मैं नास्तिक हूं लेकिन आस्तिकों से किसी प्रकार का छुआछूत नहीं रखता। मेरी पत्नी अत्यंत धार्मिक हैं। हम (मार्क्सवादी) धर्म समाप्त नहीं करना चाहते, क्योंकि दुख-दर्द वाले समाज में धर्म सुख या खुशी की खुशफहमी देता है। किसी से धर्म छोड़ने की मांग करने का मतलब है खुशमहमी छोड़ने को कहना जिसका मतलब है उन्हें खुशी देना। जब किसी को वास्तविक खुशी मिलेगी तो उसे खुशफहमी की जरूरत नहीं होगी, धर्म अपने आप अनावश्यक हो जाएगा। इस लिए हम धर्म खत्म करनेकी बजाय उन परिस्थितियों को खत्म करना चाहते हैं जिनसे खुशफहमी की जरूरत होती है। जिसे आत्मबल की अनुभूति हो जाती है उसे खुशफहमी की जरूरत नहीं होती।
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