कोरोना के कहर से निपटने में क्यूबा के डॉक्टर-नर्सों की भूमिका पर एक लिंक की पोस्ट पर एक मित्र ने कमेंट किया कि क्यूबा का साम्यवाद चीन के साम्यवाद से भिन्न है, उस पर:
चीन में अब साम्यवाद नहीं है। साम्यवाद कहीं नहीं है, साम्यवाद भविष्य की व्यवस्था है। नामकरण की सुविधा के लिए पूंजीवाद से साम्यवाद की संक्रमणकालीन व्यवस्था को समाजवाद कहा गया। पूंजीवादी जनतंत्र में राज्य पूंजीपतियों के सामान्य हित (मुनाफा) के प्रबंधन की कार्य समिति होता है, सामाजवादी जनतंत्र में पूंजी जनहित में राज्य नियंत्रित होती है। राज्य के नियंत्रण में पूंजी का नियोजित विकास निजी स्वामित्व के पूंजी के विकास से बेहतर होता है, पूर्व सोवियत संघ इसका ज्वलंत उदाहरण था। पूर्व सोवियत संघ, चीन, क्यूबा में पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं थीं -- पूंजीवाद में ही जनवादी जनतंत्र। लेनिन ने इसे जनता का जनतंत्र नाम दिया था तथा माओ ने नया जनतंत्र। साम्यवाद भूमंडलीय पूंजीवाद की वैकल्पिक व्यवस्था है, इसलिए जब भी आया तो भूमंडलीय होगा। भविष्य की व्यवस्था की रूपरेखा तो भविष्य की पीढ़ियां तय करेंगी, लेकिन पूंजीवाद का अंत तो निश्चित है क्योंकि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत भी अवश्यंभावी है, पूंजीवाद अपवाद नहीं है। यह अलग बात है कि इसकी कोई समयसीमा नहीं तय की जा सकती, इतिहास का गतिविज्ञान ज्योतिष के नियम से नहीं चलता। सामंतवाद से पूंजीवाद का संक्रमण एक वर्ग समाज से दूसरे वर्ग समाज का संक्रमण था। पूंजीवाद से साम्यवाद का संक्रमण गुणात्मक रूप से भिन्न -- एक वर्ग समाज से वर्गहीन समाज का संक्रमण है।
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