अभी अभी सरोज जी (पत्नी) ने नवरात्रि के पहले दिन का व्रत तोड़ने की पूजा समाप्त करेत हुए दुर्गा चालिसा की एक चौपाई का इंप्रोवाइजेसन करते हुए दुर्गा मैया से कोरोना के विनाश के चमत्कार की प्रार्थना की। दुर्गा जी इसलिए थोड़े बनी हैं। वोल्तेयर की बात याद आई लेकिन दिन भऱ के ब्रत के तुरंत बाद उनसे यह बात शेयर करना उचित नहीं समझा। वैसे उचित तो यहां भी नहीं है, लेकिन अरविंद तो बजरंगबली के भक्त हैं देवी दुर्गा जी के नहीं। वोल्तेयर यूरोपीय प्रबोधन आंदोलन के एक प्रमुख फ्रांसीसी दार्शनिक थे, नागरिक स्वतंत्रता के प्रखर पैरोकार, प्रशासन तथा ईशाइयत के समालोचक होने साथ के खुदा-नाखुदाओं के विरुद्ध भी बोलते रहते थे। जेल-वेल भी गए और देश निकाला भी झेला। भूमिका लंबी हो गयी लेकिन अब हो ही गयी तो थोड़ा और। 'आपकी हर बात से मैं असहमत हूं लेकिन अंतिम सांस तक इसे अभिव्यक्त करने के आपके अधिकार के लिए लड़ूंगा' ('I disapprove of what you say, but I will defend to the death your right to say it.') यह बात युवा वोल्तेयर ने एक अंग्रेज लेखक बीट्रिस हाल से कही थी। खैर जिस बात के लिए उनकी याद आई और जिसने उनके आस्तिक समकालीनों को अवाक कर दिया था, वह ईश्वरके अस्तित्व को लेकर है। समाज में मौजूद बुराइयों के संदर्भ में उन्होंने कहा यदि ईश्वर है और बुराइयां दूर नहीं करता तो तीन बातें हो सकती हैं -- 1. वह बुराइयां दूर करना तो चाहता है लेकिन कर नहीं पाता, फिर कैसा सर्वशक्तिमान; 2. कर तो सकता है लेकिन करना नहीं चाहता, जो दुराचार (wickedness) है; 3. न कर ही सकता न करना ही चाहता, जो दुृराचारके साथ सर्वशक्तिमानत्व का भी खंडन है। इसका किसी के पासजवाब नहीं था। दुर्गा जी के कोरोना विनाश के चमत्कार के बारे में कुछ नहीं कहूंगा। वोल्तेयर ईशाइयों वाले भगवान को कहा था। अरविंद जी से बिना गलती के ही माफी मांग लेता हूं।
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