मुगलों द्वारा बलात धर्म परिवर्तन की एक पोस्ट पर कुछ कमेंट:
सिकुलर्स का मजाक उड़ाने वाले कम्युनल कहलाना पसंद नहीं करेंगे।जिस तरह सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं राजनैतिक विचारधारा है, उसी तरह सत्ता का वर्चस्व और अधीनता धार्मिक नहीं राजनैतिक मामला है। शाहजहां के सेनापति ने बुंदेले रजवाड़े को धार्मिक नहीं राजनैतिक कारणो से कत्ल किया। संघियों का इतिहासबोध तथ्यपरक न होकर अफवाहजन्य होता है। यदि तलवार के बल पर धर्मपरिवर्तन होता तो दिल्ली और आगरा के इर्द-गिर्द मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी होती, जबकि मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेक्ष पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत थे। मुसलमानों में बहुसंख्यक कौन हैं? -- लोहार, बढ़ई. दर्जी, धुनिया, जुलाहे, चिक.. आदि -- कारीगर जातियां जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी किंतु सामाजिक रूप से नहीं, उन्होंनेसामाजिक बराबरी के लिए धर्म परिवर्तन कर लिया लेकिन फिर भी जाति से मुक्त नहीं हुए। सांप्रदायिक सोच का सवर्ण सांप्रदायिकता के जहर से इतना ओत-प्रोत होता है कि इतिहास को भी तर्कशील दृष्टि से पढ़ने की बजाय हिंदू-मुस्लिम नरेटिव में फिट करने की कोशिस करता है। शाखा के बौद्धिकों में ऐसा ही अफवाहजन्य इतिहासबोध पढ़ाया जाता है।
जनेऊ तौलाने की बात संघी अफवाह है। मंदिर तोड़ा भी राजनैतिक कारणों से मठ-मंदिरों को अनुदान भी दिया राजनैतिक कारणों से। शाखा के एक बौद्धिक में वीरेश्वर जी (विहिप का मौजूदा नेसनल सेक्रेटरी वीरेश्वर द्विवेदी) नामक प्रचारक ने औरंगजेब से इतना जनेऊ जलवा दिया जो किउसकी सल्तनत की कुल आबादी के कई गुना लोग पहनते। मैं गणित का छात्र था जब पूछा तो मुख्य शिक्षक ने कहा कि बौद्धिक में सवाल नहीं पूछा जाता।
मंदिर धन के लिए लूटे जाते थे, मुगलों ने नहीं मंदिर लूटा। नालंदा बख्तियार खिलजी ने जलाया। सारे जालिम हुक्मरानों को विश्वविद्यालयोंऔर पुस्तकालयों से भय होता है इसीलिए वे उनपर हमला करते हैं चाहे बख्तियार खिलजी हो, मुसोलिनी या हिटलर हो या मोदी। आप से तो तथ्यपरक इतिहासबोध की अपेक्षा है। शंकराचार्य के नागाओं ने भी बौद्ध विहारों को नष्ट किया था।
जितना आता है उतना ही बताएंगे। पूरी बात तो बता दिया आपने मुगलों को सेकुलर्स का रिश्तेदार तो बता दिया यह नहीं बताया कम्यूनल्स के रिश्तेदार कौन हैं? जब तलवार से राज्य की स्थापना होती थी और जिसकी तलवार में ज्यादा जोर होता था वह विजयी होता था और विजित का मानमर्दन करता था, यह जंगखोरी का तार्किक उपपरिणाम है।
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