पोस्ट और कमेंट्स की फिरकापरस्त, मर्दवादी तथा कब्रिस्तानी अमानवीय संवेदना की भाषा में ही वैज्ञानित बुद्धिमत्ता झलक रही है। मुझे लगता नहीं किसी ने कहा थाली बजाने से विज्ञान की हत्या हो जाएगी, किसी ने तंज इस बात को लेकर किया होगा कि महामारी के समय राष्ट्र के नाम राष्ट्राध्यक्ष के संदेश में लोगों को इससे निपटने की तैयारियों और योजनाओं की अपेक्षा होती है, प्रभावित होने वालों के लिए केरल की तरह किसी राष्ट्रीय पैकेज की घोषणा की उम्मीद होती है, लगभग निजीकरण की गिरफ्त आ चुके मेडिकल संस्थानों को टेस्ट और चिकित्सा के रियायती निर्देश की अपेक्षा होती है, साथ में ताली-थाली बजवा लो। मनुष्य के विवेक और मानवीयता की तुलना मेंभावनाओं और आवेश को अपील करना आसान होता है। विज्ञान और आस्था परस्पर विरोधी हैं। बुद्धिमत्ता तथा नैतिकता में विवेक और अंतःआत्मा का योग होता है। भावना में बहकर इंसान कई बार अविवेकी काम कर जाता है। इसरो के निर्देशक के निजी रूप से मंदिर जाने से किसी को कोई आपत्ति नहीं है, सार्वजनिक वैज्ञानिक उपक्रम की सफलता के लिए वैज्ञानिक कौशल की बजाय धार्मिक कर्मकांड की आस्था पर निर्भरता का सार्वजनिक प्रदर्शन निश्चित ही आपत्तिजनक है। ताली बजाने की बात के लिए 'मोमिनो की मां ही क्यों मिली? खैर मैं जानता हूं इस कमेंट पर तोहमतों की भरमार होगी।
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