूरत थी 
मंत्रिपद छोड़ बोलीविया जाने की
दुनिया में इन्किलाबी जूनून जगाने की
और सीआईए का शिकार होने की ?
लिखते रहते मर्शिया पूंजीवाद का क्रिस्टोफर काड्वेल
बैठ लन्दन की लाइब्रेरी में करते और फर्दर स्टडीज 
क्या जरूरत थी जाकर स्पेन में 
फासीवाद से जंग में शहीद होने की?
जैसा फरमाया श्रीमन् ने उस दिन
लालकिले की प्राचीर से 
करते हुए संवाद मुल्क की तकदीर से
और भी रास्ते थे जीने के 
तख़्त-नशीं होने के 
क्या जरूरत थे भगत सिंह को 
हंसते हुए चूमने की फांसी का फंदा?
पूछते हैं हैं जो ऐसे सवाल
होता नहीं जिन्हें दुर्बुद्धि का मलाल 
नहीं जानते वे इतिहास का मर्म 
और इन्किलाब का मतलब. 
(इमि/१४.०९.२०१४)
532
जागेगा जब मजदूर किसान 
होगा लामबंद साथ छात्र नवजवान 
लिखेगा तब धरती पर नया विधान 
होगा जो मानवता का नया संविधान 
बदल देगा इतिहास का जारी प्रावधान 
होगा बहमत का अल्पमत पर शासन 
मनाने को उसे समानता का अनुशासन 
भोगेंगे मिल साथ समता का सुख अनूठा
न कोइ होगा भूखा न कोइ किसी से रूठा. 
(इमि/१४.०९.२०१४)
533
एक पुलिस अधिकारी मित्र ने पोस्ट डाला कि अच्छे काम करने पर भी बदनाम होते हैं और मौत के शाये में जीते है, उस पर मेरा कमेन्ट:

करते रहोगे गर काम नेक
करते हुए इस्तेमाल दिमाग का
मिलेंगी दुवाएं अनेक
होगा भला गर आवाम का
माना नहीं हो वर्दीधारी गुंड़ा
यह भी माना की वर्दीधारी शेर हो
समझ नहीं पाता
कि  कौन ज्यादा खतरनाक है
 मानवता के लिए, शेर या गुंडा?
नहीं समझ पाता हूँ और भी एक बात
होता क्यों नहीं वर्दीधारी भी साधारण इंसान
मिले जिसे तालीम न महज हुक्म तामील करने की
बल्कि विवेक का भी इस्तेमाल करने की
और सुनने की आवाज़  अंतरात्मा की?
उसी तरह जैसे समझ नहीं पाता
कि क्यों नहीं समझता शिक्षक
शिक्षक  होने की अहमियत?

मौत के खौफ में नहीं जी जा सकती सार्थक ज़िंदगी
मौत के खौफ में धीरे धीरे मरता है इंसान
मौत माना कि है अंतिम सत्य मगर अनिश्चित है
ज़िंदगी सुन्दर सजीव और सुनिश्चित है
जीना है वाकई गर एक मानिंद जिन्दगी
डालनी पड़ेगी आदत बेखौफ़ जीने की
सादर

(इमि/१४.०९.२०१४)
534
अगर दुनिया से ख़त्म हो जाए पुलिसतंत्र
हो जाएगा किसान और मजदूर स्वतंत्र
करता है जो क़ानून व्यवस्था का कोरा प्रपंच
 हिफाज़त करता है मुल्क के के थैलेशाहों की
और जरायमपेशा सियासतदां आकाओं की
वर्दी के नाम मचता है आवाम में कोहराम
यह बात और है देता है वही इस वर्दी का दाम
हो जाए अगर धरती से पुलिस की जमात ख़तम
दुनिया में लहराएगा अमन-चैन का परचम
किसानों के पैसे से खरीदता है बन्दूक और गोली
टाटा के आदेश से खेलता उन्ही के खून से होली
चाहिए टाटा को कलिंगनगर के किसानों की जमीन
किसानों ने कहा देंगे जान पर देंगे नहीं अपनी जमीन
हुई नहें टाटा को आदिवासियों की यह बात बर्दास्त
जमशेद नगर बनाने में नहीं हुई थी ऐसी कोइ बात
हुए थे उस वक़्त हजारों आदिवासी बेघर
उनके वंशज रखे है आस में अब तक सबर
जमीन न देने की आदिवासियों की मजाल
कायम होगी इससे एक बहुत बुरी मिसाल        
किया टाटा ने बीजू पटनायक के बेटे को तलब
कहा उससे आदिवासियों को सिखाने को सबब
भेज दिया उसने कलेक्टर और पुलिस कप्तान
हुक्म दिया मारने को अदिवासी किसान
मार दिया उनने कितने ही मासूम इंसान
सिखाया जाता है पुलिसियों को मानना आदेश
हो जाए चाहे विवेक और जमीर  का भदेश
पुलिसियों में होते हैं कई बेहतर इंसान भी
फ़र्ज़ अदायगी में खतरे में डालते हैं वे ज़िंदगी
ऐसे लोग अपनी जमात में अपवाद होते हैं
अपवादों  से नियम ही सत्यापित होते हैं
होगा जब कभी ऐसे दिन का आगाज़
वर्दियां सुनेंगीं अंतरात्मा की आवाज़
सुनेंगीं आवाम का इन्किलाबी सन्देश
मानेंगीं  नहीं हाकिम का अनर्गल आदेश
बदल देंगी दिशा बन्दूक की नली का
हाकिम दिखेगा गुंडा पतली गली का
मारेंगी नहीं तब वे मजदूर किसान
बंदूकों पर होगा उनके लाल निशान
(इमि/16.०९.२०१४)