Monday, March 16, 2020

आइंस्टाइन

जर्मनी में रहते तो आइंस्टाइन की सेलीब्रिटा हैसियत भी उनहें यातना शिविर सो न बचा पाती। जैसे यहां किसी भी विरोध को वामपंथी बताकर उसकी अवमानना की जाती है उसी तरह उस समय जर्मनी में हर विरोध को यहूदीवादी बताकर निंदनीय बता-बना दिया जाता था। उनके सापेक्षता सिद्धांत को यहूदी (सिमेटिक) सापेक्षता कहकर खारिज किया गया था। वे उस समय जर्मनी से भागने में सफल रहे थे। उनकी सेलिब्रिटी हैसियत ने उन्हें अमेरिका में मैकार्थीवाद के कहर से बचा लिया था। आज भारत में जैसे विरोधी बुद्धिजीवियों को अर्बन नक्सल कह कर प्रताड़ित किया जा रहा है, वैसे ही 1950 के दशक में तमाम शिक्षकों, लेखकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों को कम्युनिस्ट या रूसी एजेंट बताकर प्रताड़ित किया जाता था। आइंस्टाइन तथा तमाम अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अथक प्रयास के बावजूद मैनहट्टन परमाणु परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक पति-पत्नी, इथेल और जुलियस रोजनबर्ग नहीं बच सके थे। उन्हें मृत्युदंड दे दिया गया था। उनके ऊपर उस परमाणु फार्मूले को लीक करने का ारोप था जो पहले ही सार्वजनिक हो चुका था। आइंस्टाइन इस लेख का विचार दिल्ली विश्वविद्यालय में फीजिक्स के एक प्रोफेसर से बातचीत की प्रतिक्रिया में मन में आया। विज्ञान की शिक्षा और वैज्ञानिकता पर बातचीत में दिल्ली विवि शिक्षक संघ (डूटा) द्वारा होंडा के मजदूरों की हड़ताल को समर्थन के एक पोस्टर को दिखाकर उन्होंने कहा जो आप कह रहे हैं, ठीक है, लेकिन शिक्षक का मजदूर हड़ताल के समर्थन का क्या मतलब?

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