आपकी डर सेकुलर होने के आरोप लगने को है? कम्यूनल छवि पसंद है आपको? मुसलमानों के अंदर डर राज्य प्रायोजित सांप्रदायिक आतंक से बैठना शुरू हो गया था, जिसे इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन ने तोड़ना शुरू किया जिस प्रक्रिया को तोड़ने के लिए दिल्ली के गुजरातीकरण की कोशिस की गयी। कागज का डर मुसलमानों से अधिक गरीबों, मजदूरों और आदिवासियों में है। सीएए का विरोध आसाम से शुरू हुआ. वहां 'क्रांतिवादी' नहीं आम आदमी आंदोलित था और है। सरकार की अनुकंपा से पुलिस ही सबसे बड़ी अतिवादी ताकत बन गयी है।
हमारा समाजीकरण हमारे मन में, अनुभवहीनता के चलते, तमाम तरह के आधारहीन पूर्वाग्रह भर देता है। मुसलमान लड़कों से दोस्ती तो थी, लेकिन खान-पान के बारे में गहरे पूर्वग्रह थे। पता नहीं क्या खाते होंगे। कक्षा 10 में मेरा एक सहपाठी था अरशद मजीद, अच्छा दोस्त था। उसके बड़े भाई रोडवेज में अधिकारी थे, जौनपुर में उन्हीं के सा रहता एक दिन उसके चला गया उसकी भाभी कुच खाने को बनाने गयी। जब तक वह सिंघाड़े की स्वादिस्ट पकौड़ी बनाकर ले आई तब तक मेरी जान ऊपर-नीचे हो रही थी कि ये लोग पता नहीं क्या खाते होंगे। खाकर जान में जान आई कि ये लोग भी हमारी ही तरह खाते-पीते हैं। जातीय-धार्मिक पूर्वाग्रह कटने के ई रोचक अनुभव हैं . कभी शेयर करूंगा।
हमारा समाजीकरण हमारे मन में, अनुभवहीनता के चलते, तमाम तरह के आधारहीन पूर्वाग्रह भर देता है। मुसलमान लड़कों से दोस्ती तो थी, लेकिन खान-पान के बारे में गहरे पूर्वग्रह थे। पता नहीं क्या खाते होंगे। कक्षा 10 में मेरा एक सहपाठी था अरशद मजीद, अच्छा दोस्त था। उसके बड़े भाई रोडवेज में अधिकारी थे, जौनपुर में उन्हीं के सा रहता एक दिन उसके चला गया उसकी भाभी कुच खाने को बनाने गयी। जब तक वह सिंघाड़े की स्वादिस्ट पकौड़ी बनाकर ले आई तब तक मेरी जान ऊपर-नीचे हो रही थी कि ये लोग पता नहीं क्या खाते होंगे। खाकर जान में जान आई कि ये लोग भी हमारी ही तरह खाते-पीते हैं। जातीय-धार्मिक पूर्वाग्रह कटने के ई रोचक अनुभव हैं . कभी शेयर करूंगा।
Ashish Kumar हम तो जिन शहरों में रहे हैं वहां सारे गुंडे ब्राह्मंण, भूमिहार, राजपूत या यादव ही रहे हैं। आपकेदिमाग में बचपनसे भरा सांप्रदायिक जहर आपकोइस्लामोफोबिया का मरीज बना दिया है। हम जब पढ़तेथे तो पूर्वी उप्र सबसे बड़े गुंडे वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी थे।
हमारा समाजीकरण हमारे मन में, अनुभवहीनता के चलते, तमाम तरह के आधारहीन पूर्वाग्रह भर देता है। मुसलमान लड़कों से दोस्ती तो थी, लेकिन खान-पान के बारे में गहरे पूर्वग्रह थे। पता नहीं क्या खाते होंगे। कक्षा 10 में मेरा एक सहपाठी था अरशद मजीद, अच्छा दोस्त था। उसके बड़े भाई रोडवेज में अधिकारी थे, जौनपुर में उन्हीं के सा रहता एक दिन उसके चला गया उसकी भाभी कुच खाने को बनाने गयी। जब तक वह सिंघाड़े की स्वादिस्ट पकौड़ी बनाकर ले आई तब तक मेरी जान ऊपर-नीचे हो रही थी कि ये लोग पता नहीं क्या खाते होंगे। खाकर जान में जान आई कि ये लोग भी हमारी ही तरह खाते-पीते हैं। जातीय-धार्मिक पूर्वाग्रह कटने के ई रोचक अनुभव हैं . कभी शेयर करूंगा।
हमारा समाजीकरण हमारे मन में, अनुभवहीनता के चलते, तमाम तरह के आधारहीन पूर्वाग्रह भर देता है। मुसलमान लड़कों से दोस्ती तो थी, लेकिन खान-पान के बारे में गहरे पूर्वग्रह थे। पता नहीं क्या खाते होंगे। कक्षा 10 में मेरा एक सहपाठी था अरशद मजीद, अच्छा दोस्त था। उसके बड़े भाई रोडवेज में अधिकारी थे, जौनपुर में उन्हीं के सा रहता एक दिन उसके चला गया उसकी भाभी कुच खाने को बनाने गयी। जब तक वह सिंघाड़े की स्वादिस्ट पकौड़ी बनाकर ले आई तब तक मेरी जान ऊपर-नीचे हो रही थी कि ये लोग पता नहीं क्या खाते होंगे। खाकर जान में जान आई कि ये लोग भी हमारी ही तरह खाते-पीते हैं। जातीय-धार्मिक पूर्वाग्रह कटने के ई रोचक अनुभव हैं . कभी शेयर करूंगा।
Ashish Kumar हम तो जिन शहरों में रहे हैं वहां सारे गुंडे ब्राह्मंण, भूमिहार, राजपूत या यादव ही रहे हैं। आपकेदिमाग में बचपनसे भरा सांप्रदायिक जहर आपकोइस्लामोफोबिया का मरीज बना दिया है। हम जब पढ़तेथे तो पूर्वी उप्र सबसे बड़े गुंडे वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी थे।
No comments:
Post a Comment