हम (मार्क्सवादी) तो शुरू से ही इसे बुर्जुआ जनतंत्र कहते हैं जो सामंतवाद की तुलना में एक प्रगतिशील व्यवस्था है। भारत में चूंकि पूंजीवाद का विकास स्वतंत्र रूप से सामंतवाद के विरुद्ध संघर्ष से नहीं हुआ बल्कि सांतवाद के साथ गठबंधन में उपनिवेशवाद के हस्तक्षेप से हुआ, इसलिए यहां के पूंजीवाद और पूंजीवादी जनतंत्र का चरित्र अर्ध-सामंती और अर्ध-औपनिवेशिक है। ट्रंप और मोदी तो निमित्त मात्र हैं, असली शासक तो वाल-स्ट्रीट तथा अंबानी-अडानी हैं। शासक वर्ग पूंजीपति वर्ग है तथा जैसा कि मार्क्स-एंगेल्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में लिखा है, राज्य पूंजीपतियों के सामान्य हितों की प्रबंध समिति है। इसीलिए हम सत्ता नहीं, व्यवस्था बदलने की बात करते हैं।
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