Sunday, March 1, 2020

बेतरतीब 61(शाहीन बाग)

आज शाहीन बाग में 4-5 घंटे बहुत अच्छे बीते, धारा 144 की वजह से आज माइक का इस्तेमाल नहीं हो रहा था तो सब क्रांतिकारी गाने गा रही थीं। यह मेरी छठी-सातवीं यात्रा थी। आज आंदोलन से एकजुटता दिखाने इफ्टू तथा कुछ अन्य ट्रेड यूनियनों के लोग लुबह से उनकेसाथ थे। इफ्टू की अध्यक्ष डॉ. अपर्णा, डॉ अनिमेश, डॉ. मृगांक इतिहासकार एवं नारीवादी प्रो. उमा चक्रवर्ती, दिल्ली की पूर्व मंत्री प्रो. किरण वालिया, डूटा की पूर्व अध्यक्ष प्रो. नंदिता नारायण सभी गानों और नारों में इनके साथ ऐसे हिल-मिल कर साथ दे रहे थे कि इनकी सरलता इनकी असाधरणता बन गयी थी। इनकी लाइब्रेरी में समयांतर में छपे शाहीन बाग पर मेरे लेख की दर्जन से अधिक फोटो कॉपियां बुक सेल्फ में लगी थीं। मेरे कई छात्र-छाीत्राएं ( औपचारिक तथा अनौपचारिक) मिले, आंदोलनोंमें अपने बच्चों से मुलाकात सुखद होती है। हम लोग बात कर रहे थे कि आंदोलन वापस होने के बाद इन महिलाओं की चेतना तो अब पीछे नहीं जाएगी। नए नारे, नए गीत, नया नव जागरण। सात्यकी दिवि में फीजिक्स का प्रो. था अब मेघनाथ शाहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यक्लियर फीजिक्स कलकत्ता में है, वहां से आया था। आज की इस यात्रा के बारे में फिर लिखूंगा। लाइब्रेरी में एक नारा लिखाथा, जेएनयू आंदोलन (2016) से निकला नारा, 'लड़ो पढ़ाई करने को, पढ़ो समाज बदलने को'।

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